Aap Kya Nahin Kar Sakte - (आप क्या नहीं कर सकते)
By Swett Marden
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स्वेट मार्डेन की पुस्तकों के अध्ययन से करोड़ों व्यक्तियों ने आत्मशुद्धि, कार्य में निष्ठा के साथ-साथ जीवन में उत्साह व प्रेरणा प्राप्त की है। आप भी इन्हें पढ़िये और अपने मनोरथों को प्राप्त करने का आनंद उठाइये। प्रस्तुत पुस्तक कदम-कदम पर मार्गदर्शन करती हुई आपका जीवन बदल सकती है।
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Aap Kya Nahin Kar Sakte - (आप क्या नहीं कर सकते) - Swett Marden
सकते!
1. आपके विचार
किसी भी मनुष्य के चरित्र का गठन का व्यक्तित्व का निर्माण उसके सुन्दर वस्त्रों तथा उसकी ऊंची बातों मात्र से नहीं हो जाता बल्कि मनुष्य के अपने विचारों के द्वारा गई चारित्रिक गठन गैर उसका व्यक्तित्व है।
मनुष्य के हृदय में बड़ी-बड़ी आकांक्षाएं व्यर्थ नहीं पैदा होतीं। भावनाएं बेकार ही मन में उत्पन्न नहीं हुआ करतीं। ये भावनाएं और महत्त्वाकांक्षाएं ही मनुष्य को काम करने की प्रेरणा देती हैं। इन्हीं के विचारों से मनुष्य काम करने की शक्ति ग्रहण करता है।
जब आप अपने हृदय की गहराइयों से किसी एक चीज की इच्छा करते हैं तब वह आपको अवश्य मिल जाती है। मन, वचन और कर्म से किया हुआ प्रयास निष्फल नहीं जाता है, उसका सुफल अवश्य सामने आता है।
आप जब किसी चीज की हृदय से इच्छा करते हैं तो उस चीज से आपका सम्बन्ध जुड़ जाता है। जितनी भी आप मन से उनकी इच्छा करेंगे, आपका मन उसका विचार करेगा, आप मन, वचन और कर्म से उसे पाने का उद्योग करेंगे, वह सम्बन्ध मज़बूत होता चला जाएगा और एक दिन आप उस वस्तु को अवश्य पा लेंगे।
आप जो कुछ करना चाहते हैं या बनना चाहते हैं अथवा किसी क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपने उद्देश्य पर अटल रहते हुए तन-मन से उसके लिए कोशिश करनी चाहिए। आपके इरादे मज़बूत होने चाहिए, आपकी जीत होगी। आपकी आकांक्षाएं आश्चर्यजनक रूप से पूर्ण होंगी।
आप जीवनपर्यन्त स्वस्थ और जवान बने रहना चाहें तो ऐसा भी हो सकता है बशर्ते कि आप अपने मन में इसके लिए ऐसे विचार स्थिर किये रहें । मन में और आत्मा में आप सदा यदि पवित्रता, सुन्दरता रखेंगे तो आपका मन और आत्मा सदा सुंदर रहेंगे। बुढ़ापा नहीं आ सकता। आपकी नैतिक शक्ति बढ़ जाएगी। शारीरिक और मानसिक शक्तियों में भी दृष्टि होगी।
आदर्श:
आपके कुछ आदर्श होने चाहिए । आदर्श उत्तम हों । बिना आदर्श के मनुष्य कुछ नहीं है । आदर्श उत्तम हों तो हर वस्तु नवीन और सुन्दर है । वहां कुछ भी पुरातन और कुरूप नहीं होता । यदि आप आदर्श पर स्थिर रहें तो आपको हर समय पूर्णता ही प्राप्ति होगी । आप अपने को कभी अपूर्ण नहीं पाएंगे । आपको अपनी इच्छाएं पूर्ण होने की दृढ़ आशा रहेगी जिससे आप श्रद्धा, प्रेम और परिश्रम से कार्य करते रहेंगे । दृढ़पूर्वक आदर्श को बनाये रखने से मनोबल बढ़ा रहता है और वह मनोबल आपको अपने अभीष्ट की सिद्धि में अर्थात् जो आप करना चाहते हैं, उसमें सहायक होगा।
जो कुछ भी आप बनना चाहते हैं उसके, लिए कोई आदर्श आपके सामने होना चाहिए । आप किसी के समान बनना चाहते हैं तो अपने सामने उसी का आदर्श रखिए । सदा ऐसा अनुभव कीजिए आप वैसे बन गये हैं । आप में वही क्षमताएं हैं, वे ही पूर्णताएं हैं । आप में वे सभी गुण ही हैं । कोई भी तो अभाव आपके अन्दर नहीं है । किसी प्रकार की हीन भावना या विचार हों तो प्रथम उन्हें मन से दूर कर दें । अपने लक्ष्य को आप निश्चित रूप से पा लेंगे । आप वही बन सकेंगे, जो आपका आदर्श है ।
आप सदा आशावादी रहिए ।
कभी निराशावादी मत बनिए ।
आशाओं से परिपूर्ण विचारों में बड़ी शक्ति होती है इसका प्रत्यक्ष अनुभव करके देख सकते हैं । यदि आप यह दृढ़ निश्चय कर लें, अपने मन में इन विचारों को दृढ़ कर लें कि आपके लिए सब कुछ अच्छा ही हो रहा है । ये आशा से भरे विचार आपकी सभी शक्तियों में वृद्धि कर देते हैं । आपके ये आशा से भरे विचार आदत बन जाएंगे । आप फिर प्रगति पथ पर बढ़ते चले जाएंगे । जो आप करना चाहते हैं या जो आप बनना चाहते हैं, वही करते जाएंगे, बनते जाएंगे ।
जीवनोद्देश्य:
इस संसार में भगवान ने सभी को किसी न किसी उद्देश्य से भेजा है । सभी कोई न कोई कार्य करने के लिए संसार में आये हैं । आप भी आये हैं । आपको भी परमेश्वर ने भेजा है । आपको उसने जिस कार्य के लिए भेजा है उसे आप करेंगे । इसमें कोई भी सन्देह नहीं होना चाहिए । यदि हो तो निकाल दीजिए! मन में सन्देह के भावों को न आने दीजिए । सन्देह के भावों को बिल्कुल निकाल फेंकिए । आप अच्छे विचारों को ही मन में उत्पन्न करें, जो आपके हित में हो, वही आप सोचें । ऐसी प्रत्येक वस्तु को, जो आपको दुख, निराशा और असफलता की ओर ले जाने वाली है, उसे अपने पास आने ही क्यों देते हैं? ऐसे विचारों को अपने पास न आने दीजिए, ऐसे विचार बिल्कुल त्याग दीजिए । उन भावों का तिरस्कार कीजिए जो निराशा से भरे हैं, जो सन्देहजनक है, जो आपकी प्रगति में बाधक हैं।
जब आपकी आदत सदा शुभ और आशावादी विचार ही बनाये रखने की होगी, आपके मन में सदा आनन्द और उत्साह भरा रहेगा, तब आप निश्चित रूप से अधिक कार्य करेंगे, सफलताएं प्राप्त करेंगे। कभी दुखों और निराशाओं का मुंह नहीं देखना पड़ेगा । आपके भाव सदा आशामय और शुभ सूचक रहते हैं, जब आप आनन्दमय और प्रसन्न रहते हुए, दृढ़तापूर्वक कार्य करते रहने की आदत बना लेते हैं तो सदा आगे ही बढ़ते हैं और शत्रु आपकी सफलता, सुख और शांति में बाधा पहुंचाते हैं, आप उन्हें परास्त कर सकते हैं ।
आपकी धारणा यदि यही है कि बिना धन-पूंजी के संसार में सफलता नहीं मिलती है तो इसे मन से निकाल दें । मन, वचन और कर्म से आप प्रयत्न करें कि आपका भविष्य उज्ज्वल होना चाहिए, आप सभी प्रकार से सुखी, सफल और उन्नत हों तो आपको सभी आवश्यक चीजें प्राप्त होती चली जाएंगी । सफलता के लिए संसार में प्रवेश करते समय जो धन-पूंजी आपके पास बिल्कुल नहीं थी, वह आती चली जाएगी क्योंकि आपके पास आशामय उत्तम विचारों की पूंजी है और वही सबसे बड़ी पूंजी है ।
कुछ लोग अपनी इच्छाओं को स्वयं कमजोर बना लेते हैं । वे नहीं जानते कि इच्छाओं की पूर्ति के लिए दृढ़ निश्चय और भाव जरूरी है और निरंतर मन, वचन और कर्म से प्रयास करते रहने से ही अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति मिलती है । इच्छाएं तभी पूर्ण हो सकती हैं जब वे सबल होती हैं । कमजोर इच्छाएं अपूर्ण रहती हैं ।
इच्छाएं:
प्रारम्भ में यदि इच्छाएं पूर्ण होती दिखाई न दें, किसी प्रकार की रुकावट है, है तो तनिक भी घबराने की जरूरत नहीं है । प्रयत्न जारी रखें । अशामय विचार उसी प्रकार दृढ़ रहें । निश्चित रूप से आप उन रुकावटों को पार कर लेंगे । आप ही की जीत होगी । बस यह मत भूलिए कि अभिलाषाएं तभी पूरी होती है जब दृढ़ निश्चय के साथ-साथ परिश्रम और प्रयत्न किये जाते है । दृढ़ निश्चय ही सफल हुआ करते हैं । उत्पादन शक्ति बढ़ाने के लिए इच्छा और दृढ़ निश्चय के साथ प्रयास करना आवश्यक है । तभी सफलता प्राप्त होती है ।
आप ईश्वर के अंश हैं । यह आपको प्रत्येक क्षण ध्यान में रखना चाहिए । ईश्वर ने आपको भी पूर्ण बनाकर भेजा है । जब आपका यह विश्वास दृढ़ होगा तो आपको शक्ति और स्फूर्ति प्राप्त होगी । कमजोरी दूर हो जाएगी । उत्पादक शक्ति बढ़ जाएगी । आप अधिक से अधिक कार्य कर सकेंगे ।
आपके विचारों में सदा वही बातें हों, वही सोचें और कहें जिन्हें आप पूर्ण करने की इच्छा रखते हैं । तरह-तरह की व्यर्थ बातें सोचने या कहने से क्या लाभ?
दुर्भाग्य का रोना:
कुछ लोग घोर निराशावादी होते हैं, और वे सदा अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाते हैं, कुछ सदा अपनी असफलताओं का रोना रोते रहते हैं और भाग्य अथवा भगवान् को दोषी ठहराते हैं । वे नहीं जानते कि ये निराशा भरे विचार और रोना-धोना ही उनके शत्रु हैं और इन्हीं के कारण ये असफलताएं और दुख बार-बार उनकी ओर लौट आते हैं । अतः अपने मन से ऐसे बुरे विचारों को मन से बिल्कुल निकाल दें । रोने-धोने की बीमारी से छुटकारा पाइए । आप यही सोचें कि ऊंचे, पवित्र और उत्तम विचारों से ही आत्मा को सुख, शान्ति और आनन्द प्राप्त होता है ।
आप जिस विषय में निपुण होना चाहते हैं, उसकी गहराइयों को जानना और ऊंचाइयों को छूना चाहते हैं, उसके लिए पूरी शक्ति से, मन से उसमें तब तक लगे रहें जब तक आपको सफलता के दर्शन न होने लगें । आपको उसमें सन्देह ही न रहे ।
आपके जीवन को वास्तविक जीवन आपका आदर्श ही बनाता है । जैसा आपका आदर्श होगा, वैसे ही आप होंगे । आप अपने आदर्श को अपने चेहरे, हाव-भाव से प्रकट करते हैं । यह स्वाभाविक ही है । आप छिपा नहीं सकते हैं । आपको देखते ही आपके आदर्श का पता लग सकता है । अतः अपना आदर्श, अपने विचार और मन के भाव सदा उत्तम ही रखने चाहिए । श्रेष्ठता और दिव्यता आपके विचारों और मन में भरी हुई हो । आपका यह दृढ़ विश्वास और निश्चय हो कि आपका किसी भी प्रकार का सम्बन्ध निर्धनता, कमजोरी और अज्ञान से नहीं है । रोग-शोक से आपका कोई वास्ता नहीं है । आपके हाथों में कोई कार्य बुरा नहीं है, आप सदा अच्छा कार्य ही करते है । बुराइयों से आपका सम्बन्ध नहीं है ।
आपको अक्सर उस वस्तु की तलाश रहती है जिसकी सहायता से आपकी आत्मा प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकती है । आप अक्सर सोचते हैं कि किस दिव्य पदार्थ के द्वारा आत्मा आनन्दमय हो । वह है आपके आदर्श से उत्पन्न प्रभाव । आप ही के अपने मन से निकली हुई पवित्र ज्योति । आपके मन की ही ज्योति आपके मार्ग को प्रकाश से भरती है ।
दो चीजें आपको आदर्श तक पहुंचने में बड़ी सहायक होती हैं ।
वे दो चीजें हैं-श्रद्धा और आस्था ।
श्रद्धा ही तो आपकी इच्छाओं का मूल है और आस्था आपकी शक्ति है ।
आप जो आदर्श अपनाए हुए हैं, सामने रक्खे हुए हैं, उसके प्रति मन में सदैव श्रद्धा और उसमें आस्था भी बनाये रहें । ईश्वर में भी वृद्धा और आस्था इसी प्रकार बनाये रक्खें ।
इन दोनों चीजों से भी बढ़कर एक और चीज है, केवल इन्हीं से काम नहीं बनेगा । इन्हीं के साथ-साथ वह भी आपके लिए परमावश्यक तत्व है ।
वह क्या है?
वह महत्त्वपूर्ण तत्व है सत्य ।
सत्य ऐसा तत्व है कि अन्य वृत्तियों के सुप्त होने पर भी यह आश्चर्यजनक रूप से कार्य करता है । यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । अतः सत्य का मार्ग कभी न छोड़े ।
मनुष्य दृढ़तापूर्वक जिस पर विश्वास करता है वह उसे अवश्य ही प्राप्त होता है ।
यह उत्पादक शक्ति का नियम है ।
आप इस बात को यों समझ सकते हैं । मान लिया आप एक प्रभावशाली व्यक्ति बनना चाहते हैं जिसे लोग सम्मान देते हैं, जिसकी बातें मानते है, जिसमें कई गुण हों और जिसे सब सुख हों । ऐसा सोचते हुए आप प्रयत्न भी करने लगें और विश्वास रक्खें कि आप ऐसे ही बनते जा रहे हैं । आपके अन्दर एक अलौकिक शक्ति का संचार होगा और आप ऐसे ही बनते चले जाएंगे ।
आप अपने उद्देश्य को पूर्ण करना चाहते हैं तो अपने विचारों को उसी उद्देश्य पर केन्द्रित करें । अपने लक्ष्य के लिए मन, वचन और कर्म से प्रयत्न करें । आप सफलता का ही मुंह देखेंगे।
मानसिक शक्तियां:
मनुष्य की शक्तियां क्रियाशील होती हैं । यदि इन शक्तियों का प्रयोग करना मनुष्य जानता है तो बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी अपने आदर्श पर अडिग रह