अत्री: Maharshis of Ancient India (Hindi)
By Sri Hari
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महान ऋवि अत्री सप्त ऋषियों मे से एक है। वे ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं। इनकी पत्नी का नाम अनसूया। अनसूया देवी कि तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर् जो त्रिमूर्ती भी कहलाते हैं, अनसूया के गर्भ से पुत्र रूप से जन्म लेते है। यह चन्द्र, दत्तात्रेय और दुर्वास के नाम से जाने जाते हैं। महा पतिव्रता नारी कहलानेवाली सुमति के श्राप से इस धरती का विलुप्त होने से रक्षा करनेवाली थी सती अनसूया श्री रामचन्द्रजी, माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास काल में उनकी अश्रम् में पधारते हैं। अत्री और अनसूया दंपतियों का उपदेश और अशीर्वाद पाकर धन्य होजाते है।
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अत्री - Sri Hari
श्री रंग सद्गुरुवे नमः
भारतीय संस्कृति का परिचय छोटे बच्चों को कराने, उनमें अच्छे पुस्तकों को पढ़ने की अभिरुची को विकसित करने की उद्धेश्य से पुस्तकों को प्रकाशित करने भारत संस्कृती प्रकाशन संस्था ने संकप्ल किया । इसलिए
रामायण और महाभारत का मुख्य पात्र के दो पुस्तक झृंखलाओं को कई भाषाओं मे प्रकाशित किया है । इसे विद्यालयों ने सार्वजनिक संस्थाओं ने ओर सर्कार ने स्वागत किया है । इसी दिशा में
महापूज्य महर्षियाँ नामक् छोटे पुस्तको के गुच्छे को इस संस्था द्वारा प्रकटित करना हमें अति प्रसन्नता हुई है ।
इस पुस्तक श्रृंखलाओं का उद्देश्य हमारी भव्य संस्कृती का निर्माता कुछ महर्षियों का परिचय कराना है । ऋषियों ने सत्य का साक्षत्कार कर के अपने अनुभवों को जनहित और लोक कल्याण करने की उद्देश्य से अपने वाकू और ग्रंथों द्वारा लोगों तक पहुँचाया । उन्होंने अपने आत्मानुभव और अत्मगुण से अपनी बुद्धि श्रेष्ठता का परिचय दिया । सामान्य मानव जैसे लौकिक ख्याती, धन संग्रह, पूजा आदी के लालच में ना पडकर लोका समस्ता सुखिनोभवंतु
समस्त विश्व में सुख प्रदान हो इस धार्मिक बुद्धि से अपने अनुभवों को अनुग्रहित किया । ऐसे महात्माओं में किन्हीं मुख्य पुरुषों का परिचय हमें इन छोटे पुस्तकों द्वारा मिलता है । इन्हें पढ़कर और विचार करने से बच्चों में सत्य निष्ठता, सदाचार और सद्गुण निर्माण होगा और देश के सभ्य नागरिक बनने में सहायक सिद्ध होग
यही हमारा आशय है ।
भारत संस्कृती प्रकाशन संस्था की ओर से इसी किसम् के कई पुस्तकें प्रकाशित हो जिससे आत्मकल्याण और लोककल्याण करने सहायक सिद्ध हो । इन पुस्तकों को लिखने और परिष्कृत करने में सहायता करनेवाले विद्वद्जनों और पंडितों का मंगल कामना करते हैं ।
अष्टाँग योग विज्ञान मंदिरम्
श्रावण शुक्लद्वितीय, रवीवा
बेंगलूर
22-7-2001
नारायण स्मरण
श्री श्री रंगप्रिय श्रीपाद श्रीः
महर्षि अत्री
श्रियै नमः
श्री गुरुभ्यो नमः
हम जिस देश में आश्रय पाकर जीवन व्यतीत कर रहे है वह देश भारत परमपुण्य धरती है । स्वर्गलोक कि देवता भी इसे मानते है । विष्णु पुराण में इसका वर्णन कुछ इस प्रकार है - धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे
।
हमारे देश ऐसे परम पावन धरति कैसे हुई? केवल यहाँ का