PRASANGVASH (प्रसंगवश)
()
About this ebook
'प्रसंगवश' प्रसंग
हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका 'सम्बोधन' निरंतर पचास वर्षों तक निकलने के पश्चात किन्हीं कारणों से एक वर्ष तक स्थगित रही. २०१८ में जब पुनः 'अभिनव सम्बोधन' नाम से प्रकाशित होना प्रारंभ हुई तब एक दिन भाई क़मर मेवाड़ी साहब का फोन आया कि मुझे उसके स्थायी स्तंभ 'प्रसंगवश' के लिए निरन्तर लिखना है। 'प्रसंगवश' पत्रिका का एक चर्चित स्तंभ रहा, जिससे स्वयं प्रकाश और सूरज पालीवाल जैसे साहित्यकार जुड़े रहे थे। क़मर भाई के बाद 'अभिनव सम्बोधन' के सहायक सम्पादक भाई माधव नागदा का फोन भी स्तंभ के लिए लिखने के लिए आया। दोनों मेरे परम आत्मीय हैं। उनके आदेश की अवहेलना का साहस मैं नहीं कर सकता था।
यह मेरे लिए एक सुखद संयोग भी था। स्तंभ के लिए मैंने साहित्यिक सरोकार से संबद्ध आलेख लिखे। लेकिन स्तंभ की अपनी सीमा थी, जिसके लिए एक निश्चित शब्द संख्या में ही आलेख लिखने होते थे। फिर भी मैंने सदैव अतिरिक्त छूट ली।
प्रायः साहित्य में कुछ न कुछ ऐसा घटित होता रहता है जो मुझ जैसे निरपेक्ष साहित्यकार को सदैव उद्वेलित करता है। इस स्तंभ के अंतर्गत लिखे गए कुछ आलेख उसीकी परिणिति थे। अचानक एक दिन बाबा नागार्जुन को लेकर कुचर्चा-चर्चा की बाढ़-सी आ गयी। उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए गए। मैं नागार्जुन को १९७८ से जानता था। यह एक संयोग था कि जिस सादतपुर (दिल्ली) में उन्होंने अपना घर बनवाया और रह रहे थे वहां जमीन का एक छोटा-सा टुकड़ा लेकर मैंने भी घर बनवाया। हालांकि रहने बहुत बाद में गया, लेकिन माह में एक-दो बार सादतपुर जाना होता और बाबा को लकुटिया लेकर वहां की गलियों में डोलते देखता था। कई बार उनके साथ बैठकर बहुत-सी बातें भी कीं। जिस समय को लेकर आरोप लगाया गया था उस समय बाबा की आयु तिरासी-चैरासी वर्ष के लगभग थी। डंडा थामकर चलने वाला शरीर से अशक्त एक बुजुर्ग क्या किसी सात वर्ष की लड़की का यौन-शोषण करने की क्षमता रखता है, यह बड़ा प्रश्न मेरे मन को मथता रहा। उसी प्रश्न को लेकर 'अभिनव सम्बोधन' में मैंने 'साजिशों के इस दौर में' आलेख लिखा था।
प्रायः हम साहित्य में 'मुख्य-धारा' की बात सुनते रहते हैं। यह अमुक मुख्य धारा का लेखक है, तमुक नहीं है। सदैव मेरे मन में प्रश्न उठता कि यह मुख्य धारा है क्या? अचानक मेरी दृष्टि एक पत्रिका के राजेन्द्र राव विशेषांक पर गयी जिसका
अध्याय - दो के अधिकांश आलेख समय≤ पर साहित्यिक दुश्चिन्ताओं में उत्प्रेरित होकर लिखे जाते रहे। इनमें से अधिकांश आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चित रहे। 'साहित्यिक दरबार' 'लहक' (सम्पादक-निर्भय देवयांश) में २०१९ में प्रकाशित होकर चर्चित रहा। कितने ही पाठकों के फोन आए थे। 'हिन्दी साहित्य का अराजकतावाद' पूर्णिया की पत्रिका 'कला' (सम्पा. स्व. कलाधर) में १९९७ में प्रकाशित हुआ था। यह आलेख इतना चर्चित हुआ कि अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों में इसकी गूंज रही थी। इस आलेख पर जुलाई, २०२० में मैंने पुनः कार्य किया और इसे अधुनातन बनाया। निश्चित ही यह एक विस्फोटक आलेख है। कुछ आलेख 'वातायन' में प्रकाशित होने के पश्चात देश-विदेश के पाठकों का ध्यान आकर्षित किया था।अध्याय-एक में मैंने उन साहित्यकारों की चर्चा की है जिन्होंने साहित्य की बहुत सेवा की लेकिन आज उन्हें लगभग भुला दिया गया है। अंत में क़मर मेवाड़ी और माधव नागदा के प्रति आभार व्यक्त न करना धृष्टता होगी जिन्होंने मेरे इस भूमिका प्रस्ताव को सहज भाव से स्वीकृति प्रदान की कि क्या मैं 'प्रसंगवश' स्तंभ को पुस्तक के शीर्षक के रूप में प्रयोग कर सकता हूं। नागदा जी ने बहुत ही उदार मन से कहा, 'प्रसंगवश' आपका स्तंभ था, इस पर आपका पूरा अधिकार है। मैं इंडिया नेटबुक्स के डॉ. संजीव कुमार का भी आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित करने में रुचि प्रदर्शित की। आशा है पाठक पुस्तक का खुले हृदय से स्वागत करेंगे।
धारूहेड़ा रूपसिंह चन्देल
Read more from India Netbooks Indianetbooks
Do Mahine Chaubis Din Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsAadam Grehan Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDishayein Gaa Uthi Hein Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsNandita Mohanty ki Shestra Kahaniya Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsTum Gulmohar Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMere He Shunya Mein Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKadhai Mein Jaane Ko Aatur Jalebiyan Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBehta Kala Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBoss Dance Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMustri Begum Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBathroom Mein Haathi Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to PRASANGVASH (प्रसंगवश)
Related ebooks
साहित्य के फलक पर दमकते सितारे Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsChalo Fir Kabhi Sahi (चलो फिर कभी सही) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमहान लेखक श्रंखला 4: सलमान रुशदी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKabir Chaura: Interesting parodies and lymerics Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSahitya Manishiyon ki Adbhut Dastanen (साहित्य मनीषियों की अद्भुत दास्तानें) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Urdu ki Kahaniyan : Uttar Pradesh (21 श्रेष्ठ उर्दू की कहानियां : उत्तर प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsTujhe Bhul Na Jaaun : Kahani Sangrah (तुझे भुल न जाऊँ : कहानी संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsHindi Ki 21 Sarvashreshtha Kahaniyan (हिन्दी की 21 सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKatha-Gorakhpur Khand-4 (कथा-गोरखपुर खंड-4) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSatrangi Dhage: Kuch Piroye Huye Kavya Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKatha-Gorakhpur Khand-1 (कथा-गोरखपुर खंड-1) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKatha-Gorakhpur Khand-2 (कथा-गोरखपुर खंड-2) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Naariman ki Kahaniyan : Chandigarh (21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां : चंडीगढ़) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKatha-Gorakhpur Khand-5 (कथा-गोरखपुर खंड-5) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMix Vegetable (मिक्स वेजिटेबल) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsHindi Ki 11 kaaljayi Kahaniyan (हिंदी की 11 कालज़यी कहानियां) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKatha-Gorakhpur Khand-6 (कथा-गोरखपुर खंड-6) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsChintan Ke Swar (चिंतन के स्वर) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPREMCHAND KI PRASIDH KAHANIYA (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5Singh Senapati (सिंह सेनापति) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshth Balman ki Kahaniyan : Odisha (21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां : उड़ीसा) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsShresth Sahityakaro Ki Prasiddh Kahaniya: Shortened versions of popular stories by leading authors, in Hindi Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJai Shankar Prasad Granthavali (Dusra Khand - Natak) - जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली (दूसरा खंड - नाटक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKatha-Gorakhpur Khand-3 (कथा-गोरखपुर खंड-3) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJaishankar Prasad Granthawali Ajatashatru (Dusra Khand Natak) - जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली अजातशत्रु (दूसरा खंड - नाटक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJaishankar Prasad Granthawali Karunalaya (Dusra Khand Natak) - जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली करुणालय (दूसरा खंड - नाटक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJaishankar Prasad Granthawali Dhruvswamini (Dusra Khand Natak) - जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली ध्रुवस्वामिनी (दूसरा खंड - नाटक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJaishankar Prasad Granthawali Vishakh (Dusra Khand Natak) - (जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली विशाख (दूसरा खंड - नाटक)) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJaishankar Prasad Granthawali Chandragupta (Dusra Khand Natak) - जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली चन्द्रगुप्त (दूसरा खंड - नाटक) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसर्वस्पर्शी प्रतिभावंत: संजय येरणे यांच्या समग्र साहित्यावरील आस्वादग्रंथ Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Reviews for PRASANGVASH (प्रसंगवश)
0 ratings0 reviews