Karma Sutra - Karma Ke Siddhanto ki Vivechana
By Hingori
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About this ebook
The karmic code defines how we will live our lives in the current birth and what the destiny of our future lives will be.
This book is written by someone who spent the first half of his life as a non-believer. During his early years, when the author contracted arthritis and suffered it for 10 years. Then he met his spiritual teacher, who cured him in 60 seconds flat! The minute that happened, his life changed.
The second half of his life was devoted to practice, philosophy and philanthropy. His learnings, which are the secrets of the spiritual path, have been guardedly kept close to his chest. But as he approaches the final phase of his life, he has decided to share them with those fortunate enough to receive them.
So here is spiritualism; not sacrificed, but SIMPLIFIED.
This book will :
-Read the real life stories of some of the most powerful saints who lived on this planet.
-Figure out why karma dictates your destiny.
-Decipher the secrets behind the laws of karma.
-Learn how Karma can influence your luck.
-The question "Why does this happen to me?" will be resolved on reading this book.
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Book preview
Karma Sutra - Karma Ke Siddhanto ki Vivechana - Hingori
KARMA SUTRA
by Hingori
IstFirst Edition
Published in 2017 by
Pali Hills Tourist Hotel Pvt. Ltd. (Le Sutra)
Email: hingori@hingorisutras.com
Website: hingorisutras.com
Illustration, Design, Editing by : Team Hingori Sutras
eBook developed by Nandkumar Suryawanshi : Mobile Number - 9820366379.
All Rights Reserved
The content of this book may not be reproduced, stored or copied in any form; printed (electronic, photocopied or otherwise) except for excerpts used in review, without the written permission of the publisher.
Disclaimer
The views and opinions expressed in the book are the authors’ own and the facts are as reported by them, which have been verified to the extent possible, and the publisher is not in any way liable for the same.
ISBN : 978-93-5254-347-2
कर्म सूत्रअनुक्रमणिका
लेखकीय
मुझे मेरी उम्मीद, आशाओं और आकांक्षाओं से परे, भाग्य से जो आध्यात्मिक आशीर्वाद मिलता है; वह औचित्य से परे हो सकता है। परंतु मुझे यह जो आध्यात्मिक संपत्ति मिली है, मेरी इच्छा है कि वह मैं आप सब के साथ साझा करूं। यदि आप कुछ अभ्यासों को स्वीकार करते हैं और उनके अभ्यास से आपके जीवन में परिवर्तन आता है, तो मैं स्वयं को अनुग्रहित महसूस करूंगा।
इस तरह हम और एक दूसरे के आनंद को और बढ़ाएंगे।
चलिए, एक शुरुआत करते हैं!
कर्म सूत्रगुरुदेव
कर्मयोग का साकार रूप
गुरुदेव आध्यात्मिक गुणों का भंडार थे और वे अपनी इन शक्तियों का प्रयोग लोगों की पीड़ा दूर करने और उनकी सहायता करने में लगाते थे। उन्होंने मेरा जोड़ों का दर्द केवल डेढ़ मिनट में ठीक कर दिया था। मैंने उन्हें सैकड़ों लोगों को एक दिन में ठीक करते हुए और उनकी परेशानियों को दूर करते हुए देखा है।
‘बड़ा गुरुवार’- गुरुवार जो अमावस्या के बाद आता है, उस दिनों हजारों की संख्या में लोग उनसे मिलने आते थे। उनसे मिलने वालों की लाइन तकरीबन एक किलोमीटर तक लंबी हो जाती थी। गुरुदेव उस दिन सवेरे छह बजे से लेकर रात के बारह बजे तक इन लोगों से मिलकर उनके शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्टों को दूर करने में अपना समय व्यतीत करते थे।
गुरुदेव ने अपनी युवावस्था में ही काफी शक्तियों को प्राप्त कर लिया था। उनकी हथेलियों पर ओम, त्रिशूल, शिवलिंग और गिलेरी, ओम शब्द के बीच में त्रिशूल खड़ा हुआ और दिव्य जोत इन सबके चिन्ह उभरे हुए थे। जब भी वह अपने हाथों पर पानी डालते थे तो यह चिन्ह ऐसे चमक कर आते थे मानो किसी चित्रकार ने उनके हाथों पर चित्रकारी कर दी हो। अपनी यही शक्तियाँ वे लोगों की मदद करने में, उनकी रक्षा करने में व उनकी शारीरिक, मानसिक कष्टों को दूर करने में लगाते थे।
उनके इन्हीं गुणों के कारण लोग उनसे मिलने के लिए बेचैन रहते थे ताकि उन्हें गुरुदेव से ‘सेवा’ प्राप्त हो सकें। गुरुदेव ने हमें एक चमत्कारी शब्द सिखाया है ‘सेवा’। उनका विश्वास था कि ‘सेवा’ किसी भी किस्म की हो और किसी के लिए भी हो, यही हमारे जीवन का मकसद होना चाहिए क्योंकि इसी ‘सेवा’ से हम अपने ‘कर्मों’ को संतुलित कर, अपनी आत्मा का विकास करने में तथा आत्मिक शुद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।
उनका मानना था कि आत्मिक विकास के पाँच मुख्य मुकाम हैं-
इन सब पड़ावों या मुकामों में से गुरुदेव ‘सेवा’ को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे कि ‘सेवा’ पर हम ज्यादा से ज्यादा अपना ध्यान केंद्र करें। उन्होंने अपनी सारी जिंदगी इसी फलसफे को मद्देनजर रख कर व्यतीत की और इसी की सबको सलाह भी दी। कई सदियों से इस पृथ्वी पर उच्च कोटि के ‘आध्यात्मिक शक्तिशाली’ लोगों में से गुरुदेव भी एक थे। यही उनका राज था। इसे अन्य लोगों के साथ बाँटिए।
प्रस्तावना
यह किताब कर्म के विषय पर लेखक के विचारों, अध्ययन और अनुभवों पर आधरित है।
आप आमंत्रित हैं कि आप इसे पढ़कर इससे सहमत हों या असहमत; कुछ धारणाओं या सब धारणाओं पर वाद विवाद करें। आप इनमें से सब को या कुछ भाग को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।
यह प्रक्रिया शायद आपको प्रोत्साहित करे कि आप इस विषय पर अपने विचारों में कुछ और जोड़ें या उनमें कुछ परिवर्तन लाएँ। मैं आशा करता हूँ कि आप एक चक्र पूरा कर अपने विचारों और नजरिये में परिवर्तन पाएंगे।
एक छोटी-सी शुरूआत हमारी जिंदगी में बदलाव ला सकती है।
हिंगोरी
कर्म सूत्र
भाग्य हमारे संग्रहित सकारात्मक और
नकारात्मक कर्मों का फल है।
कर्म की परिभाषा
हमारे मन, शरीर, इन्द्रियों और बुद्धि द्वारा की गयी सभी क्रियाओं को ‘कर्म’ कहते हैं।
जान-बूझकर किसी कार्य को न करना जिसे वास्तविकता में हमें करना चाहिए, उसे भी कर्म ही माना। कुछ कर्म अनजाने में अपने आप हो जाते हैं तो कुछ सोद्देश्य किये जाते हैं। हर सुबह दाँत साफ करने का कर्म किसी खास उद्देश्य से किया जाता है। वे कर्म जिन्हें करने की इच्छा नहीं होती पर हो जाते हैं, उन्हें ‘मुक्त कर्म’ कहते हैं। जैसे कि घुटनों को हिलाना या किसी गिरती वस्तु से अपने आप को बचाने के लिए हाथ ऊपर करना, उस वस्तु का नीचे चल रही चींटी पर गिरना और चींटी का मर जाना, मुक्त कर्म की श्रेणी में आता है। चलते समय गलती से चींटी पर पैर पड़ जाना मुक्त कर्म है। मुक्त कर्म स्वत: संपादित होता है अत: इनको गिना नहीं जाता है।
जब हम अपने शरीर, मन और आत्मा के माध्यम से होने वाले कर्मों को महसूस करते हैं (चेतना की विभिन्न अवस्थाओं- चेतन, अचेतन, अवचेतन) तब उन कर्मों के लिए हम अपने आपको जिम्मेदार मानते हैं और फिर हम उनके लिए उत्तरदायी हो जाते हैं। कर्म करते वक्त हमारा इरादा भी यह तय करता है कि हम कर्म के लिए उत्तरदायी हैं या नहीं।
एक जज द्वारा एक हत्यारे को मौत की सजा सुनाना एक अलग किस्म का कर्म है जिसके लिए वह जिम्मेदार नहीं है। पर हत्यारा उस कर्म के लिए जिम्मेदार है। दोनों में समानता यह है कि दोनों ने किसी को मृत्युलोक भेजा। अंतर यह है कि जज ने कानून के नियम के अनुसार अपना वैधानिक कर्त्तव्य निभाया और उसका इस दोषी व्यक्ति से कोई भावनात्मक रिश्ता या व्यक्तिगत बैर नहीं था। अत: वह इस कर्म का जिम्मेदार नहीं है।
इन कर्मों का कुल योग, हमारी जीवात्मा या व्यक्तिगत अस्तित्व का लेखा-जोखा बन जाता है। यह लेखा-जोखा ही कई जन्मों तक चलने वाले हमारे भविष्य का आधार है।
शरीर को कर्म क्षेत्र कहा जाता है। जहाँ इन कर्मों के लेन-देन का हिसाब-किताब समाप्त कर आप कर्ममुक्त हो सकते हैं। कर्ममुक्ति से ही जन्म-मृत्यु के चक्रव्यूह से मुक्ति संभव हैं और तभी मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होगा। मोक्ष में हमारा व्यक्तिगत अतिस्तत्व नहीं होता। बल्कि यह उस परम चेतना में एकाकार होने की बात है। मोक्ष प्राप्ति के लिए व्यक्ति को यह निश्चित