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बज़्म-ए-हस्ती
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Ebook121 pages38 minutes

बज़्म-ए-हस्ती

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About this ebook

डॉ. तारा की ग़ज़ल –पुस्तक, ’बज़्म-ए –हस्ती‘, जो आप, हम, तथा समाज और विश्व पर आधारित है| यूँ कह सकते हैं, कि बज़्म-ए-हस्ती, मानव समूह से जुड़ा हुआ एक जीवन यात्रा है| यह पुस्तक, प्यार, मोहब्बत, आशा, निराशा और दर्द की भावना पर आधारित है, जो प्रत्यक्ष व यथार्थ न होकर भी सच्चाई की ओर इशारा करती है| जैसे इनकी एक ग़ज़ल है:

“रूह कालिब में दो दिन का मेहमान है
कफस में बंद ज्यों शौके गुलिस्तान है”

इनकी ग़ज़लें प्यार-मोहब्बत की महत्ता में सूने आसमान की काल्पनिक उड़ानें भरी हैं, तो कभी अँधेरे से टकराती हुई, सूरज की रोशनी तक को अपनी सहेली बनाई हैं| जिसे युग की सार्थकता से हम इनकार नहीं कर सकते| जहाँ तक मेरा विश्वास है, इनकी ग़ज़लें एहसास की उस दुनिया से भी हमारी मुलाक़ात करने में सक्षम हैं, जिसे लोग अपना स्तित्व और दुनिया कहते हैं|

डॉ. तारा, इस ग़ज़ल-संग्रह में, हमें अपनी ग़ज़लों द्वारा उन रंगों से भी परिचय कराने की भरपूर कोशिश की, जिसमें पूर्ण रूपेण सफल भी हुई हैं, जिसमें शहर- गाँव, धूप-छाँव, आँधी-तूफ़ान, रिश्ते-नाते की मंजरनामा भी है| डॉ. तारा का मानना है, ग़ज़ल, लोक-भावना और लोक-नाद का दर्पण और बेवसी की चित्कार होती है, जो सुंदर शब्दों में ढलकर फड़कती है| इसके साथ ही ग़ज़ल, भूली- बिसरी यादों और वादों की नोवेल होती है, जिसमें मिस्री घुली प्रेम की बातें भी होती हैं|

इनकी ग़ज़लों को पढ़ते वक्त, कभी- कभी तो ऐसा महसूस होता है, इनमें से कुछ ग़ज़लें, डॉ. तारा के निज दर्द और उदासी की भावनाओं पर आधारित हैं|

सब मिलाकर, डॉ. तारा की बेमिसाल लेखनी की मार्मिकता और भावुकता, से भरी हर ग़ज़ल, सजीव हो उठती है| गज़लकार तारा को ऐसी ग़ज़ल-संग्रह, हम पाठकों को पढ़ने देने के लिए, अनेकों धन्यवाद!

Languageहिन्दी
Release dateAug 15, 2021
ISBN9781685236274
बज़्म-ए-हस्ती
Author

डॉ. तारा सिंह

Dr. Tara Singh, well known Hindi Litterateur, a versatile writer, taking keen interests in writing Poems, Short Stories, Novels, Ghazals, Filmy Songs and Essay Books.She always deals with real facts and original aspects of a relationships between individuals / family members / friends. Thus, she illustrates not only the pleasant love but also sometimes resulting development like despair, betrayals and disloyalties.With publication of 46 books (Novels-4, poetry books-20, story books-15, Ghazal books-7), she is presently working as the Editor-in-Chief and Administrator of www.swargvibha.com (A leading Hindi Website) and the Swargvibha Hindi quarterly magazine. She has gotten wide applauses for her emotional and thoughtful Poems, Stories and Ghazals, while dealing with Social and Family issues, Personal and Social delicacies, Philosophy of life and Reality, Birth and Death Cycles, etc.Dr. Tara Singh's outstanding works have been duly recognized and she has already been awarded 255 awards / felicitations / trophies from both National and International Organizations of repute. Her writings / books are now available at www.swargvibha.com and www.kukufm.com (As Audiobooks), Google books, www.amazon.in, www.flipkart.com, Insta Publish, Suman Publications, www.pothi.com, Central and State Libraries in India and 30 other websites world over, etc. Her Biography, “TARA SINGH AUTHOR” has been published by Barnes and Noble (USA 2011) and also by Rifacimento International, 9 times in Who's Who (2006-2019) and Wikipedia. Her writings are always full of serious thoughts, topics, pace of happenings and philosophy of life.

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    बज़्म-ए-हस्ती - डॉ. तारा सिंह

    बज़्म-ए-हस्ती

    ग़ज़ल - संग्रह

    डॉ. तारा सिंह

    बज़्म-ए-हस्ती

    ग़ज़ल - संग्रह

    Author: Dr. Tara Singh

    Published: August 2021

    First Edition

    Printer Details: Paperback

    Copyright: Dr. Tara Singh

    All rights reserved including reproduction in

    whole or in part in any form

    Publisher: Swargvibha Publishing House

    Publisher Address: A-1601, Sea Queen Heritage,

    Plot-6, Sector-18, Sanpada, Navi Mumbai, Maharashtra - 400705

    अपनी बात

    पुस्तक की लगभग सभी ग़ज़लें हमसे, आपसे तथा समाज और विश्व से कहीं न कहीं, आधारित हैं| हम यूँ कह सकते हैं कि ये ग़ज़लें मानव समूह से जुड़ा हुआ एक जीवन-यात्रा है| इसमें उदासी और दर्द की भावना विशाल मानव अनुभव पर आधारित है, जो कि प्रत्यक्ष व यथार्थ न होकर भी सच्चाई की और इशारा करती हैंउदाहरण के लिए:-

    ‘हर शाम बैठकी, बिठाई जाती है

    हर रोज बेटी, शूली चढ़ाई जाती है|

    हर जख्म एक दूजे से अलग हो

    इसकी पूरी एहतियात बरती जाती है|

    हर बार रश्म के निभाने के पहले

    मुँह पर काली पोती जाती है|

    फिर घर के कोने में रखे पेट्रोल को

    छींटकर आग लगाई जाती है|

    बदकिस्मत है बेटी, खर-फूस की तरह

    जमाने के हाथों रोज जलाई जाती है|’

    इनमें से कुछ ग़ज़लें, प्यार-मोहब्बत की महत्ता में, सूने आसमान की भी काल्पनिक उड़ाने भरी हैं| अंधेरे से टकराती हुईंसूरज की रौशनी तक को अपनी सहेली बनाई हैं, जिसे युग की सार्थकता से इनकार नहीं किया जा सकता| जहाँ तक मेरा विश्वास है, ’बज़्म-ए-हस्ती‘, आपको एहसास की अनदेखी दुनिया तक न ले जाये, फिर भी कम से कम, उस दुनिया से आपकी मुलाक़ात कराने में अवश्य सक्षम होगीलोग अपना स्तित्व और दुनिया कहते हैं| यह ग़ज़ल-संग्रह, आपका परिचय उन सभी रंगों से कराने का प्रयत्न करेगी, जिसमें शहर-गाँव, धूप-छाँव, आँधी-तूफ़ान, रिश्ते–नाते की मंजरनामा रहती है| उदाहरण के लिए:-

    ‘चोरी- डकैती, खून-खराबा, अपना मान हुआ

    पग-पग लाशें बिछीं, शहर वीरान हुआ

    महाकाल बन आतंकी घूम रहे गलियों में

    आदमी का मरना कितना आसान हुआ

    दुःखी इंसान किसके गले लगकर रोय

    पराया तो पराया, अपना भी अनजान हुआ

    जहाँ से चलकर मनुज यहाँ तक पहुँचा

    मुड़कर देखा तो, वह भी गुमनाम हुआ

    हर तरफ है बस यही चर्चा, पाखंडी बाबा

    जो आदमी का था दुश्मन, अब भगवान हुआ'

    मैं मानती हूँ, ग़ज़ल, लोक भावना और लोकनाद की धड़कन का दर्पण और बेवसी की चित्कार होती है| जो सुन्दर शब्दों में ढलकर फड़कती रहती है| ग़ज़ल भूली-बिसरी यादों की और वादों की नोवेल होती है| इसमें गज़लकार की कथा भी होती है, मिस्री घुली प्रेम की बातें भी होती हैंयूँ कहिये, अधिकतर ग़ज़लें मानव समूह से जुडी एक जीवन-यात्रा है|जिसमें मनुज के अपने बुनियादी मूल्यों की हैसियत को रखते हुएदर्द और उदासी में पलते देखा जा सकता है|

    मेरी गजलों का दर्द किसी दार्शनिक पीड़ा की देन नहीं है, बल्कि यह दर्द और उदासीमेरी भावनाओं के आधार पर आधारित है| आप पाठकों को यह ग़ज़ल-संग्रह, आपके अनुभव की जड़ों को हिलाने

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