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Bus Mein Corona Rogi
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Bus Mein Corona Rogi

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About this ebook

"बस में कोरोना रोगी?" एक दिल दहलाने वाला उपन्यास जो आपके रोंगटे खड़े कर देगा ...

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वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं हिन्दी लेखक डॉ. भारत खुशालानी (Ph.D) का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका (California University, America) से वर्ष 2004 में डॉक्टरेट (Ph.D) कि डिग्री प्राप्त की है।  फ़िलहाल डॉ. भारत सहालकार (कंसल्टेंट) के तौर पर कार्यरत हैं। इनकी प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियों में  52 शोधकार्य और रिपोर्ट शामिल हैं जो अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख, कविताएँ एवं कहानियाँ हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखी प्रकाशित 12 किताबें: भारत में प्रकाशित : 1). कोरोनावायरस 2). कोरोनावायरस को जो हिन्दुस्तान लेकर आया 3). परिक्षण 4). मनोहारी 5). बदलते परिवेश के एकांकी 6). परिस्थिति और मन:स्थिति 7). बस में कोरोना रोगी ; अमेरिका में प्रकाशित : 8). समतल बवंडर 9). उपग्रह 10). भवरों के चित्र 11). लॉस एंजेलेस जलवायु ; कैनेडा में प्रकाशित : 12). सौर्य मंडल के पत्थर हैं।

Languageहिन्दी
Release dateJul 3, 2020
ISBN9781393910091
Bus Mein Corona Rogi

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    Book preview

    Bus Mein Corona Rogi - Dr. Bharat Khushalani

    ISBN : 978-9388202893

    Published by :

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण : मई 2020

    प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published : May. 2020

    eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Cover Design : Rajmangal Arts

    Copyright © डॉ. भारत खुशालानी

    This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

    बस में कोरोना रोगी?

    बस ड्राइवर ने अपनी सीट की ओर का दरवाज़ा खोला और स्टीयरिंग व्हील के सामने बस में अपनी सीट पर बैठ गया। बस भरी हुई थी।

    बस ड्राइवर ने अपने इण्टरकॉम से सेंट्रल को इतला की, 712 चलने को तैयार है। वहाँ से फ़ौरन जवाब आया, ठीक है। बस पहले से ही चालू थी। बस ड्राइवर ने उसे गियर में डाला और बस रवाना हो गई। बस का प्रस्थान करने का सही समय शाम के तीन बजे था लेकिन आज थोड़ी देर हो गई थी। सुबह तडके साढ़े चार बजे जौनपुर पहुँचने का सही समय था।

    बस के बीचोंबीच की सीट पर बैठे प्रमोद शर्मा की खाँसी मानों रुक ही नहीं रही थी। सर्दी से मुँह छिपाने के बहाने उसने अपना पूरा मुँह ढक दिया था जिससे उसका पीला पड़ा हुआ तेज बुखार से तप रहा चेहरा और गुलाबी हुई आँखें न दिख सकें। गले में सूजन से उसके स्वरतंत्र की तंत्रिकाएँ खिंच रही थीं और इसी खीजन से अनैच्छिक प्रतिक्रिया के रूप में खाँसी पैदा कर रही थी।

    पास में बैठे व्यक्ति ने पूछा, भाई, ठीक हो कि नहीं?

    प्रमोद ने आँखें नीचे रखे हुए ही महज़ इतना कहा, बस थोड़ी कमज़ोरी है और कुछ नहीं।

    बस ड्राइवर ने अपने पास बैठे कंडक्टर से पूछा, आज तो पूरी भरी हुई है। कितने लोग हैं?

    कंडक्टर ने जवाब दिया, पैंतालीस लोग बैठे हैं।

    कुछ समय बाद, बस नोएडा पार कर दनकौर पहुँच चुकी थी जब अचानक प्रमोद की खाँसी तीव्र हो गई और अपनी छाती पकड़ कर वो खाँसते हुए, अपनी सीट से नीचे, बस के गलियारे में गिर पड़ा। आसपास के एक-दो लोग चिल्लाए और उसको उठाने लगे। कंडक्टर ने हो-हल्ला सुना तो पीछे की ओर आया। एक यात्री ने कंडक्टर से कहा, इसको तो हार्ट-अटैक आ गया है।

    कंडक्टर ने बस के सामने जाकर ज़ोर से आवाज़ लगाई, किसी को हार्ट-अटैक में क्या करना चाहिए, ये पता है क्या?

    एक तकरीबन पच्चीस साल की युवती अपनी सीट से उठी, मैं नर्स हूँ। वह तुरंत प्रमोद शर्मा की तरफ गई।

    कंडक्टर ने बस ड्राइवर को बताया, किसी को हार्ट-अटैक आ गया है।

    बस ड्राइवर सचेत हो गया। वह तुरंत बोला, यहाँ बीच रास्ते में तो कोई अस्पताल नहीं है। पीछे ग्रेटर नोएडा इलाके में हाईवे पर ही अस्पताल है। बस मोड़ लूँ वहाँ? आधे घंटे में पहुँच जाएँगे।

    कंडक्टर को चिंता हो गई, वापिस जाने की ज़रूरत नहीं है। पहले ही हम लोग लेट चल रहे हैं। समय बर्बाद हो जाएगा। इतना भी ज़ोर का नहीं होगा उसका हार्ट अटैक। आगे में ही देख लेते हैं कोई अस्पताल। प्राइवेट भी रहा तो वहीं छोड़ देंगे।

    बस ड्राइवर को ध्यान आया, राबूपुरा के आगे अलाउद्दीन नगर है। वहीं एक सरकारी अस्पताल है।

    कंडक्टर ने सहमति दी, हाँ, वो ठीक रहेगा। रस्ते पर ही है।

    इसी बीच, नर्स ने प्रमोद को सीपीआर दिया। उसे पता था कि हार्ट अटैक के बाद का पहला घंटा ही ऐसा समय होता है जब मरीज की जान को बचाया जा सकता है। न तो यहाँ बीच रास्ते में कोई एम्बुलेंस आ सकती थी, न ही बस में कोई ऐसी चिकित्सा उपलब्ध थी। अपने प्रशिक्षण से नर्स को पता था कि अगर प्रमोद आज बच सकता है तो इसी संजीवनी क्रिया से बच सकता है।

    बस ड्राइवर ने अपने इण्टरकॉम से सेंट्रल को सूचना दी, सेंट्रल, यहाँ रास्ते में किसी को हार्ट अटैक आ गया है। हम लोग थोड़ी ही देर में अलाउद्दीन नगर पहुँचने वाले हैं। वहाँ की सरकारी अस्पताल को आप जानकारी दे सकते हैं कि हम लोग बस में किसी हार्ट अटैक के रोगी को लेकर आ रहे हैं, ताकि वो पूरी तरह से तैयार रहें?

    सेंट्रल से जवाब मिला, मैं कोशिश करता हूँ।

    नर्स के निर्देशानुसार, प्रमोद के पास बैठे एक व्यक्ति ने प्रमोद की नाक पकड़कर बंद की और मुँह से उसको साँसें दी। इस प्रक्रिया से, और प्रमोद की छाती पर पांच बार ज़ोर से दबाव डालने से, प्रमोद की दिल की धड़कन सुनाई देने लगी।

    बस ड्राइवर के इण्टरकॉम पर सेंट्रल की आवाज़ आई, 712, तुम्हारे मरीज का नाम क्या है?

    कंडक्टर ने ड्राइवर को बताया और ड्राइवर ने सेंट्रल को, प्रमोद शर्मा। क्यों? नाम से क्या करना है? इससे क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है?

    सेंट्रल, मैं बाद में बताता हूँ। उसने इण्टरकॉम रख दिया।

    ड्राइवर ने कहा, अब बिना देर किये उसको अस्पताल पहुँचा देते हैं, नहीं तो उसकी मौत की जिम्मेदारी हम दोनों के ऊपर टिका देंगे ये लोग।

    थोड़ी ही देर में इण्टरकॉम से सेंट्रल की आवाज़ आई, 712?

    ड्राइवर ने सेंट्रल को बताया, बस हम लोग अलाउद्दीन नगर के बस अड्डे पर पहुँच ही गए समझो। वहाँ से सरकारी अस्पताल थोड़ी ही दूरी पर है।

    सेंट्रल ने आधिकारिक आवाज़ में कहा, नहीं, 712 तुम हाईवे से मुड़कर अलाउद्दीन नगर के बस अड्डे तक मत जाना। हाईवे से अन्दर शहर में घुसना ही मत।

    ड्राइवर चौंक गया, क्या? हम लोग पहुँच ही गए समझो।

    सेंट्रल, नहीं, तुम हाईवे पर ही रुके रहो।

    ड्राइवर और कंडक्टर, दोनों हैरान होकर एक-दूसरे को देखने लगे।

    नयी दिल्ली में सेंट्रल जिस कमरे से 712 से वार्तालाप में था, उसमें कई अन्य लोग भी थे। कॉल-सेंटर की तरह था। 712 से जो वार्तालाप कर रहा था, उसका नाम सुदेश था। सुदेश के बगल में फरहान बैठा था, जिसको सुदेश और 712 के वार्तालाप में अचानक रुचि आ गई, लेकिन उसने यह बात जाहिर नहीं होने दी। फरहान ऐसे दिखाने लगा जैसे वह अपने काम में व्यस्त है, लेकिन दरअसल उसका पूरा ध्यान सुदेश पर लगा हुआ था कि सुदेश किससे क्या बात कर रहा है। सुदेश और 712 के बीच हो रही बातचीत में उसे कुछ गड़बड़ नज़र आई।

    इण्टरकॉम पर दूसरी ओर से 712 का ड्राइवर बोल रहा था, बस में हार्ट अटैक का मरीज़ है, और तुम बोल रहे हो कि हाईवे पर ही रुकना पड़ेगा?!

    सुदेश अपने कॉल-सेंटर के निदेशक को लेकर आया। निदेशक ने इण्टरकॉम पर 712 के ड्राइवर से कहा, मैं यहाँ का निदेशक हूँ। आपको आदेश है कि बस को हाईवे पर ही रोकें। अलाउद्दीन नगर के अन्दर बस अड्डे तक नहीं जाना है।

    ड्राइवर, वो आदमी यहाँ मर रहा है।

    निदेशक, मुझे समझ रही वो बात। लेकिन यही आदेश है।

    ड्राइवर, ऐसे तो वो आदमी मर जाएगा और मेरे ऊपर आ जाएगा। ड्राइवर के ऊपर ही सब कुछ आ जाता है आखिर में।

    निदेशक, जब हम लोगों ने अलाउद्दीन नगर के सरकारी अस्पताल में फ़ोन किया, तो उन लोगों ने कहा कि कोरोनावायरस का भी केस हो सकता है। वो पूरे बस अड्डे, शहर और अस्पताल के संक्रमण का रिस्क नहीं लेना चाहते।

    ड्राइवर, बस के लोगों ने खुद देखा है, वो हार्ट अटैक का केस है।

    निदेशक, दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से भी ख़बर है कि शायद इस बस में ऐसा कोई है जो कोरोना पॉजिटिव है।

    ड्राइवर घबरा गया, कोरोना पॉजिटिव?

    निदेशक, इसीलिए तुमको अभी आदेश है कि तुम फ़ौरन दिल्ली वापिस बस को घुमाओ। बस के यात्रियों के संक्रमण की संभावना है। सबको क्वारनटीन में रखा जाएगा।

    ड्राइवर ने हिम्मत से कहा, लेकिन इस आदमी को सिर्फ हार्ट अटैक है। अगर ये कोरोना का मरीज़ होता, तो बस में चढ़ता ही क्यों? वहीं दिल्ली में अस्पताल में इलाज के लिए नहीं चला जाता?

    निदेशक, नहीं, हो सकता है उसको पता ही न चला हो कि उसको कोरोनावायरस का संक्रमण हो गया है।

    ड्राइवर ने सहानुभूति से कहा, ठीक है, देखिये इस हार्ट अटैक वाले को अस्पताल यहीं पर पहुँचा देते हैं, फिर हम मैं बस घुमाकर वापिस दिल्ली ले आता हूँ।

    निदेशक, बिलकुल नहीं। दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग से सख्त निर्देश हैं।

    ड्राइवर, लेकिन हार्ट अटैक वाले की तो मदद कर लेने दो!

    निदेशक, वो कोरोना के कारण वाला हार्ट अटैक भी हो सकता है। इसीलिए कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहता है। पूरी बस संक्रमित लोगों से भर चुकी होगी अब तक अगर वो कोरोना का रोगी निकला तो।

    ड्राइवर, ठीक है। लेकिन प्रमोद शर्मा को जो भी होगा, उसकी जिम्मेदारी आप लोगों पर है। उसने इण्टरकॉम रख दिया।

    कंडक्टर भी चिंता में था, समझ में नहीं आता किस बात का डर है उन लोगों को।

    ड्राइवर, दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग से आदेश आया है। तेरे को मालूम है कि जब वो बस में चढ़ा, तो बीमार था क्या? वो अपनी छाती-वाती को सहला रहा था क्या?

    कंडक्टर, ध्यान में नहीं आ रहा है।

    अलाउद्दीन नगर पहुँचकर जिस मोड़ से शहर के बस अड्डे में घुसना था, वहाँ न मुड़कर ड्राइवर ने यू-टर्न ले लिया। हाईवे के दूसरी ओर से बस वापिस दिल्ली की ओर चलने लगी। कुछ यात्रिओं ने इस यू-टर्न को महसूस किया और रास्ते पर गौर किया। जो लोग इस रास्ते से भलीभांति परिचित थे, उनको समझ गया कि बस उल्टी दिशा में जा रही है। एक-दो ऐसे यात्री अपनी सीट से उठ खड़े हुए और इधर-उधर देखने लगे। एक ने दूसरे से पूछा, क्या चल रहा है? दूसरे ने प्रश्नमुद्रा में हाथ घुमा दिए।

    दिल्ली में स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष ने तीन-चार लोगों की आपातकालीन बैठक बुलाई थी। तीन लोग मोबाइल पर सन्देश मिलते ही फ़ौरन उसके चेंबर में हाज़िर हो गए थे। अध्यक्ष ने एक से पूछा, ऐसा कैसे हो गया?

    उसने जवाब दिया, सर, जो डॉक्टर गलती से कोरोना रोगी के संपर्क में आ गया था, उसी ने इस प्रमोद शर्मा को देखा था जब प्रमोद शर्मा अपनी खाँसी के लिए अस्पताल में आया था। उस समय डॉक्टर को भी पता नहीं था कि कोरोना रोगी के संपर्क में आने से वो भी रोगी बन गया है।

    अध्यक्ष, लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण डॉक्टर को तो सिर्फ कोरोना केस देखने चाहिए। वो क्यों साधारण खाँसी वाले केस देख रहा था?

    दूसरे मौजूद व्यक्ति ने उत्तर दिया, सर आजकल ऐसे बहुत से लोग शिकायत लेकर अस्पताल में तुरंत आजा रहे हैं। जिनको बुखार भी लगता है, खाँसी भी है उसको डॉक्टर यही समझ कर चेक करते हैं कि हो सकता है ये भी कोरोना का पेशंट हो।

    अध्यक्ष, लेकिन उस समय तो प्रमोद शर्मा को देखते वक़्त इस डॉक्टर ने अपना सूट पहन रखा होगा। और उसका सैंपल भी तो नर्स ने ही लिया होगा, डॉक्टर ने नहीं।

    दूसरे ने उत्तर दिया, सर आजकल सैंपल लेने का काम डॉक्टर भी कर रहे हैं। नर्सों की बहुत कमी हो गई है।

    अध्यक्ष, तो डॉक्टर ने सैंपल लेकर उसको रिजल्ट आने तक क्वारनटीन में नहीं रखा?

    दूसरे ने उत्तर दिया, "सर इस डॉक्टर को प्रमोद शर्मा की प्रारम्भिक जांच के बाद ही समझ गया था कि यह कोरोना केस नहीं है। इसीलिए उसने अपना सूट भी उतार दिया था। यही बात डॉक्टर ने हमें बताई थी। इसीलिए, जब से उस डॉक्टर के खुद कोरोना रोगी हो जाने की बात का पता चला है, तब से अस्पताल के रिकॉर्ड लेकर, उन सभी मरीजों को ढूँढ़ रहे हैं जो इस डॉक्टर के पास आये थे। प्रमोद शर्मा को भी तलाश कर रहे थे। आज दोपहर को ही उसके पड़ोसियों से पता

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