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Parikshan
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Parikshan

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About this ebook

कोरोनावायरस एक ऐसी अद्भुत घटना बनकर हमारे जीवन में उपस्थित हो गया है, जिसको लेकर इस देश के साहित्यकारों ने अपनी कल्पनाओं के बल पर विभिन्न प्रकार का साहित्य गढ़ दिया है। भले ही यह विषय गंभीर हो, लेकिन कोरोनावायरस थीम की मनोरंजक और विचारोत्तेजक कहानियों का यह संकलन, कथा-प्रेमियों और साहित्यकारों को सामान रूप से पसंद आएगा। यह कहानी संकलन इस मान्यता से पैदा हुआ है कि कोरोना के विभिन्न पहलू और काल्पनिक परिदृश्यों का निर्माण, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कोरोना प्रकरण ने हमारे दुनिया को देखने के नज़रिए को बदल दिया है। इसीलिए, नए या वैकल्पिक स्पष्टीकरणों की खोज करने की कल्पनाशील क्षमता के साथ कहानी को प्रस्तुत करना अनिवार्य हो गया है। वर्तमान कहानी संकलन में उन सीमाओं के अन्वेषण का प्रयत्न किया गया है जो कोरोना से जुड़े तथ्यों और उसके काल्पनिक प्रतिपक्ष के बीच बनती हैं। कोरोनावायरस के अलग अलग पक्षों को उजागर करने वाली ये कहानियाँ, पाठकों को कहानी के उस स्तर पर ले जाती हैं जो आज से पहले अपरिचित था। आशा है कि इस कथा-संकलन में मौजूद कोरोना का कथानक वर्णन और उसका (भरपूर) विश्लेषण, नए विचारों की प्रतिक्रियात्मक बाढ़ लेकर आएगा।

  

---

 

वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं हिन्दी लेखक डॉ. भारत खुशालानी (Ph.D) का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका (California University, America) से वर्ष 2004 में डॉक्टरेट (Ph.D) कि डिग्री प्राप्त की है।  फ़िलहाल डॉ. भारत सहालकार (कंसल्टेंट) के तौर पर कार्य करते हैं। इनकी प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियों में  52 शोधकार्य और रिपोर्ट शामिल हैं जो अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख, कविताएँ एवं कहानियाँ हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखी प्रकाशित 8 किताबें: भारत में प्रकाशित : 1). कोरोनावायरस 2). कोरोनावायरस को जो हिन्दुस्तान लेकर आया 3). परीक्षण ; अमेरिका में प्रकाशित : 4). समतल बवंडर 5). उपग्रह 6). भवरों के चित्र 7). लॉस एंजेलेस जलवायु ; कैनेडा में प्रकाशित : 8). सौर्य मंडल के पत्थर हैं।

Languageहिन्दी
Release dateMay 19, 2020
ISBN9781393943730
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    Book preview

    Parikshan - Dr. Bharat Khushalani

    ISBN : 978-9388202893

    Published by :

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण : मई 2020

    प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published : May. 2020

    eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Cover Design : Rajmangal Arts

    Copyright © डॉ. भारत खुशालानी

    This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

    अनुक्रमणिका

    शीर्षक

    कोरोना का परिक्षण

    कोरोना से पागल

    कोरोनावायरस रिसर्च स्कॉलर

    कोरोनावायरस से अव्यवस्था

    संक्रमण के पदचिन्हों पर

    ~~

    कोरोना का परिक्षण

    वैसे तो धूप हमेशा तपती थी, लेकिन गणपतराव शिंदे के लिए आज एकदम असहनीय हो गई थी। ऐसा लगता था जैसे बदन पूरा झुलस जाएगा। ट्रैक्टर ख़ुद चलने से मना कर रहा था। गणपत अपने ट्रैक्टर से नीचे उतरा और जमीन पर लेट गया। सहसा उसके अन्दर की पूरी शक्ति क्षीण हो गई थी, मानों किसी ने जबरदस्ती उसकी शक्ति ले ली हो। दम भर गया था और समझ में नहीं आ रहा था कि जलते बदन से ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है या सीने में दर्द से। ऐसा लग रहा था जैसे कोई गला घोंट कर मारने की कोशिश कर रहा हो। उसने उठने की कोशिश एक बार की, लेकिन हुआ नहीं। इस छोटे से गाँव में अच्छा बड़ा खेत होने से गाँव में उसकी साख थी। अगर किसी ने देख लिया कि वो असहाय अपने खेत में पड़ा हुआ है, तो उसकी इज्ज़त धूमिल हो जायेगी। लेकिन शरीर ने पूरी तरह से जवाब दे दिया था। पिछले कुछ दिनों से, जब से शहर में अपनी बहन की लड़की की शादी से वो वापिस आया था, तब से अजीब सी थकान और सरदर्द उसे परेशान कर रहे थे। खाना भी नहीं हो रहा था। खाने में कोई स्वाद नहीं बचा था, या तो उसकी जीभ ही स्वादहीन हो गई थी। ऊपर से पड़ती सूरज की किरणें आज आग बरसा रही थी। वैसे तो दूसरों के लिए कोई गर्मी नहीं थी, लेकिन उसके लिए जैसे आग का शोला ऊपर से अंगारे फेंक रहा था। गला सूख कर शुष्क हो गया था, लेकिन न आसपास पानी था, न पानी देने वाला कोई।

    खगरिया के पास ही गाँव था सातना। जिले से थोडा दूर था लेकिन शहर में आने-जाने के लिए रोड बना हुआ था। खेतीबाड़ी इतनी तो नहीं थी, लेकिन जनसँख्या भी बहुत कम थी। बलविंदर सिंह इकलौता डॉक्टर था, जो इस गाँव के लोगों की हर प्रकार से सेवा करता था। वैसे उसने ख़ुद से इस गाँव में आना नहीं चुना था, लेकिन गाँव का अनुभव प्राप्त करने के लिए इससे बेहतर गाँव उसे नहीं मिलता। लोग इतने ज़्यादा नहीं थे, और किसी जटिल बीमारी का उसने आज तक सामना नहीं किया था। गाँव के सन्नाटे में गाँव की पगडंडियों पर आज उसका दुपहिया वाहन अपनी मोटर की आवाज़ करता हुआ उसे अपने गाँव के दवाखाने तक ले जा रहा था। पगडंडियों पर से उडती धूल और उसकी गाडी से उछलकर इक्का-दुक्का कंकड़-पत्थर पास की हरी से पीली हो चुकी घास पर जा पड़ रहे थे। गाँव के घरों को लांघते हुए, टू-व्हीलर चलाते हुए, अपने मोबाइल पर गाने सुनते हुए, बलविंदर सिंह अपनी मंजिल पर पहुँचा। बाहर कोई कुत्ता खाने की तलाश में भटक रहा था। और अन्दर एक आदमी खड़ा था। गाँव की ही एक लड़की, लक्ष्मी, गाँव के इकलौते डॉक्टर की सहायता करती थी और इंजेक्शन, गोलियाँ वगैरह गाँव के लोगों को देती थी। बच्चों और शिशुओं को टीका भी वही लगाती थी। कोरोनावायरस की महामारी के कारण बलविंदर ने उसे सख्त़ हिदायत देकर रखी थी कि हर किसी के साथ वो ग्लब्स और मास्क में ही व्यवहार करे। न तो सातना से, न ही खगरिया से किसी केस की कोई ख़बर थी। इसीलिए, आज जब गाँव का व्यक्ति, भीमराव, आया, तो न केवल उसने मास्क और ग्लब्स पहने हुए थे, बल्कि भीमराव को भी दे दिए पहनने के लिए, जो कि भीमराव ने पहन लिए। वैसे तो गाँव भर में उन्होंने मास्क और ग्लब्स मुफ्त बंटवा दिए थे, लेकिन लोग जब अपने घरों से निकलते थे, तो उन्हें पहनकर नहीं निकलते थे। सातना में ज़्यादातर हर किसी पुरुष के नाम के पीछे ‘राव’ लगा हुआ था। बलविंदर ने कभी इस नाम के इतिहास के पीछे जाने की कोशिश नहीं की।

    जैसे ही बलविंदर ने दवाखाने में प्रवेश किया, लक्ष्मी ने उससे कहा, सर ये भीमराव बोल रहा है कि गणपतराव अपने खेत में गिरा पड़ा है।

    बलविंदर ने तुरंत भीमराव से पूछा, तुम उसके पास तो नहीं गए?

    भीमराव सकपका गया। डरकर बोला, नहीं डॉक्टर साब, मैंने तो दूर से ही उसे गिरा हुआ देखा। उसका ट्रैक्टर चालू था। मैं तुरंत दौड़कर आपको बताने आ गया।

    बलविंदर, चलो मेरे साथ, कहाँ है बताओ।

    भीमराव अपनी साइकिल पर चल दिया, और बलविंदर उसके पीछे अपने दुपहिये पर। लक्ष्मी ने दवाखाने का भार सँभाल लिया।

    गणपतराव के खेत पहुँचकर बलविंदर ने भीमराव को खेत के बाहर ही रुकने के लिए कहा और ख़ुद ने एन-95 मास्क और ग्लब्स के दो सेट पहन लिए। उसने ट्रैक्टर का इग्निशन ऑफ किया और गणपतराव का निरिक्षण किया। गणपतराव की मृत्यु हो चुकी थी! बलविंदर घोर आश्चर्य में पड़ गया। ऐसा तो शायद इस गाँव में पहली बार हुआ था। गणपतराव का कोई और न होने से उसके पडोसी ही बता सकेंगे कि गणपतराव को और कौन-कौन सी तकलीफें थी। पिछले एक-दो हफ्ते में तो गणपतराव उसके दवाखाने आया नहीं था। अगर उसको कुछ तकलीफ़ होती, तो वो ज़रूर आता। लेकिन बलविंदर का अपना अनुभव था कि गाँव के लोग थोडा रूककर, बीमारी सहनकर, तब आते थे जब दर्द बहुत बढ़ जाता था। लेकिन गणपतराव का अपना घर खेत में ही था। आमतौर पर यहाँ ऐसा ही होता था। इसीलिए पडोसी का घर दूरी पर था। अचानक बलविंदर ने सर उठाकर खेत के दूसरी ओर देखा। वहाँ कोई खड़ा था।

    बलविंदर खेत पारकर उस व्यक्ति तक गया। व्यक्ति जाना-पहचाना था। इस गाँव में सभी एक-दूसरे को जानते थे।

    बलविंदर ने उसके पास जाकर उससे पूछा, हरिराम, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?

    हरिराम की आँखें मानों शून्य में ताक रही हो, मर गया! मार डाला इसको!

    बलविंदर हिल गया, मार डाला? किसने मार डाला?

    हरिराम, गन्दा, प्रदूषित पानी पिला कर मार डाला इसको।

    बलविंदर वापिस सामान्य हो गया, गन्दा पानी पीने से नहीं मरा है ये। किसी ने नहीं मारा है इसको। बॉडी को चैक करना पड़ेगा। निरीक्षण के बाद ही पता लगेगा कैसे इसकी मौत हुई।

    हरिराम कोई पागल आदमी नहीं था। बहुत समझदार व्यक्ति था। उसके नाम के पीछे ‘राव’ इसीलिए नहीं था, क्योंकि वो इस गाँव में पैदा नहीं हुआ था, बल्कि किसी शहर से आया था। इसीलिए वो गाँव के पुश्तैनी काम-धंधे नहीं करता था।

    हरिराम, दो घंटे से ऊपर हो गया इसको। मैंने इसको जमीन पर गिरते हुए देखा था। लेकिन ऐसा लगा कि वो थककर चूर हो गया है। शायद उसका पूरा दम निकल गया था। मुझे लगा कि आराम करेगा तो वापिस काम पर लग जाएगा। आपने तो ऐसा पहले कभी नहीं देखा होगा।

    बलविंदर ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने पलटकर गणपतराव की तरफ देखा।

    हरिराम, मैंने भी पहले कभी ऐसा नहीं देखा है। ऐसा थोड़े ही होता है। ज़रूर इसको पानी में जहर मिलाकर पिला दिया है।

    बलविंदर को पता था कि ऐसा कुछ नहीं है, फिर भी उत्सुकतावश उसने पूछा, क्या बात कर रहे हो? किसने?

    हरिराम, उन्होंने!

    बलविंदर, ये कोरोना वायरस का भी केस हो सकता है।

    हरिराम, आपको लगता है कि यह कोरोना का केस है? इस गाँव में तो क्या, पूरे जिले में कहीं से कोरोना होने की कोई ख़बर नहीं है।

    एक साथ, बलविंदर को यह आदमी दिमाग से घूमा हुआ भी, और बेहद अक्लमंद भी लगा। उसे समझ में नहीं आया कि कहाँ तक हरिराम की बातों का यकीन किया जाए। उसने हरिराम से पूछा, गणपतराव कहीं बाहर गया था क्या?

    हरिराम ने सोचकर उत्तर दिया, अपनी बहन की लड़की की शादी में शहर गया था।

    बलविंदर ने उसको हिदायत दी, अब तुम इसके पास मत जाना। यह छूत का रोग भी हो सकता है। छूने से ही लग सकता है। कोरोना भी संक्रामक रोग है।

    हरिराम, आपको लगता है कि ये कोरोना वायरस है?

    बलविंदर, मुझे इसकी जाँच करनी पड़ेगी।

    बलविंदर का मोबाइल बजा। उसकी सहायिका लक्ष्मी का फ़ोन था।

    लक्ष्मी, सर, गणपतराव के पडोसी की बीवी का फ़ोन था। उसका पति साँस नहीं ले पा रहा है और ज़ोर-ज़ोर से घरघरा रहा है।

    बलविंदर तुरंत हरकत में आ गया, ठीक है, मैं वहीं पास में हूँ। ख़ुद जाकर देख लेता हूँ।

    बलविंदर जब गणपतराव के पडोसी के घर पहुँचा, तो उसकी बीवी बहुत ही घबराई हुई हालत में थी। डॉक्टर को देखते ही वो घबराहट में बडबडाने लगी, डॉक्टर साब, अब तो इनकी साँस भी नहीं चल रही है। क्या हो गया, देखिये न इनको।

    बलविंदर ने गणपतराव के पडोसी, विट्ठलराव को देखा। उसे गौर से देखने की ज़रूरत नहीं थी। उसकी मौत हो चुकी थी।

    बलविंदर को भी झटका लगा। ऐसा कैसे हो गया? एक ही समय पर दो-दो मौतें एक साथ इस गाँव में? और दोनों साँस न ले पाने की वजह से?

    वह एक क़दम पीछे हट गया। उसने विट्ठलराव की पत्नी को हिदायत दी, तुम अपने घर से बाहर मत निकलना। किसी से नहीं मिलना, ठीक है? मैं विट्ठलराव को ले जाने की व्यवस्था करवाता हूँ।

    विट्ठलराव की पत्नी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। उसको समझ गया कि उसका पति चल बसा है। बलविंदर जल्दी से वहाँ से निकला और गहरी सोच में डूब गया। विट्ठलराव की पत्नी को अपने पति की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं हुआ और वो बेहोश हो गई।

    बलविंदर जैसे ही दवाखाने पहुँचा, उसने अपने कंप्यूटर पर एक प्रोग्राम निकाला जिसमें लक्षणों को डालने पर बीमारी का अनुमान लगकर आता था। लेकिन ऐसे सामान्य लक्षण डालकर उसे सैकड़ों बीमारियाँ नतीजे के तौर पर सामने आ गई। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अगर ये दोनों कोरोना के केस हैं, तो कहीं न कहीं किसी न किसी संक्रमण से ही हो सकते हैं। हो सकता है गणपतराव शहर से कोरोना पॉजिटिव होकर आया हो, और उसके पडोसी विट्ठलराव को गणपतराव की वजह से हुआ हो। अगर ऐसा है, तो ज़रूर विट्ठलराव की पत्नी भी कोरोना की रोगी होनी चाहिए। इसी वजह से उसने विट्ठलराव की पत्नी को घर पर ही रहने की हिदायत दी थी। कंप्यूटर पर कोई मदद न मिलने से बलविंदर और गंभीरता से सोचने लगा। पूरे गाँव का जिम्मा अचानक उसके सर पर आ गया था। ये भी हो सकता था कि बाहरवाले ये बोलें कि गाँव में डॉक्टर होकर भी वो गाँव में बीमारी रोकने से बचा न सका। एक आदमी की संदिग्ध मौत अलग क़िस्सा होती है, दो की संदिग्ध मौत दूसरा ही क़िस्सा होती है। 

    बलविंदर के दिमाग में दो विचार एक साथ आए। पहला यह कि किसी को भेजकर दोनों की लाशों को लाना पड़ेगा। दूसरा काम उसे ऐसा करना पड़ेगा, जो आज तक ज़िन्दगी में उसने नहीं किया है। वो यह कि दवाखाने के पीछे के कमरे को मुर्दाघर बनाना पड़ेगा और दोनों लाशों को वहाँ रखना पड़ेगा। दोनों की शव परीक्षा ज़रूरी थी। ऐसे ही दोनों को मुर्दाघाट पर जलाने के लिए नहीं भेजा जा सकता था। यह पता लगाना बेहद ज़रूरी था कि दोनों की मौत की वजह क्या है। इस बात का उसको यकीन था कि दोनों की मौत की वजह एक ही है, और संक्रामक है, क्योंकि दोनों पडोसी थे। लेकिन दोनों की उम्र हो जाने की वजह से ज़रूर उनको पहले से ही कई बीमारियाँ होंगी जिन्होंने उनकी मौत में भूमिका निभाई है। अगर रोग संक्रामक भी है तो भी इतनी जल्दी कैसे पडोसी तक पहुँच भी गया और उसके शरीर पर आक्रमण कर उसकी मृत्यु का कारण भी बन गया? एक बात बलविंदर को अभी सूझी और उसने अपने जेब की छोटी डायरी में लिख ली कि विट्ठलराव की पत्नी से यह पता करना है कि विट्ठलराव अपना खेत छोड़कर पिछले कुछ दिनों में कहीं गया था क्या, और गया था तो कहाँ कहाँ गया था? उसने अपनी डायरी में शव परीक्षा के दौरान पैरालिटिक अटैक, किसी प्रकार की मरोड़ या ऐंठन, और श्वास नली में खून होने न होने को चेक करने का नोट डाल दिया। शव के विघटन को कितना समय लगता है, इस बात से भी शायद कुछ जाहिर हो, यह सोचकर उसने यह बात भी नोट कर ली। दोनों का स्वाब सैंपल लेकर उसको चिकित्सीय फ्रीजर में रखना भी नोट कर लिया।

    फिर बलविंदर ने लक्ष्मी को आवाज़ लगाई, लक्ष्मी, गणपतराव और विट्ठलराव, दोनों के शवों को पीछे के कमरे तक लाना है। लेकिन अभी वहाँ किसी को भी नहीं भेज सकते हैं दोनों को लाने के लिए। गाँव के सरपंच से दो आदमियों का इंतज़ाम कराओ जो दोनों के घरों का पहरा दें ताकि कोई वहाँ आ-जा न सके। मैं स्वास्थ्य विभाग से संपर्क करके एम्बुलेंस मंगवाता हूँ।

    लक्ष्मी, सर वो तो पता नहीं कब आयेंगे। तब तक दोनों को वहीं पड़े रहने देना है?

    बलविंदर, हाँ, कोई भी न जाए उनके पास, जब तक पक्का नहीं हो जाता कि ये क्या बीमारी है।

    लक्ष्मी,

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