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चरित्रनायक एकलव्य: पतित पावन गाथा भाग १ (God of the Sullied)
चरित्रनायक एकलव्य: पतित पावन गाथा भाग १ (God of the Sullied)
चरित्रनायक एकलव्य: पतित पावन गाथा भाग १ (God of the Sullied)
Ebook354 pages3 hours

चरित्रनायक एकलव्य: पतित पावन गाथा भाग १ (God of the Sullied)

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About this ebook

मैं ब्रह्म के साथ उत्पन्न हुआ। मैं तब भी था जब कुछ नहीं था, मैं अब भी हूँ जब कुछ नहीं है और मैं आने वाले सभी युगों में उपस्थित रहूँगा। मैं समय हूँ, और किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। परन्तु आज तुम्हें कलियुग के एक शापित योद्धा की कहानी सुनाने के लिए स्थिर खड़ा हूँ।
यह कलियुग में बुराई पर अच्छाई की जीत की कथा है, घोर अत्याचार में भी आशावादी होने के रोमाँच की कथा है, प्रतिकूल वास्तविकता से उपजे एक अनुकूल स्वप्न की कथा है। यह एक महान योद्धा, एक महा प्रतापी राजा, व्यास के पुत्र और इक्ष्वाकु के वंशज, चरित्रनायक एकलव्य के उदय की कथा है।

Languageहिन्दी
Release dateMar 27, 2022
ISBN9788194370536
चरित्रनायक एकलव्य: पतित पावन गाथा भाग १ (God of the Sullied)
Author

Gaurav Sharma

Hello, I am an Indian author. Writing is something that excites me and helps me to communicate with the world. My first book is on narcissism because I have been targeted by narcissists all my life and I wish other innocent people to not suffer like me. Let's fight together to rid the Earth of greed, hatred and delusion. Hope you enjoy my work.

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    चरित्रनायक एकलव्य - Gaurav Sharma

    गौरव शर्मा

    सर्वप्रथम थिंक टैंक बुक्स, नई दिल्ली द्वारा वर्ष २०१८ में प्रकाशित अंग्रेजी उपन्यास

    ‘गॉड ऑफ़ द सलिड’ (God of the Sullied) का लेखक द्वारा हिंदी में अनुवाद।

    यह पुस्तक सर्वप्रथम संज्ञान, नई दिल्ली (थिंक टैंक बुक्स का उपक्रम)

    द्वारा वर्ष २०२० में प्रकाशित।

    वेबसाइट: thinktankbooks.com

    ईमेल: editorial@thinktankbooks.com

    गौरव शर्मा इस उपन्यास के लेखक होने के मौलिक अधिकार का दावा करते हैं।

    कॉपीराइट © संज्ञान / थिंक टैंक बुक्स

    कॉपीराइट © २०२० गौरव शर्मा

    अनुवादक: गौरव शर्मा

    सर्वाधिकार सुरक्षित।

    यह एक काल्पनिक कृति है। नाम, वर्ण, स्थान और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना के उत्पाद हैं या काल्पनिक रूप से उपयोग किए गए हैं, और किसी भी वास्तविक व्यक्ति, जीवित या मृत, घटनाओं या स्थानों से मिलना-जुलना, पूरी तरह से संयोग है।

    ISBN: 978-81-943705-3-6

    मूल्य: २२५ रुपए / INR 225

    इस पुस्तक का अधिकतम खुदरा मूल्य केवल भारतीय उपमहाद्वीप के लिए है।

    विक्रय मूल्य कहीं और भिन्न हो सकते हैं।

    10 9 8 7 6 5 4 3 2 1

    संज्ञान का नाम और लोगो थिंक टैंक बुक्स के ट्रेडमार्क हैं।

    किसी भी अनधिकृत उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध है।

    समर्पण

    सरस्वती के चरण कमलों में करूँ वंदना अर्पित।

    ऐ हिंदी, यह पुस्तक तुझे समर्पित।

    आभार

    इस पुस्तक पर अपना समय देने वाले हर व्यक्ति को मेरा धन्यवाद। पुस्तक का स्वागत करने वालों का धन्यवाद, और आलोचकों का भी।

    लेखक के बारे में

    Black_divider_no_background.png

    गौरव शर्मा थिंक टैंक बुक्स के संस्थापक हैं। उन्होंने लंगारा कॉलेज, वैंकूवर से व्यवसाय की पढ़ाई पूरी की और गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पत्रकारिता की।

    ‘चरित्रनायक एकलव्य’ उनके अंग्रेजी में लिखे गए उपन्यास 'गॉड ऑफ द सलिड' का उन्ही के द्वारा हिंदी में अनुवाद है। इस पुस्तक की अगली कड़ी ‘महानायक एकलव्य’ है, जो उनके अंग्रेजी के उपन्यास ‘लॉन्ग लिव द सलिड’ का उनके द्वारा हिंदी में अनुवाद है।

    गौरव को शतरंज और प्लेस्टेशन पर वीडियो गेम खेलना पसंद है। अधिक जानकारी के लिए सोशल मीडिया पर उनके साथ जुड़ें, उनकी वेबसाइट authorgauravsharma.com के माध्यम से संपर्क करें, अथवा उनका नाम विकिपीडिया या गूगल पर खोजें।

    प्रस्तावना

    Black_divider_no_background.png

    मैं ब्रह्म के साथ उत्पन्न हुआ। मैं तब भी था जब कुछ नहीं था, मैं अब भी हूँ जब कुछ नहीं है और मैं आने वाले सभी वर्षों में उपस्थित रहूँगा। पुरातन काल से धरती पर विजय पाने के अभियान चले आ रहे हैं। कई युगों पहले इस ग्रह पर देवताओं और असुरों का राज था। परंतु वे समय के बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाए और इसी कारणवश उन में से अनेक का सर्वनाश हुआ और शेष ने स्वर्ग और पाताल में शरण ली। तत्पश्चात ईश्वर की संतान मानव ने पृथ्वी पर राज किया और तब से चली आ रही है एक ऐसी लड़ाई जो सभ्यताओं के उत्थान और पतन की साक्षी रही है।

    मगध राज्य का शौर्य और मौर्यों की ताकत, कौरवों का पराक्रम और मुगलों का सर्वनाश, इन सब का साक्षी रहा हूँ मैं, क्योंकि मैं अमर और निरपेक्ष हूँ। इन सभी सभ्यताओं, राज्यों और वंशों ने विजयी होना तो सीखा परंतु बदलते समय के साथ उस विजय को बनाए रखने में असमर्थ रहे और जो समय के साथ बदलना नहीं सीखते वे समय के द्वारा बदल दिए जाते हैं।

    इससे पहले मैं तुम्हेंं बताऊँ कि आने वाला कल कितना उज्जवल होगा, मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ कि क्या तुम मेरे साथ बदलने के लिए तैयार हो? अगर हाँ तो कल की सफलता, आज की विजय और आने वाले सभी विजय अभियानों में एक ही रणनीति रहेगी - बदलाव। बदलाव, पहले तुम्हारी सोच में और फिर तुम्हारे कर्मों में। अगर तुम मेरे साथ हो तो समय तुम्हारे साथ है। फिर चाहे कैसी भी घड़ी हो, विजय तुम्हारी होगी। इस बदलते समय में आज मैं स्थिर खड़ा हूँ, तुम्हेंं कलियुग के एक शापित की कहानी सुनाने। मेरे साथ ही बने रहो, क्योंकि मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। मैं समय हूँ और कलियुग में, जहाँ कुछ भी वैसा नहीं है जैसा प्रतीत हो, तुम्हारा स्वागत करता हूँ।

    अध्याय १

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    समय

    सांसारिक शांति प्रचंड रूप से भंग होने के कारण लोग त्राहिमाम करने लगे। कलियुग के प्रकोप ने प्रकृति और कर्म के नियमों को बेमानी-सा कर दिया था। नौवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य के आकस्मिक निधन के बाद उनके द्वारा भारतवर्ष में स्थापित किए गए मठों में भ्रष्टाचार का कोप तीव्रता से फैलने लगा। हिंसक और भ्रष्ट लोग बढ़े और सच्चे व ईमानदारों का नाश हुआ। धर्म और उसकी महत्ता दिन प्रतिदिन खोखली होती रही। मानव में मानवता शेष न थी। धर्म के नियमों का पालन लोग केवल अपनी झूठी साख बचाने के लिए करने लगे तथा ग्रंथों की विद्या से लोगों का कुछ नाता न रहा। कलियुग के प्रभाव से ग्रसित लोग निडर हो कर दूसरों के साथ गलत कर रहे थे। इंसान ऐसे जिया मानो कभी नहीं मरेगा और मरा जैसे कभी जिया ही ना हो। चूँकि धन ही कलियुग में ईश्वर का रूप ले चुका था, मनुष्य अत्यधिक धन कमाने की होड़ में लग गया। प्रकृति मानो मनुष्य की निर्लज्जता से मुँह फेर स्वयं को नष्ट करने लगी। धर्म को न जानने वाले इस तरह बढ़-चढ़ कर उसका प्रचार करने लगे मानो धर्म के ठेकेदार हों। कलियुग के प्रकोप से ग्रसित होकर यह धरती एक रक्षक की पुकार करने लगी।

    कहानी कुछ नौवीं शताब्दी के मध्य की है जब मनुष्य अपने भविष्य को संवारने के लिए वर्तमान से खिलवाड़ कर रहा था, रूद्रपुत्र में कहीं मुट्ठी भर इक्ष्वाकु लोग अपने वर्तमान को सशक्त कर उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रहे थे। समाज के बुरे और चतुर लोगों से सँभलते हुए उन इक्ष्वाकुओं ने अपनी पहचान गुप्त बनाई रखी। उनमें से कुछ को तो पता ही नहीं था की वे इक्ष्वाकु जैसे महान वंश के वंशज हैं। भगवान राम और बुद्ध का इक्ष्वाकु वंश भारत के सर्वश्रेष्ठ वंशों में से एक माना जाता है। कलियुग के उस विषम समय में मनुष्य का भगवान राम और बुद्ध जैसा बनना तो असंभव था, परंतु इक्ष्वाकुओं की विरासत देवों के युग से चली आती हुई कलियुग में भी शक्तिमान थी। वे निःसंदेह गिनती में पहले से कम पर क्षमता में अतुल्य थे।

    इन सभी हंगामे के बीच रूद्रपुत्र के एक छोटे से गाँव में व्यास नाम का बुद्धिमान व महान व्यक्ति निवास करता था। व्यास - इक्ष्वाकु वंश का एक वंशज जो कि अपनी बुद्धि से ब्राह्मण, बल व पराक्रम से क्षत्रिय, मेहनत से वैश्य और सेवा-भाव से शूद्र था। व्यास को उसके विचार और कर्म साधुओं में साधु बनाते थे। दूसरों का भला करना उसका परम कर्तव्य था और वह लोगों के हित के लिए सदैव तत्पर रहता। व्यास कलियुग का पुरुषोत्तम था। कलियुग - एक ऐसा समय जहां पापी पापियों को भिन्नता से पाप करने का दंड देते हैं।

    अध्याय २

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    समय

    आप क्या सुझाव देते हैं? कैसा प्रतीत हो रहा है, महापुरोहित जी? उलझे मन से व्यास ने शांतिपूर्वक पूछा। अपनी लम्बी सफेद घुंघराली दाढ़ी को हल्के से सहलाते हुए महापुरोहित ने सोच भरी निगाहों से व्यास को कुछ क्षण देखा और बिना कुछ कहे फिर ज्योतिष गणना में लीन हो गए। महापुरोहित को समीकरणों में उलझा देख व्यास अब कुछ चिंतित हो गया। हालांकि उसने कड़ी साधना से अपने मन और विचारों पर पूर्ण नियंत्रण पा लिया था, पर इस बार विषय ही कुछ इतना गंभीर था। मन में उथल-पुथल मचाते हुए सोच के महासागर में डूबा व्यास उस दिन अपने विचारों पर काबू पाने में असमर्थ रहा।

    महापुरोहित जल्द ही उसके और सुमति के पहले बच्चे के जन्म का समय, दिन और प्रकृति की भविष्यवाणी करने वाले थे। महापुरोहित रूद्रपुत्र में सभी ज्योतिषियों के आचार्य थे और व्यास व सुमति को बुजुर्गों के आग्रह पर आशीर्वाद देने पधारे थे। उन दिनों रूद्रपुत्र में बच्चे के जन्म को ईश्वर का वरदान माना जाता था। चूँकि नवजात शिशु ही भविष्य में इक्ष्वाकु वंश को आगे बढ़ाने वाले थे, उनका लालन पालन अत्यंत प्राथमिकता के साथ किया जाता।

    महापुरोहित भविष्य की गणना किसी शांत जगह पर करना चाहते थे। उनके आग्रह करने पर व्यास उन्हें महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ अपनी छोटी पर शांत कुटिया के भीतर ले गया।

    लकड़ी और मिट्टी की बनी वह कुटिया आसपास के सभी घरों की उपस्थिति को नकार रही थी - जैसे सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही हो। दो टूटी हुई खिड़कियों में से एक से आती हुई सूरज की किरणें कुटिया को रौशन कर रहीं थीं। बाहर बहुतायत में एकत्रित हुए लोग महापुरोहित के कुटिया से निकलने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे - कुछ प्रसन्न तथा उत्साहित थे और अन्य महापुरोहित की भविष्यवाणी को लेकर चिंतित थे। किसी ने महापुरोहित को ज्योतिषीय गणना में इतना उलझा पहले कभी नहीं देखा था। भविष्यवाणी में देरी होने से सब अपनी-अपनी राय आपस में बांटने लगे। गंभीर स्थिति होने के पश्चात भी व्यास और सुमति ने अपने मन को शांत रखा। जो भी होगा ईश्वर की इच्छा अनुसार ही होगा।

    रूद्रपुत्र का सूरज क्षितिज पर लाल रेखा छोड़ते हुए अस्त हुआ। जल्द ही यह सुनने में आया कि महापुरोहित भविष्यवाणी के साथ तैयार थे। सभी चौपाल के आस पास इकट्ठा हुए जहाँ महापुरोहित अन्य ज्योतिष आचार्यों के साथ बैठे थे। सभी आचार्यों ने मिलकर शाम का भोजन खाया जो उनके प्रति आभार प्रकट करने हेतु गाँव वालो द्वारा पकाया गया था। व्यास और सुमति चौपाल पर हाथों में हाथ डाल बैठे हुए थे। भोजन समाप्ति के बाद महापुरोहित गहरी सांस लेते हुए उठे अतः गाँव वाले शांत होकर उनकी बात पर ध्यान देने के लिए तैयार हुए।

    "मेरी हार्दिक शुभकामनाएं रूद्रपुत्र के सभी निवासियों को। स्वादिष्ट भोजन के लिए बहुत धन्यवाद! अपना सारा जीवन महापुरोहित के इस सौभाग्यशाली पद से आपकी सेवा में बिताने के लिए मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ। अपने पूरे कार्यकाल में ग्रहों और नक्षत्रों की ऐसी विशिष्ट संरचना मैंने कभी नहीं देखी जैसी आज व्यास की संतान के जन्म का समय, दिन और प्रकृति का अनुमान लगाते हुए देखी। स्वाति और कृतिका नक्षत्र आपस में एक अद्भुत संरेखण बनाएंगे। ध्रुव तारा सप्त ऋषि मंडल की ओर बढ़ेगा, शुक्र और चँद्रमा आपस में और निकट आएंगे जिससे धरती पर तेज हवाएं और सागर में ऊंची लहरें पैदा होंगी। ऐसा हजार वर्षों में सिर्फ एक ही बार होता है।

    अगली पूर्णिमा की रात को सुमति एक दिव्य बालक को जन्म देगी। समस्त राज्य में उस बालक के जन्म के बाद ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ेगी। व्यास और सुमति को मानो समृद्धि का नया वरदान मिलेगा। बालक लोगों में प्यार और इंसानियत जगाने की वजह से संसार में जाना जाएगा। लेकिन एक ऐसा समय आएगा जब इस बालक के कर्म और विचार सामाजिक धारणाओं के विपरीत होने लगेंगे। एक ऐसा समय आएगा जब यह बालक खोखली परंपराओं और सामाजिक कलंकों को मिटाने के लिए कदम उठाएगा। तब यह समाज और उसके लोग इस दिव्य बालक का बहिष्कार कर देंगे, ऐसा मेरा मानना है। सूर्य, बृहस्पति और चँद्रमा पहले, दूसरे और तीसरे लग्न में होने के कारण इस बालक का चरित्र अद्भुत होगा। यह इक्ष्वाकु का वंशज स्वयं ईश्वर की इच्छानुसार न्याय की रक्षा के लिए जन्म लेगा। बालक प्रबल शक्ति और प्रभाव का प्रतीक होगा। इसका जन्म साधारण लग सकता है परंतु इसकी मृत्यु इतिहास रचेगी।

    और तो और यह बालक अतुल्य दृढ़ निश्चय और हर प्रकार के कौशल पर महारत पाने की विद्या के साथ उत्पन्न होगा। इसके पास तीरंदाजी और हर प्रकार के युद्ध कौशल को केवल देखकर सीखने की क्षमता होगी। अतः इस बालक का नाम होगा एकलव्य, अर्थात वह जो धनुष पर देख कर ही निपुणता प्राप्त कर ले। उसके आने की तैयारी में जुट जाओ। हम सभी उसका स्वागत बड़ी धूमधाम से करेंगे। व्यास और सुमति के लिए मेरी शुभकामनाएं।" महापुरोहित ने ऐसा कहा और चले गए। देखते ही देखते वे विचित्र तरीके से अंधेरे में लुप्त हो गए।

    इक्ष्वाकु के वंशज के जन्म की भविष्यवाणी सुनने के बाद गाँव वालों का मन उत्साह से भर गया। वे आपस में एक दूसरे को शुभकामनाएं और दंपत्ति को आशीर्वाद देने लगे। एकलव्य के भविष्य के बारे में थोड़ा चिंतित होने के बाद भी व्यास और सुमति आशावादी रहे कि उनकी संतान समाज से बहिष्कृत नहीं की जाएगी। भविष्य में जो घटित होने वाला था उससे सभी अनभिज्ञ थे।

    एक सुबह व्यास को कुछ चिंतित देख सुमति ने उसकी चिंता का कारण पूछा। व्यास ने अपनी पत्नी को पड़ोस के एक गाँव में फसल के लिए कुछ विशिष्ट प्रकार के बीज लेने जाने के बारे में बताया। व्यास का ह्रदय अपनी गर्भवती पत्नी को अकेले उस कमजोर हालत में छोड़कर जाने की आज्ञा नहीं दे रहा था। पड़ोसी गाँव उनके घर से लगभग आधे दिन की दूरी पर स्थित था। इतनी दूरी सड़क पर दो पहर की पद यात्रा के बराबर थी। गाँव में आवागमन के संसाधनों के अभाव के कारण व्यास के पास केवल बैलगाड़ी से जाने का ही विकल्प था। पथ यात्रा तो ठीक थी परन्तु दोनों गावों के बीच में विशाल गंगा नदी भी बहती थी। गंगा के व्यापक फैलाव को पार करने में यात्रियों की सहायता हेतु दोनों गावों के कुछ नाविक तट पर मौजूद रहते थे। कभी-कभी यात्रियों को नाव पर जाने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता था। व्यास को उन विशिष्ट बीजों की फसल को उपजाने में अत्यंत आवश्यकता थी। बिना बीजों के खेती-बाड़ी नहीं हो सकती थी - यह कुछ ऐसा था जो व्यास के मन को नहीं भाता। यह जानने के बाद भी कि व्यास को घर वापस आने में ना जाने कितना समय लगे सुमति ने उसे पड़ोसी गाँव में जाने की सलाह दे दी, वह व्यास को चिंतित ना देख सकी। व्यास ने सुमति के कहने पर विचलित मन से कुछ देर विचार किया अतः अपनी पत्नी को उसके हाल पर छोड़ कर पड़ोसी गाँव के लिए निकल पड़ा। घर से निकलने के कुछ ही क्षणों बाद उसकी रास्ते में महापुरोहित से भी भेंट हुई। महापुरोहित ने उसे सुखद यात्रा का आशीर्वाद दे कर विदा किया।

    वह आधे पहर की सड़क यात्रा बैलगाड़ी पर करके गंगा तट पर पहुंचा। अभी कुछ और देर की यात्रा गंगा के पानी में एवं आधे पहर की पदयात्रा पड़ोसी गाँव तक पहुंचने में शेष थी। व्यास और उस मार्ग में जाने वाले कुछ अन्य यात्रियों द्वारा गंगा पार करने हेतु एक नाविक को बुलाया गया। वे सभी उस मस्तूल व पाल वाली नाव में सवार हुए।

    शाम हो गई थी और आकाश में अँधेरे ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे। तभी तापमान अचानक से गिर गया और हठी बादलों ने अपना उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिया। धुंध ने मानो समूचे आकाश को निगलने का मन बना लिया हो। आसमान के तारे तेजी से बुझते प्रतीत हो रहे थे। शांत पड़ी गंगा की लहरें तेज़ हवा के थपेड़ो से उग्र होने लगी। चँद्रमा अपनी छटा बिखेरने की पुरज़ोर कोशिश धुंध एवं काले बादलों से जूझता हुआ कर रहा था। बारिश व्यास की ओर ऐसे बढ़ी जैसे घुंघट में कोई बुरी बला आगे बढ़ रही हो। उग्र पवन चट्टानों एवं लहरों से टकरा कर गंगा में उथल पुथल मचाने लगी। नाविक और उसका सहयोगी मस्तूल और पाल संभालने और बांधने में लग गए। वे नाव के भीगे तल पर फिसले और पीछे की ओर आ गिरे। नाव में बैठे यात्री नाविक के चेहरे पर चिंता देखकर भयभीत हो गए। तूफानी हवाओं ने बारिश की बूंदे उन सबके चेहरे पर कुछ ऐसे फेंकी मानो पानी नहीं छोटे-छोटे पत्थर चमड़ी को भेद रहे हों। नाव पहले ऊपर उठी फिर तेजी से बाएं दाएं झुकते हुए पानी में हिचकोले खाने लगी। दोबारा अचानक ऊपर उठते ही नाव छपाक से नदी के तल पर आ गिरी।

    यात्रियों की हड्डियां जम चुकी थीं। उन्होंने मस्तूल और पाल को कस के पकड़ा, नाव की हर वह वस्तु पूरे बल से पकड़ी जिसे वह पकड़ सकते थे। व्यास ने पहली बार अपनी मृत्यु के दर्शन इतने समीप से किये। अपने चेहरे पर लगातार गंगा के बर्फ जैसे ठंडे पानी से कई बार तमाचें लगने के बाद व्यास को अपनी आंखों में एक बुखार महसूस हुआ। वह जानता था कि नदी पार करना उस दिन काफी कठिन व संकटपूर्ण था। गंगा अपना प्रकोप जमकर बरसा रही थी। यह महसूस करते ही कि वह अपने घर और पत्नी से दूर गहरी विपत्ति में फस चुका है, व्यास ने बीज लाने के अपने निर्णय पर एक बार पुनः विचार किया। थोड़ी ही देर बाद तूफ़ान थम गया। बारिश, बादल और तूफानी हवाएं लुप्त हो गईं और चाँद, सितारे व गंगा का शांत पानी दोबारा लौट आए। मानो प्रकृति ने खेल-खेल में ही व्यास को अपने रौद्र रूप के दर्शन से सताया।

    गंगा में आए तूफ़ान से अधिक व्यास अपने मन में भविष्य की आने वाली नकारात्मक घटनाओं को ले कर चिंतित था। ‘माता गंगा ने तूफ़ान के माध्यम से मुझे भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहने का संकेत दिया है,’ उसने आकाश की ओर देख कर सोचा।

    उधर सुमति पूरे दिन अपने पति की प्रतीक्षा करती रही परन्तु वह नहीं लौटा, लौटता भी कैसे? व्यास के अगले दिन ही लौट पाने के अनुमान के साथ सुमति बिस्तर पर सोने के लिए चली गयी। वहाँ व्यास जैसे तैसे पडोसी गाँव के सरपंच के घर पंहुचा और उसे अपने आने का कारण बता कर गंगा में आए भीषण तूफ़ान की भी जानकारी दी। सरपंच को तूफ़ान के बारे में पहले से ही ज्ञात हो चुका था और

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