Adhyatmik Pratibimb/ आध्यात्मिक प्रतिबिम्ब: जाग्रति और प्रबोधन के सन्दर्भ में एक प्रस्तुति/पुस्तक
By Ken Luball
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About this ebook
एक पुस्तक है कविताओं की, जिसमे निहित हैं २०० आधात्मिक कवितायेँ|
इन कविताओं में वही प्रतिबिम्ब निहित है जो चार आध्यात्मिक उपन्यासों “जाग्रति की चतुश्मिति” में है, इसके अलावा अन्य कई ने इसे अभी तक प्रकाशित नहीं किया है| इन कविताओं का आधारभूत विषय आध्यात्मिकता है, जिसमे प्रत्येक दृष्टांत “जाग्रति” और “प्रबोधन” के अलग पहलू के रूप में है| वे धार्मिक नहीं हैं, बल्कि वे आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में दैनिक आध्यात्मिक प्रतिबिंब हैं। आध्यत्मिकता वह विश्वास है जिसमें माना जाता है प्रत्येक जीवन में ईश्वर (एक प्राण या आत्मा) का अंश है, इसकी वजह से, प्रत्येक जीवन महत्त्वपूर्ण, समान और योजित है| जागृति की चतुश्मिति की चार पुस्तकें और इस आध्यात्म प्रेरित कविता संग्रह की रचना करने के पीछे मेरा उद्देश्य है, दूसरों को जाग्रत करने में उनकी सहायता करने की कोशिश करना, जो जाग्रत हैं, पूरी तरह से प्रबोधन(आत्मज्ञान) को समझते हैं, अतः जीनकाल में उनकी यात्रा सम्पूर्ण तरीके से साधित हो सकती है|
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Adhyatmik Pratibimb/ आध्यात्मिक प्रतिबिम्ब - Ken Luball
तितली
ये दूसरे नहीं हैं जिन्हें बदलना है (घमंड को)|
ये आप हैं जिसे सबसे पहले विकसित होना होगा (आत्मिक रूप से)|
सिर्फ तभी जब आप आने की शुरुआत करेंगे
अपने आवरण से बाहर और
एक तितली बनेंगे|
प्रबोधन की
तीन अवस्थाएं
प्रबोधन की प्रथम अवस्था – सुसुप्त अवस्था में होना
प्रबोधन की प्रथम अवस्था हमारे जन्म से आरम्भ होती है,
जैसे की हम सामजिक हैं और हमें सिखाया जाता है क्या विश्वास करना है (घमंड),
जैसे की हम निरावारित हैं और उस समाज की और अधिक मानते हैं जिसमे हमने जन्म लिया है|
हमारे जन्म के साथ, हमारी पहचान अकसर पहले से पूर्व-निर्धारित होती है|
हमारी त्वचा का रंग, देश जहाँ हमने जन्म लिया है, धर्म,
और अन्य अनेक मानव-निर्मित तुलनाएं अकसर इस संसार में हमारे भविष्य पर हुक्म चलाती रहती हैं|
हम दूसरों का अवलोकन कर के यह विश्वास कर लेते हैं कि ये तुलनाएं सही हैं,
उनके बारे में पुस्तकों और अखबारों में पढ़कर और टीवी और फ़िल्में देखकर|
बहुत से लोग विश्वास करते हैं और आंतरिक विश्लेषण करते हैं इन तुलनाओं का, आगे
अपने आप को सिद्ध करने में
कि वे बेहतर और ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं दूसरों से|
वे जो स्वीकार और विश्वास करते हैं की जो उन्होंने सीखा है वह सत्य है,
उनके जीवन में सफलता होते हुए भी, वे सोये रहते हैं, अपना सामान्य नियत तय किया हुआ
जीवन जीने के लिए,
उनकी खुशियों और अर्थों पर विश्वास करते हुए की ये संसार से आएगा|
यह नहीं होगा
प्रबोधन की दूसरी अवस्था – जागृति
वे जो जागृत हैं प्रश्न करना शुरू करते हैं यदि हम सब सीख और स्वीकार कर
चुके हैं
जीवन में वास्तविक होने के लिए, जैसे हम बड़े हो रहे थे, सत्य था|
एक भावना जो हमारे भीतर फलती-फूलती है, अब और नजर अंदाज नहीं किया जा सकता,
हर चीज की वैधता के लिए हम पूछताछ करते हैं जिन पर हम एक बार विश्वास कर चुके हैं|
यद्यपि हम अग्रणी हो सकते हैं एक सफल
जीवन के लिए, धनवान बनने के लिए, प्रसिद्द होने
के लिए या कोई अन्य तुलना जो हमें सिखाती है सफलता क्या है,
यह अब हमारे भीतर से आने वाली असहज भावनाओं को शांत नहीं करता|
पीड़ा जो हम महसूस करते हैं वह हमारी आत्मा से निकलती है, हर किसी के
जीवन में उपस्थित है|
कुछ आत्मा को ईश्वर/प्राण/तत्व बुला सकते हैं या कोई अन्य दूसरा नाम निर्दिष्ट कर सकते
हैं|
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता|
ये हमारे जीवनकाल के दौरान एक पथप्रदर्शक के रूप में प्रतिनिधित्व करती है और हमारे जीवन
को अर्थ प्रदान करती है|
हम जागृत होते हैं जब हम पहली बार महसूस करते हैं की कुछ गलत है,
प्रश्न करना शुरू कर देते हैं की यदि जो हमने सीखा है और स्वीकार किया है वह सत्यता से
नहीं किया गया है,
हमें एक यात्रा शुरू करने के हमारे पास आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता|
प्रबोधन की दिशा में एक यात्रा|
प्रबोधन की तीसरी अवस्था
प्रबोधन तब होता है जब हम अंत में स्वीकार कर लेते हैं कि जो हमने सीखा और जिस पर
विश्वास किया वह सही नहीं था|
बावजूद हमारी उपस्तिथि, धन, नौकरी, भौतिक संपत्ति या अन्य कोई तुलना जो हमने सीखी
थी, हमें एक दूसरे से अलग करती हैं,
अब हम महसूस करते हैं की हम किसी अन्य से अधिक बेहतर या और अधिक
महत्त्वपूर्ण नहीं हैं|
हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनना शुरू करते हैं, उसके संदेशों को गले लगाते हैं
बिना किसी शर्त के अपने प्यार को दूसरों के साथ साझा करते हुए|
हालाँकि जब हम छोटे थे तब जो हमने सीखा वह हमारे साथ रहेगा
(घमंड)
अब हमारे जीवन पर इसका प्रभाव न्यूनतम है|
अब हम प्रतिस्पर्धा करने की बजाय दूसरों का सहयोग करते हैं|
अब हम डर के जीने के बजाय, अपना जीवन प्यार से जीने की कोशिश करते हैं|
और हमारे लिए क्या सबसे अच्छा है उसकी इच्छा करने के बजाय हम,
बिना किसी मतलब के दूसरों की मदद करने की आशा करते हैं, उनके जीवनकाल की यात्रा को
आसान बनाने के लिए|
इस परिवर्तन और आत्मा के सन्देश की स्वीकारोक्ति के साथ
हम प्रबोधन के पथ पर आगे बढ़ते हैं|
जाग्रति के साथ
सब बदल जाता है
––––––––
ये सारा यात्रा का एक हिस्सा है|
एक बार जब आप जागृत हो जाते हैं, केवल निश्चितता ही आपका जीवन है
अब वैसा नहीं होगा और वहां कोई पीछे मुड़ना नहीं होगा|
आपके जीवन में सब कुछ बदल जाएगा, आपकी मित्रता, आपके संबंधो
सहित
और जो लोग खेलते रहते हैं उनके लिए धैर्य रखकर जो अभी तक सो रहे हैं|
जागृति तब होती है जब आप अपने द्वारा सीखी गयी हर चीज पर प्रश्न करना शुरू कर
देते हैं|
प्रबोधन हालाँकि सिर्फ तभी होता है जब अंत में आप स्वीकार कर लेते हैं प्रत्येक चीज जो आपने
सीखी थी वह असत्य थी|
सत्य हमेशा हमारे भीतर ही रहा है|
आप जो भी उत्तर चाहते हैं उनके लिए शांतिपूर्वक सुनें|
खेल(नाटक)
जिस दिन हम मरने जा रहे हैं तब हमारा घमंड आत्मसमर्पण कर देता है जिसने हमारे
जीवन को जकड़ रखा है, तब हमें समझ आता है कि हमारा जीवन एक खेल था|
यह सब हमारा बनाया हुआ विश्वास था|
हमने अपना किरदार बहुत अच्छे से निभाया हम कभी नहीं जानते थे कि ये वास्तविक नहीं है|
जीवन सिर्फ एक भ्रम है, जहाँ खेल(नाटक) में हम सभी के छोटे-छोटे किरदार हैं|
यदि हम पटकथा का अनुसरण करते हैं, जैसा हमने सीखा है हमारे बड़े होते हुए,
जो उत्तर हम जीवन के बारे में तलाशते हैं हो सकता है वो हमसे दूर हों|
ये तभी होगा जब हम पटकथा के सीमाओं के बाहर निकलकर अभिनय करते हैं और
जागृत होते हैं,
हम जो उत्तर चाहते हैं अंत में स्वयं ही हमारे सामने आ सकते हैं|
आव्यूह
आव्यूह एक संसार है जहाँ अधिकतम लोग सुसुप्त हैं,
एक सिखाई गई सच्चाई को सत्य के रूप में स्वीकार करते हुए रह रहे हैं|
वे जो अपने जीवन में हर जगह अभी भी सुसुप्त हैं
उनका सत्य संसार में तलाशते हैं, उनके सीखे हुए पर विश्वास करते हैं
जैसे जैसे वे बड़े हो रहे हैं उनके जीवन में अर्थ और खुशियाँ आएँगे |
ये नहीं होगा
.
जब हम पहली बार जागृत होते हैं हम प्रश्न करना शुरू करते हैं की क्या ये विश्वास सही है|
हमारा जीवन सफल
होने के बावजूद, हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को
सुनना महसूस करते हैं,
जिन मानदंडों को हमने निर्विवाद रूप से सीखा था और स्वीकार किया था
अब हमारे लिए कोई मतलब नहीं रखते|
जो आवाज हम सुनते हैं हमें बिना शर्त प्यार करने के लिए कहती है,
आशा, समानता, दूसरों की मदद करना और अन्य सभी सकारात्मक सहायतात्मक मूल्य
दूसरों के साथ निःस्वार्थ भाव से साझा करना चाहिए
––––––––
हम जब आव्यूह को एक बार समझ चुके हैं और अपनी वास्तविकता के रूप में स्वीकार कर लेते
हैं
एक अनजानी दुनिया को छोड़कर, यह हमारे भीतर घुलना शुरू हो जाता है
एक दुनिया जहाँ प्यार (आत्मा) हावी हो जाता है डर (घमंड) के ऊपर |
इस दुनिया में जीने के लिए बदले एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के
इसकी जगह हम आशा करते हैं एक दूसरे की मदद करने की |
ऐसी एक दुनिया में रहना संभव है |
ऐसा करने के लिए, अपने अन्दर की आवाज को सुनिए,
अपना दिल खोलिए, उन संभावनाओं के लिए जिनके प्रस्ताव जीवन देता है,
आव्यूह को अपने अन्दर घुलने की स्वीकृति दें,
इसके मद्देनजर जीवन के सही उद्देश्य को अनावरित करने के लिए |
संदूक
मैं चाहूँगा कि आप एक खुले हुए संदूक की तस्वीर लें |
हमारे पैदा होने के पहले यह संदूक खाली था |
हमारे जन्म के साथ, यद्यपि, स्वयं (अहंकार), जो सबकुछ है हमने
सीखा है,
और उसके सत्य होने पर विश्वास किया है, हमारे पैदा होने के बाद, इस संदूक को भरना
शुरू कर देता है |
हमारे साथ हुए हर पारस्परिक विचार-विमर्श के साथ, यह संदूक वजनी होने लगता है,
जैसे ही यह हमारे द्वारा भरे हुए सामान से अव्यवस्थित होने लगता है,
हमारे जीवन के दौरान हमारे द्वारा सीखी गयी गलत चीजों से |
संदूक जितना भारी होना शुरू होता है, हमारी रोशनी उतनी ही धीमी होती जाती है
और जब हम जागृत होंगे तब हमें उतना ही अधिक उसे खाली करना होगा
और हमारी यात्रा शुरू करनी होगी प्रबोधन की दिशा में |
संदूक में सारे गलत स्वयं-केन्द्रित सत्य हैं जो सिखाये गए हैं अहंकार(स्वयं) द्वारा
और स्वीकार किये गए हैं बच्चों द्वारा क्योंकि वे बड़े हो रहे हैं |
हालाँकि संदूक भरने में बहुत लम्बा समय नहीं लेता (सामान्यतः जीवन
के प्रथम 5 वर्षों के दौरान),
यह ले सकता है उनका शेष जीवन, सब पर, उनके प्रकाश को पुनः खोजने में,
संदूक को खाली कीजिये और लौटिये अपनी आन्तरिक शांति और समझ की ओर
वे एक बार संदूक के भरने के पहले जानते थे |
इसलिए आइये हम सब प्रयास करते हैं अपने बच्चों के संदूक को हल्का रखने का उनके
जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान , उनके प्रकाश को उज्जवल बने रहने की
अनुमति देते हुए |
और जीवन के माध्यम से उनकी यात्रा आसान और अधिक अर्थपूर्ण होगी |
असत्य
जैसे ही हम पैदा होते हैं, असत्य की शुरुआत हो जाती है |
हमारी सामाजिकता हमें समाज के आदर्शों को स्वीकार करना सिखाती है
और दुनिया में हमारा महत्व बताती है |
हम उनसे सीखते हैं जो प्रसिद्ध हैं, धनवान हैं, जिनके पास महत्वपूर्ण नौकरियां हैं,
एक निश्चित त्वचा का रंग, धर्म, लिंग या अन्य कई तुलनाएं जो
हमने सीखी हैं |
इस दुनिया में परिभाषित श्रेष्ठता, दूसरों की तुलना में और अधिक सफल और
बेहतर होना है |
सत्य से आगे कुछ भी नहीं हो सकता |
वास्तव में, हमारा अहंकारकेन्द्रित पालन-पोषण ही कारण है नफरत, लालच, युद्ध,
जलवायु परिवर्तन, हत्या, पक्षपात और बहुत सी अन्य नकारात्मक समस्याओं का
दुनिया में मौजूद हैं आज भी और इतिहास के दौरान भी |
सत्य यह है कि कोई भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं है दूसरे से,
बावजूद जीवन में उनकी उपलब्धियों के |
जो परिभाषित करता है सत्य को जीवन के माध्यम से हर किसी की यात्रा है
हमारे स्वयं के समान मूल्यवान होने के नाते, इस ग्रह के संसाधनों को समान रूप से
साझा करना,
प्रत्येक जीवन को फलने-फूलने दें, महत्त्वपूर्ण बनने दें, सफल और
अर्थपूर्ण बनने दें |
पार्श्व
जब पहली बार हम पैदा होते हैं, इससे पहले कि हमारा समाजीकरण हो और हमें सिखाया
जाए कि किस पर विश्वास करना है,
जीवन के पार्श्व से अपवर्तित होने वाला प्रकाश शुद्ध सफ़ेद है |
इस सफ़ेद प्रकाश का उभरना इसके अन्तर्निहित होने के कारण है
बगैर शर्तों के प्यार हर जीवन के अन्दर मौजूद है |
जैसे कि हम सीखते हैं की हमें एक दूसरे के साथ कैसा व्यवहार और बर्ताव करना है,
पार्श्व का सफ़ेद प्रकाश तितर-बितर हो जाता है रंगों की अनंत
संख्या में |
जितना अधिक हमने सीखा है और हमें सिखाया गया है हम उसे स्वीकार करते हैं
समाज के द्वारा हमें कैसे रहना है और दूसरों के साथ कैसा व्यव्हार करना है,
उतना