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देवी दोहावली
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देवी दोहावली

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शुभ साधन है साधना, सृजन कर्म निष्पाप
दोहा लिखना छंद में, लगता मुझको जाप

दोहे मन भावन लिखे, मन अब हुआ प्रसन्न
भूखे को जैसे मिला, बहुत दिनन में अन्न

मृदुल-मृदुल महका सुमन, गूंथा छंद का हार
सजदे में सिर झुक गया, देख सृजन संसार

दोहा मुक्तक छंद है:

ललित छंद दोहा अमर, भारत का सिरमौर
हिन्दी माँ का लाड़ला, इस सा छंद न और

उन महान दोहकारों को जो वेदों के रचयिता व् पुरानों के पुरोधा रहे. इस छंद में एक लय-सुर ताल की पीठिका स्थापित कर गए.

देवी नागरानी

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateFeb 8, 2018
ISBN9781370389155
देवी दोहावली

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    देवी दोहावली - Devi Nangrani

    देवी दोहावली

    देवी नागरानी

    www.smashwords.com

    Copyright

    देवी दोहावली

    देवी नागरानी

    Copyright@2018 Devi Nangrani

    Smashwords Edition

    All rights reserved

    देवी दोहावली

    Copyright

    समर्पित

    पुरोवाक्

    दोहा: एक परिचय

    देवी दोहावली

    लेखिका परिचय

    समर्पित

    शुभ साधन है साधना, सृजन कर्म निष्पाप

    दोहा लिखना छंद में, लगता मुझको जाप

    दोहे मन भावन लिखे, मन अब हुआ प्रसन्न

    भूखे को जैसे मिला, बहुत दिनन में अन्न

    मृदुल-मृदुल महका सुमन, गूंथा छंद का हार

    सजदे में सिर झुक गया, देख सृजन संसार

    दोहा मुक्तक छंद है:

    ललित छंद दोहा अमर, भारत का सिरमौर

    हिन्दी माँ का लाड़ला, इस सा छंद न और

    उन महान दोहकारों को जो वेदों के रचयिता व् पुरानों के पुरोधा रहे. इस छंद में एक लय-सुर ताल की पीठिका स्थापित कर गए.

    देवी नागरानी

    पुरोवाक्

    दोहा छंद शास्त्र की अद्भुत कलात्मक देन -देवी दोहावली

    सबको हितकर सृजनकर, पायें-दें आनंद

    नाद-ताल-रस-भाव-लय, बिम्बित परमानंद

    दोहा: एक परिचय

    विश्व-वांग्मय का सर्वाधिक मारक-तारक-सुधारक छंद दोहा छंद शास्त्र की अद्भुत कलात्मक देन है। जन-मन-रंजन, भव-बाधा-भंजन, यश-कीर्ति-मंडन, अशुभ विखंडन तथा सर्व शुभ सृजन में दोहा का कोई सानी नहीं है। संस्कृत वांग्मय के अनुसार 'दोग्धि चित्तमिति दोग्धकम्' अर्थात जो श्रोता / पाठक के चित्त का दोहन करे वह दोग्धक (दोहा) है। दोहा चित्त का ही नहीं वर्ण्य विषय के सार का भी दोहन करने में समर्थ है। दोहा अपने अस्तित्व-काल के प्रारम्भ से ही लोक परम्परा और लोक मानस से संपृक्त रहा है। आरम्भ में हर काव्य रचना 'दूहा' (दोहा) कही जाती थी। कालांतर में संस्कृत के द्विपदीय श्लोकों के आधार पर केवल दो पंक्तियों की काव्य रचना 'दोहड़ा' कही गयी। संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं की पूर्वपरता

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