Kya Aap Aamir Banana Chahate Hai (क्या आप अमीर बनना चाहते है)
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Kya Aap Aamir Banana Chahate Hai (क्या आप अमीर बनना चाहते है) - Tarun Engineer
कैसे छूना है सफलता के आसमान को?
दुनिया में हर व्यक्ति का विकास जीवन के छह क्षेत्रों में होता है। पहला स्वास्थ्य, दूसरा धन, तीसरा परिवार, चौथा समाज, पांचवां दिमाग और छठा आत्मा।
इस विकास का अंतर आप आज और बीते कल के स्तर के बीच तुलना करने पर जान सकते हैं?
क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य का स्तर आपको ऊर्जा देता है, धन का स्तर आपको सम्पन्न करता है, पारिवारिक खुशी का स्तर आपको जोश देता है, सामाजिक स्वीकृति का स्तर आपको बढ़ावा देता है, मानसिक विकास का स्तर आपको नयी सोच देता है और आत्मिक शुद्धता का स्तर आपको छल-फरेब से दूर रखता है।
इसलिए यदि आप इन सभी छह क्षेत्रों में विकास कर रहे हैं, तब समझिए की आप अमीर बनने की राह पर चल रहे हैं।
क्योंकि कुछ ऐसा ही हालिया रीलिज फ़िल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ में दिखाया गया है। इस फ़िल्म में एक गरीब लड़के के करोड़पति बनने की कहानी है तथा फ़िल्म को ‘गोल्डन ग्लोब ऑस्कर’ जैसे एवार्ड से नवाजा गया है।
लेकिन असली जिन्दगी में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो गरीब परिवार में पैदा होने के बाद भी अमीर बनें!
परन्तु इन सबकी सफलता के पीछे एक आइडिया था, जिसने उन्हें अमीर बनाया। शायद यही वजह है कि एक मोबाइल कम्पनी के विज्ञापन में बार-बार दोहराया जाता है:‒
‘एक आइडिया जो बदल दे आपकी दुनिया’
इस विज्ञापन में कहे गए शब्दों को आप झुठला नहीं सकते। क्योंकि आइडिये के बल बूते पर ही भारतीय उद्यमियों ने देश का कायाकल्प किया है।
इसलिए अब आई.आई.एम. जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से निकलकर नवयुवक सोशल नेटवर्किंग साइट खोल रहे हैं और उसके लिए उन्हें वेंचर कैपिटल से पैसा भी मिल रहा है।
कोई केले के चिप्स बनाने का धंधा खोल रहा है, कोई अगरबत्ती तथा अन्य पूजा की सामग्री की मार्केटिंग का बीड़ा उठा रहा है, कोई आधुनिक ढंग से सब्जियां बेच रहा है। कोई भौतिक विज्ञान में पी.एच.डी. करने के बाद इंटरनेशनल प्रॉपर्टी राइट्स के क्षेत्र में हाथ आजमा रहा है, कोई इन्जीनियरिंग की पढ़ाई के बाद रोबोटिक कम्पनी खोल रहा है, तो कोई कचरा प्रबंधन या अस्पतालों से निकले कचरे की निकासी में उद्यम लगा रहा है।
लेकिन इन क्षेत्रों में इतनी संभावनाएं तभी पैदा हुई हैं, जब नए विचारों का विस्फोट हुआ।
एक पुरानी कहानी है, एक लकड़हारा था। वह रोज़ जंगल से लकड़ी काटकर बेचता था। वर्षों से वह यह काम करता आ रहा था।
एक दिन जंगल में एक साधू ने उससे कहा, तुम इतने दिनों से लकड़ी काट रहे हो, इससे तुम्हारा काम नहीं चलता होगा। यदि तुम थोड़ा और आगे बढ़ जाओगे, तब घने जंगल में तुम्हें लकड़ी के अलावा और भी बहुत कुछ मिलेगा।
लकड़हारा आगे गया, उसने देखा कि जंगल में बहुत से तांबे के टुकड़े पड़े हुए हैं। उसकी आंखें चौंधिया गयीं, उसने उन्हें बटोरा और बाजार ले गया फिर उसे काफी आमदनी हुई।
दूसरे दिन वह साधू के पास गया और बोला, बाबा! मुझे बहुत कुछ मिल गया है। अब मेरे पास पेट भरने के लिए काफी रुपए हैं।
बाबा ने कहा, ठीक है, तुम थोड़ा और भीतर जाओ।
वह और भीतर घने जंगल में गया, वहां उसने देखा कि चारों तरफ चांदी के टुकड़े पड़े हुए हैं। वह देखकर दंग रह गया। फिर उसने उन्हें बटोरा और शहर में बेच आया, जिससे उसे और अधिक रुपए मिल गए।
तीसरे दिन जब वह जंगल गया, तब बाबा ने फिर कहा, तुम और घने जंगल में जाओ।
वह बढ़ता गया। फिर उसे सोने और हीरे के टुकड़े मिले। उसने उन्हें बटोरा और शहर जाकर बेच आया। फिर वह अमीर हो गया। कुछ दिनों बाद वह जंगल गया, तब साधू लकड़हारे को कार से उतरते देखकर बोला, तुम वर्षों तक जंगल के किनारे लकड़ी बटोरते रहे, लेकिन तुम्हें धन नहीं मिला। परन्तु जब तुम घने जंगल में बढ़ने लगे, तब तुम्हें हीरे, जवाहरात प्राप्त हुए।
ठीक यही बात आपके जीवन पर भी लागू होती है। जो लोग जीवन के आस-पास घूमते रहते हैं, वे जीवन भर लकड़ियां बटोरते रह जाते हैं और जो लोग जीवन में प्रवेश करना जान लेते हैं, उन्हें हीरे, जवाहरात, रत्न मिलने शुरू हो जाते हैं। इसलिए महत्त्वपूर्ण यह नहीं कि अब तक आपने कितनी लकड़ियां बटोरी हैं? या कितने हीरे, जवाहरात बटोरे हैं? बल्कि महत्व इस बात का है कि अब तक आपने इन सब चीजों को बटोरने की कला सीखी है या नहीं? इस बात को ध्यान में रखते हुए किसी शायर ने कहा है:‒
कोई भी आइडिया तभी कामयाब होता है।
जब इन्सान के अन्दर जुनून भरा होता है।।
इसलिए आप अपने दिमाग को खुला रखिए, क्योंकि अब आपको यह पुस्तक अमीर बनने का विज्ञान बताने जा रही है, परन्तु इस विज्ञान को समझने के लिए आपको पुस्तक ध्यान से पढ़नी होगी।
■
"सौ साल तक गरीबी का जीवन जीने से अच्छा है कि आप इस किताब को
पढ़कर सिर्फ पचास साल का अमीरी का जीवन जीएं, ताकि मरते
समय आप कह सकें कि मैंने छोटी सी जिन्दगी में सारे सुख भोगे हैं,
अब मेरी कोई अन्तिम इच्छा नहीं है-?"
अमीर बनने की शुरुआत हमेशा
एक सपने से होती है।
अब तक जो तुमने सोचा है, वह सब जाना-पहचाना था।
किसी नए आइडिये से, उस काम को आगे बढ़ाना था।।
इसलिए कुछ नया करो, जीवन में थोड़ा आगे बढ़ो।
पुरानी यादें ताजा करो, ध्यान से पुस्तक को पढ़ो।।
क्योंकि यह पुस्तक आपके अमीर बनने का माध्यम बन सकती है। ठीक वैसे ही जैसे जल की एक बूंद आगे चलकर सागर का रूप धारण कर लेती है।
परन्तु इसके लिए आपको अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाना होगा। और यह तय करना होगा कि आपको कितना अमीर बनना है।
फिर इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप अपने आपको उतना ही अमीर समझने लगेंगे, जितना कि आपने सोचा था।
विश्व के तमाम वैज्ञानिकों का भी यही मानना है कि, ‘जैसा मनुष्य सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।’ इसलिए आपको सबसे पहले अपनी सोच को विकसित करना है।
क्योंकि आपके सोचने का तरीका, आपकी भावनाओं को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। फिर सोच स्मृति का सृजन करती है और स्मृति मनोवृत्ति का निर्माण करती है, जो अन्त में सफलता की ऊंचाई को निर्धारित करती है। क्योंकि सोच मानव स्मृति के सृजन की जननी है।
आप जो कुछ भी हैं, वह अब तक की आपकी सोच का परिणाम है। फिर जिन शब्दों को आप सोचते हैं, वे आपके जीवन का निर्माण करते हैं।
लेकिन आपके चलने, बोलने, पहनने और खुद को पेश करने का तरीका आपकी सोच को दर्शाता है। इसलिए आप जैसे अंदर हैं, वैसे ही बाहर दिखाई देते हैं। क्योंकि आप अपने विचारों के निर्माता हैं, आप जैसा बनने की सोचते हैं आप वैसे ही बन जाते हैं।
यानी जैसी आपकी सोच होगी, आप वैसे ही कार्य करेंगे और जैसे आपके कार्य होंगे वैसी ही सफलता आपको मिलेगी।
बाइबिल भी यही बात कहती है, ‘मनुष्य जैसा बीज बोता है, वैसी ही फसल काटता है।’ आपकी सकारात्मक सोच आपको सफलता की ओर ले जाती है। नकारात्मक सोच आपको असफलता की ओर ले जाती है। इसलिए आपको अपनी सोच को सकारात्मक रखना है और विचारों को शुद्ध रखना है।
क्योंकि सोच पहले बनती है, वाणी बाद में निकलती है। फिर जो सोच में होगा, वही वाणी से निकलेगा और जो वाणी में होगा, वही व्यवहार बन जाएगा। परन्तु जो व्यवहार में होगा, वह आपकी आदत में शामिल हो जाएगा। इससे पता चलता है कि आपकी आदतें ही आपके चरित्र का निर्माण करती हैं।
अगर आप अमीर बनना चाहते हैं, तब आप सबसे पहले अपने अन्दर यह विचार पैदा कीजिए कि मुझे अमीर बनना है।
क्योंकि जब तक आप यह नहीं सोचेंगे, तब तक आप अन्दर से अमीर नहीं बन पाएंगे। परन्तु यह सब होगा आपके द्वारा लिए गए संकल्प से।
इसलिए आप आज ही अमीर बनने का संकल्प लीजिए और अपने दिमाग को नकारात्मक विचारों से मुक्त कीजिए, फिर अपने सामने गांधीजी के तीन बंदरों के साथ चौथा बंदर और रखिए, जो अपनी ऊंगली आपकी तरफ करके प्रेरणा दे कि नकारात्मक मत सोचो। फिर आपके मस्तिष्क से नकारात्मक विचार पूरी तरह से हट जाएंगे, तब आप अमीर बनने की दौड़ में शामिल हो जाओगे।
क्योंकि आज पूरा विश्व अमीर बनने की दौड़ में शामिल हो चुका है। अब आपकी बारी है। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो अमीर बनना चाहते हैं और जो अमीर बनना चाहते हैं, वह धीरुभाई अम्बानी की तरह बन जाते हैं।
एक पुरानी कहानी है, किसी पहलवान के घर में चोर घुस गया। घर में जब खट-पट हुई तब पहलवान की नींद टूट गई। उसने उठकर देखा कि घर में चोर है, तो उसने चोर को ललकारा। चोर जान बचाकर भागने लगा।
पहलवान ने चोर का पीछा किया। कुछ दूर दौड़ने के बाद पहलवान को लगा कि चोर दौड़ में उसे चुनौती दे रहा है। तब पहलवान ने पूरी ताकत से दौड़ लगाई और चोर से आगे निकल गया।
चोर पीछे रह गया फिर चोर ने राहत की सांस ली। क्योंकि वह अपने उद्देश्य में सफल हो गया था।
इसलिए दौड़ आपके लिए अनिवार्य है। परन्तु आपको पहलवान की तरह नहीं दौड़ना है, क्योंकि बिना लक्ष्य के दौड़ना हानिकारक है।
ओशो भी यही कहते हैं, जीवन प्रतिपल चुनौती है। जो उसे स्वीकार नहीं करता, वह जीते जी मर जाता है। जिस क्षण व्यक्ति जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना बंद कर देता है, वह उसी क्षण मर जाता है।
यही जीवन का सच है, इसलिए चुनौती को सकारात्मक रूप में स्वीकार करना होगा। फिर आप भीड़ का हिस्सा नहीं होंगे, बल्कि भीड़ आपके पीछे होगी।
क्योंकि बिना उद्देश्य के दौड़ने वाले हकीकत में अनिश्चितता की स्थिति में होते हैं। अर्जुन भी कुछ ऐसी ही नकारात्मक मानसिकता से ग्रस्त था, तभी तो भगवान कृष्ण ने कहा था:-
उद्धारेद्आत्मानाऽऽत्मनंनात्मानम्अवसादयेत्।
आत्मैवह्यात्मनोबन्धुर्आत्मैवरिपुर्आत्मनः।।
इसका अर्थ है कि मनुष्य को अपना उद्धार स्वयं करना है, परन्तु स्वयं को गिराना नहीं है। क्योंकि आप स्वयं ही अपने मित्र हैं और स्वयं ही अपने शत्रु हैं, लेकिन आपके लिए दोनों रास्ते खुले हैं, मित्रता के भी और शत्रुता के भी।
परन्तु बहुत कम लोग आपके मित्र होंगे, क्योंकि अधिकतर लोग नकारात्मक भाव में जीते हैं। इसलिए बाहरी सभी आकर्षणों का त्याग करो और अंतर्मुखी बनो। फिर अपने दिल में झांको और खुद अपना आत्मविश्लेषण करो।
क्योंकि आपके अन्दर क्षमताओं का भण्डार है। आप उन्हें विकसित करो और उनके अनुसार लक्ष्य का निर्धारण करो।
भीड़ के साथ क्यों दौड़ते हो? अपनी क्षमताओं के आधार पर अपने लिए रास्ता बनाओ। तब आपकी सारी ऊर्जा कर्म में परिवर्तित हो जाएगी और लक्ष्य तक पहुँचना आसान हो जाएगा। फिर प्रतिस्पर्धा आपके अन्दर आत्मविश्वास का संचार करना शुरू कर देगी।
ठीक वैसे ही जैसे कि लुई ब्रेल के अन्दर हुई थी। लुई बचपन में एक दुर्घटना में अपनी आंखें गंवा बैठे थे। गांव के पादरी लुई के पिता के मित्र थे। उन्होंने धैर्य नहीं खोया और खुद ही धीरे-धीरे स्पर्श के माध्यम से लुई ब्रेल को वस्तुओं तथा ध्वनियों के माध्यम से प्राणियों की आवाजों के अंतर को पहचानना सिखाया।
लुई जब कुछ बड़े हुए तो उन्हें पेरिस में ‘होए’ के विद्यालय में दाखिल करा दिया गया। उस समय दृष्टिहीनों के लिए सिर्फ वही एक स्कूल था। होए के विद्यालय में छात्रों को अक्षरों की सामान्य आकृतियां किसी मोटे कागज पर उभार कर उन्हें उंगली के स्पर्श से पहचानना सिखाया जाता था।
लेकिन यह विधि सिर्फ सीखने के लिए थी, क्योंकि दृष्टिहीनों के लिए शिक्षा का आधार तब रटना था।
लुई जब कुछ बड़े हुए तो उसी स्कूल में उन्हें टीचर की नौकरी मिल गई, तब उनका मासिक वेतन मात्र 3 फ्रैंक था। इस वेतन से वे टीचर होकर भी छात्रों से अच्छी स्थिति में नहीं थे।
परन्तु उन्हें दृष्टिहीनों के लिए होए की विधि उपयोगी नहीं लगी। फिर उनके मन में एक नई लिपि के आविष्कार का सपना पैदा हो गया।
संयोग से उन्हीं दिनों उनके स्कूल में अंधेरे में लिखने की विधि का प्रदर्शन हुआ। इस विधि के निर्माता चार्ल्स बारबियर थे, जिन्होंने इस विधि का विकास उन सैनिकों के लिए किया था, जो अंधेरी रात में भी संदेश छूकर पढ़ सकें।
उस लेक्चर को सुनते ही लुई के सामने सम्पूर्ण लिपि के निर्माण का मार्ग खुल गया। लुई ने ‘होए’ तथा ‘बारबियर’ की विधियों के सैद्धांतिक अंतर को समझा, फिर वह अपने स्कूल के हॉस्टल में रात में मोटे कागज पर बिन्दुओं से अक्षर बनाते और दिन में अपने मित्रों से उनकी पहचान करवाते।
इस विधि से लुई ने बहुत जल्दी फ्रांसीसी भाषा की वर्णमाला, विराम चिह्न तथा गणित की व्यवस्था को पढ़ने-लिखने वाली लिपि विकसित कर ली।
उन्होंने संगीत की स्वर लिपियों पर भी वर्षों तक योजनाबद्ध ढंग से कार्य किया। इस तरह उन्होंने अपना काम सन् 1825 तक पूरा कर लिया था, फिर ब्रेल लिपि की उनकी पहली पुस्तक ‘वर्णमाला एवं विराम चिह्न’ के विस्तृत विवरण के साथ सन् 1829 में प्रकाशित हो गई।
कौन जानता था कि कभी लुई ब्रेल जैसा सामान्य और दृष्टिहीन व्यक्ति इतिहास पुरुष होगा।
इसलिए श्रीमद्भागवत गीता में लिखा है, कर्म करो, फल की इच्छा मत करो।
क्योंकि जब आप कर्म करेंगे, तो फल आपको अवश्य मिलेगा।
जैसे कि शेक्सपियर को मिला था। क्योंकि शेक्सपियर जब बहुत छोटे थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। फिर कम उम्र में शेक्सपियर के कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी। तब शेक्सपीयर यह सोचकर उदास हो जाते थे कि घर का खर्च कैसे चलेगा?
जब कुछ समझ में नहीं आता था तो वह पढ़ने बैठ जाते थे, लेकिन एक दिन बाइबिल पढ़ते समय उनकी निगाह एक पंक्ति पर पड़ी, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। जो दायित्व मिले, उसे पूरी निडर और ईमानदारी से करो। सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी। क्योंकि कठिन परिश्रम ही सफलता का द्वार है।
इस वाक्य से उन्हें काफी शक्ति मिली और फिर उन्होंने भागदौड़ करके एक नाटक कम्पनी में घोड़ों की देखभाल का काम संभाल लिया। परन्तु काम के साथ-साथ शेक्सपियर समय मिलने पर पुस्तकें भी पढ़ते रहते थे।
एक दिन एक नाटक कम्पनी के मालिक ने जब शेक्सपियर को पुस्तक पढ़ते हुए देखा, तब वह समझ गया कि शेक्सपियर की पढ़ने में बहुत रुचि है।
शेक्सपियर की नाटक देखने में भी बहुत रुचि थी। फिर नाटक कम्पनी के मालिक ने शेक्सपियर को नाटकों की पांडुलिपियों के अंशों को साफ-साफ लिखने का काम सौंप दिया। धीरे-धीरे नाटकों के अंशों को लिखते-लिखते शेक्सपियर ने भी नाटक लिखने का प्रयास शुरू कर दिया।
एक दिन शेक्सपियर ने अपनी डायरी नाटक कम्पनी के मालिक को दिखाई, तब उन्होंने शेक्सपियर की पीठ थपथपाते हुए कहा, तुम बहुत अच्छा लिखते हो, इस नाटक को पूरा करो। यदि यह अच्छा होगा, तो हमारी नाटक कम्पनी इसे मंच पर प्रस्तुत करेगी।
शेक्सपियर का लिखा वह नाटक ‘लव्स लेबर्स लास्ट’ दर्शकों द्वारा इतना अधिक पसंद किया गया कि उनके लेखन की चारों तरफ प्रशंसा होने लगी। इसके बाद शेक्सपियर कठिन परिश्रम और अपनी प्रतिभा के बल पर अंग्रेज़ी के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में गिने जाने लगे। फिर उनके परिश्रम और लगन ने उन्हें वह सब दिला दिया, जिसकी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की थी।
इसलिए आपको अपने लक्ष्य को पहचानना है, क्योंकि बाइबिल कहती है, खुद से मार्ग पूछो और लक्ष्य की ओर बढ़ चलो।
गीता में भी यही लिखा है, सभी लोगों का कर्म और लक्ष्य निर्धारित है, लेकिन उसकी प्राप्ति का आपको निरंतर प्रयास करते रहना होगा।
परन्तु लक्ष्य ऐसा हो, जो ईश्वर को पसंद हो, फिर उस कार्य को करने से व्यक्ति को सफलता मिलती है। क्योंकि अर्थवेद में लिखा है, आप परमात्मा की आज्ञा के अनुकूल कर्म करें, प्रतिकूल नहीं और सभी प्रकार से सामर्थ्यवान बनें, जिससे आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकें।
इन सब बातों से पता चलता है कि ईश्वर उन्हीं लोगों की सहायता करता है, जो अपने अनुकूल अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं। शायद इसीलिए आध्यात्मिक कवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी चर्चित पुस्तक गीतांजलि
के पहले गीत में लिखा है:-
तोमारि इच्छा करो हे पूर्ण।
आमार जीबन माझे।।
यानी मेरे जीवन के द्वारा तुम अपनी इच्छा की पूर्ति करो। परन्तु बाइबिल कहती है, एक श्रेष्ठ व्यक्ति के चरण ईश्वर द्वारा निर्धारित मार्ग पर ही चलते हैं।
शायद इसीलिए कुछ विचारकों ने वर्तमान के क्षण को महत्त्वपूर्ण माना है। क्योंकि भूतकाल भूत बन जाता है और भविष्य का कोई ठिकाना नहीं होता। फिर जो करना है इसी क्षण करना है।
कल पर छोड़कर अपने काम, समय को न बर्बाद करो।
कल के काम आज करो, फिर दुनिया पर राज करो ।।
कहने का अर्थ है कि आपको तुरन्त अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है, क्योंकि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
इतिहास साक्षी है, जिन्होंने ईश्वर का साथ लिया, वह अपने लक्ष्य में हमेशा सफल हुआ है। बाबर जब राणा सांगा से युद्ध में बार-बार पराजित हो रहा था, तब उसने खुदा से विनती की, मुझे इस युद्ध में विजय दिलाओ, फिर मैं पूरी तरह से धार्मिक और सदाचारी बन जाऊंगा।
फिर सफल होने के बाद उसने सोने-चांदी से बने शराब के सारे प्याले तोड़ दिए थे। कुछ ऐसा ही बाबर ने पहले भी किया था, जब उसका पुत्र हुमायूं मृत्यु शय्या पर लेटा था, तब उसने शय्या की परिक्रमा करके खुदा से प्रार्थना की थी कि पुत्र के बदले मेरे प्राण ले लो। फिर ऐसा ही हुआ। बाबर बीमार हो गया और उसकी मृत्यु हो गयी, परन्तु हुमायूं जीवित रहा।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडिसन बिजली के बल्ब के निर्माण में हजारों बार असफल हुए, तब दूसरे वैज्ञानिक उनकी कोशिशों पर उनकी खिल्ली उड़ाते थे, परन्तु एडिसन ने अपना प्रयोग जारी रखा और अन्त में उन्हें सफलता मिली। आज पूरा विश्व उनके अविष्कार से जगमगा रहा है। इसलिए आप हिम्मत मत हारिए।
अपने लक्ष्य पर ध्यान दीजिए। क्योंकि यह पुस्तक आपको ‘अमीर बनने का विज्ञान’ सिखाने जा रही है, जिसके द्वारा दुनिया के करोड़ों लोग अमीर बन चुके हैं, अब आपकी बारी है। लेकिन इस विज्ञान को समझने के लिए आपको अपने दिमाग के सारे दरवाजे खुले रखने हैं ताकि आप हवा के उन झोंकों का अहसास कर सकें, जो आपको अमीरी के आसमान में ले जाने के लिए बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं...!!!
आपका अपना
‒तरुण इन्जीनियर
301, थर्ड फ्लोर, राजकमल सदन,
कम्यूनिटी सेन्टर, प्रीत विहार,
नई दिल्ली-110092 (इण्डिया)
e-mail: tarunengineer2003@yahoo.com
सारी दुनिया आज
पैसे के पीछे भाग रही है।
क्योंकि जब से पैसे का आविष्कार हुआ है
तब से मनुष्य का महत्व और बढ़ गया है।
इसलिए पैसा अब
ईमानदारी से बड़ा हो गया है!
वफादारी से बड़ा हो गया है!
योग्यता से बड़ा हो गया है!
देश भक्ति से बड़ा हो गया है!
इंसान से बड़ा हो गया है!
समाज से बड़ा हो गया है!
परन्तु यह
आप पर निर्भर करता है
कि आप किस उद्देश्य के लिए
पैसा कमाना चाहते हैं?
लेकिन यह सच है कि अमीर
बनने के लिए पैसे की जरूरत होती है-!
क्या आपके अन्दर अमीर बनने के गुण हैं?
इस अनोखी पुस्तक को पढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि आपके अन्दर अमीर बनने के गुण हैं या नहीं?
क्योंकि यह पुस्तक सिर्फ उन लोगों के लिए लिखी गयी है, जिनके अन्दर अमीर बनने के गुण तो हैं, परन्तु उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
इसलिए आप सबसे पहले अपने आपको परखें और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर के सामने (✔) सही का निशान लगाएं, फिर आप खुद ही जान जाएंगे कि आप अमीर बन सकते हैं या नहीं?
1. क्या आप इन तीनों वस्तुओं को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं?
ज्ञान, गुण और लक्ष्य।
हां □
2. क्या आप इन तीन शत्रुओं से सदा दूर रहते हैं?
कृतघ्नता, क्रूरता और अहंकार।
हां □
3. क्या आप इन तीन बातों पर हमेशा ध्यान देते हैं?
मितव्यता, परिश्रम और तत्परता।
हां □
4. क्या आप सदा इन बातों का अनुकरण करते हैं?
बुद्धिमान, गुणवान और ज्ञानवान।
हां □
5. क्या आप इन तीन चीजों का खुल कर प्रयोग करते हैं?
उचित प्रशंसा, यथा योग्य दान और दुःखी को सांत्वना।
हां □
6. क्या आप इन तीन आचरणों को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करते हैं?
विनम्रता, साहस और प्रेम।
हां □
7. क्या आप इन तीन बातों को दिल की बजाए दिमाग से काबू करते हैं?
व्यवहार, स्वभाव और क्रोध।
हां □
8. क्या आप इन तीन चीजों को छोड़ने से पहले खूब विचार करते हैं?
तीर कमान से, शब्द जुबान से और अवसर हाथ से।
हां □
9. क्या आप इन तीन चीजों को भरपूर जीते हैं?
जवानी, जीवन और मस्तिष्क शक्ति।
हां □
10. क्या आप इन चीजों से हमेशा बचते हैं?
शत्रु, कर्ज और बीमारी।
हां □
11. क्या आप इन तीन बातों से हमेशा बचते हैं?
जर, जोरू और जमीन।
हां □
12. क्या आप इन तीन चीजों को जीवन में सदा याद रखते हैं?
सच्चाई, कर्त्तव्य और मृत्यु।
हां □
13. क्या आप इन तीन बातों से बचते हैं?
बदचलनी, क्रोध और लालच।
हां □
14. क्या आप इन तीन बातों को अपने जीवन में बढ़ाते हैं?
विद्या, चरित्र और योग्यता।
हां □
15. क्या आप इन तीन लोगों का सहारा लेना पसंद करते हैं?
मित्र, भाई और स्त्री।
हां □
16. क्या आप इन तीन चीजों की कद्र करते हैं?
माता-पिता, जीवन और यौवन।
हां □
17. क्या आप इन तीन बातों पर अपना मन लगाते हैं?
ईश्वर, मेहनत और सेवा।
हां □
18. क्या आप इन तीन बातों को कभी भूलते हैं?
फर्ज, कर्ज और मर्ज।
हां □
19. क्या आप इन तीन लोगों पर दया करते हैं?
बालक, भूखे और पागल।
हां □
अब आप अपना परिणाम जान लीजिए:‒
यदि आपके 10 से कम जवाब ‘हाँ’ में हैं, तो इसका मतलब है कि आप हमेशा नकारात्मक तरीके से सोचते हैं और हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए आपको अमीर बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी तथा पुस्तक को ध्यान से पढ़ना होगा।
यदि आपके 15 से कम जवाब ‘हाँ’ में हैं, तब आपकी सोच-विचार करने की स्थिति मीडियम है यानी आप न तो बहुत अधिक नकारात्मक सोचते हैं और न ही बहुत अधिक सकारात्मक, तथा आप अपने विचारों को परिस्थिति और माहौल को देखकर बदलने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन आपकी जिन्दगी में कोई विशेष तेजी, उल्लास या उत्तेजना नहीं है, और आप अपनी क्षमता को पहचान नहीं पाते।
इसलिए आपको भी पुस्तक को बहुत ध्यान से पढ़ना होगा, तभी आप अपने अन्दर अमीर बनने का जज़्बा पैदा कर पाएंगे।
यदि आपके 15 से अधिक जवाब ‘हाँ’ में हैं, तो आपके सोचने का तरीका बहुत ज्यादा सकारात्मक है और आप पुस्तक को पढ़ने के बाद ही अमीर बनने का विज्ञान समझ सकते हैं तथा बहुत कम समय में अमीर बन सकते हैं।
क्योंकि यह सोच को परखने का वैज्ञानिक तरीका है, जिसके माध्यम से आप अपने आपको स्वयं परख सकते हैं और उसी के आधार पर इस पुस्तक से लाभ उठा सकते हैं। परन्तु पुस्तक का अगला अध्याय पढ़ने से पहले इस कहानी को ध्यान से पढ़ें।
विचारों से धन
कमाया जा सकता है
लेकिन धन से विचार
नहीं खरीदे जा सकते।
क्योंकि विचार
समुद्र की लहरों की
तरह होते हैं
जो सिर्फ चट्टानों
से टकराते हैं!
एक राजा था, वह घूमने के लिए अकेला जंगल की तरफ निकल गया। परन्तु कुछ किलोमीटर चलने के बाद वह रास्ता भटक गया। क्योंकि चारों तरफ दूर-दूर तक घने जंगल थे और कोई राहगीर भी आता-जाता दिखाई नहीं दे रहा था।
कुछ देर में घबराहट और भूख-प्यास ने उसे घेर लिया । वह कुछ दूर चलकर एक झोपड़ी के पास पहुँचा, तो झोपड़ी में रहने वाले आदिवासी ने राजा को प्यार से खाना खिलाया।
राजा खाना खाकर खुश हो गया फिर आदिवासी से बोला, मैं इस राज्य का राजा हूँ, तुम्हारी सज्जनता और सेवा से प्रभावित होकर अपने राज्य का चंदन बाग तुम्हें उपहार में देता हूँ, तुम उसमें लगे पेड़ों को बेचकर खूब धन कमा सकते हो। अब तुम मेरे साथ राजमहल चलो, मेरा मंत्री तुम्हें चन्दन का बाग सौंप देगा।
आदिवासी राजा के साथ चल पड़ा, राजमहल पहुंचते ही राजा के मंत्री ने आदिवासी को चन्दन का बाग सौंप दिया। बाग में पहुँचते ही आदिवासी खुश हो गया। लेकिन चन्दन का क्या महत्व है और उससे किस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है, इस बात का उसे पता नहीं था।
इसीलिए वह चन्दन के पेड़ों को काटकर उसका कोयला बनाने लगा। फिर जब बैलगाड़ी में भरने लायक हो जाता, तब उसे पास के शहर में बेच आता था।
इस तरह से उसका गुज़ारा आराम से हो जाता था। कुछ ही दिनों में बाग के सारे पेड़ खत्म होने लगे। लेकिन जब आखिरी पेड़ बचा, तब बारिश शुरू हो गयी। जिसकी वजह से उसे पेड़ को जलाकर वह कोयला नहीं बना सका।
तब उसने सोचा, क्यों नहीं लकड़ी को काटकर बेचा जाए। इतना सोचते ही उसने पेड़ की एक डाल काटी और उसके टुकड़े करके गट्ठर बनाए, फिर बारिश में ही उसे बेचने के लिए शहर की ओर चल पड़ा।
जब शहर पहुँचा, तो चन्दन की खुशबू से लोग पास आने लगे और कोयले से भी अधिक पैसों में उन लकड़ियों को खरीदने लगे।
फिर एक सेठ आया और चन्दन की एक लकड़ी को सूँघते हुए बोला, जानते हो ये चन्दन की लकड़ी है, जो बहुत मूल्यवान होती है। यदि तुम्हारे पास ऐसी और लकड़ियाँ हों, तब मैं उन्हें मुँह माँगे दामों में खरीद सकता हूँ। फिर तुम मुझसे भी अधिक अमीर बन जाओगे!
सेठ की बात सुनकर आदिवासी चौंक गया और अपनी नासमझी पर आंसू बहाने लगा। सेठ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, तुम रो क्यों रहे हो?
आदिवासी अपने आंसू पोंछते हुए बोला, मैं नहीं जानता था कि ये चन्दन है, इसलिए मैंने सारे पेड़ों का कोयला बनाकर बेच दिया, अब मेरे पास सिर्फ एक पेड़ बचा है। उसी पेड़ की एक डाल काटकर मैं शहर में लकड़ी बेचने आया था।
सेठ ने उसे समझाते हुए कहा, पछताने से कुछ नहीं होगा। यह सारी दुनिया तुम्हारी ही तरह नासमझ है। तुम्हारे पास अब भी एक पेड़ बचा है, यदि तुम उसका मूल्य समझलोगे, तब भी तुम अमीर बन सकते हो।
इस कहानी से आपको प्रेरणा लेनी है और अमीर बनने के लिए नीचे लिखे सिद्धांतों का पालन करना है:-
जिस व्यापार को आपने चुना है उसका गहराई से अध्ययन करें!
प्रोडक्ट के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें।
प्रोडक्ट को महँगा बेचने के उपाए सोचें।
प्रोडक्ट को ब्रांड बना कर बेचें।
प्रोडक्ट को सही व्यक्ति तक पहुंचाने की कोशिश करें।
यदि आप ऐसा करते हैं, तब आप आदिवासी की तरह आँसू नहीं बहाएंगे। क्योंकि सफलता के शिखर पर पहुँचना आपका लक्ष्य है ताकि आप अमीर बन सकें। इस पुस्तक के आपके हाथ में आने से आपके अमीर बनने की संभावना और अधिक बढ़ गयी है। इसलिए पुस्तक का पेज पलटिए और प्रवेश कीजिए अमीर बनने के विज्ञान में, जिसे अमल में लाने के बाद आप अवश्य अमीर बन जाएंगे।
यह हमारा दावा नहीं, विश्वास है। अगर आपको हमारी बात पर विश्वास नहीं है, तब आप खुद ही पढ़कर देख लीजिए।
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"चिन्ता और चिन्तन एक सिक्के के दो पहलू हैं।
चिन्ता आदमी को मौत के मुंह में पहुंचा देती है, जबकि चिन्तन
मनुष्य को महान बना देता है। लेकिन यह आप पर निर्भर करता है
कि आप चिन्ता करना चाहते हैं या चिन्तन?"
क्या है अमीर बनने का विज्ञान?
आज मैं आपको ‘अमीर बनने का विज्ञान’ यानी ‘SCIENCE OF BECOMING RICH’ के बारे में बताने जा रहा हूँ, जिसको जानने के बाद हाईस्कूल पास धीरुभाई अम्बानी विश्व के नम्बर वन अमीर बने।
जबकि कुछ लोगों का कहना है कि धीरुभाई अम्बानी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और रोज़ गीता पढ़ते थे, इसलिए वह अमीर बने।
इस बात में कितनी सच्चाई है, इसका तो पता नहीं, लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को जो उपदेश दिया था, वह आज आपके लिए अमीर बनने का सिद्धांत बन चुका है।
क्योंकि इस ग्रंथ में उन सभी महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया है, जो मनुष्य के पुरुषार्थ यानी धर्म, कर्म, काम और मोक्ष को दिशा निर्देशित करता है। इसके साथ इसमें भक्ति की महत्ता का भी गुणगान किया गया है।
गीता में ईश्वर, जीव और प्रकृति के स्वरूप की व्याख्या जिस रूप में की गई है, उसे साधारण ज्ञान वाले व्यक्ति भी आसानी से समझ सकते हैं।
यही वजह है कि कुछ विद्वान इसे कर्म प्रधान धर्म ग्रन्थ मानते हैं, तो कुछ इसे अमीर बनने का विज्ञान
बताते हैं।
क्योंकि इसमें दोनों तरह की बातों का समावेश किया गया है तथा ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ वाली बात