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Coronavirus Ko Jo Hindustan Lekar Aaya
Coronavirus Ko Jo Hindustan Lekar Aaya
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Ebook355 pages3 hours

Coronavirus Ko Jo Hindustan Lekar Aaya

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About this ebook

अपने दो नंबर के व्यापार (ग़ैरक़ानूनी व्यापार) में लिप्त मुरलीराजन को पता ही नहीं लगा कि अपनी विदेश यात्रा से एक ऐसी वस्तु वो अपने साथ लेकर आ रहा है जो केवल उसके मित्रों और उसके शहर के लिए ही नहीं, अपितु पूरे हिन्दुस्तान के लिए पारसमणि का अभिशाप बन जायेगी। मुरलीराजन की तलाश, शहर के बड़े अधिकारियों के लिए एक पेचीदा मामला बन जाती है। इससे पहले कि मुरलीराजन कोरोनावायरस का संक्रमण फैलाता जाए, क्या ये अधिकारी उसको रोक पाने में कामयाब हो सकेंगे? पढ़ें बेहद रोमांचक हिन्दी उपन्यास "कोरोनावायरस को जो हिन्दुस्तान लेकर आया" जो आपको इस सब के बारे में बताएगा।  

---

 

वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं हिन्दी लेखक डॉ. भारत खुशालानी (Ph.D) का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका (California University, America) से वर्ष 2004 में डॉक्टरेट (Ph.D) कि डिग्री प्राप्त की है।  फ़िलहाल डॉ. भारत सहालकार (कंसल्टेंट) के तौर पर कार्ट करते हैं। इनकी प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियों में  52 शोधकार्य और रिपोर्ट शामिल हैं जो अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख, कविताएँ एवं कहानियाँ हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखी प्रकाशित 5 किताबें 1). समतल बवंडर 2). उपग्रह 3). भवरों के चित्र 4). लॉस एंजेलेस जलवायु - अमेरिका में एवं कैनेडा में: 5). सौर्य मंडल के पत्थर हैं।

Languageहिन्दी
Release dateMay 8, 2020
ISBN9781393259954
Coronavirus Ko Jo Hindustan Lekar Aaya

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    Book preview

    Coronavirus Ko Jo Hindustan Lekar Aaya - Dr. Bharat Khushalani

    ISBN : 978-9388202848

    Published by :

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण : मई 2020

    प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published : May 2020

    eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Cover Design : Rajmangal Arts

    Copyright © डॉ. भारत खुशालानी

    This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

    अनुक्रमणिका

    शीर्षक

    आगमन

    कस्टम

    पिल्लै

    घर-वापसी

    वरहान की भूल

    ज्योति

    अगले दिन

    वुहान आगमन

    इथेरियम

    नयना की बीमारी

    स्वास्थ महानिदेशक की बैठक

    शंघाई और बीजिंग

    जालसाजी

    प्रभासन

    नयना का घर

    पाँचवाँ दिन मुरली के घर

    साजी ऑटोमोबाइल्स

    निलायम

    सोना

    दूसरा मामला

    सरजू

    तीन दिन बाद

    कुल मामले

    मेयर की सुविधाएँ

    दोनों का एक मकसद

    वरहान की खोज

    पिल्लै की जाँच

    सतीश के आईडिया

    अख़बार का इश्तेहार

    सतीश, वरहान और पिल्लै

    साजी से पता

    आश्रय का पता

    परिक्षण का मामला

    किटका मसला

    मकान मालिक का बेटा

    पिल्लै का दवाखाना

    मुरली की प्रतिरोधक्षमता

    धोखेबाज़

    एक और पता

    पते की तरफ

    कन्नन और प्रभासन

    आगमन

    नाव

    पीछा

    उपसंहार

    ~~

    आगमन

    भले ही हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा शहर न हो, या सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर भी न हो, या दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध या व्यापारिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण शहर न हो, लेकिन कोचि का अपना ही अलग अंदाज़ था। वहाँ रहने वालों के लिए वह केरल का सबसे शानदार शहर था। जो लोग कोचि से प्यार करते थे, उनके लिए कोचि अतिउत्तम जगह थी रहने के लिए। उसकी सीमेंट से बनी इमारतों की तरह ही वह शहर भी मज़बूत और सुरक्षित था। कुछ लोग तो कोचि की रग-रग से वाकिफ़ थे। हर गली से परिचित थे। अपने शहर को अच्छी तरह पहचानते थे। लेकिन आने वाले कुछ दिनों में यह शहर अपने जीवन की लड़ाई लडेगा, इस बात का किसी को अंदेशा नहीं था। यह कहानी इसी लड़ाई की कहानी है। जब यह शहर अपने सारे नागरिकों को खो देने की कगार पर पहुँच गया। और इन सबकी शुरुआत हुई तीन हवाई उड़ानों के बाद भारत पहुँचने वाले मुरलीराजन से। पहली उड़ान वुहान से शंघाई, दूसरी उड़ान बीजिंग से कुआलालंपुर, और तीसरी उड़ान कुआलालंपुर से कोचि। वुहान में मुरलीराजन दिसंबर 2019 के महीने में था। और शंघाई से बीजिंग जाने के लिए उसने तेज़ रफ़्तार वाली रेलगाड़ी पकड़ी थी जिसने साढ़े चार घंटों में उसको बीजिंग पहुँचा दिया था। शंघाई में वो कुछ दिन रहा और नया साल वहीँ मनाया। बीजिंग में भी मुरलीराजन कुछ दिन रुका रहा। इन तीनों उड़ानों और रेल के सफ़र के दौरान उसके हाथ में एक ब्रीफकेस था, जिसका साथ उसने कभी भी नहीं छोड़ा। एअरपोर्ट पर शौच जाते वक़्त भी वह ब्रीफकेस उसी के साथ था। हवाई जहाज़ में मुरलीराजन कभी अपनी सीट से उठा ही नहीं। उसने तीनों उड़ानों में अपने आप को नियंत्रित रखते हुए शौच का इस्तेमाल सिर्फ हवाई अड्डे पर ही किया, अपना ब्रीफकेस लेकर। वुहान से चीन को उतना ही विश्वभर का व्यापार मिलता था, जितना भारत को मुंबई से। व्यापार के लिए मुरलीराजन को वुहान में बहुत अवसर मिले थे। अपने काम के लिए वह अक्सर वुहान की बड़ी बड़ी इमारतों वाले इलाके में जाता था, जिसको वित्तीय जिला कहा जाता था। सिर्फ वुहान शहर का ही नहीं, बल्कि पूरे हूबे प्रांत और मध्य चीन का वित्तीय व्यापार वहाँ होता था। लेकिन जैसा कि हर देश और हर बड़े महानगर में होता, इन वित्तीय व्यापारों में काला बाजारी और दो नंबर के पैसों के हेरफेर वाले धंधे भी होते थे। दुर्भाग्यवश, मुरलीराजन ऐसे ही धंधे में लिप्त था।

    जनवरी 2020 की यह घटना है। जनवरी होने के बावजूद कोचि में इतनी सर्दी नहीं पड़ती थी। जैसा पिक्चरों में होता है, वैसा नहीं हुआ। इस शहर की मौत का पैगाम लेकर कोई तेज़ी से घोड़े को तेज़ भगाता हुआ नहीं लेकर आया। इस शहर की मौत का पैगाम लेकर वह हवाई अड्डे पर हवाई जहाज से उतरा, इम्मीग्रेशन से गुजरा, और कस्टम से होते हुए बाहर निकल गया। उसके हाथ में ज़्यादा कोई सामान नहीं था। सिर्फ एक छोटा बैग और उसका ब्रीफकेस। इसीलिए उसको कस्टम पर कोई दिक्कत नहीं आई। कस्टम के एक्स-रे मशीन से भी उसके बैग और ब्रीफकेस बिना किसी घटना के निकल गए। बाहर आकर उसने ऑटो किया और ऑटो में बैठ गया। कोचि में, दूसरे हवाई अड्डों के समान, न तो बाहर निकलने के लिए इतनी दूरी तय करनी पड़ती है कि रैंप पर आदमी चलता ही रहा, न ही हवाई अड्डे के ठीक बाहर ज़्यादा पैसा लेने वाली टैक्सी के बदले ऑटो मिलने में कोई दिक्कत होती है। मुरलीराजन ऐसा व्यक्ति था जो हवाई यानों में सफ़र करने के बावजूद, जहाँ दो पैसे बचते दिखते थे, वहाँ का रुख कर लेता था। जहाँ से वह आ रहा था, वहाँ ठंडी थी, लेकिन कोचि में उसके मुकाबले में गर्मी थी। उसने जो कोट पहन रखा था, वह अब उतारकर अपने पास रख लिया।

    कस्टम पर जो सामान देख रहा था, उसके अलावा वहाँ दो अफ्सर और भी खड़े थे, और किनारे में एक और बड़ा अफ्सर कुछ कुछ घूरते हुए देख रहा था। दो अफसरों में से एक नाटे कद का था, चश्मा लगाए हुए था, और ऐसा लगता नहीं था कि वो कुछ देख रहा हो, लेकिन उसका ध्यान हर तरफ लगा हुआ था। दूसरा थोड़े-से लम्बे कद का था और थोडा-सा मोटा था। सामान देखने वाले युवक जैसे दिखने वाले कस्टम अफ्सर ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जब मुरलीराजन वहां से निकल गया, तो कोने में खड़े होकर घूरने वाले बड़े अफ्सर ने मोटे-से दिखने वाले अफ्सर की तरफ आँखों से इशारा किया। मोटे-से अफ्सर ने हामी भरी और मुरलीराजन के पीछे चुपचाप चल दिया। उनका मकसद था कि मुरलीराजन को इस बात का पता ही नहीं चले। शायद उनको पहले से ही मुरलीराजन के बारे में मालूम था, क्योंकि न तो एक्स-रे के बाद उन्होंने मुरलीराजन से कुछ कहा, न ही उसके सामान की जाँच करने के लिए कोई क़दम उठाए।

    ~~

    कस्टम

    मुरलीराजन एक शातिर खिलाड़ी था। इतने सालों में उसकी इन्द्रियाँ इतनी विकसित हो चुकी थी कि अपने आसपास, आगे-पीछे कौन उसपर नज़र रख रहा है, इसकी भनक उसको पड़ जाती थी। इसीलिए, उसको कस्टम के आदमी के अपने पीछे होने का आभास हो गया। मुरलीराजन थोडा बेचैन जरूर हो गया, लेकिन उसने धीरज नहीं खोया। अगर वो धीरज खो देता तो कस्टम वाले को समझ जाता कि मुरलीराजन को उसकी ख़बर हो गई है। मुरलीराजन ने अपने माथे पर आता हुआ पसीना पोछा, और हल्के से अपने सर को दबाया। उसे थोडा-थोडा सरदर्द महसूस हो रहा था। उसकी उड़ान रात के पौने ग्यारह बजे ही पहुँच गई थी और ग्यारह बजे तक वो ऑटो में बैठ चूका था। हवाई अड्डे के परिसर से बाहर निकलते ही जब एक दवाईयों की दुकान उसे खुली नज़र आई, तो उसने ऑटो वाले को रोका और दवाईयों की दुकान पर जाकर सरदर्द की गोली ली। सरदर्द, पीछे लगे हुए आदमी से हो रही बेचैनी, और अपने तथाकथित मित्र से मिलने की चाह में मुरलीराजन ने अपना मोबाइल निकाला और अपने मित्र को कॉल किया। कभी कभी मुसीबत के समय अपने दोस्त यारों की महज आवाज ही अंदर की शक्ति को बढ़ा देती है। शायद मुरलीराजन के कॉल करने की असली वजह भी यही थी, नहीं तो ऑटो वाले के सामने वह कभी अपने मित्र को मोबाइल पर कॉल करने का जोखिम नहीं उठाता।

    कुछ ही क्षणों में उसके मित्र ने फ़ोन उठा लिया, मुरली! कहाँ है तू?

    मुरलीराजन, कन्नन, कैसा है भाई? बस अभी अभी उतरा हूँ। ऑटो में हूँ।

    कन्नन, सब कुछ ठीक है?

    मुरली, कोई मेरे पीछे है।

    कन्नन, क्या बात कर रहा है? पक्का है तेरे को?

    मुरली, पक्का।

    कन्नन, लिफाफा है तेरे पास?

    मुरली, सही सलामत है। मेरे ब्रीफकेस में है। ब्रीफकेस मेरे पास ही है।

    शायद ऑटो के सी-एन-जी पर शोर से चलने के कारण ऑटो वाले को कुछ भी सुनाई नहीं आ रहा था, या तो ऑटो वाले को कोई परवाह नहीं थी और रात्री की अपनी अंतिम सवारी पूरी करके वो भी जल्दी घर पहुँच जाना चाहता था और अपनी ही उधेड़बुन में था। जो भी हो, मुरली को कोई परवाह नहीं थी कि, ऑटो वाला, ऑटो के शोर के ऊपर उसकी बात सुन पा रहा है या नहीं, क्योंकि वैसे भी ऑटो वाले को कुछ भी समझ में नहीं आएगा।

    कन्नन, ठीक है, तू एक काम कर। वडियार रोड पर होटल सुब्रमण्यम है। वहाँ चला जा।

    मुरली, यार मैं इतनी दूर से थका मांदा आया हूँ। तेरे को क्या मालूम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर क्या चल रहा है। चीन से ही, हवाई जहाज में चढ़ने के पहले से ही, घर आकर आराम करने का सपना देख रहा हूँ।

    कन्नन, इतनी मेहनत से सब कुछ अपने हाथ में है। बेकार में इसको गंवाने से क्या लाभ? दो-चार दिनों के लिए वहीँ होटल में रुक जा। मैं जैसे बोलता हूँ, वैसे कर।

    मुरली ने कोई जवाब नहीं दिया।

    कन्नन, हो सकता है कि वो आदमी किसी सी-बी-आए वाले को अपने साथ लेकर यहीं अपने अड्डे पर न आ जाए अगर तू यहाँ आ गया तो।

    मुरली, कन्नन को बताना चाहता था कि वो सी-बी-आए का नहीं, कस्टम का आदमी है। लेकिन उसको खुद को पक्की तरह से मालूम नहीं था। और फिर वो ऑटो वाले के सामने इतना भी नहीं बोलना चाहता था।

    मुरली, ठीक। मैं समझ गया।

    कन्नन, बढ़िया। मैं निलायम को फ़ोन लगाकर बता देता हूँ कि तू आ गया है।

    मुरली ने फ़ोन बंद कर दिया।

    कन्नन ने अपना फ़ोन बंद करके निलायम को फ़ोन लगाया, निलायम, सुन, ख़ुशी की ख़बर है। मुरली आपिस आ गया है।

    निलायम, बढ़िया! लेकिन तेरे को पक्का है कि हम लोगों को ऐसा करना चाहिए?

    कन्नन, चिंता की कोई बात नहीं है। तू वैसा ही करना जैसा मैं बोल रहा हूँ। मैं सब देख लूँगा। कन्नन ने फ़ोन रख दिया।  

    मुरली ने जैसे ही फ़ोन बंद किया, अनायास ही उसे जोर से खांसी आ गई। न वो खांसी पर काबू पा सका, न ही रुमाल से अपना मुँह ढँक सका। मुरली ने अपने सामने के ऑटो के लोहे के डंडे पकड़कर सहारा लेते हुए अपने आप को संभाला। फिर खंगारते हुए फ़ोन को जेब में रखा। ऑटो वाला इस प्रक्रिया से अनभिज्ञ, अपनी धुन में ऑटो चलाता रहा। उसका ध्यान तब भंग हुआ, जब पीछे से उसके ग्राहक की आवाज उसे सुनाई दी, सुनो भाई। ऑटोचालक ने अपनी गर्दन दायीं ओर घुमाई, जी साहब, बोलिए।

    मुरली, भाई थोडा वडियार रोड पर होटल सुब्रमण्यम की ओर ले लो।

    ऑटोचालक, वो तो दूसरी तरफ पड़ जाएगा। समुद्र के किनारे से होते हुए लगता है वो।

    मुरली, हाँ, थोडा प्लान बदल गया है। वहीँ जाना है।

    ऑटोचालक ने कुछ नहीं कहा। अनमने से भले ही, लेकिन आगे के चौरस्ते से उसने ऑटो को दायीं ओर मोड़ लिया, जिससे मुरली को समझ गया कि ऑटोवाला वडियार रोड की तरफ जा रहा है।

    रस्ते पर अभी भी ज़्यादा भले ही नहीं, पर कुछ लोगों की आवाजाही थी। मुरली के मन में आया कि एक बार पीछे पलटकर देख ले कि कौन है, कैसा है, किस गाडी पर है। कोई है, इस बात पर उसको पक्का विश्वास था।

    होटल पहुँचकर मुरली ने ऑटोवाले को मीटर के अनुसार पैसे दिए, और अपनी कनखियों से थोड़ी दूरी पर एक और ऑटो को होटल की ओर आते देखा। वह समझ गया कि हो न हो, इसी ऑटो में बैठकर कस्टम वाला आया है। पूरे रोड पर, समुद्र का किनारा, काले साए में घिरा हुआ था। वडियार रोड पर इक्का-दुक्का ट्रैफिक आ-जा रही थी। समुद्र के किनारे के दूसरी ओर, होटल सुब्रमण्यम का प्रवेश द्वार था, जिसमें मुरली जल्दी से अंदर घुस गया। तुरंत ही उसने रिसेप्शन पर अपना कमरा बुक किया और लिफ्ट से कमरे तक पहुँच गया।

    कमरे में घुसते ही, जैसे ही तापमान परिवर्तित हुआ, अचानक शरीर में दर्द और थकान ने जैसे हमला कर दिया। मुरली अपने आप को संभाल न सका और कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद, बाथरूम से तौलिया लिया और अपने माथे पर आए हुए पसीने को पोछा। तौलिया बिस्तर पर रखकर उसने रूम-सर्विस को कॉल किया। रूम-सर्विस की तरफ से एक लड़का जैसे तुरंत ही दरवाजे पर हाज़िर हो गया। मुरली ने दरवाजा खोला तो लड़के को उसकी हालत देखकर आश्चर्य हुआ।

    रूम-सर्विस के लड़के ने चिंतित स्वर में पूछा, सर, सब कुछ ठीक है?

    मुरली ने थकी हुई आवाज में लड़के से पूछा, यहाँ आसपास कोई डॉक्टर का दवाखाना है क्या?

    लड़के ने थोडा सोचकर उत्तर दिया, डॉक्टर पिल्लै का दवाखाना है, लेकिन रोड के आखिर में जाकर जो सिग्नल आता है, वहां से बायीं ओर मुड़कर है। इसीलिए थोडा चलकर जाना पड़ता है। आपसे चलना होगा या टैक्सी बुला लूं?

    मुरली को बुखार इतना ज़्यादा भी नहीं लगा कि टैक्सी के ऊपर फिजूलखर्ची की जाए। उसने लड़के से पूछा, कोई छोटा रास्ता नहीं है होटल के पीछे से?

    लड़के ने झट से कहा, हाँ सर, है तो सही। किचन से होकर पीछे की ओर निकल जाता है। किचन में डिलीवरी वैन वाले वहीँ से सामान लेकर अंदर आते हैं।

    मुरली ने अपना कपड़ों का बैग वहीँ कमरे में रख दिया और ब्रीफकेस हाथ में लेते हुए खड़ा हो गया, ठीक है, तुम मुझे उसी पीछे के रास्ते से लेकर चलो, अपने पर्स से पचास का नोट निकालकर लड़के को देते हुए मुरली ने कहा, धन्यवाद बेटा। और सुनो, ये तौलिया मेरे पसीने से गन्दा हो गया है, इसे बदल दो, कहकर मुरली ने बिस्तर पर पड़ा तौलिया लड़के को दे दिया। लड़के ने ख़ुशी से पचास का नोट रख लिया और लिफ्ट को पहले मजले पर ले गया। किचन, रिसेप्शन से एक मजला ऊपर था। मुरली को राहत महसूस हुई कि उसे रिसेप्शन की तरफ से नहीं जाना पड़ेगा। लड़के ने किचन के रास्ते से मुरली को होटल के पिछवाड़े में छोड़ दिया। उस लड़के को यह नहीं पता था कि जिंदगी में इस आदमी को वो कभी वापिस देखेगा नहीं।

    ~~

    पिल्लै

    रास्ते में और शांति छा रही थी क्योंकि रात्री के बारह बजने को आ रहे थे। पता नहीं डॉक्टर का दवाखाना खुला भी होगा या नहीं। जो रास्ता लड़के ने बताया था, उसपर चलकर मुरली दवाखाने के नज़दीक पहुँच गया। लेकिन आज उसे अपने आप पर अचरज हो रहा था क्योंकि इतना सा चलने पर उसकी साँस फूल गई थी और उसे साँस लेने में तकलीफ महसूस होने लगी थी। डॉक्टर के दवाखाने पर बत्ती जल रही थी, और उसके पास ही दवाईयों की दुकान भी खुली हुई थी। हिन्दुस्तान को उसने मन ही मन सलाम किया कि जब मुँह उठाओ, तब डॉक्टर के पास सीधा आदमी पहुँच सकता है। उसने विदेशों में देखा था कैसे सात-सात दिन पहले से ही डॉक्टर की नियुक्ति लेनी पड़ती है। दवाखाने पहुँचकर, रिसेप्शनिस्ट के पास अपना नाम दर्ज करके, मुरली लडखडाकर उसके सामने की कुर्सी पर बैठ गया। रिसेप्शनिस्ट ने उसकी हालत देखकर उसको एक ग्लास पानी लाकर दिया। पानी पीकर मुरली ने ग्लास रिसेप्शनिस्ट को वापिस दे दिया। रिसेप्शनिस्ट ने ग्लास हो हाथों से उठाकर नीचे रख लिया। जैसे ही अंदर का पेशंट बाहर आया, रिसेप्शनिस्ट ने अन्दर जाकर मुरली के

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