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सपनो के पंख (आज की कहानियाँ)
सपनो के पंख (आज की कहानियाँ)
सपनो के पंख (आज की कहानियाँ)
Ebook280 pages2 hours

सपनो के पंख (आज की कहानियाँ)

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About this ebook

हो सकता है के आज के इस इंटरनेट के आधुनिक जमानें में आपने भी कथा कहानियाँ पढ़नी थोड़ी कम कर दी हों, पर हम यकीन से कह सकते हैं के आपने स्कूल या कॉलेज में या फिर घर में जो कहानियाँ पढ़ी होंगी उनमें से आज भी कुछ आपके दिमाग में ताज़ा होंगी। ये भी सत्य है के आज की इस तेज़ रफ़्तार से चलती हुई दुनिया में व्यस्तता के कारण आपके पास पढ़ने के लिए समय ही ना हो, पर आप फ़ोन पर या लैपटॉप पर फिल्में, छोटी कहानियों पर आधारित फिल्में, और टेलीविज़न सीरियलस तो जरूर ही देखते होंगे।

ये सत्य है के ये सभी माध्यम मनोरंजन तो बहुत देते हैं पर जो आनंद उन कहानियों को किताब से पूरी पढ़ने पर मिलता है, उन कहानियो पर आधारित ये फिल्में या सीरियलस नहीं दे सकते हैं! आइये एक बार फिर से समय में थोड़ा पीछे चलकर कहानी की किताब पढ़िए।

जो कहानियाँ हम आपको दे रहे हैं वो जीवन के ऐसे बहुत से पक्षों का चित्रण हैं जो आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर देंगे।

प्रेम, बिछोड, दुःख, सुख, परिवार, मित्रता, दुश्मनी, यादें, चिट्ठियां, और ना जाने कितने ही ऐसे विषय हैं जिनको हमारी कहानियाँ बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करती हैं। हम आपको यकीन दिलाते हैं के हमारी कहानियाँ कुछ खट्टा कुछ मीठा और कुछ बहुत ही कड़वे का ऐसा मिश्रण हैं जो आपको एक अलग ही स्वाद देंगी।

तो लीजिये तैयार हो जाइये हमारी कहानियों की दुनिया में प्रवेश करने के लिए।

शुभकामना

प्रोफेसर राजकुमार शर्मा

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateApr 29, 2023
ISBN9798215165294
सपनो के पंख (आज की कहानियाँ)

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    सपनो के पंख (आज की कहानियाँ) - प्रोफेसर राजकुमार शर्मा

    दो शब्द

    हो सकता है के आज के इस इंटरनेट के आधुनिक जमानें में आपने भी कथा कहानियाँ पढ़नी थोड़ी कम कर दी हों, पर हम यकीन से कह सकते हैं के आपने स्कूल या कॉलेज में या फिर घर में जो कहानियाँ पढ़ी होंगी उनमें से आज भी कुछ आपके दिमाग में ताज़ा होंगी। ये भी सत्य है के आज की इस तेज़ रफ़्तार से चलती हुई दुनिया में व्यस्तता के कारण आपके पास पढ़ने के लिए समय ही ना हो, पर आप फ़ोन पर या लैपटॉप पर फिल्में, छोटी कहानियों पर आधारित फिल्में, और टेलीविज़न सीरियलस तो जरूर ही देखते होंगे।

    ये सत्य है के ये सभी माध्यम मनोरंजन तो बहुत देते हैं पर जो आनंद उन कहानियों को किताब से पूरी पढ़ने पर मिलता है, उन कहानियो पर आधारित ये फिल्में या सीरियलस नहीं दे सकते हैं! आइये एक बार फिर से समय में थोड़ा पीछे चलकर कहानी की किताब पढ़िए।

    जो कहानियाँ हम आपको दे रहे हैं वो जीवन के ऐसे बहुत से पक्षों का चित्रण हैं जो आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर देंगे।

    प्रेम, बिछोड, दुःख, सुख, परिवार, मित्रतादुश्मनी, यादें, चिट्ठियां, और ना जाने कितने ही ऐसे विषय हैं जिनको हमारी कहानियाँ बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करती हैं। हम आपको यकीन दिलाते हैं के हमारी कहानियाँ कुछ खट्टा कुछ मीठा और कुछ बहुत ही कड़वे का ऐसा मिश्रण हैं जो आपको एक अलग ही स्वाद देंगी।

    तो लीजिये तैयार हो जाइये हमारी कहानियों की दुनिया में प्रवेश करने के लिए।

    शुभकामना

    प्रोफेसर राजकुमार शर्मा

    Chapter 2

    प्रेम विजय

    जब प्रिया उसके पास बालकनी में गई तो मदन उदास मूड में था। प्रिया ने शरारत से पूछा, क्या हुआ इतने उदास क्यों हो? क्या कोई खजाने से भरा जहाज डूब गया है तुम्हारा?

    मदन ने कहा,मैं काम पर कुछ समस्याओं को लेकर चिंतित था। प्रिया न सिर्फ एक अच्छी पत्नी थी बल्कि शादी के बाद से वह हमेशा एक अच्छी दोस्त बनी रही थी।

    इसलिए मदन ने प्रिया को बताया के कैसे उसके दफ्तर में उच्च स्तर पर राजनीति हो रही थी और कैसे उसकी टीम का मनोबल नीचे खिसक गया था!

    उनके कई साथी कटु थे और उन्हें पहला मौका मिलते ही पद छोड़ने की योजना बना रहे थे। मदन ने बताया कि इन दिनों ऑफिस जाने की सोच ही उन्हें परेशान करती थी।

    प्रिया ने कुछ सुझाव देने की कोशिश की लेकिन मदन उनमें से किसी भी सुझाव को लेने के लिए बहुत नकारात्मक था।

    उन्होंने कहा,प्रिया, तुम्हारे लिए सुझाव देना आसान है। तुमको कार्यालय आना चाहिए और अनुभव करना चाहिए कि हम किस दौर से गुजर रहे हैं।

    वह मुस्कुराई और कहा,आइए! आशा करती हूँ कि चीजें बेहतर होंगी। हम और कुछ नहीं कर सकते। चलो अब सो जाते हैं।

    मदन धीरे से बेडरूम में चला गया। उसने प्रिया को अगले बेडरूम में प्रवेश करते देखा। उसने पुकारा,क्या तुम आज रात मेरे साथ इस बैडरूम में नहीं आ रही हो?

    उसने जवाब दिया, नहीं। आप आज बहुत नकारात्मक हैं। मुझे लगता है कि मुझे कुछ अच्छी नींद लेने के लिए अकेले रहने की जरूरत है।

    उसने उदास होकर पूछा,क्या तुम आज रात मुझे अकेला छोड़ना चाहती हो?

    उसने कहा,ऐसा नहीं है। मुझे अकेले रहने की जरूरत है आज। तुम अच्छे से सो जाओ। शुभ रात्रि! और प्रिया ने अपने कमरे को अंदर से बंद कर दिया। मदन ने भी धीरे से उसको शुभ रात्रि कह दिया।

    मदन अपने दफ्तर की चिंताओं से तो दुखी था ही पर उसको इस बात की भी चिंता होने लगी के उसकी पत्नी अब उसके साथ कमरे में आने से इंकार कर दी थी। उस रात को मदन को नींद आना कठिन लगने लगा।

    वह अपने कमरे से बाहर चला गया और अगले बेडरूम के दरवाजे पर देखा। वह बुद्धिमान था कि वह दरवाजा न खटखटाए। जब वह कुछ कहती थी, तो उसका हमेशा मतलब होता था।

    आज रात, अगर वह अकेली रहना चाहती थी, तो उसने इस पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं की। वह थोड़ा हैरान हुआ कि उस दरवाजे के पास की खिड़की ठीक से बंद नहीं थी। उसने खिड़की खोलने की कोशिश की और वह खुल गई।

    वह जानता था कि वह खिड़की से दरवाजे की एक कुंडी तक पहुंच सकता था, लेकिन अगर प्रिया ने दूसरी कुंडी लगा दी होती, तो दरवाजा बाहर से नहीं खोला जा सकता। उसने हाथ बढ़ाया और पहली कुंडी खोलने की कोशिश की।

    बड़ी मुश्किल से उसने उसे खोला। फिर उसने कोशिश की कि क्या दरवाजा खुल रहा था और दरवाजा खुल भी गया। वो सोचने लगा के प्रिया दरवाजे के पास वाली खिड़की की दूसरी कुंडी लगाना भूल गयी थी।

    वह धीरे से अंदर चला गया। अगर उसे कमरे में मदन की मौजूदगी के बारे में पता था, तो भी उसने नहीं दिखाया। जल्द ही वह उसके करीब आ गया।

    मदन ने पीछे से ही प्रिया को अपनी बाहों में ले लिया। प्रिया ने हैरानी के स्वर में कहा,तुम अंदर कैसे आ गए?

    मदन ने कहा,बस अंदर आने का रास्ता खोज ही लिया!

    प्रिया ने कहा,मदन, प्लीज तुम बाहर चले जाओ!

    नहीं मैं नहीं जाऊँगा! मैं नहीं जा सकता!

    प्रिया ने कहा,"मेरी भावनाओं की तुमको कोई परवाह नहीं है!

    मदन ने कहा,नहीं ऐसा नहीं है! मुझे तुम्हारा हर समय ख़याल रहता है! मुझे हर समय तुम्हारी चिंता रहती है!

    प्रिया ने कहा,अब तुमको मेरी बहुत जरूरत है ना?

    हाँ प्रिया!

    कुछ देर की इसी तरह की बातचीत के बाद दोनों ही अपने अपने वस्त्रों से अलग होने लगे। दोनों एक दूसरे की बाहो में समा गए और फिर कुछ ही देर में संतुष्ट होकर एक दूसरे के बगल में पसर गए।

    कुछ देर के बाद प्रिया ने पूछा,मदन, क्या अब तुम खुश हो?

    मदन ने कहा, मैं अब बहुत खुश हूं। तुमने देखा कि आखिरकार मैं कितनी चतुराई से जीता। क्या तुम भी खुश हो?

    वो बोली, मैं तुम्हारे लिए खुश हूं। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा खुश रहो।

    मदन ने पूछा, तुम तो शुरू से ही कह रही थी के तुम अकेली अपने कमरे में बंद होना चाहती थी और फिर भी तुमने खिड़की की एक कुंडी खुली छोड़ दी? ये सब तुम्हारी योजना में ही था मुझे खुश करने के लिए, हैं के नहीं?

    प्रिया ने कहा,हाँ, मेरी ही योजना थी। अगर तुम आये ना होते तो मैं तुमको नहीं बताती। मदन, एक बात याद रखना के अगर तुमने किसी दिन सब कुछ ही खो दिया मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी और तुम मुझपर हमेशा ही विजय पाकर खुश हो सकोगे!

    मदन की आँखों में आंसू आ गए,जब भी मैं काम से या दफ्तर से हार जाता हूँ, तुम मुझे तुम्हारे ऊपर विजय पाने की अनुमति दे देती हो। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।

    दोनों एक दूसरे की बाहों में खो गए और फिर कुछ देर के बाद मदन ने कहा,"हमारी जिंदगी में हमारे पास जो अच्छी चीजें होती हैं हम उनके महत्व को भूल जाते हैं।

    हम हमेशा ही उन चीजों की चिंता करते रहते हैं जो हमारे पास नहीं होती हैं! तुम मेरे जीवन की सबसे अच्छी चीज तो तुम ही हो तो फिर मैं और चीजों की चिंता क्यों करूँ? अब मैंने ये जान लिया है!"

    प्रिया ने मुस्कुरा कर कहा,मैं भी प्रार्थना करती हूँ के मैं भी उतनी ही अच्छी हो जाऊं जितने के तुम हो! तुम भी तो मेरे जीवन की सबसे अच्छी चीज हो! दोनों सभी चिंताओं को भूलकर एक दूसरे की बाहों में सुख से सो गए और प्रेम के सपनो में डूब गए!

    Chapter 3

    प्रेम और अभिमान

    फरीद के दादा परदादा अफ़ग़ानिस्तान से आ कर पंजाब के होशियारपुर के इलाके में रहने लगे थे। वो घोड़ों के व्यापारी थे।

    फरीद के बापू को बिहार के सहस्राम में एक परगना का चौधरी बना दिया गया था। चौधरी बाप ने एक हसीन औरत से शादी कर ली।

    लेकिन चौधरी बाप को ये भय खाता रहता था के अगर उसका बेटा फरीद कभी चौधरी बन गया तो बाप को कौन पूछेगा। आखिर बाप ने फरीद को घर से निकाल दिया।

    फरीद की भी शादी हो चुकी थी लेकिन उसके उसकी पत्नी के साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं थे। आखिर फरीद ने घर छोड़ दिया।

    घूमते घूमते उसने बहुत सी जगहों में ज्ञान हासिल किया और तलवारबाजी की भी शिक्षा प्राप्त की।

    उसको बिहार के राजा बहर खान के किले में नौकरी मिल गयी। अपनी क़ाबलियत के बल पर नौकरी करते हुए उसको कई लोगों का विरोध भी सहना पड़ा।

    फिर एक शेर मारने के बाद उसका नाम शेर खान हो गया। जो बाद में शेर शाह सूरी के नाम से जाना गया।

    राजा बहर खान की मौत के बाद उसकी रानी ने अपना राज भाग शेर शाह सूरी को दे दिया और वो अपने मायके चली गयी।

    बंगाल के राजा ने बाबर के अय्याश पुत्र हुमायूँ के कान भरने शुरू कर दिए के एक मामूली घोड़े बेचने वालों का बेटा दिल्ली दरबार से टक्कर लेने के बारे में सोच रहा था।

    दिल्ली दरबार की फौजों ने बिहार की तरफ कूच कर दिया।

    मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने इस लड़ाई के लिए इस तरह चढ़ाई की जैसे किसी जश्न में हिस्सा लेने जा रहा हो। उसको अपनी फ़ौज और लश्कर पर बहुत विश्वास था।

    हुमायूँ अपने साथ शाही परिवार की औरतों, कनीजों, और बांदियों को भी ले गया था। इश्क और जंग में अक्सर ही हो जाता है के कभी भी पासा पलट जाता है।

    शेर शाह सूरी की कुछ हज़ार की फ़ौज और उसकी अच्छी युद्धबंदी ने लाख से अधिक दिल्ली की सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। हुमायूँ को भी अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।

    वो अपने पीछे तोपें, गोला बारूद, और शाही परिवार की औरतोंरानियां, और अन्य बहुत सी औरतों को पीछे छोड़ गए थे।

    मुग़ल जब भी किसी रियासत पर कब्ज़ा करते थे लूटमार के बाद जिनको इनका शिकार होना पड़ता था वो होती थी वहां की औरतें।

    सुन्दर सुन्दर औरतें उनके हरम का श्रृंगार बन जाती थी और बाकी की औरतों को सिपहसालारों में बाँट दिया जाता था।

    औरतों की इज़्ज़त लूटने में आम सिपाही भी पीछे नहीं रहते थे।

    लेकिन उस युद्ध के बाद शेर शाह सूरी ने ऐसा नहीं किया। उसने बंदी बनाई गयी औरतों को पूरे सम्मान के साथ चुनार के किले में रखा।

    उन औरतों में बाबर की बेटी हुमायूँ की हमशीर गुलबदन भी थी। गुलबदन जितनी हसीन थी उतनी ही जहीन भी थी। उसको किताबें पढ़ने का शौक था।

    ज्ञान हासिल करना उसका शौक था। उसमें शाही खून का गरूर भी था। लेकिन शेर शाह सूरी ने उसको पूरी इज़्ज़त दी।

    शेर शाह सूरी और गुलबदन के बीच नजदीकी बढ़ने लगी लेकिन वो अपने मन की बात एक दूसरे से नहीं कह सके।

    कुछ दिनों के बाद शेर शाह सूरी ने उन औरतों को दिल्ली रवाना कर दिया।

    ना शेर शाह सूरी ने गुलबदन को रोका, और ना ही गुलबदन के गुरूर ने रुकना बेहतर समझा। लेकिन दोनों के बीच आकर्षण जारी रहा।

    कुछ ही महीनो के बाद शेर शाह सूरी ने दिल्ली के तख़्त पर कब्जा कर लिया।

    हुमायूँ ने अपने सेनापत जुनैद बर्लास के हाथों शेर शाह सूरी के पास संधि का पैगाम भेजा जिसमे लिखा था

    आप मुझे सीमा से लेकर दर्रा खैबर से काबुल तक का राजा मान लो और बाकी हिन्दुस्तान आपके लिए छोड़ दूंगा और साथ ही अपनी हमशीर गुलबदन भी आपको सौंप दूंगा।

    गुलबनद का नाम सुनकर शेर शाह सूरी का दिल जोर जोर से धड़कने लगा।

    उसने कहा,"गुलबदन की चाहत जरूर है पर उसका सौदा नहीं कर सकता! या अल्लाह! आपने मुझे मुसीबत में डाल दिया है। मैं ये भी नहीं कह सकता के गुलबदन से मैं मोहब्बत नहीं करता हूँ या गुलबदन की मेरे लिए कोई अहमियत नहीं है। पर मेरी मुसीबत मेरा निजी मामला है इसलिए मैं अपने सिद्धांतों और वतन का सौदा नहीं कर सकता

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