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कोजागरी
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कोजागरी

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About this ebook

कोजागरी स्वयं की संभावनाओं के जागरण का विज्ञान है। जीवन को समझने की जिज्ञासा अक्सर आपको किसी खोज के लिए बाध्य करती है। और खोज आपके भीतर जाकर ही समाप्त होती है। निश्चय ही यह पुस्तक मेरी दो दशकों की साधना और आध्यात्मिक यात्रा का परिणाम है। भौतिक रूप में पुस्तक तो बहुत बाद में लिखी गई। यह किताब खुद में अंत नहीं है, बल्कि यह एक तरीका है उस अंत को पाने का। आपको पता होना चाहिये कि आपका जीवन है क्या? और किसलिए है? जीवन में सफलता अपनी क्षमताओं के सर्वोत्तम उपयोग से प्राप्त होती है। एक स्वर्णिम भविष्य व उत्कृष्ट जीवन जीवन के लिये आपको अपने अन्दर छिपी हुई असीम सम्भावनाओं को प्रकट करना होगा।

Languageहिन्दी
Release dateMay 13, 2023
ISBN9798223994732
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    कोजागरी - Satyajeet Atwara

    ISBN: 978-8196299545

    Published by:

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण: अप्रैल 2023 – पेपरबैक

    प्रकाशक: राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published: April 2023 - Paperback

    eBook by: Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Copyright © सत्यजीत अतवारा

    यह एक काल्पनिक कृति है। नाम, पात्र, व्यवसाय, स्थान और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना के उत्पाद हैं या काल्पनिक तरीके से उपयोग किए जाते हैं। वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत, या वास्तविक घटनाओं से कोई भी समानता विशुद्ध रूप से संयोग है। यह पुस्तक इस शर्त के अधीन बेची जाती है कि इसे प्रकाशक की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी रूप में मुद्रित, प्रसारित-प्रचारित या बिक्रय नहीं किया जा सकेगा। किसी भी परिस्थिति में इस पुस्तक के किसी भी भाग को पुनर्विक्रय के लिए फोटोकॉपी नहीं किया जा सकता है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार के लिए इस पुस्तक के मुद्रक/प्रकाशक/वितरक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। सभी विवाद मध्यस्थता के अधीन हैं, किसी भी तरह के कानूनी वाद-विवाद की स्थिति में न्यायालय क्षेत्र अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत ही होगा।

    सफलता की ओर ले जाने वाले कदम...

    याद रखिए-

    "आपकी हार-जीत, सफलता या असफलता

    को कोई दूसरा नहीं तय कर सकता,

    यह स्वयं आपके ऊपर निर्भर करता है।"

    प्रस्तावना

    कोजागरी पुस्तक का सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान, लोगों के अंदर ऊर्जा, उत्साह व उमंग भर सके और बेहतर जीवन जीने में मदद कर सके यही मेरी इच्छा है। कोजागरी पुस्तक से लोग अपने जीवन को सुखी और सम्पन्न बना सकें, इसी सदेक्षा से प्रेरित होकर इस पुस्तक को मैं आपके सामने रख रहा हूँ।

    मेरा निश्चित मत है कि पूरा जीवन ही वास्तव में एक उत्सव है और हमें यह उत्सव हर पल मनाना चाहिए। जीवन में ऐसा एक पल भी नहीं आना चाहिये जब हम उत्सव से वंचित हों। हम यहाँ समृद्ध और सशक्त जीवन जीने के लिए आये हैं। गन्दे और चीथड़े वस्त्रों में लिपटे हुए गलियों की धूल फाँकने नहीं आये हैं। दीन-हीन, रोते-बिलखते, कीड़े-मकोड़ों की तरह तुच्छ जीवन जीने से आप पतित एवं घृणित ही बने रहेंगे, जबकि जीवन की भव्यता, समृद्धि, सफलता व शांति में है।

    हमारे जीवन में ऊर्जा, उत्साह, उमंग व उल्लास है और प्रकृति में धन, द्रव्य, वस्तु, और पदार्थ है। हमारा जन्म समस्त सुख-सुविधाओं का उपयोग करने के लिए हुआ है। ईश्वर कभी भी नहीं चाहेगा कि उसके बच्चे ग़रीबी, भुखमरी, दलिद्रता का जीवन जियें।

    कोजागरी पुस्तक आपके अंदर एक अद्भुत क्रांति उत्त्पन्न करेगी। ध्यान रहे हर काली,अंधेरी रात के बाद सबेरा आता है। उठो| यश, वैभव, कीर्ति और सफलता का आलिंगन करो।

    - सत्यजीत अतवारा

    समर्पण तथा आभार

    यह पुस्तक उन सभी लोगों को समर्पित जिन्होंने देश, दुनिया व समाज को एक बेहतर रूप देने का प्रयास किया। तथा आभार उस वक्त का जो मुझे अपने बच्चों को देना था, पर मैंने इस पुस्तक को दिया।

    - सत्यजीत अतवारा

    विषय-सूची

    अध्याय 1 आप और आपका अंतर्मन

    1. अंतर्मन की जादुई शक्ति

    2. कल्पना जीवन में रंग भर देती है

    3. मन एक कल्प वृक्ष है

    4. जीवन के तीन आयाम

    अध्याय 2 आपके अन्दर का साम्राज्य

    1. शुभ और अशुभ दोनो आपके भीतर है

    2. क्या आपको लोग पसन्द नही करते

    3. अपने काम को ईमानदारी से करें

    4. धन्य हैं वे लोग जो दूसरों के लिए जीते हैं

    अध्याय 3 अध्यात्म, ईश्वर और आप

    1. आपके जीवन में अध्यात्म

    2. ईश्वर की उपस्थिति साकार या निराकार में

    3. अन्दर की यात्रा

    4. मृत्यु जीवन की समाप्ति नही

    अध्याय 4 संसार और जीवन की सार्थकता

    1. किसी के बारे में विचार तुरन्त न बनायें

    2. जीवन के मूल्य का बोध

    3. दिखावे से दूर रहें

    4. आकांक्षा सुन्दर भविष्य की ओर ले जाती है

    5. किताबों को अपना सच्चा मित्र बनायें

    6. ग़लतियों से सीखें

    अध्याय 5 जीवन में ऊर्जा, उत्साह, उमंग व उल्लास बनाये रखें

    1. दुःख और सुख जीवन के दो पहिये

    2. चेहरे पर मुस्कान बनाये रखिये

    3. सुखी कौन है?

    4. अनुकूलता पाकर संचित कर्म परिणाम देने लगते हैं

    5. यूनिवर्स के कानून से आप बच नहीं सकते

    6. जीवन एक उत्सव है

    7. क्रोध को त्याग दें

    8. जितना है उसमे खुश रहें और बड़े सपने देखें

    9. हमेशा प्रसन्न रहें

    10. मन की शान्ति का उत्तम तरीका

    अध्याय 6 जीवन में गतिशीलता बनाये रखें

    1. निरन्तर प्रयास करते रहें

    2. करते रहने से ही होगा

    3. लकड़ी को नुकीला बनायें

    4. जिज्ञासा बनाये रखें और लगातार सीखते रहें

    अध्याय 7 आप और प्रकृति का अमूल्य खजाना

    1. स्वास्थ्य पर ध्यान दें

    2. अच्छी नींद लें

    3. प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर चलें

    4. प्रकृति अपने सभी राज आप पर खोल देगी

    5. आलस्य से दूर रहें

    अध्याय 8 आप और आपका स्वास्थ्य

    1. क्या आस्था और विश्वास में उपचार की शक्ति है

    2. रिलीज सिस्टम द्वारा रोगों से छुटकारा

    अध्याय 9 सुख-समृद्धि और सफलता का राज

    1. क्या आपकी सोच इन 6 वृत्तों से मिलती है

    2. वे टू सक्सेस

    3. निश्चित लक्ष्य निर्धारित करें

    4. कार्य के प्रति समर्पण

    5. एक समय पर एक ही कार्य करें

    6. अपने पर निर्भरता

    7. अपने पर विश्वास

    8. अवसर को पहचानने की क्षमता

    9. एकाग्रता बनाये रखें

    10. जीवन में संतुलन बनाकर चलें

    11. कार्य करते हुए लगातार अनुभव बढ़ायें

    अध्याय 10 अमीर बनने के रास्ते

    1. सफलता के लिए नींव मजबूत करें

    2. मारवाड़ियों से सीखें

    3.अमीर एवं गरीब व्यक्ति

    अध्याय 11 जीवन को सुनहरे भविष्य की ओर ले जायें

    1. समस्या है तो समाधान खोजें

    2. निगेटिव लोगों से दूरी बनायें

    3. चैतन्यता के साथ सही संगति में रहें

    4. इन्टरनेट का विवेकपूर्ण उपयोग करें

    5. स्मार्ट तरीके से हार्ड वर्क करें

    6. समय का सदुपयोग करें

    7. चौबीस घण्टे को अङ्तालिस घण्टे बनायें

    अध्याय 12 जीवन का परिवर्तन

    1. वृत्त से विन्दु तक की यात्रा

    2. महानता की ओर

    3. मन का परिवर्तन

    4. ज्ञान को जागृति करें

    5. अहंकार का परित्याग करें

    6. ईश्वर भाव को समझता है भाषा को नही

    7. आपसे उम्मीदें

    8. अजीब है न ?

    9. कुछ अच्छा होने वाला है

    अध्याय-1

    आप और आप का अंतर्मन

    अंतर्मन की जादुई शक्ति

    आपके पास कोई सबसे शक्तिशाली चीज है तो वो है आपका अंतर्मन। यह पूरे ब्रह्माण्ड के बारे मे जानता है। यह भूत, वर्तमान और भविष्य को भी जानता है, यहां तक की ब्रह्माण्ड मे प्रतिक्षण होने वाली प्रत्येक घटना को आपका अंतर्मन जानता है।

    आप के सभी कार्यों और स्थितियों पर आपके अंतर्मन का नियन्त्रण है। आपका अंतर्मन सभी सवालों का जवाब जानता है, लेकिन उसे यह पता नहीं होता कि वह जानता है। आपकी स्वाँस को वही चलाता है, लीवर, यकृति, प्लीहा और हृदय की धड़कन को भी वही चलाता है। आपके अंतर्मन के पास अपार शक्ति है, इसलिए हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि आप अपने अंतर्मन की शक्ति से दुनिया के सारे काम कर सकते हैं। जब आप मन में किसी चीज को दोहराते हैं तो बार-बार के दोहराव के कारण अंतर्मन तक वह चीज पहुँच जाती है, और वह होने लगती है जिसको आपने बार-बार दोहराया है। दोहराव में यदि आपने अच्छा सोचा है तो अच्छे परिणाम आएँगें और यदि बुरा सोचते हैं तो बुरे परिणाम आपको प्राप्त होंगे । दरअसल अंतर्मन को अच्छे और बुरे का ज्ञान नही होता, वह सिर्फ प्रतिक्रिया करना जानता है। आपका अंतर्मन बहुत ही ताकतवर है, आप जिसे असम्भव समझते हैं उसे भी वह सम्भव बना देता है, वह आपकी हर सोच को साकार करने में सक्षम है, वह मन के आदेशों को पूरा करने के लिए प्रकृति के सभी नियमों और ताकतों का प्रयोग करता है।

    अगर आप यह कहें कि मुझे लगता है कि मैं अमीर नहीं बन पाऊँगा, मैं पूरी जिन्दगी गरीब ही रहूँगा, तो आपका अंतर्मन बगैर किसी सवाल-जवाब के इस सूचना को या मन के इस विचार को स्वीकार कर लेता है। और जैसे ही अंतर्मन गरीबी को स्वीकार करता है, वह यह सुनिश्चित करने में लग जाता है कि आपके पास अमीर बनने के लिए कभी भी पैसे न आयें। आपने अपने मन के विचारों के कारण अंतर्मन को यह आदेश दे दिया है कि आपको जिन्दगी भर गरीब रहना है, आपने स्वयं गरीबी के लबादे को जबरदस्ती ओढ़ लिया, और यही आपकी भूल है। दरअसल " जो आप हैं वह अपने विचारों के कारण ही हैं। आपने विचारों के रूप में जो बीज अंतर्मन मे डाले हैं वही देर-सवेर प्रकट हो जाएँगें, और उन्हीं विचारों के अनुसार अच्छे या बुरे परिणाम उत्पन्न कर देगें। इसलिए यह जरूरी है कि आप हमेशा अच्छे विचारों को ही अपने मन में जगह दें।" आप अपने विचारों से ही अपने को छोटा-बड़ा, कमजोर या शक्तिशाली बना सकते हैं, आप अपने विचारों से ही अपने को चोट पहुंचा सकते है। दरअसल दूसरों के द्वारा दिये गये सुझाव या कही गयी बातों में इतनी ताकत ही नहीं है कि वह आपको चोट पहुंचा सके। दूसरों के सुझावों में कोई शक्ति नही होती, एकमात्र शक्ति आपके अपने विचारों में है, और जब आप दूसरों के विचारों को स्वीकृति दे देते हैं तो वह विचार आपका अपना विचार बन जाता है। अब यह आपके ऊपर निर्भर है कि आप दूसरों के विचार या कही गयी बातों को ताकत देते हैं या उन्हें शक्तिहीन बनाये रखते हैं। ध्यान यह भी रहे कि आपका मन दूसरों के सुझावों या बातों के प्रति अति संवेदनशील रहता है।

    आप अपने मन में जो भी चीज बुनते या बनाते है वही चीज होने लगती है। यदि आप हताशा, निराशा, डर और भय की कल्पना करते हैं तो अंतर्मन उसी ओर क्रियाशील होकर हताशा, निराशा, डर और भय का जीवन आपके सामने प्रकट कर देगा। यदि आप तनाव, चिन्ता, थकान को अपने मन में जगह देंगे तो आपका अंतर्मन आपके लिए तनाव, चिन्ता और थकान की व्यवस्था तुरन्त से करने लग जायेगा और आप तनाव, चिन्ता और थके हुए व्यक्ति के रूप में अपने आपको पायेंगे। आपके विचार खामोश और अदृश्य हैं लेकिन बहुत ताकतवर हैं और वास्तविक हैं। बाबा तुलसीदास ने कहा कि- सकल पदारथ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाही। सभी तरह के धन, द्रव्य, वस्तु, पदार्थ इस संसार मे भरे पड़े हैं, लेकिन जिनके पास विचार नहीं हैं उन्हें ये पदार्थ नहीं प्राप्त होते हैं। क्योंकि आपका मन, विचार से धन, द्रव्य, वस्तु, पदार्थ की तरफ चलता है, पहले विचार आता है फिर विचार आने के बाद वस्तु को पाने के लिए कर्म किया जाता है। और जब किसी वस्तु को पाने के लिए विचार प्रबल होता है तो वही विचार आपके अन्दर काम करने का जुनून पैदा कर देता है, यही जुनून तथा वस्तु प्राप्ति का लगातार मानसिक दोहराव आपके अंतर्मन तक पहुँच जाता है। अंतर्मन आदेश मानकर बिना किसी सवाल-जवाब के उस वस्तु को पाने में अपने आपको लगा देता है, चूँकि अंतर्मन शक्तिशाली है और वह प्रकृति के सभी नियमों और ताकतों का प्रयोग उस वस्तु को पाने में लगा देता है इसलिए वह वस्तु जिसकी कल्पना आपने की थी, वह चाहे जितनी दुरूह क्यों न हो, उसे आपके सामने प्रकट ही कर देती है।

    सूरज आलस्य करके सो जाये या हवा रुक जाये तो क्या होगा ? पूरे संसार मे हाहाकार मच जायेगा। दरअसल प्रकृति हर पल बिना रुके अपना काम करती रहती है। इसलिए वेदों में कहा गया है कि- चरैवेति-चरैवेति मतलब है चलते रहो-चलते रहो। जीवन में गतिशीलता बनी रहनी चाहिए, गतिहीनता मृत्यु को कहते हैं। रुका हुआ पानी सड़ जाता है, काम न करने वाला व्यक्ति निकम्मा हो जाता है। चरैवेति-चरैवेति बिना रुके, बिना थके चलते रहना यही आपका अर्न्तमन आपको प्रेरित करता है। जीवन का नियम ही है विकास, जहाँ विकास है वहीं जीवन है। पूरी प्रकृति बहुत खामोशी से पूरी तरह मौन रहकर धीरे धीरे विकास करते हुए विकास के नियम को ही प्रमाणित करती है। आप कुछ करें या न करें सब कुछ अपने आप हो जायेगा ऐसा विचार करने वाले जड़ व्यक्ति हैं, हाथ पर हाथ धरे नही बैठे रहना चाहिए, सिर्फ किस्मत के भरोसे बैठे रहने से कुछ नही मिलने वाला है। कामयाबी पाने के लिए योजनानुसार काम करना होगा, हर पल का योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल करने की कला सीखनी होगी। खुद को अनुशासित करना होगा, अच्छी आदतों को ही अपनी जीवनचर्या में शामिल करना होगा। जो लोग इन आदतों को नहीं अपनाते वे जीवन में नाकामयाब रहते हैं, नाकामयाब लोग अपने जीवन में खराब आदतें अपनाते हैं और यही खराब आदतें हताशा, निराशा तथा तमाम तरह की समस्याओं को जन्म देती हैं। आदत का अर्थ है कि मन में जब किसी बात को बार-बार दोहराया जाता है तो वह आपकी आदत में शुमार हो जाता है या यूँ कहें कि वह आपकी आदत बन जाती है।

    तुलसी बाबा कहते हैं कि - निर्मल मन जन सोई मोहि पावा जिनका मन निर्मल है वही मुझे पाते हैं और जो मुझे पाते हैं उन्हें सब कुछ मिल जाता है। वस्तुत: जब मन निर्मल होता है तो अंतर्मन निर्मलता को स्वीकार कर अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करने लगता है, साथ ही साथ किसी भी तरह की समस्या का समाधान स्वयं करने लगता है। इसलिए मैं लोगों से कहता हूँ कि यदि आपके जीवन में कोई समस्या है और उसका निराकरण नही हो पा रहा है, तो आप बच्चों जैसा बन जायें, निश्चित तौर पर आपकी समस्या समाप्त हो जायेगी। बालक का बौद्धिक स्तर और मन की निर्मलता जो होती है, उसी स्तर पर आप भी पहुँच जायें तो समस्या रह ही नही जायेगी। दरअसल जब आप बौद्धिक प्रयासों से अपनी किसी समस्या का निपटारा करना चाहते हैं, तो मानसिक तनाव बढ़ जाता है, और यही मानसिक तनाव समस्या सुलझाने के बजाय धीरे-धीरे एक अज्ञात भय की तरफ आपको ढकेल देता है। वस्तुतः जिस समस्या से आप बुद्धि के द्वारा निजात पाना चाहते हैं वह समस्या ही बुद्धि के द्वारा उत्पन्न हुई है, इसलिए आप बच्चों जैसा बन जायें । सावधान न होकर, सरल हो जायें और यह तस्वीर मन में बनायें कि आपको कोई समस्या है ही नही। आपका अंतर्मन आपके शरीर का निर्माता है, वह आपके शरीर के सभी महत्वपूर्ण कार्य प्रणालियों का नियन्ता है, आपको अपने अंतर्मन पर सब कुछ छोड़ देना चाहिए और इस बात का बार-बार दोहराव करना चाहिए कि सब कुछ सही हो रहा है। बार-बार दोहराव की भावना से सब कुछ सही होता है, यह शाश्वत नियम है। आप अच्छे की कल्पना करेंगे, तो अच्छा ही होगा, आपकी कल्पना के अनुसार ही सब कुछ होगा यह सुनिश्चित है। कल्पना में बडी शक्ति है, आपको स्वस्थ और समृद्धि की कल्पना से ओतप्रोत होकर सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की भावना के साथ अंतर्मन के अंतर्ज्ञान, अनुभूतियों और संकेतों को महसूस करते हुए उत्साह, उमंग, उल्लासपूर्ण जीवन का आनन्द लेना चाहिए।

    अभी तक कोई ऐसा व्यक्ति नही मिला जिसने यह कहा हो कि मैं साँस लेना भूल गया। हृदय धड़कन करना भी नही भूलता है, जब आप सो जाते हैं तब भी आपके शरीर की प्रत्येक क्रिया जारी रहती है। दरअसल यह सारी क्रिया आपका अंतर्मन करता है, वह चौबीस घण्टे, आठों पहर जागता है। अंतर्मन की महिमा अपार है, आप अपने अंतर्मन से अलौकिक प्रकाश पा सकते हैं, सफलता के नये आयाम स्थापित कर सकते हैं। बहुत से लोगों ने अंतर्मन के द्वारा आश्चर्य जनक सफलता प्राप्त की और महान बन गये। आपके मन की कल्पना शक्ति जितनी प्रबल होगी अंतर्मन प्रतिक्रिया भी उतनी ही तेज़ी से करेगा। मन की कल्पना शक्ति के द्वारा आप पूरी दुनिया बदल सकते हैं और अपनी मनचाही दुनिया बना सकते हैं। " आप जो सोचते हैं जो कल्पना करते हैं वही होता है, आप अपने को कमजोर घोषित करेंगे तो कमजोर बनेंगे और आपकी स्थिति जीवन भर खराब ही रहेगी। यदि आप अन्धेरे में  हैं तो रोशनी कर लें, लेकिन नही आप तो कमरे की सभी खिड़कियाँ बन्द करके अन्धेरे को आमंत्रित करते हुए चीखते-चिल्लाते हैं कि देखो हमारे जीवन में अन्धेरा है।" ध्यान रहे आपकी शक्ति और सामर्थ्य का स्रोत आपके भीतर विद्यमान है, आपकी दुर्बलता आपकी कमजोर विचार प्रक्रिया है। कल्पना आपके अन्दर चुम्बकीय गुण पैदा करती है, कल्पना शक्ति ब्रह्माण्ड की अदृश्य शक्ति को सक्रिय कर देती है और यही कायनात की अदृश्य शक्तियां संसाधनों को आकर्षित करके आपको लक्ष्य तक पहुँचा देती हैं।

    दुनिया में सभी चीजें दो बार निर्मित होती हैं। पहली रचना मानसिक होती है और दूसरी रचना भौतिक। मान लीजिए कि आपको मकान बनाना है तो इसके लिए सबसे पहले मन में एक कल्पना बनेगी कि वह मकान कैसा हो, उसका आकार-प्रकार कैसा हो या यह कहें कि उसकी डिजाइन कैसी हो। आप अपने मन में ही स्पष्ट डिजाइन तैयार करके उसे ब्लूप्रिन्ट का रूप दे देते हैं, इसी को आप पहला निर्माण कहते हैं। पहले निर्माण के बाद ही आप निर्माण स्थल पर ईंट, सीमेंट और मसाले का प्रयोग करके मकान को स्थूल रूप देते हैं, जिसे आप दूसरा निर्माण कहते हैं। इस तरह से सभी चीजें दुनिया मे दो बार बनती हैं, एक मानसिक दूसरी भौतिक। इसमें एक बात आपको अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि दूसरे निर्माण का कोई महत्व नही है, जबकि पहला निर्माण ही महत्वपूर्ण है। दरअसल भौतिक जगत में जिस चीज को पाने की आप इच्छा रखते हैं, वह बाहर होती ही नहीं है, वह आपके मन के द्वारा संकल्पित विचार ही होता है जो बाहर की दुनिया में स्थूल रूप में प्रकट होता है, इसलिए आप कह सकते है कि पहले निर्माण का ही इफेक्ट है दूसरा निर्माण। संत कबीर कहते है कि-

    इस घट अन्दर बाग-बगीचे,

    इसी में सिरजन हारा ।।

    इस घट अन्दर सात समन्दर,

    इसी में नौ लख तारा ।।

    इस घट अन्दर पारस मोती,

    इसी में परखनहारा ।।

    इस घट अन्दर अनहद बाजे,

    इसी में उठत फुहारा ।।

    कहत कबीर सुनो भाई साधो,

    इसी में साँई हमारा ।।

    इसी शरीर के अन्दर बाग-बगीचे खिले हैं और इसी में उनका सृजनहार है। इसी शरीर में सात समुद्र है और इसी में नौ लाख तारे भी। इसी में पारस मोती और उसे परखने वाला भी है। इसी में न खत्म होने वाला नाँद गूंज रहा है और इसी मे फुहारे फूट रही हैं और अन्त मे कबीर कहते हैं कि इसी शरीर में हमारा साँई विराजमान है। धड धरती का एकै लेखा, जो बाहर सो भीतर देखा। धड अर्थात शरीर और धरती मतलब बाहरी जगत, इन दोनो का लेखा-जोखा एक ही है। जो कुछ भी आपको बाहर दिखाई दे रहा है वह सब कुछ आपके शरीर के अन्दर ही है, दरअसल जो शरीर के भीतर है वही बाहर है। इसलिए आपको अपने भीतर देखने की जरूरत है, अपने अन्दर ही टटोलना होगा तभी आपको जीवन में सफलता प्राप्त होगी। क्योंकि बाहरी स्वरूप, आन्तरिक स्वरूप का ही प्रतिबिंब है।

    " आप सभी में एक अदृश्य शक्ति विद्यमान है। प्रत्येक व्यक्ति एक नैसर्गिक क्षमता और गुण लेकर जन्म लेता है, और प्रत्येक व्यक्ति को कुछ विशेष काम के लिए बनाया गया है।" आपको जिस भी काम से प्यार हो वह काम जरूर करें, क्योंकि उस अदृश्य शक्ति ने उस विशेष काम के लिए आपको बनाया है, उसने उन गुणों को आपके अन्दर डाल रखा है। उसे बेहतर तरीके से निखारना, विस्तार देना यह आपकी जिम्मेदारी है, उस विशेष क्षेत्र में प्रगति के लिए प्रयास करना आपका दायित्व है और यही जीवन का लक्ष्य भी।

    मन एक कल्प वृक्ष है

    मनुष्य चाहे अच्छा कर्म करे या बुरा, दोनों ही मन के द्वारा किये जाते हैं, मन की जैसी इच्छा होती है अच्छा या बुरा वैसा ही होने लगता है। इस संसार का निर्माता मन ही है। संत कबीर ने कहा कि -

    मनवै आपै जगत बनाकर। 

    ऊँच-नीच तन पाया ॥ 

    मनवै सबको भरमाया।

    मनवे आया जाया॥

    साधु मनवै सबको भरमाया.......

    मन ही जगत बनाता है और ऊँच-नीच तन धारण करता है, मन ही विभिन्न शरीरों का कारण है, इसी मन ने सबको भरमा रखा है। आप सारा प्रयास इसी मन की शान्ति के लिए करते हैं। उपनिषदों में कहा गया हैं कि-

    मन एवं मनुष्याणां कारणं वन्धमोक्षये।

    मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है।

    संत कबीर ने कहा कि—

    कौन ज्ञान है कौन ध्यान है, को है पारख वानी।

    काहे लिये तुम ज्ञान कूटत हो, को है अन्तर्यामी ।।

    ज्ञान क्या है ? ध्यान क्या है ? और परमात्मा की वाणी क्या है ? क्यों तुम ज्ञान के लिए परेशान रहते हो, उसको कूटते-पीटते रहते हो, और यह अंतर्यामी कौन है ?

    उत्तर संत कबीर देते हैं और कहते हैं कि-

    मनै ज्ञान है मनै ध्यान है, मनवै पारख वानी।

    मनै लिए हम ज्ञान कूटत, मोर मनै अंतर्यामी ॥

    मन ही ज्ञान है, मन ही ध्यान है और मन ही परमात्मा की वाणी है। इसी मन के लिए हम ज्ञान कूटते-पीटते रहते हैं। कहने का मतलब ज्ञान का शोधन करते रहते हैं। जब यही मन स्थिर हो जाता है, कूटस्थ हो जाता है, सम हो जाता है तो यह अर्न्तयामी हो जाता है।

    संत कबीर ने पुन: कहा-

    मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

    ––––––––

    " आपकी हार-जीत, सफलता या असफलता को कोई दूसरा नहीं तय कर सकता, यह स्वयं आपके ऊपर निर्भर करता है।" जय-पराजय, जन्म-जीवन-मृत्यु के चक्र को मन ही चलाता है। इस जन्म-जीवन चक्र में दुख आने पर भयभीत न हों, यह धरा संघर्ष का मैदान है। इसे निम्न पंक्तियों से समझा जा सकता है-

    जन्म जीवन चक्र है,

    यह हमारा घर नहीं। 

    काल से हम क्यों डरें,

    जब आत्मा नश्वर नही।।

    है संघर्ष का मैदान यह, 

    पर मानव हैं दानव नही। 

    नर जन्म जीवन चक्र है, 

    सम्मुख धरा के भय नही ।।

    यदि वीर है तो युद्ध कर,

    तू कभी झुकना नही।

    बिन लड़े तू जीत जा,

    यह कभी सम्भव नही।

    भयभीत तू रहना नही

    युद्ध से डरना नही। 

    यमराज से भी युद्ध कर, 

    पर दम्भ में रहना नही।।

    जन्म जीवन चक्र है,

    यह हमारा घर नही। 

    काल से हम क्यों डरें,

    जब आत्मा नश्वर नही॥

    मनुष्य का जीवन आशाओं-निराशाओं, उतार-चढ़ाव और सुख-दुख से भरा पड़ा है, लेकिन जिसका मन प्रबल है वह इन परिस्थितियों का सामना खुशी-खुशी करता है। परिस्थितियों का सामना तो सभी को करना पड़ता है, परन्तु जो हंसकर इससे बाहर आ जाता है, वही विजेता है। मन एक कल्प वृक्ष के समान है, मन का ही स्थूल रूप है कल्प वृक्ष। कहते है कि

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