निर्णय लेने की शक्ति
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बह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय के विचारों पर आधारित ‘‘अवैकनिंग विद द ब्रह्माकुमारीज’’ टेलीविजन कार्यक्रम के अन्तर्गत बी0के0 सिस्टर शिवानी और फिल्म अभिनेता सुरेश ओबेराय के बीच दार्शनिक वार्ता एवं बी0के0 सिस्टर शिवानी-कनुप्रिया के साथ विभिन्न विषयों पर दार्शनिक वार्ता को पुस्तक का आधार बनाया गया है।
पुस्तक रचना में अमूल्य सहयोग देने वाली धर्म पत्नी श्रीमती रश्मि श्रीवास्तव के योगदान को नकारा नही जा सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय दर्शन शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो0 ऋषिकान्त पाण्डेय ने पुस्तक लेखन में निरन्तर उत्साह वर्द्धन किया। मेरे सहायक श्री गोपाल सिंह बिष्ट और मार्ग दर्शन के रूप में डा0 सुशील उपाध्याय, उत्तर प्रदेश सरकार में खाद्य अधिकारी पद पर कार्यरत श्री पारस पाल का भी अमूल्य सहयोग मिला।
बह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय के विचारों पर आधारित ‘‘अवैकनिंग विद द ब्रह्माकुमारीज’’ टेलीविजन कार्यक्रम के अन्तर्गत बी0के0 सिस्टर शिवानी और फिल्म अभिनेता सुरेश ओबेराय के बीच दार्शनिक वार्ता एवं बी0के0 सिस्टर शिवानी-कनुप्रिया के साथ विभिन्न विषयों पर दार्शनिक वार्ता को पुस्तक का आधार बनाया गया है।
पुस्तक रचना में अमूल्य सहयोग देने वाली धर्म पत्नी श्रीमती रश्मि श्रीवास्तव के योगदान को नकारा नही जा सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय दर्शन शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो0 ऋषिकान्त पाण्डेय ने पुस्तक लेखन में निरन्तर उत्साह वर्द्धन किया। मेरे सहायक श्री गोपाल सिंह बिष्ट और मार्ग दर्शन के रूप में डा0 सुशील उपाध्याय, उत्तर प्रदेश सरकार में खाद्य अधिकारी पद पर कार्यरत श्री पारस पाल का भी अमूल्य सहयोग मिला।
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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निर्णय लेने की शक्ति - वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - मई 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।
निर्णय लेने की शक्ति
लेखक
मनोज कुमार श्रीवास्तव
मनोज कुमार श्रीवास्तव
9412047595 dio.hdr2010@gmail.com
सम्प्रति: सहायक निदेशक, सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग: प्रभारी अधिकारी, उत्तराखण्ड विधान सभा मीडिया सेन्टर, उत्तराखण्ड सरकार
लेखक की पूर्व प्रकाशित पुस्तक
मेडिटेशनकेनवीनआयाम,प्रभातप्रकाशन, दिल्ली, 2016
आत्मदीपबनें,प्रभातप्रकाशन, दिल्ली, 2017
सम्मान:
विक्रमशीलाहिन्दीपीठद्वाराविद्यावाचस्पति(पीएचडी)मानदउपाधि
दो शब्द
मनोज कुमार श्रीवास्तव जीवन की चुनौतियों को दार्शनिक पैमाने से विश्लेषित करते हैं। विश्लेषण के बाद समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करते हैं। इनकी पूर्व पुस्तकों में भी सामान्य जीवन का दार्शनिक विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण में समस्या को सामने रखकर सरल समाधान प्रस्तुत किया गया है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में 2 फरवरी, 1971 में जन्मे, मनोज श्रीवास्तव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय अकादमिक में विभिन्न विषयों - अर्थशास्त्र, प्रतिरक्षा अध्ययन, आधुनिक इतिहास, प्राचीन इतिहास - की पढ़ाई की। उत्तराखण्ड पीसीएस 2002 बैच, प्रशासनिक सेवा में आने के बाद दर्शन के आधारभूत तत्व का व्यावहारिक विश्लेषण प्रारम्भ किया।
यह अकारण नहीं है कि इस पुस्तक में भी दार्शनिक पहलुओं की व्यावहारिक अभिव्यक्ति हुई है। पुस्तक के समस्त कथ्यों में मोटिवेशनल (प्रेरणापरक) प्रतिध्वनि देखी जा सकती है।
समर्पण
‘‘परम् शक्ति को समर्पित’’
आभार
बह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय के विचारों पर आधारित ‘‘अवैकनिंग विद द ब्रह्माकुमारीज’’ टेलीविजन कार्यक्रम के अन्तर्गत बी0के0 सिस्टर शिवानी और फिल्म अभिनेता सुरेश ओबेराय के बीच दार्शनिक वार्ता एवं बी0के0 सिस्टर शिवानी-कनुप्रिया के साथ विभिन्न विषयों पर दार्शनिक वार्ता को पुस्तक का आधार बनाया गया है।
पुस्तक रचना में अमूल्य सहयोग देने वाली धर्म पत्नी श्रीमती रश्मि श्रीवास्तव के योगदान को नकारा नही जा सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय दर्शन शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो0 ऋषिकान्त पाण्डेय ने पुस्तक लेखन में निरन्तर उत्साह वर्द्धन किया। मेरे सहायक श्री गोपाल सिंह बिष्ट और मार्ग दर्शन के रूप में डा0 सुशील उपाध्याय, उत्तर प्रदेश सरकार में खाद्य अधिकारी पद पर कार्यरत श्री पारस पाल का भी अमूल्य सहयोग मिला।
इन सभी का हार्दिक आभार।
भूमिका
हमारे निर्णय और निष्कर्ष हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। जीवन के सही दिशा में बढ़ने के लिए हमारे भीतर निर्णय लेने की शक्ति और परखने की शक्ति का होना अनिवार्य है। निर्णय लेने और परखने के दौरान तार्किक प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्तरज्ञान का विशेष महत्व है। अपने भीतर अन्तरज्ञान का उपयोग करके निर्णय लेने या परखने की शक्ति को विकसित करना चाहिए।
स्वयं के ऊपर विश्वास की कमी के कारण हम हमेशा दूसरों से अपना निर्णय के बारे में पूछते रहते हैं। इससे हमारी निर्णय शक्ति कमजोर होगी। जब हम अपना निर्णय स्वयं लेंगे तब हमारी निर्णय शक्ति विकसित होगी। यदि हमारा स्वयं अपना निर्णय होगा, हम अपने कार्य को पूरा करने के लिए अपनी जान लगा देंगे।
हम अपने निर्णय की व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं लेते हैं और हम ब्लैमगेम में फंसते जाते हैं और अपनी कमजोरी के लिए दूसरों को दोष देते हैं। इससे हमारी निर्णय शक्ति कमजोर होगी। अपना निर्णय लेते समय अपनी खुशी को सबसे ऊपर रखना चाहिए। हमें दूसरों को खुश करने के लिए अपना निर्णय नहीं लेना चाहिए।
हमारा निर्णय एकदम साफ और स्पष्ट होना चाहिए। किसी के कहने-सुनने का प्रभाव हमारे निर्णय पर नहीं होना चाहिए। लेकिन हमें अपने निर्णय को लेकर संदेह होता है कि यदि हमारा निर्णय गलत होगा तब क्या होगा? निर्णय लेते समय हमें इस बात का डर भी नहीं होना चाहिए कि यदि हमारा निर्णय गलत हो गया तब दूसरे लोग सही सिद्ध हो जायेंगे और हम गलत सिद्ध हो जायेंगे।
हमें बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि हमें क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि कोई कार्य हम क्यों कर रहे हैं और क्यों नहीं कर रहे हैं। हमारे जीवन के कार्यों की प्राथमिकता स्पष्ट होनी चाहिए। अन्दर के दुनियां में शान्त रहना है और अन्दर से बाहर की कमियाँ और लोगों को एक्सेप्ट करना है। लेकिन बाहर की दुनियाँ में सक्रिय होकर उन कमियों को दूर करने के लिए रियेक्ट भी करना है। बाहर के दुनियाँ को देखकर उसे रियेक्ट करना यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तब बाहर अपराध बढ़ता जायेगा। यह प्रयास हमारे आध्यात्मिकता और भौतिकता का संगम है।
सामना करने की शक्ति की परख होनी चाहिये। अर्थार्त हमे किस बात को सहन करने है और किस बात का सामना करना है। किस बात में एडजेस्ट होना है। किस बात में एडजेस्ट होकर भी शोषित नहीं होना है। यदि कोई हमारे साथ गलत कर रहा है तब हम यह जबाब नहीं दे सकते है कि हम तो सहन कर रहे थे। सामान्यतः जिस बात को हमे सहन करना होता है उसका तो सामना करते है और जिसका सामना करना होता है उसे सहन करते है।
यह अकारण नहीं है कि आम तौर पर सही निर्णय लेने की बात की जाती है। परन्तु महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सही निर्णय लेने और परखने की शक्ति हमें कहा से प्राप्त होगी? वास्तव में सही निर्णय लेने की शक्ति और पढ़ने की शक्ति हमें साइलैंस में रहने का अभ्यास और मेडिटेशन से प्राप्त होगी। सामान्य तार्किक निर्णय लेने से हमारे जीवन का विकास उतना ही होगा जितना हमने प्रयास किया है। परन्तु साइलैंस में रहने के अभ्यास और मेडिटेशन की मद्द से हमारे भीतर निर्णय लेने की शक्ति और परखने की शक्ति विकसित होगी। इस शक्ति की मद्द से हम क्वांटम जम्प ले सकते हैं।
जीवन की चाल बहुत तेज है, परन्तु हमारी क्षमता सीमित है। इसलिए जीवन की तेज चाल से हम पीछे रह जाते हैं। फलस्वरूप हम फ्रस्टेशन का शिकार हो जाते हैं। इसलिए हमें जीवन की चाल से तेज चलने के लिए आवश्यकता है। हम साइलैंस में रहने का अभ्यास या मेडिटेशन के मद्द से अपने निर्णय लेने की शक्ति विकसित कर सकते हैं।
कहना न होगा कि निर्णय लेने की शक्ति को विकसित करने के लिए कुछ आधारभूत संकल्पनाओं की चर्चा इस पुस्तक में की गई है। एक्सेप्टेंस, टालरेंस और एडजेस्टमेंट ऐसी संकल्पना है जो हमारे निर्णय लेने की शक्ति को विकसित करते हैं। जीवन मूल्य, यूनिवर्सल वैल्यू से हम आन्तरिक रूप से शक्तिशाली होते हैं। यूनिवर्सल वैल्यू को महत्व देने के कारण हमारे निर्णय लेने की शक्ति और परखने के शक्ति में वृद्धि होगी। निर्णय लेने की शक्ति में हमारे विचार प्रक्रिया का विशेष महत्व है। इसलिए इस पुस्तक में विचार प्रक्रिया की विस्तृत चर्चा की गई है। पैरेंटिंग और क्रोध आज के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बनकर हमारे सामने आयी है। मनोभाव और मनोविकास पर आधारित इस पुस्तक में जीवन की चुनौतियों का समाधान देने का प्रयास किया गया है।
पुस्तक में मानसिक और आत्मिक शक्ति के विकास पर विशेष बल दिया गया है। विशिष्ट आध्यात्मिक पहलू को उपयोगितावादी दृष्टि रख कर आकलन किया गया है।
पुस्तक को विभिन्न अध्यायों में विभाजित करने का प्रयास किया गया है परन्तु यह पुस्तक विचार प्रक्रिया पर आधारित होने के कारण प्रत्येक अध्याय एक दूसरे को अतिक्रमित करता नजर आता है। सभी अध्यायों को निर्णय शक्ति के सन्दर्भ में रखा गया है।
पुस्तक में भाषिक शुद्धता के स्थान पर सम्प्रेषणीयता को महत्व दिया गया है। इसलिए आध्यात्मिक विषय के गूढता को सरल रूप में प्रस्तुत करने के लिए अंग्रेजी शब्दों का बेहिचक प्रयोग किया गया है। भाषा के सन्दर्भ में सन्त कबीर दास को आदर्श माना गया है। डा0 हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है- कबीर वाणी के डिक्टेटर थे। उन्होंने भाषा के माध्यम से जो चाहा, कहलवा दिया। बन गया तो सीधे-सीधे, नही तो दरेरा देकर।
महान कवि दिनकर का महाकाव्य कामायनी के सन्दर्भ में कथन है ‘‘दोष रहित दूषण सहित’’। इस कथन को रखकर मैंने स्वयं अपनी पुस्तक की समीक्षा की है। परन्तु मेरे कथन से सभी सहमत हों यह जरूरी नहीं है। यह पुस्तक अपने गुण-दोष के साथ पाठक के सम्मुख पस्तुत है।
मनोज कुमार श्रीवास्तव
निर्णय की शक्ति
जीवन के प्रत्येक क्षण में हमें निर्णय लेना पड़ता है। हमारे निर्णय ही सफलता और असफलता का निर्धारण करते हैं। हमारा एक निर्णय हमें अर्श से फर्श तक पहुंचाने की क्षमता रखता है। निर्णय के साथ उत्तरदायित्व का भाव भी जुड़ा होता है। इसका अर्थ है, हम जो कुछ भी निर्णय लेते हैं उसका उत्तरदायित्व भी हमारे ही ऊपर होता है। अर्थात हम निर्णय लेने के बाद अपने उत्तरदायित्व से बच नहीं सकते हैं।
निर्णय तो हमें लेना पड़ेगा। निर्णय न लेना भी एक प्रकार का निर्णय है। निर्णय को टालना भी एक प्रकार का निर्णय है। अर्थात हम निर्णय न लें अथवा अपने निर्णय को टाल दें तब भी यह हमारे द्वारा लिया गया निर्णय ही माना जायेगा। क्योंकि हमारे द्वारा ही निर्णय न लेने अथवा निर्णय को टालने का निर्णय लिया गया है। इसलिए हम किसी भी प्रकार से अपने उत्तरदायित्व से बच नहीं सकते हैं।
व्यक्ति दो प्रकार का झूठ बोलता है। पहला झूठ जो हम स्वंय से बोलते हैं और दूसरा झूठ जो हम दूसरों से बोलते है। सबसे अधिक झूठ हम स्वंय से बोलते है। क्योंकि हम अपने जीवन का अधिकाशं भाग स्वंय के साथ ही व्यतीत करते है और स्वंय से बातचीत करते है। इसे आत्म-प्रवचना का नाम देते है।
जो मेरे लिये सही है वही हमारी पसन्द है। लेकिन यदि हम अपनी ऐसी पसन्द रखते हैं। जो हमारे लिये सही नहीं है। इस कारण इसका परिणाम बुरा होता है। बुरी आदत छूटती नहीं है और मैं अपनी बूरी आदत छोड़ना नहीं चाहता हू। यह दोनों अलग-अलग चीज है। यदि कोई चीज में छोड़ना चाहता हू लेकिन फिर कहू कि यह छुटती नहीं तब यह अपने आप से धोखा है।
हम झूठ का सहारा लेकर अपने उत्तरदायित्व से बचने का प्रयास करते है। लेकिन झूठ का सहारा लेकर हम अपने उत्तरदायित्व से बच नहीं सकते है। जब हम अपने द्वारा लिये गये निर्णय के असफलता अथवा सफलता को स्वीकार करते है। तब हमारे निर्णय लेने की शक्ति और मजबूत हो जाती है। लेकिन जब हम झूठ बोलकर अपने द्वारा लिये गये निर्णय लेने की जिम्मेदारी से बचते है अथवा दूसरों को और परिस्थिति को इसका जिम्मेदार मानते है, तब हमारे निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होती जाती है।
जिस क्षण हम किसी चीज की जिम्मेदारी स्वयं ले लेते हैं, उसी क्षण हमारे अन्दर उस चीज को बदलने की क्षमता आ जाती है। लेकिन हम सभी जिम्मेदारी दूसरों को सौंप देते हैं और दूसरों को दोष देते हैं। हमारी शर्त होती है कि पहले दूसरे बदलेंगे तभी हम बदलेंगे। इस शर्त का परिणाम यह होता है कि न तो दूसरे बदलते हैं और न हम बदलते हैं।
जिस क्षण हम किसी चीज की जिम्मेदारी लेते हैं उसी क्षण उस चीज को बदलने की क्षमता हमारे भीतर आ जाती है। लेकिन हम किसी जिम्मेदारी को दूसरों को सौंपने का प्रयास करते हैं, जिम्मेदारी के लिए दूसरों को दोष देते हैं। इससे हम अपने भीतर परिवर्तन नहीं ला सकते हैं। क्योंकि इस स्थिति में हमारी शर्त होती है कि पहले दूसरे बदलेंगे तभी हम बदलेंगे।
निर्णय लेने के सम्बन्ध में हम अपने जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि हमसे बन्दूक की नोक पर यह काम करा लिया गया। क्योंकि उस समय हमारे पास जीवन और मृत्यु के दो विकल्प मौजूद थे। हमने दोनों विकल्पों में से जीवन जीने का चुनाव करने का निर्णय लिया है।
निर्णय लेने में मनुष्य स्वतंत्र है। इसके स्वरूप को समकालीन पाश्चात्य अस्त्विवादी दार्शनिक ज्याँ पाल सात्र ने लिखा है-‘मनुष्य को प्रत्येक स्थिति में निर्णय लेकर चुनाव करना है। चुनाव न करना भी एक प्रकार का चुनाव है। यदि कोई व्यक्ति लालच बस या भय बस कोई कार्य करता है। फिर भी वह व्यक्ति अपना निर्णय लेकर ही स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करता है। क्योंकि मनुष्य कई विकल्पों में से एक विकल्प के चुनने का निर्णय लेकर अपना कार्य करता है।
यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से परामर्श लेता है फिर भी व्यक्ति अपने निर्णय के सन्दर्भ में स्वतंत्र है। क्योंकि यह निर्णय उसी व्यक्ति का है कि उस व्यक्ति को परामर्श लेना चाहिए अथवा नहीं। उस व्यक्ति को परामर्श लेकर उस निर्णय का पालन करना चाहिए अथवा नहीं।’
समकालीन फ्रेंच पाश्चात्य दार्शनिक ज्याँ पाल सात्र का प्रसिद्ध कथन के अनुसार ‘‘मनुष्य अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। मनुष्य अपनी स्वतंत्रता के लिए अभिशप्त है।’ यदि मनुष्य स्वतंत्र नहीं होगा तब मनुष्य द्वारा लिये जाने वाले निणर्य की जिम्मेदारी दूसरों पर होगी। परन्तु यदि मनुष्य स्वतंत्र होगा तब मनुष्य द्वारा लिये जाने वाले निर्णय लेने की जिम्मेदारी उसी मनुष्य पर होगी।
जब हम मानसिक रूप से कमजोर होंगे, तब हम सही निर्णय नहीं ले पाएंगे अथवा अपने निर्णय के लिये दूसरों पर निर्भर रहेंगे। इस स्थिति में हम लोगों से पूछते रहेंगे कि यह कार्य करू अथवा न करूँ। बिना किसी सहारे के स्वयं निर्णय लेने में डरेंगे। मेडिटेशन, इस समस्या से छुटकारा दिलाता है। मेडिटेशन हमें तेज और सही निर्णय लेना सिखलाता है। मेडिटेशन से सामन्य बौद्धिक ज्ञान के अतिरिक्त इन्ट्यूटिव, अन्तरज्ञान विकसित होता है। इसकी सहायता से हमें वर्तमान के साथ ही भविष्य को भी देख कर निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
सफलता के लिये सही और तेज गति से निर्णय लेना आवश्यक होता है। तेज और सही निर्णय लेने के लिये एकाग्रता की आवश्यकता होती है। ध्यान, मेडिटेशन से हमारे भीतर एकाग्र होने की शक्ति पैदा होगी। हम अपना निर्णय लेते समय दूसरों की राय, सलाह को आवश्यकता से अधिक महत्व देते हैं। जबकि ऐसा करना उचित नहीं है। क्योंकि जब लोग अपनी कोई रॉय देते है ,या जोर जबरदस्ती द्वारा अपना निर्णय थोपते है, तब राय देने वाले इसके दुष्प्रभाव को भी सामने नहीं रखते है। क्योंकि राय देने वाला सदैव इस प्रयास में लगा रहता है कि उसकी राय को ही सर्वश्रेष्ठ स्वीकार किया जाये। लेकिन जब हम अपना निर्णय लेते है, उस समय हम अपने से सम्बन्धित सभी पक्षों को भी सामने रखते हैं।
सामान्यतः देखा जाता है कि हम बड़ो के सम्मान की वजह से या घर के प्यार की वजह से, किसी को खुश रखने की वजह से, प्रंशसा पाने की वजह से परिवार की परंपरा से प्रभावित होकर अथवा किसी के डर से, दबाब से अपना निर्णय ले लेते है। लेकिन ध्यान रखना होगा कि हम कोई भी निर्णय ले ,परन्तु वही निर्णय ले जो हमे पसंद हो। हम वहीं निर्णय लें, जिस निर्णय से हम खुश रहे । अपने द्वारा लिये गये निर्णय के लिए किसी दूसरे को दोषी न ठहरायें।
अपने निर्णय में मजबूरी दबाब अथवा विकल्पहीनता स्थिति का प्रभाव नही आने दे । मजबूरी, दबाव और विकल्पहीनता भी एक प्रकार का बहाना है। क्योकि हमारे पास इस निर्णय के अलावा दूसरे तरह के भी निर्णय लेने के अवसर या विकल्प मौजूद रहते है। जिनके आधार पर हम खुश रह सकते है। अर्थात् अपनी खुशी या अपनी वैल्यू, सिद्धान्त को सबसे ऊपर प्राथमिकता दें। जब हम कुछ करना चाहते हैं, हमें रास्ता नहीं मिलता है। जब हम कुछ नहीं करना चाहते हैं, तब हमें बहाना मिलता है।
हम आज जो कुछ भी है, उसके लिए