बेटियाँ होंगी न जब
()
About this ebook
मैं कभी किसी मंच पर या मुशायरे में शामिल नहीं हुई, न ही किसी के सामने गज़ल कही है। लंबी अस्वस्थता से श्रवण क्षमता कमजोर होने के कारण बाहरी दुनिया से भी लगभग कटी हुई हूँ, प्रकृति की सुंदरतम गोद और वेब की दुनिया ही मेरा सृजन-संसार है। मेरी समस्त रचनाएँ प्रकृति से संवाद करते हुए और वेब पर पढ़ते हुए ही तैयार हुई हैं। गजल का अर्थ ही ‘सुंदर स्त्री’ होता है और इसके भाव-सौंदर्य संसार में गहराई तक उतरने के बाद ही मैं जान पाई कि यह विधा स्वयं में कितनी सुंदरता लिए हुए है। यहाँ किसी शेर या गज़ल विशेष को इंगित करना कठिन है, विविध विषयों और भावों पर आप मेरी जो भी गज़ल पढ़ेंगे, उसके साथ आपका मन भी प्रवाहमान होकर गुनगुनाने लगेगा।
मैं मन से चाहती हूँ कि हर इंसान जीवन में किताबों का महत्व समझे और उनसे प्रेम करे।
कल्पना रामानी
६ जून १९५१ को उज्जैन में जन्म। कंप्यूटर से जुड़ने के बाद रचनात्मक सक्रियता। कहानियाँ, लघुकथाओं के अलावा गीत, गजल आदि छंद विधाओं में रुचि.लेखन की शुरुवात -सितम्बर २०११ सेरचनाएँ अनेक स्तरीय मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही अंतर्जाल पर लगातार प्रकाशित होती रहती हैं।*प्रकाशित कृतियाँ-१)नवगीत संग्रह- “हौसलों के पंख”(२०१३-अंजुमन प्रकाशन)३)गीत-नवगीत- संग्रह-“खेतों ने ख़त लिखा”(२०१६-अयन प्रकाशन)४)ग़ज़ल संग्रह- संग्रह मैं ‘ग़ज़ल कहती रहूँगी’(२०१६ अयन प्रकाशन)*पुरस्कार व सम्मान-पूर्णिमा वर्मन(संपादक वेब पत्रिका-“अभिव्यक्ति-अनुभूति”)द्वारा मेरे प्रथम नवगीत संग्रह पर नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित-कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब में प्रकाशित कहानी 'कसाईखाना' कमलेश्वर स्मृति पुरस्कार से सम्मानित- कहानी 'अपने-अपने हिस्से की धूप" प्रतिलिपि कहानी प्रतियोगिता में प्रथम व लघुकथा "दासता के दाग" के लिए लघुकथा प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित*सम्प्रतिवर्तमान में वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका- अभिव्यक्ति-अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत।
Read more from कल्पना रामानी
परिणय के बाद Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनित्य प्रार्थना कीजिये Rating: 4 out of 5 stars4/5हुई हिक सिन्धी बोली Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsहौसलों के पंख Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमूल जगत का- बेटियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकिताबें कहती हैं Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्रलय से परिणय तक Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबाँस की कुर्सी (गीत-नवगीत संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपीली साड़ी Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to बेटियाँ होंगी न जब
Related ebooks
'Khwab, Khwahishein aur Yaadein' Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMahapralap Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्पंदन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsZindagi Aye Zindagi Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचिंगारियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPathik Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकिताबें कहती हैं Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजलती मशाल: Revolution/Poetry/General, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकविता की नदिया बहे Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमुट्ठी में सूरज (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचयनिका Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाव्य मञ्जूषा 2 Rating: 3 out of 5 stars3/5प्रत्यक्ष: Poetry, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsख़्वाहिशें: ग़ज़ल संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअनादि Rating: 5 out of 5 stars5/5जज़्बात: ग़ज़ल संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमैं हूँ एक भाग हिमालय का Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsEk Baar To Milna Tha Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआँसू छलक पड़े: काव्य पथ पर 1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकोरे अक्षर Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsउद्घोष Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMujhe Chalte Jaana Hai... Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBalswaroop 'Rahi': Sher Manpasand (बालस्वरूप 'राही': शेर मनपसंद) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकुछ अनसुनी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMujhko Sadiyon Ke Paar Jana Hai Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsZindagi, Dard Aur Ehsas Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनेपथ्य में विलाप Rating: 5 out of 5 stars5/5पिताजी की साईकिल Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबिक रही हैं बेटियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for बेटियाँ होंगी न जब
0 ratings0 reviews
Book preview
बेटियाँ होंगी न जब - कल्पना रामानी
बेटियाँ होंगी न जब
गर्भ में ही काटकर
अपनी सुता की नाल माँ!
दुग्ध-भीगा शुभ्र आँचल
मत करो यों लाल माँ!
तुम दया ममता की देवी
तुम दुआ संतान की
जन्म दो जननी! न बनना
ढोंगियों की ढाल माँ!
मैं तो हूँ बुलबुल तुम्हारे
प्रेम के ही बाग की
चाहती हूँ एक छोटी सी
सुरक्षित डाल माँ!
पुत्र की चाहत में तुम
अपमान निज करती हो क्यों?
धारिणी जागो! समझ लो
भेड़ियों की चाल माँ!
सिर उठाएँ जो असुर
उनको सिखाना वो सबक
भूल जाएँ कंस कातिल
आसुरी सुर ताल माँ!
तुम सबल हो आज यह
साबित करो नव-शक्ति बन
कर न पाएँ कापुरुष ज्यों
मेरा बाँका बाल माँ!
ठान लेना जीतनी है
जंग ये हर हाल में
खंग बनकर काट देना
हार का हर जाल माँ!
तान चलना माथ
नन्हाँ हाथ मेरा थामकर
दर्प से दमका करे ज्यों
भारती का भाल माँ!
कल्पना
अंजाम सोचो
बेटियाँ होंगी न जब
रूप कितना सृष्टि का
हो जाएगा विकराल माँ!
कितनी भला कटुता लिखें
भर्त्सना के भाव भर
कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के