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नित्य प्रार्थना कीजिये
नित्य प्रार्थना कीजिये
नित्य प्रार्थना कीजिये
Ebook97 pages25 minutes

नित्य प्रार्थना कीजिये

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दोहा प्रेमी पाठक यह तो जानते ही होंगे कि दोहा एक स्वतंत्र छंद है मगर मेरा यह संग्रह लीक से कुछ हटकर रचा गया है यानी एक ही विषय पर कुछ दोहे मिलकर गीत का रूप ले लेते हैं. ये गीत आपको विविध विषयों जैसे -प्रकृति,प्रेम,नीति,देश-प्रेम,संस्कृति आदि का प्रतिनिधत्व करते हुए नज़र आएँगे.आशा करती हूँ मेरा यह अनूठा संकलन आपको अवश्य पसंद आएगा.

Languageहिन्दी
Release dateAug 17, 2019
ISBN9780463542590
नित्य प्रार्थना कीजिये
Author

कल्पना रामानी

६ जून १९५१ को उज्जैन में जन्म। कंप्यूटर से जुड़ने के बाद रचनात्मक सक्रियता। कहानियाँ, लघुकथाओं के अलावा गीत, गजल आदि छंद विधाओं में रुचि.लेखन की शुरुवात -सितम्बर २०११ सेरचनाएँ अनेक स्तरीय मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही अंतर्जाल पर लगातार प्रकाशित होती रहती हैं।*प्रकाशित कृतियाँ-१)नवगीत संग्रह- “हौसलों के पंख”(२०१३-अंजुमन प्रकाशन)३)गीत-नवगीत- संग्रह-“खेतों ने ख़त लिखा”(२०१६-अयन प्रकाशन)४)ग़ज़ल संग्रह- संग्रह मैं ‘ग़ज़ल कहती रहूँगी’(२०१६ अयन प्रकाशन)*पुरस्कार व सम्मान-पूर्णिमा वर्मन(संपादक वेब पत्रिका-“अभिव्यक्ति-अनुभूति”)द्वारा मेरे प्रथम नवगीत संग्रह पर नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित-कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब में प्रकाशित कहानी 'कसाईखाना' कमलेश्वर स्मृति पुरस्कार से सम्मानित- कहानी 'अपने-अपने हिस्से की धूप" प्रतिलिपि कहानी प्रतियोगिता में प्रथम व लघुकथा "दासता के दाग" के लिए लघुकथा प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित*सम्प्रतिवर्तमान में वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका- अभिव्यक्ति-अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत।

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    नित्य प्रार्थना कीजिये - कल्पना रामानी

    नित्य प्रार्थना कीजिए

    अगर न सुलझें उलझनें

    सब ईश्वर पर छोड़।

    नित्य प्रार्थना कीजिये

    शांत चित्त कर जोड़।

    शक्ति बड़ी है ईश में

    उसके शक्त विधान।

    जब-जब मन पर बोझ हो

    करें प्रार्थना ध्यान।

    ईश-विनय मनु जान ले

    सबसे सुगम उपाय।

    मन से माँगी हर दुआ

    कभी न खाली जाय।

    कर्म हमारे हाथ है

    फल देता है ईश।

    नित्य करें शुभ-कामना

    पाएँ शुभ आशीष।

    जो नसीब में है लिखा

    होना है तय जान।

    मगर विनय से कष्ट कम

    होगा यही विधान।

    बंद नहीं रहते कभी

    किस्मत के सब द्वार।

    दिखलाती है प्रार्थना

    नया द्वार हर बार।

    किसी रूप में सामने

    आ जाए यदि काल।

    जाएगा सुन प्रार्थना

    वापस वो तत्काल।

    कहना चाहे कल्पना

    बात नहीं अज्ञात।

    मानें तो कर जोड़िए

    बाकी मन की बात।

    टिके हुए हैं सत्य पर

    टिके हुए हैं सत्य पर

    धरती औ’ आकाश।

    पर झूठों का जूथ ये

    बात समझता काश!

    हमने खुद ही झूठ को

    पहनाया है ताज।

    हम ही ला सकते पुनः

    सच का खोया राज।

    हम ही हैं जो झूठ की

    पल पल लेते ओट।

    फिर चाहे देता रहे

    हर पल मन को चोट।

    किससे करें शिकायतें

    जब खुद जिम्मेदार।

    शीश नवाया झूठ को

    दोषी क्यों करतार।

    जप करता जो झूठ का

    कितना वो नादान।

    क्षणिक भोग ले सुख मगर

    खो देता सम्मान।

    कलमें ही लिखती रहीं

    सिर्फ सत्य की बात।

    जब लाएँ व्यवहार में

    सुख की हो बरसात।

    जय बोले जो सत्य की

    सज्जन वो इंसान।

    इसीलिए मनु ‘कल्पना’

    सच कहने की ठान।

    फिर से आओ कृष्ण जी

    फिर से आओ कृष्ण जी

    देखो कलियुग घोर।

    नाम तुम्हारा ओढ़ते

    भाँति-भाँति के चोर।

    कंस बली हैं आज के

    तुम्हें न देंगे ताज।

    ताज पहन यदि आ गए

    झपट पड़ेंगे बाज।

    दधि-माखन से खेलते

    वे दिन जाना भूल।

    शीत-गृहों में रक्ष है

    अब नवनीत अमूल।

    कुदरत से खिलवाड़

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