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Hanste Hanste Kaise Jiyen : हंसते-हंसते कैसे जियें
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Hanste Hanste Kaise Jiyen : हंसते-हंसते कैसे जियें
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Hanste Hanste Kaise Jiyen : हंसते-हंसते कैसे जियें

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About this ebook

The successful people always act differently from others. They give all the importance to that task, whether it is small or big, and accordingly they plan and work on that plan, thus get success. For this success, they use their full potential and strength.
The book tells a lot about - How to get success. Dr. Swett Marden, an American inspirational author wrote about achieving success in life.
By reading Swett Marden's books millions of people have gained self - satisfaction, dedication towards work, and enthusiasm and inspiration in life as well.
You too read his books and enjoy the sweetness of success by getting your wishes cherished.
The book can change your life, guiding you step by step.
A must have book for everyone.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJul 30, 2020
ISBN9789352617883
Hanste Hanste Kaise Jiyen : हंसते-हंसते कैसे जियें

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    Hanste Hanste Kaise Jiyen - Swett Marden

    घर-संसार

    1. प्रसन्नता और हंसी

    मन दृढ़ रहे । दृढ़ मन द्वारा ही जीवन-शक्ति को प्राप्त करके मनुष्य अधिक दिनों तक आयु और जवानी को स्थायी रख सकता है । मन की दृढ़ता प्रसन्नता पर बहुत कुछ निर्भर रहती है ।

    प्रसन्नता का प्रदर्शन ही हंसी है, जहां हंसी है वहां प्रसन्नता और सुख की उपस्थिति है । साथ ही यह बात भी है कि प्रसन्नता और सुख भी वहीं होते हैं जहां हंसी विद्यमान होती है अर्थात् जो मनुष्य हंसा-खिला रहता है वही स्वस्थ, प्रसन्न और सुखी जीवन बिता सकता है।

    हंसना आन्तरिक प्रसन्नता को प्रकट करता है। प्रसन्नता के इस प्रकटीकरण अर्थात् हंसी से समस्त शरीर की धमनियां या रक्त-वाहिनियां हरकत में आती हैं और उन सबका व्यायाम हो जाता है। रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है। समस्त श्वास-संस्थान में ताजगी आती है। आंखों में चमक, त्वचा में पसीना और फेफड़ों के प्रत्येक कोष्ठ में ताजी हवा पहुंचती है तथा गंदी हवा बाहर चली जाती है।

    हंसने से शरीर की सभी क्रियाएं ठीक चलती हैं। शरीर का अंग-प्रत्यंग सही ढंग से काम करता है। जब शरीर का प्रत्येक अंग सही चलता है तो स्वास्थ्य ठीक रहता है। इसका सीधा अर्थ यही है कि हंसने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। शरीर का संतुलन यानी कि बैलेंस बना रहता है। सब कुछ सुचारु रूप से चलता रहता है।

    प्रसन्नता या खुशी भगवान की दी हुई नियामत है । यह मनुष्य को ईश्वर ने बिना मूल्य के दी है। इसे प्राप्त करने वाला निःशुल्क प्राप्त कर सकता है और वैसे न पाने वाला लखपति भी हो तो प्राप्त नहीं कर पाता ।

    कोई भी दवा स्वास्थ्य के लिए इतना लाभ नहीं करती- यदि आपको किसी डाक्टर के पास जाना है तो ऐसे डाक्टर को चुनो जो हंसमुख हो, और खुश दिल हो । ऐसे डाक्टर अपनी खुशमिजाजी के द्वारा दवा से भी अधिक लाभ पहुंचाते हैं। खुशमिजाज डाक्टर अपने खिले हुए चेहरे से जब हंसी बांटता है तो कितना अच्छा लगता है! रोगी का आधा रोग तो बातों से ही जाता रहेगा । दूसरा ऐसा डाक्टर हो जो मरीज से सीधी तरह बात न कर सके, झिड़कता हो । क्रोध में या अकड़ में होता हो अथवा चिंतित रहता हो...तो मरीज को वह क्या ठीक कर पाएगा,? नहीं, ऐसा डाक्टर तो चिंता बांटता है । रोगी को तो ऐसे डाक्टर की आवश्यकता है जो हंसी बांटता हो । जो स्वयं प्रसन्न हो और रोगियों को भी प्रसन्नता बांटे ।

    आधे से अधिक रोग शारीरिक न होकर मानसिक होते हैं। मानसिक रोगों की सर्वोत्तम दवा तो रोगी से प्रसन्नचित्त होकर हंसकर बातें करना ही है; बहुत से तो पागल भी इस औषधि से ठीक हो जाते हैं।

    प्रसन्नता एवं जीवनी शक्ति :

    एक अत्यन्त कमजोर व्यक्ति भी यदि प्रसन्नचित्त रहने लगे तो वह शक्ति प्राप्त कर सकता है। रोगी जिस दिन से हंसा-खिला और प्रसन्न रहने लगेगा, उसी दिन से ठीक होने लगेगा । क्योंकि मन प्रसन्न रहने से शरीर का श्वास संस्थान, पाचन संस्थान रक्त संस्थान तथा मूत्र संस्थान सहित समस्त शरीर और मस्तिष्क सुचारु रूप से कार्य करने लगता है । जी भरकर हंसना मानसिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार से स्वस्थ होने का अनोखा उपाय है ।

    जो व्यक्ति चिड़चिड़ा, अप्रसन्न और चिन्तित रहता है वह जीवन शक्तियों पर से विश्वास भी खोता है और शक्तियों को भी खो बैठता है। वह अपने जीवन के लक्ष्यों और आदर्शों तक को खो बैठता है। वह झगड़ालू, घमंडी और स्वार्थी हो जाता है । इस प्रकार की सभी बुराइयों से जीवन बचना आवश्यक है। यह तभी हो सकता है, जब मनुष्य प्रसन्न रहे और सदा हंसता-हंसाता रहे।

    मन दृढ़ रहे । दृढ़ मन द्वारा ही जीवन-शक्ति को प्राप्त करके मनुष्य अधिक दिनों तक आयु और जवानी को स्थायी रख सकता है । मन की दृढ़ता प्रसन्नता पर बहुत कुछ निर्भर करती है।

    महान् लेखक शेक्सपियर ने कहा है- प्रसन्नचित्त लोग चिरकाल तक जीवित रहते हैं । लेखक का यह कथन सत्य है। वास्तव में प्रत्येक दृष्टि से वे ही लोग चिरकाल तक जीवित रहते हैं जो प्रसन्न रहते हैं । शरीर से भी, मन से और यश नाम से भी वे चिरकाल तक रहते हैं ।

    किसी अखबार में एक बार छपा था कि कोई स्त्री बीमार और बहुत दु:खी रहती थी । उसका इलाज भी नहीं हो पा रहा था । तब उसने निश्चय किया कि अब वह प्रसन्न रहेगी । जब तक जियेगी प्रतिदिन तीन बार हंसेगी चाहे कोई कारण हंसने का हो या न हो । नियमानुसार वह हंसने-मुस्कुराने लगी । जब कोई कारण न होता तो अपने निजी कक्ष में वह अकेली ही हंसती । फलतः आश्चर्यजनक परिणाम यह हुआ कि वह बहुत जल्दी स्वस्थ हो गई । बीमारी जाती रही और उसका घर भी प्रसन्नता और आनंद से भर उठा । चमत्कार हंसी ने दिखाया था । सचमुच हंसी में जीवनी शक्ति है।

    उस स्त्री की हंसी ने केवल उसी को लाभान्वित नहीं किया बल्कि दूसरों की भी लाभ पहुंचाया । उसका पति भी हंसने लगा । बच्चों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ा । उसके सम्पर्क में आने वाले भी उससे हंस कर बातें करने लगे । जब कोई उससे पूछता कि आज वह कितनी बार हंसी, तो यह स्वाभाविक है कि पूछने वाला और उस स्त्री, दोनों को ही हंसी आती होगी । इस प्रकार गुणात्मक रूप से वह हंसी बिखरती चली जाती थी ।

    प्रसन्नचित्त, हंसने, मुस्कुराने वाले व्यक्ति के मन के भाव चेहरे पर अंकित होते हैं । उसके चेहरे पर एक आकर्षण रहता है। उसकी बातों से लोग प्रभावित होते हैं और सबको अच्छा लगता है।

    हास्य के विषय में साहित्यकारों का कथन भी यही है कि प्रसन्न तो रहें ही, हमें समाज में हास्यमय वातावरण भी पैदा करना चाहिए।

    शरीर विज्ञान :

    शरीर विज्ञान के अनुसार भी देखें तो सिद्ध होता है कि शरीर का हर तन्तु, नस-नाड़ी आपस में संबंध रखती है। जब किसी भी बुरे समाचार, दु:ख या क्लेश अथवा अप्रसन्नता का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है तो पाचन-क्रिया में गड़बड़ी, चेहरे पर मलिनता, हृदय में कमजोरी और फिर आत्मविश्वास में कमी आ जाने से रोगों में वृद्धि होकर वह व्यक्ति घोर कष्टों में घिरता चला जाता है । अतः सभी दवाइयों से सस्ती दवा यह हंसी, क्यों छोड़ते हैं आप? इसका खूब प्रयोग करें और स्वस्थ रहें, सुखी रहें।

    आप स्वयं प्रसन्न रहें।

    दूसरों को भी प्रसन्न रहने दें ।

    अपने बच्चों को भी हंसने, प्रसन्न रहने के लिए सदा प्रेरित करते रहें । आप खूब खुलकर हंसेंगे तो बच्चों पर इसका उत्तम प्रभाव पड़ेगा और वे भी खुलकर हंसेंगे । इससे उनके मन-मस्तिष्क एवं शरीर स्वस्थ होंगे ।

    हल्की-हल्की, दबी-दबी, मरी-सी हंसी या क्षीण मुस्कान में इतनी जान नहीं है । खुलकर हंसना, ठहाके लगाना अधिक लाभदायक है । सारे शरीर की नसें खुल जाती हैं-और खून दौड़ जाता है । पूरा शरीर झनझना उठता है। मन की वीणा बजती है तो संगीत का जादू छा जाता है। दिल से हंसना आनंद से भरा संगीत ही तो है। जो इस संगीत को सुनेगा, वह भी प्रसन्नता से भर जायेगा । आप हंसेंगे तो कितनों का भला होगा ।

    आप यह ध्यान रखिए कि आप हंसेंगे तो सारा जमाना आपके साथ हंसेगा और आप रोयेंगे तो अकेले रोना पड़ेगा । फिर क्यों अकेले रहते हैं? जमाने को अपने साथ रखिए; सब आपके हों, आप भी सबके हों । बच्चों को प्रारम्भ से ही आप प्रसन्न रहना सिखायें । उन्हें विनोदप्रिय बनायें ।

    जो बच्चे विनोदप्रिय नहीं होते या प्रसन्न नहीं रहते, वे बच्चे महान् नहीं बनते । हंसी के फूल ही तो सफलता के फल होते हैं । जब फूले नहीं होंगे तो फल कहां से लगेंगे? इसलिए फूल लगाइए अपने मानव वृक्ष पर, तब सफलता और सुख के फल लगेंगे । आपके हंसी के फूल और फलों से सारा समाज लाभान्वित होगा ।

    बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो हंसना चाहते हैं परन्तु उनकी हंसी मरी-मरी, घुटी-घुटी-सी होती है। जैसे हंसी आना ही नहीं चाहती हो और उसे जबरदस्ती लाया जा रहा हो ।

    ऐसी हंसी किस काम की? हंसी तो वह है जिसमें दिल हंसता है । मुंह और होठों पर दिखावटी हंसी बेकार है। हंसी अंदर से आनी चाहिए । खुलकर हंसना ही लाभप्रद होता है । अतः जब हंसें तो ऐसा हंसें कि शरीर की सारी नसों में हरकत हो ।

    आप भी खुलकर हंसा करें ।

    नियम बना लें कि आप प्रतिदिन एक बार अवश्य हंसेंगे या दो बार अवश्य हंसेंगे चाहे हंसी की कोई बात हो या न हो । जब कोई हंसी की बात न हो, कोई साथ हंसने वाला न हो तो अकेले में हंसें, अपने कमरे में अकेले हों तब हंसें ।

    विपत्तियां तो आती रहती हैं । सुख-दु:ख का तो जोड़ा है । दिन के बाद रात और फिर दिन को आना पड़ता है । इसी प्रकार दु:ख की रात भी जरूर बीतेगी ।

    आप दु:ख या विपत्ति में रोयेंगे तब भी वह वैसी ही रहेगी, जब जाना है उसे, तभी जायेगी । हंसेंगे तो जरूर ही वह जल्दी चली जाएगी । हंसने से पीड़ा कम होती है, सांत्वना मिलती है। फिर क्यों नहीं उन विपत्तियों और कष्टों को आप हंसते-हंसते पार कर लेते?

    जीवन में दुःख या विपत्ति सभी को झेलनी पड़ती है। संसार में ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ जिसे कभी कोई कष्ट न हुआ हो ।

    आप क्यों घबराते हैं? हंसते क्यों नहीं? क्यों अपने उत्साह को घटा रहे हैं । विजय तो सदा हंसने वाले की होती है । रोने वाला तो साहस और उत्साह खोकर, घबराकर अपना सब कुछ तबाह कर लेता है।

    2. भविष्य की व्यर्थ चिन्ता

    कितनी व्यर्थ की बात है, जो दुःख या कष्ट आया ही नहीं, जो कल होने वाली बात है, उसी के लिए अपना आज का जीवन तबाह कर लिया । उस आने वाले संकट के लिए आज प्रतीक्षा में दुःख भोग रहे हैं?

    चिंताओं में सबसे बड़ी चिंता भविष्य के प्रति होती है। कल की यह चिंता हमारे आज को भी तबाह कर डालती है । यह हमारी हंसी छीन लेती है ।

    अपने लिए या अपने परिवार के लिए धन कमाना पड़ता है, रोटी जुटानी पड़ती है। रोजाना काम- धंधे करने पड़ते हैं। इनमें कल आने वाली कोई समस्या जब घेरती है तो उसकी चिंता में नींद तक हराम हो जाती है । सोने का प्रयास करने पर भी नींद नहीं फटकती । इस चिंता में शक्ति नष्ट हो जाती है । जिस शक्ति को कल समस्या का समाधान करने में-संघर्ष में-काम में लगाना था, वह तो चिंता में खर्च हो गई। अब समस्या के समाधान में खर्च करने के लिए शक्ति कहां से आएगी? हंसते-हंसते समाधान खोजिए।

    जो लोग चिंता से घिरे रहते हैं और भविष्य की किसी घटना, समस्या या हानि के विषय में सोच-सोचकर परेशान रहते हैं, वे रचनात्मक काम नहीं कर सकते बल्कि अपनी रचना-शक्ति को, अपनी कार्यक्षमता को खोते हैं या घटाते हैं ।

    बहुत से लोग तो चिंता में अकर्मण्य हो जाते हैं । अकर्मण्यता के कारण वे निराश होकर बैठ जाते हैं । उनका उत्साह समाप्त हो

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