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Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah) : सुर हमारी चेतना के (गीत संग्रह)
Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah) : सुर हमारी चेतना के (गीत संग्रह)
Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah) : सुर हमारी चेतना के (गीत संग्रह)
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Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah) : सुर हमारी चेतना के (गीत संग्रह)

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सुर हमारी चेतना के, शीर्षक से प्रकाशित प्रतिनिधि गीतों के रचनाकार भाई डॉक्टर जयप्रकाश मिश्र उन श्रेष्ठ व्यक्तित्वों में कनिष्टका अधिष्ठित हैं। जो पहली भेंट में ही अपनी अदभुत छाप छोड़ते हैं जिनमें सहजता, स्नेह, सरलता, बंधुत्व और वात्सल्य की अनेक धाराएं लहराती रहती हैं। बड़प्पन की कृत्रिमता और असहज मौन के विपरीत खुलापन और परस्पर संवाद का सात्विक सिलसिला ही गीत और रचनाकार की पृष्ठभूमि है।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 15, 2022
ISBN9789355990549
Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah) : सुर हमारी चेतना के (गीत संग्रह)

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    Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah) - Dr. Jayprakash Mishra

    सुर हमारी चेतना के

    (गीत संग्रह)

    गीतकार

    डॉ. जयप्रकाश मिश्र

    eISBN: 978-93-5599-054-9

    © लेखकाधीन

    प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.

    X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II

    नई दिल्ली- 110020

    फोन : 011-40712200

    ई-मेल : ebooks@dpb.in

    वेबसाइट : www.diamondbook.in

    संस्करण : 2022

    Sur Hamari Chetna Ke (Geet Sangrah)

    By - Dr. Jayprakash Mishra

    समर्पण

    जिनका स्थान आकाश से ऊँचा और पृथ्वी से भारी है

    ऐसे अपने माता-पिता श्रीमती रामखिलावना मिश्रा

    व पंडित श्रीराम मिश्र के श्री चरणों में अर्पित

    सुर हमारी चेतना के

    मार्मिक भावों का अनुभावन

    सु र हमारी चेतना के, शीर्षक से प्रकाशित प्रतिनिधि गीतों के रचनाकार भाई डॉक्टर जयप्रकाश मिश्र उन श्रेष्ठ व्यक्तित्वों में कनिष्टका अधिष्ठित हैं। जो पहली भेंट में ही अपनी अदभुत छाप छोड़ते हैं जिनमें सहजता, स्नेह, सरलता, बंधुत्व और वात्सल्य की अनेक धाराएं लहराती रहती हैं। बड़प्पन की कृत्रिमता और असहज मौन के विपरीत खुलापन और परस्पर संवाद का सात्विक सिलसिला ही गीत और रचनाकार की पृष्ठभूमि है।

    भीतर की आग जब कभी ज्वाला बनने की कोशिश में मस्तिष्क में एक उष्णता उत्पन्न करती है तो व्यक्ति की मन:स्थिति उस उष्णता को अभिव्यक्ति देने को लालायित रहती है। पीणा और दर्द की यही अभिव्यक्ति किसी न किसी रूप में डॉक्टर जयप्रकाश मिश्र के हास्य-व्यंग्य व गीत की संज्ञा से संबोधित हो जाती है। डॉक्टर जयप्रकाश मिश्र भले ही मंचों पर एक सशक्त हास्य-व्यंग्य कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं, किन्तु वे मूलत: एक सहृदय मनचीते गीतकार के रूप में प्रस्तुत संग्रह में विद्यमान हैं। इनकी विद्वता व बाग्मिता श्रोता समाज का भीड़ नहीं अपितु नीड़ का कवि बनाकर समादृत करती है।

    डॉक्टर जयप्रकाश मिश्र को साहित्यिक संस्कार अपनी जन्मभूमि बदायूँ से प्राप्त हुए। आशुकवि डॉक्टर बृजेंद्र अवस्थी, पंडित भूपराम शर्मा भूप डॉक्टर उर्मिलेश शंखधार आचार्य बिशुद्धानंद मिश्र जैसे अनेक स्वनामधन्य साहित्यिक मनीषियों की जन्मभूमि व कर्मभूमि होने के कारण इस जनपद की माटी साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत उर्वर है। जन्मभूमि से प्राप्त साहित्यानुराग को गाजियावाद के साहित्यिक व सांस्कृतिक परिवेश ने न केवल पुष्पित-पल्लवित किया अपितु समुचित दिशा निर्देश देकर मिश्र जी को साहित्य सृजन की ओर प्रवृत्त किया। गत पांच वर्ष से पहले हमारे देश में जिस तेजी से व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय चारित्र्य का ह्रास हुआ उसने रचनाकार को भीतर से मथकर राष्ट्रीय नवजागरण हेतु अपनी माटी के इतिहास गौरव पर कलम चलाने के लिए प्रेरित किया । सुर हमारी चेतना के के गीत मूलत: इसी भावना से प्रेरित हैं । सचमुच-

    इनने जीवन में हास लिखा, ाृंगारिक नाग्विलास लिखा ।

    लेकिन जब माटी चीख पड़ी तब माटी का इतिहास लिखा ।।

    स्वाधीनता के अमृत पर्व मनाते समय भी विविध क्षेत्रों में हो रहे अवमूल्यन तथा चारित्रिक अध:पतन से कवि चिंतित है तभी वह मां वाग्देवी से याचना करता है-

    जल रहा अंतस हमारा ताप से उदविग्न सारा ।

    मन शमन जिससे करूं मैं वह मधुरतम गान दे दे ।।

    परन्तु कवि इससे हताश नहीं है निराश भी नहीं है उसके पास आस्था की ज्योति है इसी के बल पर परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर समाज को जागृत-आलोकित करने के कवि कर्म करने के प्रति संकल्प बद्ध है -

    जनमानस में चेतनता का, भाव जगाने आए हैं ।

    हम दुनियाँ को सतपथ गामी, राह दिखाने आए हैं ।।

    भ्रष्टाचार, घूसखोरी तथा देश के तथाकथित भाग्यबिधाताओं की काली करतूतों से परेशान होकर हे ईश्वर! हे कृपानिधान! गीत में कवि कहता है-

    कहीं निगाहें कहीं निशाना, वस्ती-वस्ती आग लगाना ।

    धवल चांदनी में ज्यों बदली, कदम-कदम पर जिह्वा फिसली ।

    पद लोलुप को भान करा दे, गुण ही सदा गुणी का मान ।।

    डॉक्टर जयप्रकाश मिश्र

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