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21 Shreshth Lok Kathayein : Karnataka (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : कर्नाटक)
21 Shreshth Lok Kathayein : Karnataka (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : कर्नाटक)
21 Shreshth Lok Kathayein : Karnataka (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : कर्नाटक)
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21 Shreshth Lok Kathayein : Karnataka (21 श्रेष्ठ लोक कथाएं : कर्नाटक)

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About this ebook

भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों सभ्यताओं, परंपराओं का समावेश है। विभिन्न राज्यों के पर्व-त्योहार, रहन-सहन का ढंग, शैक्षिक अवस्था, वर्तमान और भविष्य का चिंतन, भोजन की विधियां, सांस्कृतिक विकास, मुहावरे, पोशाक और उत्सव इत्यादि की जानकारी कथा-कहानी के माध्यम से भी मिलती है। भारत के सभी प्रदेशों के निवासी साहित्य के माध्यम से एक-दूसरे को जानें, समझें और प्रभावित हो सके, ऐसा साहित्य उपलब्ध करवाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा 'भारत कथा माला' का अद्भुत प्रकाशन।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 15, 2022
ISBN9789391951412
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    21 Shreshth Lok Kathayein - Amarnath-Pro. Parimal

    1

    डॉ. विलास अंबादास साळुंके

    डॉ. विलास अंबादास साळुंके का जन्म कलबुर्गी जिले के आळंद तालुके में 5 नवंबर, सन् 1985 को हुआ। आपने हिन्दी में एम.ए. तथा पी.एचडी. की उपाधि गुलबर्गा विश्वविद्यालय, कलबुर्गी से प्राप्त की है। आपके द्वारा लिखित लगभग 30 से भी अधिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा संपादित पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं, साथ ही आपकी कविताएँ, कहानियाँ निरंतर पत्रिकाओं में छपा करती हैं। ऑल इंडिया रेडियो, कलबुर्गी से आपकी कविताएँ, लेख एवं तीन कहानियाँ प्रसारित हो चुकी हैं। ‘प्रेमचन्द विचारधाराः परंपरा एवं परिदृश्य’, ‘सोंचो, परखो, अपनाओ’, ‘निबंध अनोज्ञ’ तथा ‘अमोघ स्मरण संचिके’ (कन्नड) नामक पुस्तकों के सह-संपादक भी आप रह चुके हैं। वर्तमान में आप सरकारी प्रथम श्रेणी महाविद्यालय, सेडम में हिन्दी सहायक प्राध्यापक के रुप में सेवारत हैं।

    चिड़िया, चन्नम्मा और रानी

    कर्नाटक के रायचूर जिले में स्थित एक गाँव जिसे आज गब्बूर नाम से जाना जाता है। वहाँ पर बहुत समय पहले एक चिड़िया, चिड़ा और उनके दो बच्चे थे। इनका परिवार बड़े मजे के साथ अपनी जिन्दगी के पलों को खुशी-खुशी जी रहा था। अचानक इस परिवार को किसी घनेरी अंधेरी काली छाया ने घेर लिया। एक दिन उनके घर को आग लग गयी। सब बाहर निकल आये, पर एक बच्चा भीतर ही अटक गया। अपने बच्चे और घर को आग की लपटों से बचाने के लिए चिड़िया और उसका बड़ा बच्चा जी जान से कोशिश कर रहे थे किन्तु चिड़ा उनकी इस कोशिश में हाथ न बटाकर इन दोनों को जलते घर और बच्चे को छोड़ भाग चलने की बात कर रहा था किन्तु चिड़िया के मातृहृदय ने अपने पति के इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा- हमने इस घर को बनाने में कडी मेहनत की है, इन आग की लपटों में हमारे कलेजा का टुकडा भी अटक गया है, ऐसी मुसीबत की घडियाँ हमारा इम्तिहान लेने के लिए ही आती हैं। ऐसे संदर्भ में उसे पीट दिखाकर भाग जाना हमारी कायरता होगी। आपसे हाथ जोडकर विनती करती हूँ कि चलिए हम तीनों मिलकर हमारे इस घर व बच्चे को बचाने की कोशिश करेंगे। चिड़ा इन मुसीबतों की घड़ियों को टक्कर न दे सका और वह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ वहाँ से बिन बताये ही चल दिया। चिड़िया और उसके बड़े बेटे ने जी-जान से कोशिश कर अपने घर और बच्चे को बचाने में सफल हो गये। इस घटना के सात-आठ साल के पश्चात व चिड़ा फिर एक दिन चिड़िया के घर आया। उसके इस सात-आठ साल की गैर मौजूदगी में इन माँ-बेटों ने कैसे दिन बिताये होंगे, इसका एहसास तक उसे न था। उसके आने पर पति-पत्नी के बीच सहज ही कुछ अनबन बन जाती और चिड़ा अपने बच्चों को साथ ले जाने की बात करता है किन्तु चिड़िया अपने बच्चों को देने से इनकार करती है। बात यहाँ तक बढ़ जाती है कि दोनों उस राज्य के राजा के दरबार में न्याय के लिए चले आते हैं। दोनों अपनी-अपनी आपबीती राजा के समक्ष बयान करते हैं। राजा दोनों का बयान सुनने के पश्चात अपना निर्णय सुनाता है- आप दोनों का बयान सुनने के पश्चात इस नतीजे पर पहुंचकर मैं यह आदेश देता हूँ कि ‘चिड़ा का यह हक बनता है कि वह बीज ले ले और छिलका फेंक दें। राजा के आदेश के अनुसार चिड़ा ने बीज यानी अपने बच्चों को साथ ले लिया और जो छिलका (पत्नी) उसे उसके हाल पर छोड़कर चला गया। इधर चिड़िया का अपने बच्चों के विरह में दिन-रात खाना-पिना न के बराबर रहा। आखिरकार उसने उन्हीं की याद में अपनी अंतिम साँसे ली।

    उसी शहर के एक मिस्त्री को शादी के 10-12 सालों तक कोई संतान नहीं थी। इसी बीच उसी मिस्त्री (मल्लप्पा) के घर एक कन्या ने जन्म लिया। इसी खुशी के मारे मिस्त्री ने पूरे गाँव वालों को खाने का न्योता दिया। उसके घर में खुशियों का ठिकाना न था। कन्या बहुत ही सुन्दर थी। कन्या का नामकरण कर दिया ‘चन्नम्मा’। धीरे-धीरे चन्नम्मा बडी होने लगी। अब तो वह सारे मुहल्ले में सबकी प्यारी बन गयी थी। देखते-ही-देखते वह पाँच साल की हो गयी। मिस्त्री ने अपनी चन्नम्मा को गाँव के ही एक आश्रम में विद्यार्जन के लिए भेज दिया। चन्नम्मा वहीं अपने गुरु द्वारा सिखाये जाने वाले संगीत एवं जीवन के पाठ को बडी लगन से पढ़ती, संगीत साधना के साथ-ही-साथ घुडसवारी में भी तेज होने लगी। घुड़सवारी में निपुण हुई चन्नम्मा को इस बात का एहसास भी हो गया था कि राजा के दरबार में केवल घोडियाँ ही हैं, घोड़ा नहीं है। मौके की तलाश में रही चन्नम्मा को अब अच्छा बहाना मिल गया था। उसने अपने पिता से हठ किया कि मुझे घोड़ा चाहिए। मिस्त्री अपनी बेटी चन्नम्मा की हर ख्वाईशें पूरी करता आया था। बहुत दिनों बाद बेटी के रुप में लक्ष्मी ने मेरे घर जन्म लिया है, इसी खुशी में उसने चन्नम्मा को किसी बात की कमी खटकने नहीं दी। बेटी को समझाया किन्तु वह अपने हठ पर अड़ी रही। पिता ने एक अच्छे किस्म का घोड़ा खरीदकर अपनी बेटी को दे दिया। चन्नम्मा रोज सुबह उस राजा के महल के सामने से घोड़े के नालों की ऊँची आवाज में खट-खट करते जाते-आते देख, एक दिन राजा अपने सैनिकों से पूछ ही बैठा। अरे! वह जो लड़की रोज घोड़ा लेकर पाठशाला जाती-आती है वह कौन है? किसकी लड़की है? सैनिकों ने उस राजा को सब हकीकत बताई। राजा ने एक दिन उस मिस्त्री के घर संदेश भेजा कि-‘राजा को आपका घोड़ा बहुत पसंद आया है और उन्होंने कुछ दिनों के लिए आपके घोड़े को रजवाड़े में लाकर बांधने को कहा है। मिस्त्री परेशान होकर चिंतित बैठा था, उतने में चन्नम्मा आयी और उसने कारण पूछा तो पिता ने बताया कि- ‘महाराज को तुम्हारा घोड़ा पसंद है और कुछ दिनों के लिए रजवाड़े में बांधने को कहा है।’ चन्नम्मा खुश हुई और उसने कहा बस्स! इतनी-सी बात पर आप चिंतित हैं। आपको हाँ कह देना था। लेकिन चन्नम्मा तुम्हारी घुड़सवारी का क्या होगा? पिताजी आप मेरी परवाह मत कीजिए, कुछ दिनों की ही तो बात है. कछ दिन होते ही हम अपना घोड़ा वापस लेकर आयेंगे। और घोड़ा राजा के सिपाहियों द्वारा भेज दिया

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