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Tujhe Bhul Na Jaaun : Kahani Sangrah (तुझे भुल न जाऊँ : कहानी संग्रह)
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उपन्यास "जिंदगी एक जंजीर" के बाद कहानी संग्रह "तुझे भूल न जाऊँ"
हम इस साल लोकप्रिय प्रवासी लेखक राकेश शंकर भारती का उपन्यास जिंदगी एक जंजीर लेकर आये। गौरतलब है कि इस उपन्यास का विषय हिंदी और भारतीय साहित्य के लिए बिलकुल नया और अनूठा है। थर्ड जेंडर (तृतीय लिंग विमर्श) और किन्नरों की जिंदगी वगैरह पर हिंदी में अब तक कई उपन्यास आ चुके हैं, किंतु थर्ड जेंडर विमर्श में ही ट्रांसमेन (स्त्री से लिंग परिवर्तन कराकर पुरुष बनना) की जिंदगी पर कोई उपन्यास नहीं आया था। कोई पुख्ता काम नहीं हुआ था। शोधार्थियों और अध्यापकों की एक लंबी शिकायत थी कि काश ट्रांसमेन पर कोई किताब आये, कोई उपन्यास आये तो हमारी जरूरत पूरी हो सके। जब हमारे प्रकाशन के जुझारू संपादक चंद्रा जी के पास मेल पर एक अनजान पाँडुलिपि मिली तो उपन्यास का टॉपिक पढ़कर उन्होंने थोड़ा-सा और आगे पढ़ा तो उन्हें फट से समझ आ गया कि हिंदी में यह उपन्यास बिलकुल नया है। ट्रांसमेन पर हिंदी में शायद यह पहला उपन्यास होगा। पूरा उपन्यास पढ़ने पर हमें पता चला कि एक नये विषय के साथ-साथ यह उपन्यास रोचक भी है और साथ में गंभीर भी। शोध और आम पाठकों के नजरिये से भी हमें ऐसा लगा कि हमें यह उपन्यास जरूर छापना चाहिए। जिंदगी एक जंजीर छपने के बाद शोधार्थियों और अध्यापकों के साथ-साथ आम पाठकों ने भी भारती जी के उपन्यास को हाथों हाथ लिया। अभी भी यह पुस्तक आम पाठकों के बीच हमारे प्रकाशक के विभिन्न डिस्ट्रीब्यूटिंग प्लेटफार्म के माध्यम से पहुँच रही है।
उपन्यास जिंदगी एक जंजीर के बाद, हम अब राकेश शंकर भारती का चौथा कहानी संग्रह और डायमंड बुक्स में उनका पहला कहानी संग्रह तुझे भूल न जाऊँ प्रकाशित किया है। लेखक के पिछले कहानी संग्रह की तरह ही यह कहानी संग्रह भी कम रोचक नहीं है। मिथिला और पूर्वांचल के समाज के विभिन्न मुद्दों पर रोचक तरीके से प्रकाश डालता हुआ यह कहानी संग्रह आम पाठकों के मानकों पर खरे उतरे, इसी उम्मीद के साथ ही इसे पाठकों के हवाले करता हूँ।
23 फरवरी को रूस औत तानाशाह पुतिन ने यूक्रेन को कमजोर समझकर पूरे देश को हड़पने के इरादे से बर्बर और अमानवीय हमला किया। वहाँ अभी तक हजारों निर्दोष लोग मारे गये हैं और अभी भी एक छोटा कमजोर देश युद्ध में टिककर मजबूत बर्बर रूस को मुँहतोड़ जवाब दे रहा है। लोगों के घर और यूक्रेन के कई शहर और गाँव पूरी तरह रूसी बमबारी में तबाह हो गये हैं। यूक्रेन में प्रवास कर रहे लेखक राकेश शंकर भारती भी इससे अछूते नहीं रहे। उन्हें भी अपने बच्चों के साथ जमीन के अंदर छुपना पड़ा रहा है और बंकर में भी समय समय गुजारना पड़ रहा है। इस समय वे मानसिक पीड़ा से गुजर रहे हैं। फिर भी उन्होंने इस कहानी संग्रह के प्रकाशन में हमारा साथ दिया है। इस हमले के बाद लेखक ने एक अजीब-सी खामोशी इख्तियार कर ली है। शायद वे रूस-यूक्रेन युद्ध पर कुछ तो जरूर लिखते होंगे। शायद वे पाठकों के सामने युद्ध और मानव के बर्बर रवैये के बारे में कटु सत्य लेकर हाजिर होंगे।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateMar 24, 2023
ISBN9789356844049
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    Tujhe Bhul Na Jaaun - Rakesh Shankar Bharti

    पकड़उवा बियाह

    1.

    मई महीने की चिलचिलाती धूप में दिनेश बैजनाथपुर रेलवे स्टेशन से अपनी पुरानी जंग लगी हुई साइकिल पर बैठकर कुछ सोचते हुए घर की तरफ़ जा रहा तरफ़ है। धूप से बचने के लिए सिर पर गमछी से पगड़ी बनाकर ढँक लिया है, जिसका पिछला हिस्सा मंद हवा के झोंके से धीमी गति से लहर रहा है। उसके दिमाग़ में बहुत सारी बातें चल रही हैं। वह मैट्रिक की परीक्षा में दो बार फेल हो चुका है। नयी सरकार आ जाने के बाद तो वैसे भी मैट्रिक के इम्तहान में कामयाबी हासिल करना इतना आसान काम नहीं रहा है। परीक्षा में अब चोरी तो चलती नहीं है। चीटिंग बाज़ी का ज़माना तो कब का ख़त्म हो गया। पिछली बार तो दिनेश 10 अंकों से परीक्षा पास करते-करते अटक गया था। लेकिन तीसरी बार तो उसे उम्मीद है कि वह हर हालत में परीक्षा पास कर जायेगा। इन सारी बातों को सोचते-सोचते रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूर बढ़ा ही था कि कुछ दूरी से किसी ने पुकारा। दिनेश, कहाँ से आ रहे हो? मैं तीन दिनों से तुझे खोज रहा था। जब तुम ईद के चाँद हो जाते हो तो मुझे बिलकुल दिल नहीं लगता है। आ जाओ, बैठकर एक साथ तारी पीते हैं और गप्पें हाँकते हैं। दिल बहलाते हैं।

    अरे शंभू, कैसे हो? सहरसा गया था ममता दीदी को संदेश पहुँचाने के लिए। तुझे भी साइकिल पर पीछे बैठाकर ले चलता तो बहुत अच्छा होता। मेहमानी में मज़ा आ जाता। सहरसा में भी एक साथ तारी - दारु की छोटी-सी पार्टी हो जाती । साइकिल से उतरते ही दिनेश का उदास चेहरा बसंत ऋतु के पहले कोमल गुलाब की तरह खिलखिला उठा।

    चल मेरे साथ। आज की शाम हो जाये तारी के नाम। जल्द ही शाम ढलने वाली है। शाम ढलते ही गर्मी से राहत मिल जायेगी। शंभू ने दायीं आँखें टेढ़ी करते हुए कहा।

    ये कहकर शंभू दिनेश के साथ अपने घर पर आया और उसने मचान के सहारे साइकिल खड़ी कर दी। दोनों आंगन में आ गये। माँ आँगन में बैठकर सब्ज़ी काट रही है। माँ, हम दोनों शाम के सात बजे तक घर आ जायेंगे। दिनेश के लिए भी खाना बना लेना और बाबा को बोल देना कि आज वह ख़ुद से भैंस दुह ले।

    सिर हिलाते हुई माँ ने हाँ में हाँ मिलाया। शंभू एक बाल्टी लेकर दिनेश की साइकिल पर पीछे बैठ गया और दिनेश दोबारा पटरी के किनारे-किनारे साइकिल भगाने लगा। आधे किलोमीटर आगे बढ़ने पर पटरी से कुछ दूर हटकर खेत में तार के आठ-नौ गगनचुंबी दरख़्ते दिखाई देने लगे। थोड़ा हटकर आम का एक घना बागान है। पास में एक घास-फूस की झोंपड़ी खड़ी है। झोंपड़ी में सुखन पासी की पत्नी तारी, मकई, चना और चूरे का भूँजा बेच रही है। पास में गाँव के तीन-चार लोग तारी पी रहे हैं।

    शंभू ने सुखन पासी की पत्नी से पूछा, सुखन कब तक आयेगा? उसने मेरे गाछ से तारी उतारी?

    महिला ने एक ग्राहक को चने का भुजा देती हुई जवाब दिया, सपहा गाँव गया है तारी उतारने के लिए। आपके तार से अभी तक तारी नहीं उतारी है। वापस आता ही होगा, अभी रास्ते में होगा। आप दोनों यहाँ बैठकर आराम कीजिये ।

    ये कहकर महिला ने उन दोनों की तरफ़ एक चटाई बढ़ा दी। वे दोनों बैठकर सुखन पासी की राह देखने लगे। दस मिनट बाद सुखन ने झोंपड़ी के पास दस्तक दी और साइकिल से एक ड्राम तारी निकालकर पत्नी के पास रख दी। उसके बाद शंभू और दिनेश की तरफ़ मुड़कर बोला, भैया, क्या आज भी तारी पीयेंगे? आपका मूड बना हुआ है। इस पर शंभू ने मुस्कुराकर हाँ में सर हिलाया । सुखन शंभू से एक सिगरेट माँगकर पीने लगा और दस मिनट आराम किया। फिर आलस्य के साथ जंभाई लेते हुए उठा और बोला, चलिए, शंभू बाबू मेरे साथ। आपको ताज़ी तारी उतारकर देता हूँ। फिर आराम करूँगा।

    दोनों बाल्टी लेकर सुखन पासी के पीछे-पीछे चलने लगे। पश्चिम से सूरज अपना विशाल आकार में तार के पेड़ पर रोशनी की बौछार कर रहा है और धूप हर पल बड़ी तेज़ी से कमज़ोर और धीमी होती जा रही है। सुखन पाँच मिनट के अंदर ही छलाँग लगाकर तार पर चढ़ चुका है और हर मटके से तारी निकालकर एक मटके में जमा कर रहा है। 10-15 मिनट के अंदर नीचे उतरा और शंभू की बाल्टी में ताज़ी तारी डाल दी। अब झोंपड़ी में वापस आकर दोबारा चटाई पर बैठ गये और सुखन से शीशे के दो गिलास और चने का भुजा लेकर तारी पीने लगे। आधे घंटा बाद दिनेश के ऊपर गर्म तारी अपना करिश्मा दिखाने लगी। वह अब नशा के हल्के सुरूर में है। सुबह की तारी तो दूध की तरह निर्मल और लाभदायक होती है, उसमें नशा तो बिलकुल नहीं होता है, लेकिन शाम की तारी पूरे दिन तेज़ धूप में तपती रहती है, उबलती रहती है और उसे पीते ही झट से नशा सर पर सवार होने लगता है। शाम की तारी सुनामी और चक्रवात की तरह पेट में चक्कर लगाने लगती है। नशे में मदहोश होकर दोनों दोस्त इधर-उधर की बात करने लगे ।

    एक गिलास तारी गटकते हुए शंभू बोला, दिनेश, तुम मेरे ससुराल मानसी चलो मेरे साथ। वहाँ तुझको जी भरकर बकरे और मुर्गे का माँस खिलाऊँगा । साथ में व्हिस्की की बोतल भी रहेगी। जमकर मेहमानी करेंगे। मेहमानों की तो मेरे ससुराल में जमकर ख़ातिरदारी होती है, ये तो तुम भी जानते हो। वे लोग मेहमान नाबाज़ी में हम लोगों से भी काफ़ी आगे हैं। असल गुआर (यादव) तो वही लोग हैं। हम लोग तो सिर्फ़ नाम के जादब हैं, लेकिन वे लोग काम के जादब हैं।

    ये सुनकर दिनेश की बाछें खिल उठीं। बकरे का गोश्त और व्हिस्की का नाम सुनते ही उसके मुँह से पानी और लार टपक पड़े। शंभू के बाद उसने भी गिलास में बची हुई तारी की आख़िरी बूँद झटके से पीकर ज़मीन पर गिलास रख दिया। आँखें तिरछी करते हुए बोला, पिछली बार जब मैं तुम्हारी बारात में गया था तो मज़ा आ गया था। एक-से-एक टंच माल तुम्हारे ससुराल में हैं। मैंने वहाँ कुरूप लड़कियों के साथ-साथ कई सुंदर लड़कियाँ भी देखीं। तुझे याद है, मानसी स्टेशन पर ट्रेन की बोगी से उतरते ही लड़की के घर तक जमकर हंगामा बड़पाया था। तुम घोड़े पर दूल्हा बनकर बैठा हुआ था और मैं नशे में मस्त होकर तुम्हारे आगे ढोल और नगाड़े की धुन पर नाच रहा था। फिर महफ़िल सजी और मैंने महफ़िल में बाराती पार्टी की तरफ़ से माइक उठाकर सबका अभिनंदन किया था। तूने मंडप में अपनी पत्नी के गले में माला डाली और उसने भी तेरे गले में माला डाली। तूने अपनी पत्नी के हाथ में हाथ डालकर मंडप के कई चक्कर लगाये और पूरी ज़िंदगी साथ-साथ, जीने-मरने के फेरे लिये। मैं देर रात तक दोस्तों के साथ नाचता रहा। तीन बजे रात को सिंदूरदान हुआ था। तुम कितनी सुँदर सालियों से घिरा हुआ था। वाकई मज़ा आ गया, शंभू यार। अगले रोज़ चार बकरे काटे गये थे और दोस्तों के साथ जमकर शराब पीयी थी और पेट भरकर बकरे का माँस खाया था।

    इस पर शंभू हँसते हुए बोला, तीन साल गुज़र गये। इस बार मेरे साथ चलोगे तो और ज़्यादा मज़ा आ जायेगा। जमकर रईसी करेंगे ससुराल में। जो लडकियाँ तीन साल पहले बच्ची थीं, वे अब जवान हो गयी हैं। ससुराल तो अय्याशी का अड्डा होता है। मेरे ससुराल का तो मज़ा ही कुछ और है। जी भरकर दौर-तारी पीयेंगे और माँस खायेंगे। बिंदास होकर गाँजा-भाँग और दारु-तारी का सेवन करेंगे। हम दोनों यार वहाँ हफ़्ते भर तक मेहमानी करेंगे। ससुराल से बड़ा स्वर्ग तो इस दुनिया में कहीं भी नहीं है। प्रभु राम को भी इसी मिथिला में ससुराल में अय्याशी करने सौभाग्य प्राप्त हुआ था। अभी मुझे देखो। मुझसे बड़ा भाग्यशाली इस दुनिया और कौन हो सकता है? इस मिथिला की पवित्र भूमि पर मेरा जन्म हुआ और और यहीं विवाह भी हुआ। इसके साथ यहीं ससुराल भी मिला। मिथिला के मेहमानी करने का मज़ा दुनिया में और कहीं नहीं मिल सकता है।

    इतना सुनते ही दिनेश गदगद हो गया और तारी के नशे में अलौकिक सुख की अनुभूति होने लगी। दिनेश और शंभू दोबारा गिलास में तारी भरकर तेज़ी से गटक गये। दिनेश गमछी से मुँह पोंछते हुए बोला, इस बार ज़रूर जाऊँगा तेरा ससुराल । लेकिन शंभू एक बात मुझे बता, मेरे यार। वह जो गोरी लड़की थी, जो तुम्हारी शादी में हमेशा मंडप में तुम्हारे पास खड़ी थी, हमेशा उसके चेहरे पर हलकी मुस्कान रेंगती रहती थी, वह बेहद ख़ूबसूरत लड़की है। उसकी नाक कितनी लंबी है। बड़ी-बड़ी काली आँखें हैं। उसका गाल कितना ज़्यादा मखमली और सपाट है। शक्लोसूरत काफ़ी अच्छी है। मुँह का कट कितना अच्छा है। अब तो वह पूरी तरह से जवान हो गयी होगी। उसकी शादी हो गयी क्या?

    शंभू ने जेब से एक सिगरेट निकालकर सुलगा लिया और एक कश लेते हुए बोला, तुम सरिता की बात कर रहे हो क्या? वह इंटर में अभी पढ़ रही है। उसकी शादी अभी तक नहीं हुई है।

    इसे सुनकर दिनेश के चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ने लगी। उम्मीद की निगाह से शंभू की तरफ़ देखने लगा। इस बार दिनेश कुछ सोचता हुआ गिलास में तारी उलेड़ने लगा। गाँव में घनघोर अँधेरा छा गया था। सहरसा से मधेपुरा की तरफ़ जाने वाली रेलगाड़ी की हॉर्न की आवाज़ नीरस अंदाज़ में दूर से सुनाई दे रही है। झोंपड़ी में लालटेन टिमटिमा रही है। झोपड़ी के दूसरे कोने में गाँव के तीन-चार नौजवान तारी के नशे में ज़ोर-ज़ोर से ठहाके मारते हुए बात कर रहे हैं और बीच-बीच में चिलम में गाँजा भरकर कश लगा रहे हैं। दिनेश तारी गटकते हुए बोला, यार, मैं आज तक सरिता की ख़ूबसूरत शक्ल को नहीं भूल पाया। दोबारा उसको देखने की चाहत हो रही है। अब तो वह और ज़्यादा निखरकर सुंदर हो गयी होगी और गुलाब की तरह खिल रही होगी। दिल तो करता है कि अभी तुम्हारे ससुराल जाकर उसके होंठ चूमने लगूं। उसे जी भरकर सहलाऊँ। जब मैं तुम्हारी बारात में गया था तो हर वक़्त मैं उससे ही बात करता रहता था। किसी-न-किसी बहाने से आँगन चला जाता था। शंभू, भगवान ने तुझे निहायत ही ख़ूबसूरत साली दी है। तुम बहुत ख़ुशनसीब हो।

    शंभू चिलम में गाँजा भरते हुए बोला, ऐसा लगता है कि तुम एक बार फिर सचमुच में सरिता पर फ़िदा हो गये हो। ऐसी बात है तो मैं सरिता से दोबारा मुलाक़ात करवा दूँगा । 25 जुलाई को मैं ससुराल जा रहा हूँ। चलोगे मेरे साथ।

    दिनेश ने साँस अंदर खींचते हुए गाँजा का लंबा कश लिया और शंभू की तरफ़ धीरे-धीरे धुआँ छोड़ते हुए बोला, इस बार तो ज़रूर जाऊँगा। धीमे स्वर में बोलो। उस कोने में वे तीनों गाँव के नारद मुनि बैठे हुए हैं। सुन लिया तो मेरे पिता जी को बतला देगा और मैं इस बार भी तेरा ससुराल नहीं जा पाऊँगा ।

    इस पर शंभू और दिनेश धीमे स्वर में बात करने लगे। रात के आठ बज गये हैं। जब तारी और गाँजा के नशे का सुहावना संगम होने लगा तो दोनों काफ़ी फ़िक्रमंद होने लगे। किसी महान विचारक की तरह दुनियादारी की बातें सोचने लगे। फ़िज़ा में सन्नाटा और ख़ामोशी पहले ही दस्तक दे चुकी है। इतना ज़्यादा अँधेरा है कि सामने की रेलवे पटरी बिलकुल दिखाई नहीं दे रही है। शबनम की कोमल बूँदें घास को भिंगाने लगी हैं। वे दोनों बाहर नम कोमल घास पर लड़खड़ाते हुए लेट गये और दोबारा गाँजा पीने लगे। बात करते-करते दोनों अब इस तरह से ख़ामोश हो गये, मानो नशे की आग़ोश में किसी तवील ख़यालात में गर्क़ हो गये हों । दिनेश की आत्मा नशे के ज़द में आकर शंभू के ससुराल के इर्द-गिर्द मंडराने लगी। सोचने लगा कि मेरी आँखों के सामने तीन साल के अंदर ही सभी सुँदर लड़कियों की शादी हो चुकी है और बच्चों को जन्म दे चुकी हैं।

    दूर से किसी की डाँटने की आवाज़ आयी, शंभू, साले, आज फिर से तू गाँजा पीने के लिए यहाँ आ गया। गाँजा से कब तुझे मुक्ति मिलेगी? बेटा, इतना बार समझाया कि गाँजा पीना छोड़ दो, लेकिन इस हरामी के भेजे में मेरी बात घुसती ही नहीं है। मेरे घर में यह नशेरी पैदा हुआ है। कुल-खानदान को कलंक का टीका लगा रहा है। साला, तारी पीने के बहाने यहाँ गाँजा पीने आ जाता है। मैंने मन में ठान लिया है कि तारी का गाछ कटवा दूँगा । न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी । गाँजा पीने का कोई-न-कोई बहाना ढूँढ़ ही लेता है। माँ ने कब का खाना बनाकर रख दिया है। खाना कब का ठंडा पड़ चुका है।

    हर बार शंभू के पिता जी तारी के इस लंबे पेड़ को कटवा देना चाहते हैं, किंतु जब उन्हें अपने दादा जी की याद आ जाती है तो वो अपने इरादे से पीछे हट जाते हैं। उन्हें तार के इस पेड़ से बेहद लगाव है, क्योंकि उनके दादा जी ने यह पेड़ रोपा था आज से लगभग सौ साल पहले। दादा जी कब का स्वर्ग सिधार गये और अपने पीछे हमेशा के लिए एक निशानी छोड़कर चले गये। इसी मोह की वजह से शंभू के पिता जी इस बूढ़े तार को काटने में सक्षम नहीं है।

    यह आवाज़ सुनकर दोनों झट से सतर्क हो गये। शंभू ने अंदर जेब में चिलम छुपा ली। अब तक उसके बाप नज़दीक आ गये हैं। शंभू भयभीत होकर बोला, बाबा जी, अंदर कोई गाँजा पी रहा है। गाँजा की बदबू यहाँ तक आ रही है। मैंने तो थोड़ी-सी तारी पी ली और दिनेश से इधर-उधर के गप्पें हाँकने लगा।

    सही में अंदर से गाँजा की ख़ुशबू आ रही है। इसे देखकर पिता जी ने विश्वास कर लिया। वे दोनों पिता जी के साथ घर की तरफ़ निकाल पड़े। घर पहुँचकर उन्होंने साथ में खाना खाया और दिनेश भी शंभू के मचान पर ही बात करते-करते सो गया।

    अभी मई का आख़िरी हफ़्ता चल रहा है। दिनेश बेसब्री से 25 जुलाई का इंतज़ार कर रहा है। उसके ज़ेहन में सरिता की सुंदर शक्ल चलचित्र की तरह चलती रहती है। वह दिन के उजाले में ही चलते-फिरते ख़्वाबों में सरिता की लंबी-लंबी काली घुंघराली ज़ुल्फ़, उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखों और उसके सफ़ेद रुख़सार को देखता रहता है। सरिता को एक बार चूमने की ख्वाहिश उसके दिल में अंगराई लेने लगती है। इन सब बातों को सोचकर उसकी बेताबी और ज़्यादा बढ़ने लगती है।

    2.

    देखते-देखते 25 जुलाई आ गया। दिनेश शंभू के साथ पटना जाने वाली लोकल ट्रेन में बैठ गया और दोनों मानसी स्टेशन पर उतर गये। शंभू का साला मानसी स्टेशन पर उन दोनों का इंतज़ार कर रहा था। वे दोनों उसकी मोटर साइकिल पर पीछे बैठकर मानसी से कुछ ही दूरी पर स्थित गाँव की तरफ़ निकल पड़े। अब वे दोनों ससुराल में हैं। वहाँ दिनेश की जमकर ख़ातिरदारी हुई। देशी मुर्गा का माँस तैयार किया गया और व्हिस्की ख़रीदकर लायी गयी। दिनेश ने शंभू के साथ व्हिस्की पियी और बड़े चाव से मुर्गा का टाँग भी चबाया। आस-पड़ोस की सभी नवयुवतियाँ, सभी सालियाँ दिनेश के इर्द-गिर्द मंडराने लगीं। कोई दिनेश के बाल खींच लेती है। कोई लड़की दिनेश के गाल पर हाथ रख देती है। कोई उसके कंधे को सहलाने लगती है, कोई उसकी गोद में बैठ जाती है, लेकिन इन लड़कियों में दिनेश की दिलचस्पी बिलकुल नहीं है। जब ये लड़कियाँ दिनेश से सटती हैं तो दिनेश को इससे चीढ़ होने लगती है। वह जिस लड़की का ख्वाब देखकर दोबारा यहाँ तक आया है, वह अभी तक कहीं दिखाई नहीं दी है। अब दोपहर हो चुकी है। पड़ोसी के दरवाज़े पर शादी का मंडप तैयार हो रहा है। शामियाना और तिरपाल बिछा दिये गये हैं। रात के लिए जेनरेटर भी दरवाज़े पर बैठा दिया गया है। पड़ोसी के आँगन में हलवाई मिठाई और पकवान तैयार कर रहे हैं। पूछने पर पता चला कि पड़ोसी की लड़की की शादी है। पड़ोसी दिनेश से आकर बोला कि अच्छा हुआ कि आप दोनों मेरी बहन की शादी के शुभ अवसर पर यहाँ आ गये। दिनेश भी ख़ुश हुआ कि उसके दोस्त के ससुराल के लोग उसका काफी आदर-सत्कार करते हैं।

    सूरज अब ढलने लगा है। एक घंटे पहले जो हल्की बूँदा - बूँदी शुरू हुई थी, कब का रूक चुकी थी। दोबारा

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