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Manohaari
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Ebook161 pages1 hour

Manohaari

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About this ebook

जब सम्पूर्ण नाटक एक ही स्थान पर घटित होता है, तो नाटककार के लिए सबसे बड़ी चुनौती संवाद नहीं, अपितु पात्रों के उन उद्देश्यों को खोज निकालना होता है जो उद्देश्य पात्र को उस स्थान पर घसीट कर ले आते हैं जहाँ नाटक घट रहा है। अगर दर्शकवर्ग को ज़रा भी शंका हो जाती है कि पात्र को जबरदस्ती इस स्थान पर लाया गया है, तो नाटककार को अपने नाटक के प्रस्तुतीकरण में सफल नहीं माना जा सकता है। जैसे-जैसे नाटक की अवधि बढ़ती जाती है, वैसे वैसे यह चुनौती भी बढ़ती जाती है। न केवल उस समय मंच पर मौजूद पात्रों के अस्तित्व के औचित्य का प्रश्न उठता है, बल्कि आने वाले नए पात्रों के सामयिक प्रवेश से भी नाटककार को झूझना पड़ता है। ऐसे में लम्बी अवधि तक दर्शकों या पाठकों को बांधे रखने के लिए, नाटक की मोटे तने-रुपी मुख्य विषय-वस्तु पर, पात्रों और लघु-प्रसंगों की डालों के सहारे उनको संतुष्टि की चरम सीमा पर ले जाना होता है। वर्तमान नाटक-उपन्यास में यही कोशिश की गई है। नाटक की आम विधाओं से हटकर, रहस्य और रोमांच के सहारे पाठकों का मनोरंजन करने की कोशिश की गई है। सम्पूर्ण नाटक एक ही स्थान पर घटित होता है, हालांकि समय की अविरल धारा में नहीं, बल्कि तकरीबन एक हफ्ते की अवधि के दौरान।

  

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वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं हिन्दी लेखक डॉ. भारत खुशालानी (Ph.D) का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका (California University, America) से वर्ष 2004 में डॉक्टरेट (Ph.D) कि डिग्री प्राप्त की है।  फ़िलहाल डॉ. भारत सहालकार (कंसल्टेंट) के तौर पर कार्य करते हैं। इनकी प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियों में  52 शोधकार्य और रिपोर्ट शामिल हैं जो अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख, कविताएँ एवं कहानियाँ हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखी प्रकाशित 8 किताबें: भारत में प्रकाशित : 1). कोरोनावायरस 2). कोरोनावायरस को जो हिन्दुस्तान लेकर आया 3). परीक्षण ; अमेरिका में प्रकाशित : 4). समतल बवंडर 5). उपग्रह 6). भवरों के चित्र 7). लॉस एंजेलेस जलवायु ; कैनेडा में प्रकाशित : 8). सौर्य मंडल के पत्थर हैं।

Languageहिन्दी
Release dateMay 20, 2020
ISBN9781393796299
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    Book preview

    Manohaari - Dr. Bharat Khushalani

    ISBN : 978-9388202893

    Published by :

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण : मई 2020

    प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published : May. 2020

    eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Cover Design : Rajmangal Arts

    Copyright © डॉ. भारत खुशालानी

    This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

    तक़रीबन तीस वर्ष की एक महिला एक ओर बैठी है। पीछे काली माता की मूर्ति है। मूर्ति पर हार-फूल चढ़े हैं। मूर्ति के नीचे फल-आहार और अन्य प्रसाद बिखरा पड़ा है। अगरबत्ती जल रही है। तक़रीबन पचास वर्ष का एक तांत्रिक जैसा दिखने वाला व्यक्ति प्रवेश करता है और महिला के सामने कुछ दूरी पर बैठ जाता है।

    तांत्रिक (कुछ देर तक आँखें बंद रखकर चुप्पी साधने के पश्चात) : आपके लिए एक सूर्य-तावीज़ बनाया है। इसको घर जाकर गले में धारण कर लेना।

    अपने पास रखा हुआ तावीज़, तांत्रिक उस महिला को दे देता है। तावीज़ एक काले मोटे धागे का बना है, जिसपर सूर्य जैसा दिखने वाला तारा-रुपी सिक्का बंधा है। महिला सूर्य-तावीज़ को हाथों में ले लेती है। सूर्य-तावीज़ के आठ तारे हैं जिनपर ‘हीं’ लिखा है। सिक्के के बीचोबीच ‘देवदत्त’ लिखा है। सिक्के की चार दिशाओं में ‘सा’ लिखा है। 

    तांत्रिक : इस काग़ज़ पर मंत्र भी लिख दिया है। इसे रोज़ 108 बार पढना है। मंत्र का उच्चारण इस प्रकार से है।

    तांत्रिक मंत्र पढ़कर बताता है।

    तांत्रिक (मंत्र पढ़ते हुए) : अन‌ङग‍‍वल्लभे देवि त्वं च मे प्रीयतामिति, एनं प्रियं महावश्यं कुरु त्वं स्मरवल्लभे।

    महिला (धीरे-धीरे काग़ज़ देखकर मंत्र पढ़ते हुए दोहराती है) : अन‌ङग‍‍वल्लभे देवि त्वं च मे प्रीयतामिति, एनं प्रियं महावश्यं कुरु त्वं स्मरवल्लभे।

    तांत्रिक : इसे 108 बार पढना है। आनेवाली शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किसी सौभाग्यशाली स्त्री को प्रेम से बिठाकर भोजन करवाना।

    महिला हाथ जोड़कर उठती है। काली माता के पैरों को छूती है। और मंत्र तथा तावीज़ लेकर प्रस्थान करती है। तांत्रिक उसको जाते हुए देखता है, फिर अपनी पत्नी को आवाज़ लगाता है।

    तांत्रिक : रेखा ... रेखा ... ज़रा यहाँ आना।

    तक़रीबन 22 वर्षीय युवती साडी पहने प्रवेश करती है।

    रेखा : जी कहिये।

    तांत्रिक : मुझे थोडा काम से बाहर जाना है। अगर यशेन्द्र आ जाए तो उसे बिठा कर रखना।

    रेखा : जी, ठीक है। लेकिन थोड़ी ही देर में मेरी माँ आने वाली है। उससे मिलकर चले जाते।

    तांत्रिक : नहीं, मुझे देर हो रही है। मैं फिर किसी दिन मिल लूँगा।

    तांत्रिक चले जाता है। रेखा सोफे पर बैठ जाती है। कुछ ही पलों में रेखा की माँ भीतर आती है। रेखा उससे गले लगकर मिलती है और उसे दीवान पर बिठा देती है।

    रेखा : माँ ...

    रेखा की आँखों में आँसू आ जाते हैं। यह देखकर उसकी माँ चिंतित हो जा है।

    माँ : क्या हुआ बेटा? रोने की क्या बात हो गई?

    रेखा की माँ, रेखा के हाथ पकड़कर बैठ जाती है।

    रेखा (नम आँखों से) : शादी को एक साल पूरा हो गया माँ। 

    माँ : मुझे पता है बेटा।

    रेखा : अब और कितने समय तक सहना पड़ेगा?

    माँ : बेटा, वो तो हमारी अच्छी किस्मत थी जो भैरवनाथ के बारे में पता चल गया।

    रेखा धीमे से हामी भरती है।

    माँ : अगर शांति उस अस्पताल में नर्स नहीं होती जहाँ हार्ट अटैक के बाद भैरवनाथ को लाया गया था, तो भैरवनाथ आज तुम्हारा पति नहीं होता।

    रेखा (शांति का नाम सुनकर) : शांति कैसी है?

    माँ : अभी भी उसी अस्पताल में नर्स है। उसको सेवा करना अच्छा लगता है।

    रेखा : लेकिन पैसे कितने मिलते हैं?

    माँ : पैसे ज़्यादा नहीं हैं। शायद महीने का तीस-पैतींस हज़ार मिलता है उसको।

    रेखा : भैरव के पास तो करोड़ों हैं। आज भी एक महिला आई थी। अपने पति के वशीकरण का मंत्र और तावीज़ लेकर गई है भैरव से। भैरव को उससे बीस हज़ार मिले।

    माँ : बेटा, इसीलिए तो तेरी शादी उससे कराई है। नहीं तो हमारी क्या औकात थी? एक फूटी कौड़ी नहीं थी घर में जब तेरी शादी हुई थी पिछले साल। तेरे पिताजी भी गुज़र गए। मैं कहाँ कहाँ भटकते बैठती थी तेरा रिश्ता ढूँढने? पता नहीं कितना क़र्ज़ा सर पर छोड़ गए तेरे पिताजी। रोज़ कोई न कोई आ धमकता है।

    रेखा माँ से गले लिपट जाती है।

    रेखा : तू चिंता मत कर माँ। कुछ न कुछ तो हो जाएगा। भगवान् ने ही शांति के पास भैरव को भेजा था। ऐसा करोडपति कमज़ोर दिलवाला हार्ट का मरीज़ किस्मत से ही मिला है। जल्द ही कुछ हो जाएगा।

    माँ : बेटा, गली-मोहल्ले में तेरे कारण भी तो काफी बदनामी हो गई थी। आस-पड़ोस में सबको पता था कि तू देर रात तक कैसे उस लफंगे और आवारा गुंडे के साथ घूमती थी।

    रेखा : नित्या के साथ? वो तो पुरानी बात हो गई माँ।

    माँ : बेटा बात तो पुरानी हो गई, लेकिन रह-रहकर आज भी मुझे याद आता है कि कितने झगडे हुए तेरे और मेरे बीच, नित्या के कारण। 

    रेखा : जब भैरव के साथ तूने मेरी शादी पक्की कराई थी, तो मैंने नित्या को अच्छे से समझाकर उसे अलग कर दिया था।

    माँ : मुझे तो तब बहुत ही आश्चर्य हुआ जब शादी के दिन न तो वो आया और न ही कोई बवाल खड़ा किया। पूरे समय ऐसा लग रहा था कि वो कोई बखेड़ा खड़ा करेगा।

    रेखा : अब उसकी बात जाने दो माँ। अब तो शादी को एक साल हो गया। मेरी शादी के बाद, उसने भी तुरंत ही किसी और को पकड़ लिया।

    माँ : भैरव ने तुझे अपनी तिजोरी की चाबी दे रखी है कि नहीं?

    रेखा : तिजोरी की चाबी?! रोज सब्जी लाने तक के पैसे उस से लेने पड़ते हैं!

    माँ : अरे भगवान्!

    रेखा : पता नहीं कहाँ कहाँ पैसा दबा कर रखा है।

    माँ : ये कैसे पता चलेगा?

    रेखा : तिजोरी में एक लाल रंग की डायरी है जिसमें सब लिखा हुआ है।

    माँ : वैसे भी भैरव के जाने के बाद तो सब कुछ तेरा ही होगा ना?

    रेखा : अगर वो तलाकशुदा होता तो उसकी बीवी को पता रहता कि पैसा और जवाहरात कहाँ दबे पड़े हैं। लेकिन ये तो अच्छा हुआ कि उसकी पहली बीवी अब इस दुनिया में नहीं है।

    माँ : बेटा, ये तो किस्मत की बात है। तभी तो तेरा संयोग बना है इसके साथ। अगर वो ज़िन्दा होती, तो आज तू भैरव की बीवी नहीं होती।

    रेखा : लेकिन मुझे हर छोटी बात में भैरव से पैसों की भीख मांगनी पड़ती है।

    माँ : चिंता मत कर। सब सही हो जाएगा। अच्छा, मैं चलूँ?

    माँ जाने के लिए उठ जाती है।

    रेखा : थोडा और बैठ जाती

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