अधूरा इश्क़ अधूरी कहानी: Love, #1
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"पाठकगण, आपका तहे दिल से स्वागत। आज आपके हाथ में इश्क को लेकर कई कहानियों को संग्रह करते हुए मोहब्बत को खट्टी-मीठी अहसास कराती पुस्तक ""अधूरा इश्क, अधूरी कहानी "" है। साथियों, जब मैं इस पुस्तक को लिखने की शुरुआत किया तो मेरे दोस्त मुस्कान सिंह जो मेरी सहयोगी है। वे हमसे कई बार मजाकिया अंदाज में बोली की दीपक तुम ऐसा ही नाम क्यों सोचे हो. तुम्हे ये नाम ""अधूरा इश्क, अधूरी कहानी"" बड़ा अजीब नहीं लगता। ऐसा लगता है जैसे कोई प्यार में पूरी तरह से टूट चुका है। मैं हंसते हुए कहता तुम भी ना... ।
आशा है की हमारी इस छोटी कोशिश से आपको अपने बीतें दिनों की इश्क जो अब ठंडी हो चुकी है उसे तरो ताजा कर देगी। प्रेमिका के साथ गुजारे उस पल को उस अहसास को उस मस्तियों को, उस नादानियों को, उस गुस्ताखियों को ये पुस्तक अहसास कराएगी।"
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अधूरा इश्क़ अधूरी कहानी - Deepak Rajsuman
Authors Tree Publishing
KBT MIG - 8, Housing Board Colony
Bilaspur, Chhattisgarh 495001
Published ByAuthors Tree Publishing 2021
Copyright © Deepak Rajsuman 2021
All Rights Reserved.
ISBN: 978-93-91078-34-8
MRP: Rs. 299/-
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अधूरा इश्क़
अधूरी कहानी
भूमिका
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साल 2020 पूरी दुनिया के लिए सबसे बुरा साल रहा सबसे बुरा अनुभव। मैं अपने 22 साल की उम्र में कभी ऐसी स्तिथि नहीं देखा जो 2020 में देखा। इस साल लाखों लोगों ने अपनी जिन्दगी गवां दी। कोरोना वायरस की वजह से। इस वायरस की वजह से करोड़ों छात्रों की पढ़ाई खराब हो गई। स्कूल, कॉलेज बंद हो गए। कम्पनियाँ बंद हो गई। लोगों के रोजगार छीन गए ऐसा मंजर हमने तो कभी नहीं देखा था।
गरीब मजदूर परिवारों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना बहुत मुश्किल हो गया सैकड़ों लोग भूख की वजह से अपनी जान गवां दी। लॉक डाउन लगने की वजह से पैदल चल चल कर सैकड़ों लोगो की जान चली गयी। पैदल चलते चलते रास्ते में कई गर्भवती महिला अपने बच्चे को जन्म दे दी। वो एक ऐसा साल था जहाँ हर परिवार, हर गांव, हर घर इस वायरस से पीड़ित था। चारो और सिर्फ और सिर्फ डर का माहौल लोग वायरस से इतना डरे हुए थे की घर से निकलना उनके लिए नामुकिन था।
बचपन से मेरा सपना है राजनीति में जाने का इसलिए सोचता था की पहले पत्रकारिता करूंगा फिर राजनीति में जाऊंगा। इसलिए मैं इसी साल 2020 में पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए गोपाल नारायण सिंह यूनिवर्सिटी में बीजेएमसी कोर्स के लिए एडमिशन लिया और इंतजार करने लगा की कब कॉलेज खुले और मै पढ़ने जाऊ लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था।
उन दिनों मैं जमुई में था अचानक पता चला की देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च 2020 से पूरे देश में लॉक डाउन लगा दिया। अब क्या था सारा खेल खराब। चारों तरफ देश में खलबली मच गई। लोगों के हाहाकार मच गया। लोग एक दुसरे राज्य को छोड़कर अपना घर जाने लगे। मैं सोच में पड़ गया की अब क्या होगा कॉलेज तो बंद। जो जहां था वहीं रुकना पड़ा। ये लॉक डाउन 8 जून 2020 तक चला और धीरे धीरे अनलॉक शुरू हुआ। हालत सामान्य होने लगे तो मुझे लगने लगा की अब कॉलेज खुलेगा और खुलने का इंतजार करने लगा।
ये इंतज़ार खत्म हुआ नवम्बर में जब हमारे कॉलेज से ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की गई कुछ पल के लिए लगा की चलो पढ़ाई तो शुरू हुआ लेकिन कुछ दिन ऑनलाइन क्लास करने के बाद समझ आया की ऑनलाइन क्लास उतना सार्थक नहीं है जितना ऑफलाइन क्लास। दो महीने ऑनलाइन क्लास चलने के बाद आखिरकार कॉलेज का फैसला आया की अब क्लास खुलने जा रही है। कॉलेज का ये न्यूज़ सुनकर मेरे अंदर अलग सी ऊर्जा जाग गई मैं बहुत खुश था की अब कॉलेज जाऊंगा पढ़ने। वहां दोस्त बनेंगे। बहुत मजा आएगा। मुझे लगता है जब कई महीनो बाद कॉलेज खुला होगा तो सभी स्टूडेंट्स खुश हुए होंगे उसमे मैं अकेला नहीं था।
देश में धीरे धीरे स्थिति सामान्य होने लगा कॉलेज खुल गया क्लास चलने लगा इस बीच मैं कई दिनों तक घर में रह गया। कॉलेज 15 दिन लेट से पहुंचा इस लेट समय में मुझे अपने सीनियर पल्लवी सिंह का फोन आया और बताया कि तुम्हारा क्लास चल रहा है कब आओगे। मैने कहा जल्द आऊंगा। और आखिरकार 15 दिन बाद कॉलेज पहुंचा कॉलेज पहुंचते पहुंचते रात हो गई थी और मैं काफी थक चुका था इसलिए जल्दी सो गया।
अगले दिन सुबह जल्दी उठा कॉलेज आने की खुशी मुझे बेचैन किए जा रही थी। मैं देखना चाहता था की कैसा है कॉलेज? कैसा लगता है कॉलेज। सुबह दस बज गया नहा धोकर मेस में नाश्ता कर क्लास चला गया। उस दिन सभी दोस्तों से पहली बार मुलाकात हुई जो साथ में ऑनलाइन पढ़ते थे उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकता। क्लास में मेरा पहला दिन था और उस रोज दो क्लास ही हुआ फिर छुट्टी हो गई। हमलोग क्लास से बाहर आकर ग्राउंड में बैठ कर बातें करने लगे। पहला दिन था इसलिए मैं थोड़ा नर्वस था।
उस दिन बहुत कम किसी से मुलाकात हुआ क्लासमेट को छोड़कर कारवां बढ़ा एक के बाद एक कई दिनों तक क्लास चलता रहा। तब धीरे धीरे जाकर कई दोस्त बने। करीब दस दिनों के क्लास करने के बाद स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन था उस दिन मैं पहली बार अपने क्लास के तरफ से स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस पर मैंने अपने जिंदगी का पहला स्पीच दिया था। उस स्पीच में मैंने एक शायरी पढ़ा था वैरी पर आघात करू, वीरों के मान को लिखता हूँ. मास मीडिया का दीपक हूँ भारत महान को लिखता हूँ।
मेरे इस शायरी पर बहुत तालियां बजी उसके बाद कई मौके ऐसे मिले जब स्पीच दिया। डिबेट में हिस्सा लिया। खट्टी मीठी कई यादें ऐसी है।
करीब चार महीने तक क्लास चला और इस बीच मुझे दो परीक्षा देने का मौका मिला। शानदार अनुभव रहा इस बीच। दोस्तों के साथ मिलना, गप्पे करना, कैंटीन में कॉफी पीना, मस्ती करना, सीनियर का प्यार। दोस्ती। फैकल्टी के साथ कई मुद्दों पर डिबेट शानदार रहा मेरे लाइफ में। आज दोबारा देश में कोरोना ने अपना सिर उठा लिया है। लाखों केस सामने आने लगे। इस स्तिथि को देखकर मैं तो डर गया।
सरकार लॉक डाउन लगाने का आदेश दे दिया। कॉलेज बंद हो गया मैं होस्टल में रहता था लेकिन हॉस्टल भी 10 दिन के भीतर खाली करने का आदेश मिला इस बीच मेरे दिमाग में चल रहा था की पिछली बार के लॉकडाउन में मैंने सर्वर वेबसाइट डिजाइनिंग सर्विस के लिए (Nationpearl.com) नाम की कम्पनी स्थापना किया था लेकिन इस बार कुछ अलग करूंगा और मैं पत्रकारिता का छात्र हूँ इसलिए मेरे दिमाग में एक बात हमेशा रहा की एक किताब लिखूंगा और ये लॉकडाउन का समय मुझे सही लगा मैंने इस बारे में अपने कई दोस्तों से बात किया तब उन्होंने कहा की आज टेंशन और भाग दौड़ भरी जिंदगी में एक ऐसी किताब लिखों जो लोग पढ़ कर अपने किसी भी उम्र में अपने उस दौर उस पल को याद करे जो उसके लिए सबसे हसीन, खूबसूरत और यादगार पल हो इसलिए हमने तय किया की अधूरा इश्क, अधूरी कहानी
यानि पूरी किताब प्रेम कहानी पर लिखा जाए और मैं लिखने की शुरुआत कर दिया। इस किताब को लिखने की शुरुआत हॉस्टल में रहते हुए ही किया है और कई कहानियां हॉस्टल रहने के दौरान ही लिखा हूँ लेकिन जिस दिन हॉस्टल छोड़ कर घर को निकला था।
मुझे बहुत बुरा लग रहा था ऐसा लग रहा था जैसे इस शहर में मैं कुछ छोड़कर जा रहा हूं। उस शहर की यादें समेटकर निकला हूं जिस शहर के बारे में ना कभी सुना था ना कभी देखा था। ना उस शहर को करीब से जाना। मेरे लिए अनजान शहर था। लेकिन इन पांच महीनों में उस शहर में अच्छे दोस्त मिले। जब मैं होस्टल खाली करके घर जा रहा था तो मेरे दिल में एक मलाल जरूर था की उन दोस्तों से अब मुलाकात कब होगी। कब उन दोस्तों के साथ बैठकर क्लास में मस्ती मजाक होगी। कब दोस्तों के साथ बैठकर कैंटीन में कॉफी पियेंगे। कब उनके साथ लाइब्रेरी में बैठ कर किताबें पढ़ेंगे। कब अपने फैकल्टी से सवाल जवाब करेंगे। कब अमित सर से सिलेबस पर चर्चा होंगे। कब हमारे अमित सर मुस्कुराते हुए कहेंगे की देखो अभी भी दीपक कन्फ्यूज हैं देखना ये पक्का लाइब्रेरी में जाकर किताबें पलटेगा।
कब हमारी पूजा मैम कहेंगी की दीपक तुम हंसते नहीं हो क्या? कब पूजा मैम कहेंगी की दीपक तुम इंसान नही लगते ऐसा लगता है तुम एक मशीन हो। हमेशा काम काम काम। कब हमारी फैहमिना मैम कहेंगी दीपक तुम पढ़ाई तो ठीक करते हो लेकिन बदमाशी भी करते हो। कब क्लास में टीचर मेरे गलतियों पर डांटेंगे। कब हमारे सीनियर शुधांसु भैया, नेहाल भैया, रितिका दीदी, निशांत भैया, अमन भैया, रूपेश भैया, सौरभ भैया जैसे बड़े भाई मिलकर मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे। बाबू कहकर मुझे छोटे भाई के तरह प्यार देंगे।
कब Pragati sankrit और Shreya Rajput जैसे सीनियर से दोबारा मिलूंगा जिनको मैं सुबह शाम सिलेबस का सवाल पूछ पूछ कर तंग करता था। कब नित्या सिंह जैसे सीनियर से मुलाकात होगी जब कहेंगी दीपक तुम्हारे अंदर ईगो बहुत है। तुम किसी की नही सुनते हो। कब Pallavi Singh जैसे सीनियर से दोबारा मुलाकात होगी जब भी मैं हिम्मत हार जाता तो मुझे वो ढाढस देती और मुझे मजबूत करती। कब विशाल भाई और सौरभ भाई जैसे क्लासमेट से मुलाकात होगी जब फिर वहीं हसीं मजाक और समां बांधा जाएगा।
कब रूममेट आदित्य भाई जैसे दोस्त मिलेंगे जब हर शाम मिठाई की दुकान में बैठ कर समोसे खाते और कोका कोला पीते और कहते आदित्य भाई आप सिंगल ही रहोगे क्या? कुछ तो कर लो आपकी जवानी सड़ी जा रही है। वो भी मुस्कुराते हुए कहते दीपक भाई मेरी वाली को भगवान बनाना भूल गया है ऐसी बहुत कुछ यादें है जिसे मैं अपने दिलों में समेटकर उस शहर से निकला था। कब लौटूंगा शायद मुझे भी नही पता। लौट पाऊंगा भी या नहीं ये भी मुझे नही पता। बस यादें जरूर दिलों में संजो कर रखूंगा।
जब आज मैं ये लिख रहा हूं तो मेरे हाथ कांप रहे है। आंखों में आसूं है। इतना प्यार उस शहर में मिला जिसे मैं ना कभी करीब से जाना ना करीब से कभी देखा।
आज मेरी ये किताब अधूरा इश्क, अधूरी कहानी
आपके हाथों में है और सच पूछिए तो किताब लिखने के लिए मेरे अंदर की जुनून पैदा करने में हमारे अमित कुमार मिश्रा सर का बहुत बड़ा योगदान रहा। वरना यूनिवर्सिटी आने से पहले कहां किताब लिखना संभव था। लेकिन क्लास में जब भी कुछ होम वर्क मिलता तो अमित सर कह देते की तुम लोग पत्रकारिता के छात्र हो तुम चाहोगे तो कुछ लिख सकते है। अपने लिखे को एक किताब का शक्ल दे सकते है। अमित सर की बातें मेरे दिल में बैठ गई और आज जो पुस्तक आपके हाथों में है ये उसी जुनून और वही मार्गदर्शन की देन है। आगे हर संभव प्रयास ठीक करने की रहेगी समाज को कुछ अलग देने की रहेगी। पत्रकारिता का अभी ए, बी, सी, डी सिख रहा हूं पहले सेमेस्टर का छात्र हूं तो हो सकता है लिखने में शब्दों की कुछ अशुद्धियां हो सकती है उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं। अपना दोस्त समझ कर माफ करे।
- दीपक राजसुमन
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काश! प्यार का इजहार करने आता।
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अधूरा इश्क, अधूरी कहानी, छोटी मुलाकात, छोटी सी प्रेम कहानी। हमारे इश्क की कहानी भी ऐसी ही है बात शुरू होती है जब हम चौथी क्लास में थे उस समय प्यार क्या होता है पता नहीं था बस फिल्मों को देखकर लगता था की प्यार बहुत खूबसूरत चीज़ होती होगी। इसमें मजा बहुत आता होगा। फिल्मों को देखकर लगने लगा कि हम भी किसी से प्यार करेंगे और देखते देखते क्लास के ही एक लड़की को मै पसंद करने लगा। इस बात को मै अपने बचपन के दोस्त आनंद और राहुल से कहा की यार मुझे एक लड़की पसंद आ गयी है कुछ जुगाड़ करके मेरे दिल कि बात को उस लड़की (सुमन) तक पहुंचा दो सुमन बहुत खूबसूरत थी पढ़ने में काफी तेज अमीर घर से थी और मैं गरीब घर से लेकिन प्यार कहाँ अमीरी गरीबी को देखता हैं।
सुमन की आवाज बहुत मीठी थी जब भी वो बोलती मानो मेरे दिल में मिठास भर जाती। अक्सर मैं किसी ना किसी बहाने उससे बात करने की कोशिश में लगा रहता। लेकिन कभी डर से बोल नहीं पाया अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाया। मैं बचपन से पढ़ने में तेज था क्लास में मॉनिटर था इसका फायदा मुझे उस समय मिला जब एक दिन टिफिन के बाद मैं अपने क्लास में अकेले बैठ कर पढाई कर रहा था और मेरे दोस्त और क्लासमेट स्कूल के ग्राउंड में खेल रहे थे।
अचानक कमरे का दरवाजा खुला और मेरी नजर दरवाजे की तरफ गया तो देखा सामने से सुमन आ रही थी वो अपने बालों को सवांरते हुए मेरे पास आयी मेरी नजर एकटक से उसको ही देखे जा रहा था वो मेरे पास आकर बोली दीपक तुम अपना नोट्स दोगे क्या, जो सर पढाये है मैं एक मिनट तक खामोश खड़ा रहा उसको देखे ही जा रहा था देखे ही जा रहा था वो बोलते जा रही थी मैं खुद पर काबू रखते हुए कहा की हाँ बिलकुल नोट्स दूंगा। बताओ कौन सा नोट्स चाहिए। सुमन बोली बायोलॉजी वाली। मैं तुरंत दे दिया। धीरे धीरे लेने देने का कारवां बढ़ता गया और हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए।
अब मेरे दोनों दोस्त उसका नाम लेकर मुझे चिढ़ाते। मजाक करते। आनंद और राहुल बचपन से ही बहुत बदमाश था जब भी मैं पढ़ने बैठता वह मजाक मस्ती शुरू कर देता। या यूँ कहे तो हम तीनों दोस्तों की दोस्ती ऐसी थी की अपने गांव में हमारी दोस्ती के एकता का उदाहरण दिया जाता था चाहे वो पढाई की हो या शरारत की जो भी करना हो साथ में करते थे इसको लेकर कई बार घर में पिटाई भी जबरदस्त हुआ लेकिन कभी दोस्ती पर कोई आंच नही आया।
दिन गुजरते गए क्लास बढ़ता गया और हम आठवीं क्लास पास कर लिए अब हाई स्कूल में एडमिशन करवाने का वक्त आ गया