बचपन से पचपन तक
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प्राक्कथन—छोटीछोटी सफलताओं ने शिखर पर पहुंचाया
परिस्थितियां कैसी भी हो, अच्छाई साथ ले कर आती हैं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस ने सभी को हिला कर रख दिया. हरेक व्यक्ति विचलित था. सुबहशाम घुमने वाले ज्यादा घबराए थे. वे बिना घुमेफिरे नहीं रह सकते थे. उन के लिए यह लॉकडाउन किसी तालाबंदी या जेल से कम नहीं था. इस से मैं भी अछूता नहीं था. मेरे मन में अनेक विचार आए. तालाबंदी कैसे गुजरेगी? समय कैसे बितेगा? क्या दिनभर बैठे रहेंगे? या कुछ काम भी करेंगे? तब मन में एक विचार आया. कई महापुरूषों को जेल की सजा हुई थी. उन्हें अपने दुर्दिन जेल में बिताना पड़े थे. तब वे क्या करते रहे होंगे? यह विचार आते ही जिज्ञासा जागृत हुई. इन महापुरूषों की जीवनियां पढ़नी चाहिए. इन्हें ने अपना समय कैसे बिताया था? क्या किया था? तब इन की जीवनियां पढ़ी. तब ज्ञात हुआ कि महापुरूषों ने अपने जीवन में बहुत दुख देखें. कई संघर्षों का सामना किया. इसी बीच उन्हों ने अपनी छोटीछोटी सफलताओं में खुशियां ढूंढना शुरू किया. तब जा कर उन के कष्टभरे जीवन से उन्हें छुटकारा मिला. आपदा में भी अवसर मिला. जिस का परिणाम हमारे सामने हैं. आज वे पुरूष हमारे सामने महापुरूष बन कर खड़े हैं. कई विद्वानों ने जेल के दिनों का सदुपयोग किया. जवाहरलाल नेहरू ने जेल से अपनी ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ लिख कर अपने समय का सुदपयोग किया. गोपालकृष्ण आगरकर अपनी छोटीसी गलती के पीछे जेल में 101 दिन रहे. इन दिनों को उपयोग उन्हों ने डोंगरी की दशा का चित्रण किया. उसी को उन्हों ने ‘डोंगरी जेल के 101 दिन’ में अपने प्रदेश की व्यथाकथा का चित्रण किया. जिस में सामाजिक कुरीतियों, छुआछूत और भेदभाव आदि का तानाबाना बुन कर लिख दिया. इसी समय चंपक ने मुझे महापुरूषों के जीवन पर कहानी लिखने के लिए निमंत्रित किया. उसी से सुझावानुसार और सूची के अनुरूप मैं ने कई महापुरूषों की जीवनियां पढ़ी. उन के संघर्ष और व्यथाकथा को जाना. समझा. उसे आत्मसात किया. तब उन के वास्तविक जीवन के संघर्ष, जीवटता और दुर्दिन को समझा. तब उन के श्रम और लक्ष्य के प्रति अटूट निष्ठा और श्रृद्धा को समझ कर उन को कहानियों में ढाला. इन्हीं की प्रेरणा और प्रोत्साहन का नतीजा है कि यह कहानी संग्रह आप के सम्मुख प्रस्तुत हैं.
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Book preview
बचपन से पचपन तक - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
बचपन से पचपन तक ( हमारे नायक)
BY
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
pencil-logo
ISBN 9789356104662
© Omprakash Kshatriya 'Prakash' 2022
Published in India 2022 by Pencil
A brand of
One Point Six Technologies Pvt. Ltd.
123, Building J2, Shram Seva Premises,
Wadala Truck Terminal, Wadala (E)
Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA
E connect@thepencilapp.com
W www.thepencilapp.com
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DISCLAIMER: This is a work of fiction. Names, characters, places, events and incidents are the products of the author's imagination. The opinions expressed in this book do not seek to reflect the views of the Publisher.
Author biography
ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
जन्म दिनांक- 26 जनवरी 1965
प्रकाशित पुस्तकें- 1- लेखकोपयोगी सूत्र व 100 पत्रपत्रिकाएं कहानी लेखन महा विद्यालय
द्वारा प्रकाशित, 2- कुएं को बुखार 3- आसमानी आफत 4- कौन सा रंग अच्छा है? 5- कांव-कांव का भूत 6- रोचक विज्ञान बालकहानियाँ 7-चाबी वाला भूत प्रकाशित ।
उपलब्धि- 141 बालकहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन व अनेक कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित, रोचक विज्ञान बालकहानियाँ को शब्द निष्ठा पुरस्कार प्राप्त
ई बुक - 108 ebook प्रकाशित
पुरुस्कार- अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय रत्न सम्मान प्राप्त .
पता- पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़ जिला-नीमच-458226 (मध्यप्रदेश) मोबाइल- 09424079675
opkshatriya@gmail.com
Contents
डरना मना हैं
रियाज ने बनाया रवींद्र
पौधों में जान
नैनो तकनीकी के जनक
भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक
निडर श्रुतिधर वीरेश्वर
स्वदेशी लक्ष्यभेदी नियंत्रित प्रेक्षापास्त्र के पितामह
अंतरिक्ष में गूंजा उडुपी
जीभ की गुलामी
बिना राज्य का राजा
पानी नीला क्यों हैं
Epigraph
सभी महापुरूषों को समर्पित
जिन्हों ने इस देश के निर्माण में अपनी
छोटीसी भूमिका का निर्वाहन किया है
उन सब को समर्पित मेरी यह पुस्तक
एक छोटीसी आदरांजलि है.
यदि इस में से एक भी कहानी उन की
सार्थकता को सिद्ध करने में सक्षम है
तो मेरी मेहनत सफल हैं.
Foreword
प्राक्कथन—छोटीछोटी सफलताओं ने शिखर पर पहुंचाया
परिस्थितियां कैसी भी हो, अच्छाई साथ ले कर आती हैं. कोरोनाकाल में लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस ने सभी को हिला कर रख दिया. हरेक व्यक्ति विचलित था. सुबहशाम घुमने वाले ज्यादा घबराए थे. वे बिना घुमेफिरे नहीं रह सकते थे. उन के लिए यह लॉकडाउन किसी तालाबंदी या जेल से कम नहीं था. इस से मैं भी अछूता नहीं था.
मेरे मन में अनेक विचार आए. तालाबंदी कैसे गुजरेगी? समय कैसे बितेगा? क्या दिनभर बैठे रहेंगे? या कुछ काम भी करेंगे? तब मन में एक विचार आया. कई महापुरूषों को जेल की सजा हुई थी. उन्हें अपने दुर्दिन जेल में बिताना पड़े थे. तब वे क्या करते रहे होंगे?
यह विचार आते ही जिज्ञासा जागृत हुई. इन महापुरूषों की जीवनियां पढ़नी चाहिए. इन्हें ने अपना समय कैसे बिताया था? क्या किया था? तब इन की जीवनियां पढ़ी. तब ज्ञात हुआ कि महापुरूषों ने अपने जीवन में बहुत दुख देखें. कई संघर्षों का सामना किया. इसी बीच उन्हों ने अपनी छोटीछोटी सफलताओं में खुशियां ढूंढना शुरू किया. तब जा कर उन के कष्टभरे जीवन से उन्हें छुटकारा मिला. आपदा में भी अवसर मिला. जिस का परिणाम हमारे सामने हैं. आज वे पुरूष हमारे सामने महापुरूष बन कर खड़े हैं.
कई विद्वानों ने जेल के दिनों का सदुपयोग किया. जवाहरलाल नेहरू ने जेल से अपनी ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ लिख कर अपने समय का सुदपयोग किया. गोपालकृष्ण आगरकर अपनी छोटीसी गलती के पीछे जेल में 101 दिन रहे. इन दिनों को उपयोग उन्हों ने डोंगरी की दशा का चित्रण किया. उसी को उन्हों ने ‘डोंगरी जेल के 101 दिन’ में अपने प्रदेश की व्यथाकथा का चित्रण किया. जिस में सामाजिक कुरीतियों, छुआछूत और भेदभाव आदि का तानाबाना बुन कर लिख दिया.
इसी समय चंपक ने मुझे महापुरूषों के जीवन पर कहानी लिखने के लिए निमंत्रित किया. उसी से सुझावानुसार और सूची के अनुरूप मैं ने कई महापुरूषों की जीवनियां पढ़ी. उन के संघर्ष और व्यथाकथा को जाना. समझा. उसे आत्मसात किया. तब उन के वास्तविक जीवन के संघर्ष, जीवटता और दुर्दिन को समझा. तब उन के श्रम और लक्ष्य के प्रति अटूट निष्ठा और श्रृद्धा को समझ कर उन को कहानियों में ढाला.
इन्हीं की प्रेरणा और प्रोत्साहन का नतीजा है कि यह कहानी संग्रह आप के सम्मुख प्रस्तुत हैं. जिन में इन महापुरूषों की संघर्षगाथा को उन की व्यथा के साथ कथा में व्यक्त कर के यहां प्रस्तुत किया गया हैं.
आशा है आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा. इस की कमियों और खूबियों से आप मुझे अवगत करवाएंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी. इसी आशा के साथ
आप का साथी,
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
पोस्ट आफिस के पास, रतनगढ़
जिला—नीमच मप्र .458226
9424079675
opkshatriya@gmail.com
डरना मना हैं
योगेश सुबह उठा. वह बहुत डरा हुआ था. मम्मी ने पूछा तो उस ने बताया, मम्मीजी! रात को मैं भण्डारगृह में गया था. वहां मैं ने उड़ने वाला भूत देखा था.
क्या!
मम्मी ने चौंक क कर पूछा, तू ने भण्डारगृह में भूत देखा था?
यह कह कर मम्मी हंसने लगी.
उन्हें हँसता देख कर योगेश चिढ़ पड़ा, मम्मीजी! आप हंस रही है?
योगेश ने गुस्से में कहा, यहां तो मेरी डर के मारे जान निकली जा रही है.
बेटा! यह तो हंसी की बता है,
मम्मी उस के पास बैठते हुए बोली, क्यों कि भूतवूत कुछ नहीं होते हैं. यह हमारा भ्रम होता है.
यह कहते हुए मम्मी ने योगेश को हाथ का इशारा कर के कहा, चलो ! मेरे साथ. भण्डारगृह में चल कर देखते हैं. वहां कौनसा उड़ने वाला भूत है?
कहते हए मम्मी योगेश के साथ भण्डारगृह में आ गई.
मम्मी ने इधरउधर देखा. उन्हें कुछ नजर नहीं आया. तभी उन की निगाहें एक