Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

मेरी पाँच कहानियाँ
मेरी पाँच कहानियाँ
मेरी पाँच कहानियाँ
Ebook60 pages32 minutes

मेरी पाँच कहानियाँ

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

इस पुस्तक में पाँच मनोरंजक कहानियां हैं। सभी कहानियों के विषय – वस्तु अलग अलग हैं । ये कहानियाँ मेरे सामाजिक परिवेश के प्रेक्षण के आधार पर कल्पना से गढ़ी गईं हैं। -लेखक

Languageहिन्दी
Release dateJun 2, 2020
ISBN9781393053781
मेरी पाँच कहानियाँ
Author

Ravi Ranjan Goswami

Ravi Ranjan Goswami is a popular Hindi author from Jhansi, India. He writes in English too. He is an IRS officer and lives in Cochin, Kerala India.

Read more from Ravi Ranjan Goswami

Related to मेरी पाँच कहानियाँ

Related ebooks

Reviews for मेरी पाँच कहानियाँ

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    मेरी पाँच कहानियाँ - Ravi Ranjan Goswami

    समर्पण –केश एवं दिविता

    आमुख

    इस पुस्तक में पाँच मनोरंजक कहानियां हैं। सभी कहानियों के विषय – वस्तु अलग अलग हैं । ये कहानियाँ मेरे सामाजिक परिवेश के प्रेक्षण के आधार पर कल्पना से गढ़ी गईं हैं।  -लेखक

    अनुक्रमणिका

    कथाक्रम –

    1-भयाक्रांत ।

    2-मंकी बंदर ।

    3-इतिहास का भूगोल ।

    4-ये क्या हुआ ।

    5-वेलेंटाइन । 

    1,भयाक्रांत

    उसकी उम्र लगभग 50 वर्ष होगी । वह मेरे बगल मेँ खड़ा हुआ पानवाले से बातें कर रहा था। मैं दिल्ली एक इंटरव्यू के सिलसिले में गया था । एक ऑफिस में इंटरव्यू देकर मैं रेलवे स्टेशन जाने के लिए बस की प्रतीक्षा मेँ था । पानवाला शायद उसका परिचित था । पानवाले से बातचीत करते हुए बीच बीच मेँ वह मुझे भी देख लेता था । उसकी आँखों मेँ अजीब सा भय समाया था । यही वह कह भी रहा था कि उसे बहुत डर लगता है ।

    अपरिचित शहर मेँ एक अजनबी मेँ दिलचस्पी लेना उचित नहीं था फिर भी मेरा ध्यान बरबस उसकी ओर खिंच जाता ।

    अचानक मेरी निगाहें उससे मिलीं और वो मुझसे बोला –भाईसाब,मुझे बहुत डर लगता है ।

    मैं चौंका ।

    वह  फिर बोला –आगे क्या होगा ?

    मैं पूछ बैठा –आपको किस बात का भय लगता है और किस का आगे क्या होगा ?क्या मरने से डर लगता है ?मैंने यूं ही पूछा ।

    वह बोला –मर जाऊं तो अच्छा है । मैं बहुत सोचता हूँ । मुझे कुछ समझ नहीं आता कि ज़िंदगी का क्या होगा । यह कहते हुए वह अत्यंत गंभीर हो गया ।

    कुछ देर वह चुप रहा । फिर अचानक मुझसे बोला – भाईसाब आप मेरी मदद कर सकते हैं?

    मैंने सोचा शायद पैसे एंठना चाहता है ।

    मैंने पूछा –मैं क्या मदद कर सकता हूँ ?

    आप मेरे घर चलेंगे ?उसका अगला प्रश्न था ।

    आशंकित होते हुए भी उसके विषय में मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी ।

    वेशभूषा व शक्ल से न तो वह पागल लगता था और न ही बदमाश  ।

    मैंने उससे पूंछा –मुझे घर क्यों ले जाना चाहते हो ?

    मुझे अंदर से एसा लग रहा है कि आप मेरी मदद कर सकते हैं। उसने कहा ।

    कुछ देर के लिए मैं विचार मग्न हो गया । उत्सुकता,भय,जिज्ञासा और संवेदन शीलता का मन में संघर्ष होने लगा । अंततः जिज्ञासा निर्णय लेने में सर्वोपरि रही । मैं उसके साथ हो लिया ।

    उसके साथ चलते हुए मैंने उसके ,उसके परिवार व व्यवसाय के बारे में जानकारी हासिल की । उसका नाम हरेन्द्र था । वह सरकारी कार्यालय में क्लर्क था । घर में उसके पत्नी तीन  पुत्र व एक पुत्री थे ।

    उसके साथ चलते हुए मैं उसके घर पहुँचने पर बनने वाली स्थिति के विषय में तरह तरह की कल्पनायें कर रहा था ।

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1