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Sayujya: Khand Kavya
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Ebook86 pages35 minutes

Sayujya: Khand Kavya

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About this ebook

"सायुज्य" नारियों  की दशा, नर वर्ग का तथाकथित नराभास और उत्कृष्टता का द्वन्द्व है। दूसरी ओर सुलगती समिधा का धुन्ध, नारी सत्ता के बाद भी उसी का दमन कुछ विशेष अकुलाहट है। यह खण्डकाव्य "सायुज्य" स्त्री-पुरुष  के मध्य व्याप्त असमानता की खाई को पाटने के प्रयास पर आधारित है। स्त्री-पुरुष के मध्य सायुज्य (समरूपता) स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयास है। प्रस्तुत खण्डकाव्य में नारी पर हो रहे अत्याचार एवं अन्याय से पुरुष को अवगत कराते हुए उसको समझाने और उसमें सुधार कराते हुए उसे बन्द कराने का प्रयास किया गया है, वहीं नारी को भी इस बात से अवगत कराया गया है कि कहाँ-कहाँ यह अपने वसूलों व आदर्शों से गिरी हैं उसका वह पुनरुत्थान करें।यह काव्य दाम्पत्तिक जीवन का मधुरिम चैतन्य स्वभाव है। जीवन की अवस्था का सहयोगी है। विसंगतियों को दूर कर पुरुषार्थ की सिद्धि में सहायक होकर हर क्षण मधुरता से भर देगा।  इस खण्डकाव्य में यह प्रयास किया गया है कि नारी पर हो रहे अन्याय बन्द हों और इन्हें जीवन के पाँचो क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक में समान भागीदारी प्राप्त हो तथा नारी को भी पुरुष की तरह सम्मानपूर्वक जीने का सामाजिक अवसर प्राप्त हो। न कोई ऊँच हो और न कोई नीच। नारी और नर के मघ्य परस्पर सायुज्य हो और दोनों अधिकार सम्पन्न हों। दोनो इस प्रकार समरूप (एकाकार) हों, जैसे पयरूप।

Languageहिन्दी
Release dateFeb 25, 2024
ISBN9788119368297
Sayujya: Khand Kavya

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    Sayujya - Triloki Nath Maurya

    खण्डकाव्य

    AUTHORS CLICK PUBLISHING

    Area no.55, Ashok Vihar, Phase 2,

    Bilaspur, Chhattisgarh 495001.

    www.authorsclick.com

    Copyright © 2024, Triloki Nath Maurya

    All Rights Reserved

    ISBN:978-81-19368-29-7

    Price: ₹170.00

    Printed in India

    No part of this book may be reproduced, transmitted, or stored in a retrieval system, in any form or by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, manual, photocopying, or otherwise, without permission in writing from the author.

    This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. The opinions / contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions / standings / thoughts of Authors Click.

    सायुज्य

    खण्डकाव्य

    त्रिलोकीनाथ मौर्य

    अव्याहत वत्सला माता मान्यवती कमलादेवी तथा पिता मान्यवर जगतराम मौर्य जी के चरणों में श्रद्धा सहित सादर समर्पित।

    सायुज्यः एक नजर में

    भारतीय संस्कृति में नारी सदैव उन्नत गौरव की अधिकारिणी रही है। स्त्रीत्व के नाते ही उसमें स्वभाववशात् कुछेक दुर्बलताएँ स्वतः विद्यमान रहती हैं। नारी के तीन रूप हैं-कन्या, पत्नी तथा माता; ये तीनों रूप रक्षा, मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा के योग्य हैं। इसका दायित्व 'पुरुष' पर है। वास्तव में पुरुष वही है जो वीर हो, वीर्य सम्पन्न हो, अपनी तथा अपने आश्रित की रक्षा करने की क्षमता रखता हो। दुःख का विषय है कि पुरुष अपने सामर्थ्य से च्युत हो गया है। अपनी अनमोल थाती 'नारी' के संरक्षण से विमुख हो गया है। इतना ही नहीं उसके प्रति क्रोध, हिंसा, व्यभिचार-दुराचार अनेकानेक अनैतिक कार्य करने में भी संकोच नहीं कर रहा है।

    'प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते'यह उक्ति कवि की प्रेरणास्पद रचना 'सायुज्य' को सार्थक बनाती है। कवि काव्य-जगत् का प्रजापति है। संसार उसे जैसा प्रतीत होता है उसे वह उसी तरह शब्द बोध्य बनाता है। वर्तमान सामाजिक परिवेश में सृष्टि की संरचना में नारी की हेयता, अवहेलना, प्रताड़ना आदि गर्हित कृत्यों के स्मरण मात्र से सहृदय मन बिना प्रकम्पित-रोमाञ्चित हुए नहीं रह सकता है। सहृदय कवि, पुरुष द्वारा नारी के प्रति अपमान जनक व्यवहार से व्यथित हो उठा है।

    शारदीय रात्रि में पति द्वारा पत्नी को यष्टि-प्रहार से निश्चेष्ट कर दिये जाने पर कवि हृदय-उत्थित भाव काव्य में परिणत हो जाता है। नारी तो सर्वदा पुरुष सहचरी रही है, उसी की छत्रच्छाया में अपनी गुण-गरिमा का विस्तार करती आयी है, परन्तु पुरुष आज वीर्यहीन, दुर्बल, अपमानसहिष्णु, भीरु और दुर्व्यसनाओं-कामनाओं में संलिप्त है, जिसके कारण भारतीय समाज में त्याग तपस्या, सेवा-सहयोग, मान-सम्मान की प्रतीक 'नारी' की स्थिति शोचनीय हो गयी है।

    कवि ने नारी की वर्तमान दुरवस्था का कारण सामाजिक व्यवस्था को बताया है। कवि, नारी को अपने त्याग-तप-बल को पहचानने, समाज में व्याप्त दहेज प्रथा, ऊँच-नीच भाव, शोषित-पीड़ित असम्मानित नारी की दशा को परखने की प्रेरणा दी है।

    इसके साथ ही पुरुष को भी स्वार्थपरता, अविश्वसनीयता आदि भाव को त्याग कर नारी के प्रति अपनी जिम्मेदारी का सजग भाव से निर्वहण करने की प्रेरणा भी दी है। सृष्टि-सञ्चालन-प्रकिया में पुरुष नारी का समवेतत्व अनिवार्य है। एक के बिना दूसरा अधूरा ही नहीं; व्यर्थ है। कवि भावातिरेक में अवगाहन करता है और दार्शनिक विवेक का

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