मैं हूँ एक भाग हिमालय का
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आप सबके समक्ष अपना पहला काव्य संग्रह रखते समय बहुत ख़ुश हूँ मगर असमंजस में हूँ। मैं जन्मना कवियत्री नहीं हूँ ना ही उन महान कवि-कवियत्रियों की श्रेणी में आने की कोशिश भी कर पाऊँगी जो बहुत छोटी उम्र से कवितायें लिखते हैं परिपक्व कवि हैं। मेरा काव्य लेखन बहुत देर से शुरू हुआ। मैं अपने बच्चों के (मॉंटेसॉरी) स्कूल में हिंदी पढ़ाती थी। मॉंटेसॉरी शिक्षा मेरे हिसाब से शिक्षा का एक बेहतरीन माध्यम है। हमारे गुरुकुल की नीव पर आधारित है वह। एक दिन ऐसे ही मेरे पुत्र ने पूरी-आलू माँगे तो मैंने उसकी इस फरमाईश को पहले कविता के रूप में लिख दिया और रख दिया कम्प्यूटर के पास। फिर मैं रसोई में पूरी-आलू बनाने चली गई। तभी पति देव आए और उन्होंने मेरा लिखा अपने किसी ज़रूरी काग़ज़ की खोज में पढ़ा और पूछा ये कि ये कविता कहाँ से आई ... ? मैंने कहा, ”यूँ ही मेरे मन में ये विचार आए और मैंने ये लिख कर रख दी इन्होंने मेरा उत्साहवर्धन किया और तब से आज तक कविता मेरे जीवन का अंग सा बन गई है।
आप सबके समक्ष अपना पहला काव्य संग्रह रखते समय बहुत ख़ुश हूँ मगर असमंजस में हूँ। मैं जन्मना कवियत्री नहीं हूँ ना ही उन महान कवि-कवियत्रियों की श्रेणी में आने की कोशिश भी कर पाऊँगी जो बहुत छोटी उम्र से कवितायें लिखते हैं परिपक्व कवि हैं। मेरा काव्य लेखन बहुत देर से शुरू हुआ। मैं अपने बच्चों के (मॉंटेसॉरी) स्कूल में हिंदी पढ़ाती थी। मॉंटेसॉरी शिक्षा मेरे हिसाब से शिक्षा का एक बेहतरीन माध्यम है। हमारे गुरुकुल की नीव पर आधारित है वह। एक दिन ऐसे ही मेरे पुत्र ने पूरी-आलू माँगे तो मैंने उसकी इस फरमाईश को पहले कविता के रूप में लिख दिया और रख दिया कम्प्यूटर के पास। फिर मैं रसोई में पूरी-आलू बनाने चली गई। तभी पति देव आए और उन्होंने मेरा लिखा अपने किसी ज़रूरी काग़ज़ की खोज में पढ़ा और पूछा ये कि ये कविता कहाँ से आई ... ? मैंने कहा, ”यूँ ही मेरे मन में ये विचार आए और मैंने ये लिख कर रख दी इन्होंने मेरा उत्साहवर्धन किया और तब से आज तक कविता मेरे जीवन का अंग सा बन गई है।
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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