Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

जियें तो जियें ऐसे
जियें तो जियें ऐसे
जियें तो जियें ऐसे
Ebook881 pages8 hours

जियें तो जियें ऐसे

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

राजेश एक मिडिल क्लास का लड़का है जो एक नौकरी करता है पर उसके बड़े सपने हैं और वह अपने लिए एक आर्थिक स्वतंत्रता चाहता है । वह नौकरी करना नहीं चाहता पर क्या करे कैसे अपने आप को इससे मुक्त करे और आर्थिक  स्वतंत्रता हासिल करे । वह जिससे  भी सलाह लेता है वह उसे जैसे चल रहा है वैसे ही चलते रहने और जीवन में सपनों के पीछे  न भागने की सलाह देता है। पर कहते हैं न कि जिसके अंदर एक बार कुछ करने की आग लग जाए वह किसी के रोके रुकता नहीं और ऐसे ही लोग दुनिया में वो करते हैं जो पहले किसी ने न किया हो । रूमी ने कहा है 'जिसे आप ढूंढ़ रहे हैं वह भी आपको ढूंढ़ रहा है' । जब राजेश का मस्तिष्क इन बातों से भर गया तो उसे दैवीय मदद मिली और फिर राजेश को एक व्यक्ति मिला जिसने उसे सही सलाह दी और उसे कुछ ऐसा सिखाया कि राजेश ने केवल तीन ही साल में अपने कई बिजनेस खड़े करके नौकरी से इस्तीफा देकर अपनी स्वतंत्रता हासिल कर ली । राजेश यह सब कैसे कर पाया, उसने ऐसा क्या सीखा और किया जिससे उसने अपनी ज़िंदगी बदल ली बस उसी की एक रोमांचक कहानी है इस किताब में। यह किताब हर उस व्यक्ति के लिये है जिसके बड़े सपने हैं और जो जीवन में कुछ  करना तो चाहता है पर कर नहीं पा रहा है, ढूँढ रहा है कि कहाँ से शुरू करे । सफलता केवल उनको मिलती है जो उसके लिये तैयार होकर बैठे होते हैं और यह तैयारी कैसे की जाए बस यही इस पुस्तक से आप सीखेंगे।राजेश एक मिडिल क्लास का लड़का है जो एक नौकरी करता है पर उसके बड़े सपने हैं और वह अपने लिए एक आर्थिक स्वतंत्रता चाहता है । वह नौकरी करना नहीं चाहता पर क्या करे कैसे अपने आप को इससे मुक्त करे और आर्थिक  स्वतंत्रता हासिल करे । वह जिससे  भी सलाह लेता है वह उसे जैसे चल रहा है वैसे ही चलते रहने और जीवन में सपनों के पीछे  न भागने की सलाह देता है। पर कहते हैं न कि जिसके अंदर एक बार कुछ करने की आग लग जाए वह किसी के रोके रुकता नहीं और ऐसे ही लोग दुनिया में वो करते हैं जो पहले किसी ने न किया हो । रूमी ने कहा है 'जिसे आप ढूंढ़ रहे हैं वह भी आपको ढूंढ़ रहा है' । जब राजेश का मस्तिष्क इन बातों से भर गया तो उसे दैवीय मदद मिली और फिर राजेश को एक व्यक्ति मिला जिसने उसे सही सलाह दी और उसे कुछ ऐसा सिखाया कि राजेश ने केवल तीन ही साल में अपने कई बिजनेस खड़े करके नौकरी से इस्तीफा देकर अपनी स्वतंत्रता हासिल कर ली । राजेश यह सब कैसे कर पाया, उसने ऐसा क्या सीखा और किया जिससे उसने अपनी ज़िंदगी बदल ली बस उसी की एक रोमांचक कहानी है इस किताब में। यह किताब हर उस व्यक्ति के लिये है जिसके बड़े सपने हैं और जो जीवन में कुछ  करना तो चाहता है पर कर नहीं पा रहा है, ढूँढ रहा है कि कहाँ से शुरू करे । सफलता केवल उनको मिलती है जो उसके लिये तैयार होकर बैठे होते हैं और यह तैयारी कैसे की जाए बस यही इस पुस्तक से आप सीखेंगे।

Languageहिन्दी
Release dateJan 24, 2021
ISBN9781393558200
जियें तो जियें ऐसे

Related to जियें तो जियें ऐसे

Related ebooks

Reviews for जियें तो जियें ऐसे

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    जियें तो जियें ऐसे - Mahesh Jethmalani

    अनुक्रमणिका (INDEX)

    प्राक्कथन (Preface)

    हर व्यक्ति दुनिया में सफलता की प्राप्ति के लिए ही कार्य करता है परंतु वह सफल नहीं हो पाता । उसकी इस असफलता के बहुत सारे कारण होते हैं।

    असफलता का सबसे बड़ा कारण यह होता है कि लोग यह नहीं जानते कि सफलता का भी एक विज्ञान है। उसके भी निश्चित नियम और सिद्धान्त हैं । यदि उनका अध्ययन, अभ्यास और पालन किया जाये तो सफलता को भी पाया जा सकता है। जितने भी लोग सफल होते हैं उन्होंने किसी न किसी रूप में जाने-अंजाने उन सफलता के नियमों और सिद्धांतों का पालन किया ही होता है। इन नियमों और सिद्धांतों को लोग अपने जीवन में अलग- अलग समय और परिस्थितियों में सीखते हैं। किसी को ग़रीबी, किसी को अमीरी तो किसी को उसकी परिस्थितियाँ ये सब सिखा देती हैं ।

    दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि लोगों को उनकी बचपन में की गई अनुकूलता के बारे में मालूम ही नहीं होता, वे यह नहीं जानते कि उन्हें मध्यमता (Mediocrity) के लिए अनुकूलित किया गया है । अतः सफलता पाने वाले लोग उनके लिए अलादीन के चिराग की भांति होते हैं। उन्हें लगता है कि यह सब उनके बस की बात नहीं है और वे यह सब नहीं कर पाएंगे । उनके पास इसके लिए कई बहाने होते हैं जैसे पैसा, उच्च शिक्षा, ऊंचा खानदान, पहुँच या कई वर्षों का अनुभव इत्यादि न होना । परंतु सबसे रहस्यमय बात यह है कि किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के पास, जैसी कि भ्रांति है के विरुद्ध, ये  सब चीज़ें  होना आवश्यक नहीं है। ये केवल असफल लोगों के अपनी असफलता की सफाई देने के बहाने हैं।

    सफलता आप जो भी काम कर रहे हैं केवल उसके प्रति आपका जुनून (Passion), दृड़ विश्वास (Strong Belief) और स्थिरता (Persistence) मांगती है । सफलता पाने के लिए उस विषय के बारे में आपकी जानकारी या महारत भी उतनी आवश्यक नहीं जितनी ये तीन चीज़ें ज़रूरी हैं । शुरू में हो सकता है आपके पास उस विषय की सम्पूर्ण जानकारी या महारत न हो पर आपका जुनून उसकी कसर पूरी कर देता है। आप देखेंगे कि विभिन्न क्षेत्रों में जो भी लोग सफल हुए वे उस समय के उस विषय में सबसे अधिक जानकार नहीं थे पर उनके उपरोक्त तीन गुणों ने ही उनको सफलता दिलाई। यदि आप जुनून और दृड़ विश्वास के साथ सफलता की राह पर चलते रहें तो अवश्य सफल हो सकते हैं।

    सफलता की शुरुआत विचारों से होती है । अनगिनत विचार हमारे मन में प्रतिदिन आते हैं और उनमें से ही एक विचार किसी का कोई सपना बन जाता है और उस सपने पर वह व्यक्ति एक पूरी इमारत खड़ी कर देता है और लोगों के लिये वह एक विशाल सफलता बन जाती है। विचार ही वह बीज है जो किसी भी सफलता को अपने आप में से एक पेड़ की तरह निकालता है। अतः हमें विचारों के बारे में बहुत ही सावधान रहना चाहिए कि फालतू के विचार हमारे मन में आयें भी तो हम उन्हें पनपने न दें अन्यथा वे हमारी सफलता की कब्र बन सकते हैं ।

    नेपोलियन हिल ने कहा था इच्छा किसी भी वस्तु को प्राप्त करने का  प्रारम्भ है, मात्र एक आशा नहीं, न ही तमन्ना परंतु एक धड़कती इच्छा जो सब कुछ भुला दे ।  पर ऐसा देखा गया है कि लोगों की इच्छाएं तो अनंत को प्राप्त करने की होती हैं पर उसके लिये काम कोई नहीं करना चाहता। उन इच्छाओं में से सबसे ज्वलंत एक इच्छा को निकाल कर जो उसे अपना सपना बना लेता है वही व्यक्ति सफल हो जाता है। सपनों के बारे में हम इस पुस्तक में विस्तृत चर्चा करेंगे।

    हमारे अवचेतन मन (Subconscious Mind) की शक्तियाँ अनंत हैं जिसके बारे में बहुत कम लोगों को मालूम है। सफलता प्राप्त करने के लिए जो कुछ चाहिए वह सब हमारे अवचेतन मन के द्वारा ईश्वर ने पहले से ही हमारे अंदर डालकर हमें इस धरती पर भेजा है। हमें केवल उसे काम में लेना सीखना है। जब हम अवचेतन मन की शक्तियों का अध्ययन करते हैं तो हमें पता लगता है कि दुनिया का कोई तंत्र इसकी बराबरी नहीं कर सकता परंतु लोग फिर भी अपने आप से बाहर सफलता के शॉर्ट-कट ढूंढते फिरते हैं। सफलता के सारे शॉर्ट और लॉन्ग-कट हमारे अंदर ही हैं। पर वो सब तब कार्य करते हैं जब आप कर्म करें या एक्शन लें। बैठे बिठाये कुछ भी काम नहीं करता।  

    आज के परिपेक्ष्य में देखें तो केवल सफलता पाना ही लोगों का ध्येय हो गया है फिर चाहे किसी भी तरह से वह प्राप्त की जाये जो कि प्रकृति के सिद्धांतों के विपरीत है। यदि आपकी सफलता समाज के लिए कुछ अच्छा लेकर आती है तो वह स्थाई होगी अन्यथा वह अस्थायी ही होगी। इसी प्रकार सफलता यदि आचार नीति (Ethics) और मानव मूल्यों (Moral Values) को ध्यान में रखकर प्राप्त की जाये तो वह स्थायी होती है अन्यथा अस्थायी। आपने कई बड़े उद्योगों को नई-नई ऊँचाइयाँ छूते हुए और फिर गर्त में जाते हुए भी देखा होगा उनका कारण यही रहा है कि उन्होंने सिद्धांतों की परवाह नहीं की ।

    उन्होंने किसी बड़े उद्योग को चलाने के लिए जो ज़रूरी चीज़ें हैं उनका ध्यान नहीं रखा । केवल नफ़ा कमाना ही बिज़नेस नहीं कहलाता । हेनरी फोर्ड ने कहा भी है कि अगर पैसा कमाना ही आपका बिज़नेस है तो आप गलत धंधे में हैं (A business that makes nothing but money is a poor business)। चाहे बड़ा बिज़नेस चलाना हो या केवल एक व्यक्ति को अपने आपको,आचार नीति और मानव मूल्य समान ही रहेंगे। क्योंकि बड़े से बड़े बिज़नेस को भी एक आदमी ही चलाता है और उसी आदमी के मूल्य उस बिज़नेस का भविष्य निर्धारित करते हैं। कर्मचारी तो हमेशा मालिक के ही पीछे चलते हैं। अभी हाल ही में जो येस बैंक, डीएचएफ़एल, पीएमसी बैंक और आईएल&एफ़एस जैसी  बड़ी कंपनियाँ असफल हुईं हैं उनका मूल कारण यही रहा है। 

    समय के बारे में बात करना सूरज को दिया दिखाने जैसा है।  यह ऐसी वस्तु है जिसके बिना कोई भी कुछ कर नहीं सकता और इसकी कमी ही सबको इसके पीछे भागने पर मजबूर कर देती है। समय दो होते हैं एक तो जो प्रतिक्षण चल रहा है और जिसे हम घड़ी से माप लेते हैं और दूसरा वह जिसे हम न माप सकते हैं न जान सकते हैं कि यह कब आएगा। दुनिया में जिसे कहते हैं कि ‘समय से पहले किसी को कुछ मिला नहीं’ वो वाला समय। अर्थात सही क्षण, अवसर का क्षण, सफलता का क्षण। जिसे देखिए इसके लिये ही काम करता है और किसी के लिये यह एक मिनट में आ जाता है तो किसी के लिए इसे आने में बरसों निकल जाते हैं और उसे यह क्षण नहीं मिलता। चाहे जितना काम कर लीजिए पर सफलता कब मिलेगी यह कोई नहीं कह सकता। सपनों को प्राप्त करने की निश्चित तिथि सही सही कोई नहीं बता सकता। यही वह वस्तु है जो हमें उस सर्वशक्तिमान प्रभु के अस्तित्व की अनुभूति करवाती है। यही हमारी साँसों के बारे में भी है कि वे कब तक चलेंगी कोई नहीं जानता। मनुष्य उस अनंत की ताकत के सामने बौना ही रह जाता है। इसे कैसे काम में लें इस पर हम विस्तृत बात करेंगे।

    हमारी ख़ुशी सीधी हमारी आध्यात्मिकता ( Spirituality )से जुड़ी है । आध्यात्मिकता के बारे में  ज़्यादातर यह भ्रांति है कि यह धर्म से जुड़ी वस्तु है और सफलता या बिजनेस की बात करते समय इसे दूर ही रखना चाहिए। परंतु ऐसा नहीं है। आध्यात्मिकता का व्यक्ति के जीवन, विचार, सोच, सोच के तरीक़ों से उतना ही संबंध है जितना कि दूध का पानी से। पानी के बिना दूध का क्या अस्तित्व? इसी प्रकार आध्यात्मिकता के बिना आपकी सोच और सफलता का क्या अस्तित्व ? सफलता के लिए जो आपकी सोच होनी चाहिए वह आपको आध्यात्मिकता के सिद्धांतों का पालन करने से तुरंत मिल जाएगी।  इसके बारे में अधिक जानकारी हम आध्यात्मिकता के अध्याय में लेंगे।

    इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपको सफलता प्राप्त करने के लिए आपकी क्षमता और उसे कैसे बढ़ाया जा सकता है, आप अपने अवचेतन मन से कैसे सहायता ले सकते हैं, आप कैसे अपने सारे सपने सच कर सकते हैं, इस संसार में आप अकेले की ताक़त से क्या कर सकते हैं, आपका इस संसार में आने का प्रयोजन आदि के बारे में जानकारी मिलेगी।  

    यह पुस्तक किसी भी व्यक्ति के लिये, जो सफलता की परिभाषा से भी अनभिज्ञ हो, अपने सपने से आरंभ करके सफल होने तक की प्रक्रिया का, विद्वानों व सफल व्यक्तियों के वाक्यांशों, उदाहरणों व रोचक कहानियों से परिपूर्ण, जहां आवश्यक हो अंग्रेज़ी में मूल वाक्यांश उद्धृत, सरल भाषा में वर्णित एक संपूर्ण ग्रंथ है ।

    शुभेच्छा सहित,  

    महेश जेठमलाणी,  2021

    1

    सफलता क्या है ?

    What is Success

    राजेश एक बी ए पास महत्वाकांक्षी नौजवान था, वह दिल से नौकरी नहीं करना चाहता था, वह एक उद्योगपति और अपना मालिक खुद बनना चाहता था । इस संसार में कौन व्यक्ति अमीर नहीं बनना चाहता, कौन बंगले, गाड़ियों और नौकर-चाकरों से नफ़रत करता है — रोज़ सुबह उठकर उस 8 घंटे की नौकरी पर कौन जाना चाहता है, कोई भी नहीं ।

    क्या आपको मालूम है कि सभी के लिए रविवार का दिन सबसे अच्छा क्यों होता है? क्योंकि उस दिन जल्दी नहीं उठना पड़ता, नौकरी वालों को बॉस की सुननी नहीं पड़ती। मस्तिष्क में  कोई तनाव नहीं होता। शनिवार की रात को भी लंबा खींच सकते हैं, दोस्तों के साथ बैठकर पार्टी वगैरह कर सकते हैं । पूरा दिन अपनी मर्ज़ी से जो चाहे कर सकते हैं ।  

    किसी भी नौकरी करने वाले की यही सोच होती है । उनके लिए 8 घंटे की नौकरी कर लेना ही बस जीवन होता है । सप्ताहांत में जो भी समय मिले उसे वे जेल से छूटे क़ैदी की तरह मनोरंजन या खराब करने में काम में लेना चाहते हैं।

    राजेश कुछ समय पहले उस नौकरी को छोड़कर दूसरी और अच्छी नौकरी में चला गया था जहां वेतन ज़्यादा था पर ज़िम्मेवारी भी ज़्यादा थी । यहाँ उसने तीन साल नौकरी की और काम सीखकर फिर उसने कंपनी बदली और उससे भी ऊंची तंख्वाह पर 5 साल से काम कर रहा था और अब उसकी बैंक में काफी जमा पूंजी हो गयी थी और अब वह नौकरी छोड़कर उसके सपनों की दुनिया में जाना चाहता था। उसका सपना था कि उसका एक अच्छा उद्योग हो जिससे उसको फिर कभी नौकरी न करनी पड़े और दुनिया की सभी सुख सुविधाएं जो धनाड्य वर्ग में होती हैं वे उसे भी मिलें ।

    परंतु समस्या वही थी कि एक मध्यम वर्ग के व्यक्ति को बचपन से ही यह सिखा दिया जाता है कि बड़े सपने मत देखना, हवा में मत उड़ना, तू क्रिकेट तो अच्छी खेलता है पर सचिन बनने के सपने मत देखना, तू सचिन नहीं बन सकता है, तू म्यूजिक तो अच्छा बजा लेता है पर ए आर रहमान जैसा संगीतकर नहीं बन सकता, तू जिम में जाकर हैल्थ तो अच्छी बना लेगा पर अर्नोल्ड श्वार्ज़्नेगर नहीं बन सकता। इसलिए अच्छी पढ़ाई लिखाई करो और कोई सरकारी नौकरी पकड़कर शादी-वादी करके घर बसालो। सुखी रहोगे।

    यह सलाह होती है हमारे मध्यम वर्ग के लोगों की — अपने बच्चों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के लिए।

    हाल ही में राजेश को एक सफल व्यक्ति से मिलने का मौका मिला और उसने उसकी सलाह से कुछ किताबों का अध्ययन किया और उस कुछ अध्ययन से उसकी पूरी विचारधारा ही बदल गयी। उसकी सोच अब कुछ भी कर सकने की बन गयी थी। वो अपने सपनों को प्राप्त करने के लिये कुछ भी करने को तैयार था।

    पर क्यों? क्योंकि उसे लगता था कि उसमें कुछ अलग है जो उसे बाकी लोगों से आगे ले जा सकता है । उसे इस मध्यमता (Mediocrity) से बाहर निकलना था।

    उसने एक दिन अपने मित्र रमन से यूं ही थाह लेने के लिए पूछा, यार कुछ धंधा पानी करने की सोच रहा हूँ? नौकरी तो बहुत हो गयी अब ज़रा धंधा भी करके देख लिया जाए, तुमारी क्या राय है ?

    रमन आश्चर्य से बोला, क्या बात कर रहा है नौकरी छोड़ेगा? पागल हो गया है क्या? धंधे-वंदे चलते नहीं हैं आजकल – फिर तेरे कौन से खानदान वालों ने धंधे किए हैं? भैया धंधे वाले लोग अलग ही होते हैं । अपन लोग उन लोगों से अलग हैं। कहाँ वो (राजा भोज) और कहाँ हम (गंगू तेली)। हाँ साइड में कोई छोटा-मोटा धन्धा करना है तो ट्राइ कर ले पर नौकरी मत छोड़ना। आजकल बड़ी मुश्किल से मिलती है। और नौकरी में कोई जिम्मेवारी तो होती नहीं। शाम के 5 बजे और जय राम जी की । मालिक जाने और उसका धन्धा, अपना क्या? अपने राम तो पहली तारीख़ को तंख्वाह ली और एक महिने की छुट्टी । काम भी ऐसे करो कि मालिक हमेशा आप पर निर्भर रहे। अगर सब कुछ उसे आ गया तो तुमको कौन रखेगा। खटके की नौकरी करो भैया । तुम उस पर नहीं वो तुम पर निर्भर होना चाहिए ।

    राजेश ने रमन का धन्यवाद दिया और तुरंत वहाँ से निकल गया। उसे लगा कि अगर थोड़ी देर और उसने रमन से बात की तो फिर उसे घर जाकर अपने आप को उसकी दी गई नकारात्मकता (Negativity) को निकालने के लिए कुछ ज़्यादा ही करना पड़ेगा। उसे रमन जैसे लोगों से यही उम्मीद थी। उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। आखिर राजेश खुद भी तो मध्यम वर्गीय परिवार से ही था, उसे खुद को भी तो उसके परिवार वालों से यही सीख मिली थी ।  

    जिसकी नौकरी कर रहे हो उसी को अपने आप पर निर्भर करने की बात भला सोची भी कैसे जा सकती है। मालिक नौकर को तंख्वाह देता है तो नौकर उस पर निर्भर या मालिक उस पर? हाँ, एक काम करते आदमी को कोई निकालना नहीं चाहेगा । कारण कि फिर नया आदमी ढूंढो, उसे सिखाओ, उसे बताओ, और सीखते-सीखते समय लगता है तब तक फिर मालिक की सिरदर्दी । पर इसका मतलब ये तो नहीं कि मालिक आप पर निर्भर हो गया । और फिर किसी की मजबूरी का फायदा उठाना कौनसी अच्छी बात है।

    पर रमन जैसे लोग शायद ये भूल जाते हैं कि नौकर, नौकर होता है और मालिक, मालिक ।  वो जिस दिन चाहे आपको नौकरी से निकाल दे, फिर क्या करोगे? दूसरी नौकरी ढूँढने में तो फिर तुमको भी टाइम लगेगा । मालिक को तो दूसरा मिल जायेगा । तुम ही तो कह रहे हो नौकरी मुश्किल से मिलती है यानि नौकरी ढूँढने वाले ज़्यादा है और नौकरियाँ कम, तो फिर मालिक को तो नौकर एक ढूंढो दस मिलने वाली बात है। पर कहते हैं न, किसी की शराफ़त का नाजायज़ फ़ायदा उठाना। वो बात है, मालिक बेचारा गलतियाँ माफ़ कर देता है और नौकरी से नहीं निकालता है तो तुम्हें लगता है वो तुम पर निर्भर हो गया है। बेवकूफ़ी की इससे बड़ी हद क्या होगी?

    घर पहुँचकर राजेश ने अपनी माँ को बताया कि वो क्या सोच रहा था । परंतु माँ ने भी उसे वही सलाह दी जो रमन ने दी थी। माँ भी मध्यम परिवार से ही थी और उनकी भी मानसिकता वैसी ही थी । परंतु राजेश को चैन कहाँ था । उसके अंदर से तो जैसे कोई चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि तुम बहुत कुछ कर सकते हो, सफल हो सकते हो — शुरू तो करो, तुम नौकरी करने के लिये पैदा नहीं हुए हो, अपने आप को मुक्त करने की शुरुआत तो करो । तुम धरती पर जीतने के लिए पैदा हुए हो । तुम अपने जन्म के साथ ही कुछ बड़े सपने सच करने का अधिकार लेकर आए हो, अपने जन्मसिद्ध अधिकार का प्रयोग तो करो ।

    प्रायः ऐसा होता ही है कि जिसे कुछ नया, बड़ा या अनोखा करना होता है उसकी अंतरात्मा ही उसको प्रेरणा देती है और वो उस काम पर निकल जाता है। कई बार तो कहते हैं न कि आदमी का साया भी उसका साथ नहीं देता, परिवार और बाकी सबकी तो छोड़ो । ऐसी स्थिति में आदमी का केवल एक ही मित्र होता है और वो है उसका ज़मीर, उसका विवेक, उसकी आत्मा । इसीलिए कहते हैं कि,

    खुदी को कर बुलंद इतना कि हर ख़ुदी से पहले ख़ुदा बंदे

    से पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है । अल्लामा इक़बाल

    अब राजेश के पास एक ही रास्ता बचा था । वो उठा और शर्मा जी के ऑफिस जाने के लिए तैयार हुआ । शर्मा जी एक बहुत ही सफल उद्योगपति थे। हालांकि वे पैदाइशी रईस नहीं थे पर वे अपनी मेहनत और लगन से आज बहुत बड़े उद्योगपति थे। राजेश ने शर्मा जी के यहाँ तीन साल नौकरी की थी । वे बड़े ही उदार व्यक्ति थे और किसी को भी ग़लत सलाह नहीं देते थे । जब राजेश उनके यहाँ नौकरी करता था तब उन्होंने उसके काम को देखकर उससे कहा भी था कि, तुम दूर तक जाओगे राजेश। समय का इंतजार करो । समय अपने आप तुम्हें भट्टी में तपने के लिये डालेगा । और राजेश के अंदर जितनी आग लगी थी शायद उसका तपने का समय आ गया था । 

    राजेश तुरंत उन्हें फोन पर बात करके उनके ऑफिस पर मिलने पहुंचा । राजेश उनके पास करीब दो घंटे तक बैठा और उनसे बात करता रहा इस बीच दो बार शर्माजी ने चाय और बिस्किट भी मँगवाए ।

    दो घंटे बाद जब राजेश वहाँ से निकला तो उसका चेहरा उत्साह से दमक रहा था। उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे । उसे लग रहा था जैसे वह हल्का हो गया है, हवा में उड़ रहा है। उसके मस्तिष्क में कुछ योजना बन रही थी और उसे अब उस पर काम करना था।   

    ***

    तीन साल बाद अचानक रमन की मुलाक़ात एक पेट्रोल पम्प पर राजेश से हुई जो पहले तो पहचान में ही नहीं आया पर ध्यान से देखने पर रमन ने उसे पहचान लिया और उसे आवाज़ लगाता हुआ उसकी गाड़ी के सामने पहुँच गया । राजेश ने जैसे ही उसे देखा तुरंत हाथ बढ़ाकर कहा, रमन, क्या हाल है, कैसे हो मेरे दोस्त? रमन ने देखा राजेश पूरा बदल गया था । वह दूर से कोई धनी उद्योगपति लग रहा था । उसकी गाड़ी। उसका हुलिया, उसके चेहरे की चमक और उसका आत्मविश्वास देखकर रमन दंग रह गया । 

    बहरहाल वो अपने कौतूहल पर काबू पाकर कुछ कहता इससे पहले राजेश ने अपना हाथ मिलाने के अंदाज़ में आगे बढ़ाते हुए कहा, यार अभी थोड़ा जल्दी में हूँ, करीब आठ बजे के बाद शाम को मिलते हैं, आने से पहले फोन कर लेना, ये मेरा कार्ड है, और वो अपनी गाड़ी लेकर वहाँ से तेज़ी से निकल गया।

    शाम को रमन का फोन आया और राजेश ने उसे शाम 8.30 बजे का समय दे दिया । रमन बहुत ही उत्सुक था राजेश के बारे में जानने को। सुबह से उसका दिमाग उससे बार-बार ये सवाल पूछ रहा था कि राजेश ने आखिर ऐसा क्या किया जिससे वो नौकरी छोड़कर भी अमीर हो गया। रमन को कुछ ही दिन पहले किसी से पता लगा था कि राजेश ने नौकरी कब की छोड़ दी थी।  जब रमन राजेश के घर पहुंचा तो राजेश ने उसका स्वागत किया। रमन ने राजेश का घर देखा तो उसकी आंखेँ आश्चर्य से फैली रह गईं। घर क्या था कोई छोटा सा महल था। कई गाडियाँ खड़ी थीं और नौकर चाकर ऐसे घूम रहे थे जैसे कोई ऑफिस चल रहा हो। कुछ लोग तो ऐसे दिखे जैसे वहाँ किसी ऑफिस में काम कर रहे हों।

    कुछ इधर-उधर की बातों के बाद रमन सीधा अपनी उत्सुकता के सवालों पर आ गया ।

    उसने पूछा, राजेश, यार आज कल क्या कर रहे हो? नौकरी कर रहे हो या छोड़ दी? यार इतने नौकर चाकर, ये घर, इतना सब कैसे किया तुमने तीन साल में?  

    राजेश ने कहा, केवल अपनी सोच को बदलकर

    रमन, मतलब  ।

    राजेश, लोग गरीब या अमीर अपनी सोच के कारण होते हैं। और अपनी सोच को गरीब से अमीर बनाने में कोई पैसा नहीं लगता। अफसोस, लोग मुफ़्त में होने वाला काम भी नहीं कर पाते और खाली मजूरी करने में ही अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं।

    रमन ,मैं समझा नहीं। ज़रा अच्छे से बताओ।

    राजेश,अभी तुम 20000 रुपए महीने के कमाते हो।

    रमन, हाँ ।

    राजेश, क्या तुम 50000 रुपए महिने के कमाने के बारे में सोच सकते हो?

    रमन,नहीं, इतना पैसा भला मुझे महिने का कौन देगा?

    राजेश,सही बात है कोई आपको पैसा देता नहीं आपको अपना मान ( Value ) इतना बढ़ाना पड़ता है कि पैसा आपको अपने आप मिल जाता है। हाँ काम तो उसके लिए भी करना पड़ता है, मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। पर इसमें मुख्य बात ये है कि पहले आपको अपनी सोच को 50000 रुपए की करना पड़ता है। अगर हम उतना बड़ा सोच ही नहीं पा रहे हैं तो फिर पैसा नहीं आएगा।

    रमन, तो क्या केवल सोच बड़ी कर लेने से हम ज़्यादा पैसा कमा सकते हैं?

    राजेश, निसंदेह ।

    रमन, और वो सोच कैसे बड़ी कर सकते हैं?

    राजेश, मुफ़्त में, सोच बड़ी करने में पैसे नहीं लगते। जैसे अगर तुम 3 रोटी खाते हो तो 4 खाने के लिए क्या करोगे? सोच लोगे कि आज 4 रोटी खाऊँगा ओर माँ से 4 रोटी मांगोगे, अगर मँगोगे नहीं तो माँ तो 3 ही रोटी परोस कर लाएगी। ठीक है न। तुमने कभी कोशिश ही नहीं की कि तुम्हारी आय 20 हज़ार से बढ़कर 50 हज़ार रुपए हो जाए। कभी तुमने सोचा भी तो फिर खुद ही यह सोचकर कि कैसे होगा, छोड़ यार ,चुपचाप बैठ गए । किसी ने तुम्हें कोई तरीका बताया भी तो तुमने उसे कोई धोखा, स्कीम, या फ़्रौड कहकर नकार दिया। ठीक है न?

    रमन, हाँ कह तो ठीक ही रहे हो, हमारी सोच 20 हज़ार से बढ़कर सोचती भी है तो 2-3 हजार और जो कहीं ट्यूशन वगैरह पढ़ाकर कमा सकते हैं। पर उसमें झंझट बहुत है तो सोचते हैं कि इतने से पैसे के लिए क्या करना, छोड़ो। हाँ, एक दोस्त आया था जो कुछ बता रहा था पार्ट टाइम में करके अच्छा पैसा बनाने के बारे में कह रहा था, पर मेरे घर वालों ने कहा रहने दो यह सब बेकार है।

    राजेश, तो घर वालों ने फिर कुछ अच्छा बताया जिससे आय बढ़े ।

    रमन, उनको भला इस बारे में क्या मालूम।

    राजेश,तो फिर उस पहले वाले के बारे में उन्होंने अपनी राय कैसे दे दी और तुमने कैसे ले ली । मुझे भी मेरे घर वालों ने इसी तरह की सलाह दी थी पर मैंने तो नहीं ली और वो किया जो मुझे ठीक लगा।

    रमन, वो हमारे मामाजी हैं न, उनसे सलाह ली थी, तो उन्होंने मना कर दिया। बोले ऐसी स्कीमों के चक्कर में पड़ना मत। अब यार घर वालों को नाराज़ तो नहीं कर सकते न । ?

    वैसे, तुम्हारे मामाजी क्या करते हैं?, राजेश ने पूछा।

    वो एलआईसी के एजेंट है, बीमा बेचते हैं, रमन बोला।

    कितना कमा लेते होंगे महीने का, राजेश ने पूछा।  

    वैसे मुझे तो मालूम नहीं इस बारे में, परंतु माँ बता रही थी कि प्रीमियम के कमीशनों से करीब 30 हजार रुपया महीने का आ जाता है। , रमन बोला।

    तो तुम्हारे मामाजी जो 30000 रुपये महीने के कमाते हैं उन्हें सारी दुनिया की जानकारी है? , राजेश ने पूछा।

    सारी दुनिया की तो नहीं पर मार्केट में सौ तरह के लोगों के संपर्क में आते हैं तो काफी कुछ तो जानते ही होंगे, रमन बोला।

    तो फिर उनकी खुद की आय क्यों नहीं बढ़ती, राजेश ने पूछा।

    रमन खामोश हो गया और कुछ नहीं बोला। तो राजेश ने कहा, क्या है न रमन, ऐसा ही होता है हमारे इस देश में, लोग 30000 रुपए कमा रहे होते हैं न तो जिस काम से एक लाख रुपये महीने के कमा सकें उस काम को करने की बजाय वे उसे ना करने के लिए अपनी सलाह लोगों को दे देते हैं। उनकी खुद की सोच तो 30000 रुपयों से ऊपर जाती नहीं और दूसरों को कहते हैं कि तुम एक लाख नहीं कमा सकते इसलिए इसे मत करना । इसे कहते हैं दिमाग का दिवालियापन।

    राजेश आगे बोला, खैर चलो कोई बात नहीं। यह तो तुम्हारे क्या हमारे घर वालों का भी कुछ समय पहले तक तो यही हाल था। तुम बताओ क्या चल रहा है।

    रमन बोला कुछ नहीं यार, अपनी तो वो बस नौकरी ही है। साल में एक इंक्रीमेंट लग जाता है । बस। पर यार तुम बताओ तुमने किया क्या ये सब करने के लिए।

    राजेश बोला, देखो यार मुझे तो इस मध्यमता वाले जीवन से बाहर निकलना था, वो नौकरी तो मैंने तीन साल पहले ही छोड़ दी थी। उसके बाद मैंने अपने बिजनेस शुरू किए और उससे इतना सब कर लिया ।

    रमन ने आश्चर्य से पूछा , अपने बिजनेस? तुमने बिजनेस कहाँ से सीखे? और कब सीखे जो इतना पैसा बना लिया, मैंने तो सुना है कि बिजनेस आजकल चलते ही नहीं। बिजनेस के लिए पैसा कहाँ से आया तुम्हारे पास ?

    राजेश बोला, बिजनेस के अलावा तो इतने कम समय में आर्थिक स्वतंत्रता कहीं और से मिल ही नहीं सकती। बिजनेस सीखने की चीज़ नहीं है, करने की है। लोग बिजनेस करने की बजाय सीखना चाहते हैं । और इसलिए वे इसे कर नहीं पाते। अगर आप अपने दिमाग में बैठा लो कि मुझे ये काम करना है तो आप केवल बिज़नेस ही नहीं कुछ भी कर लोगे।

    राजेश बोलता रहा।

    यही सफलता के बारे में है । लोग सफल होने की योजनाएं बनाते रहते हैं, उनकी बारीकियाँ निकालते रहते हैं, उनकी यह सोच होती है बस सब कुछ पहले से ही निश्चित कर किसी भी काम में घुसें और तुरंत ही सफल होकर निकल आयें। वे असफलताओं का सामना करना ही नहीं चाहते। इनमें से कइयों को तो यह भी नहीं मालूम होता कि सफलता क्या है और वे सफलता न मिलने पर उस काम को छोड़कर बैठ जाते हैं।

    सफलता क्या होती है ? क्या कोई व्यक्ति बिना अच्छा पैसा कमाए भी सफल कहला सकता है? रमन ने पूछा । 

    राजेश मुस्कुराया और बोला, यही समस्या है इस आज की दुनिया में, कि बिना पैसे के कोई किसी को सफल ही नहीं दिखता, लोगों की सोच यह है कि जब तक करोडों रुपये, गाड़ी बंगला, बड़े बिज़नेस, प्रसिद्धि , बड़े संपर्क इत्यादि न हो तब तक कोई सफल कैसे माना जा सकता है।

    सफलता आखिर क्या है?  

    What is Success?

    सफलता की परिभाषा सबके लिए अलग अलग होती है। एक परिभाषा यह है कि

    किसी मूल्यवान लक्ष्य की लगातार प्राप्ति ही सफलता है।- अर्ल नाइटिंगेल

    The progressive realization of a worthwhile goal is success.

    जैसा कि अरस्तू ने भी कहा है कि

    मनुष्य एक उद्देश्यवादी जीव है।

    यानि वह कोई भी काम किसी उद्देश्य के लिए ही करता है।

    दूसरे शब्दों में कहें तो वह अपने आप को तब सफल मानता है जब वह ऐसा कुछ करता है जो उसे उस ओर ले जाये जिसे वह प्राप्त करना चाहता है।

    अब आपका उद्देश्य क्या है इस पर आपकी सफलता निर्भर करती हैं ?

    सीधे शब्दों में कहें तो जो आप प्राप्त करना चाहते हैं उसका आपको मिल जाना ही सफलता है।

    आज सफलता का समाज में मतलब यह है कि लाखों करोड़ों रुपये, गाडियाँ, बंगले, पद और अन्य ऐशो आराम की सुविधाएँ। पर सफलता केवल ये ही नहीं है।

    क्या सफलता का मतलब लाखों करोड़ों रुपये होता है?

    Does Success mean millions of Rupees?

    ज़्यादातर लोगों को एक गलतफहमी होती है कि सफलता का मतलब लाखों करोड़ों रुपये, बड़ी-बड़ी गाडियाँ, बड़े-बड़े बंगले, नौकर चाकर, फिजूलखर्ची और ऐशो आराम की ज़िन्दगी होती है।

    परंतु ऐसा नहीं है।

    यह केवल कुछ लोगों की गलतफहमी है। लाखों करोड़ों रुपये की धन दौलत या यूं कहिए रुपये से ख़रीदी जाने वाली हर वस्तु सफलता के कई आयामों में से एक तो हो सकती है पर यह अकेली किसी की  सफलता का आयाम नहीं है।

    दुनिया में रूपये पैसे से हटकर भी सफलता है। इसीलिए कहते हैं कि सफलता का मतलब सबके लिए अलग-अलग हो सकता है ।

    जैसे;

    दुनिया में कुछ माताएं हैं जिनका सपना है कि उनका बच्चा संस्कारी हो, गंदी आदतों से दूर हो, पढ़ लिख कर वह वो बने जो वो बनना चाहता है, जो उसका सपना है। और जब उस मां का वो सपना पूरा हो जाता है तो उसकी तो वही सफलता है। वह करोड़पति कहां बनी, क्योंकि उसका सपना ही नहीं था करोड़पति बनने का। परन्तु वो मां तो सफल है क्योंकि उसका सपना तो पूरा हो गया ।

    किसी सर्जन डॉक्टर के लिए ऑपरेशन ठीक से कर लेना ही सफलता है। किसी बूढ़े बुज़ुर्ग के लिए ठीक से उठ-बैठ कर अपने नित्य कर्म कर लेना ही सफलता है।

    एक छोटे बच्चे के लिए अपने पांव पर खड़े हो कर चल लेना सफलता है। किसी छात्र के लिए आईआईटी में प्रवेश पा लेना सफलता है तो किसी कमजोर छात्रा के लिए 40% नंबरों से पास हो जाना उसके परिवार वालों के लिए सफलता है।

    इसी प्रकार किसी अंधे व्यक्ति के लिए रोड पार कर लेना ही सफलता है। किसी पढ़ने में कमजोर विद्यार्थी के लिए पास हो जाना ही सफलता है तो किसी पढ़ने में तेज़ बच्चे के लिए 100% अंक प्राप्त करना सफलता है।

    किसी भिखारी के लिए लोगों से ज़्यादा भीख प्राप्त कर लेना ही सफलता है। 

    किसी के लिए कोई सफल क्रिकेटर, एक्टर या संगीतकार बन जाना ही सफलता है। 

    अतः सफलता की परिभाषा सबके लिए अलग अलग है क्योंकि सबके लक्ष्य अलग अलग हैं।

    ब्रायन ट्रेसी( Brian Tracy )एक सफलतम लेखक हैं और इस क्षेत्र के दिग्गजों में उनका नाम गिना जाता है। वो सफलता के बारे में कहते हैं कि ,

    सफलता  जिस तरह से आप अपना जीवन जीना चाहें उस तरह से जीने और जिन लोगों की

    आप इज्ज़त और प्रशंसा करते हैं  उनके साथ बैठकर वो काम जिसे आपको करने में सबसे ज़्यादा आनंद आए करने में है।

    Success is the ability to live your life the way you want to live it doing what you enjoy most surrounded by people you admire and respect.~Brian Tracy

    क्रिस्टोफर मोरले ( Christopher Morley )एक और सफल लेखक हैं वो कहते हैं कि,  

    आपका जीवन आपके  तरीके से  जीने के काबिल होना ही एकमात्र सफलता है।

    There is only one success to be able to live your life in your own way.

    ये परिभाषा काफी हद तक सही लगती है। क्योंकि अगर कोई गरीब और कम पढ़ा लिखा भी अगर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीकर खुश है और कोई बहुत पढ़ा- लिखा और अमीर उसकी ज़िंदगी उसके तरीके से नहीं जी पा रहा है तो वह पढ़ा लिखा अमीर भी असफल है।

    सफलता के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह ज़्यादातर लोगों को छलावा बनकर भगाती रहती है।

    सफलता एक खेल है जिसे जितना ज़्यादा आप खेलते हैं उतनी ज़्यादा बार आप इसमें जीतते हैं और जितनी ज़्यादा बार आप इसे जीतते हैं उतनी ही सफलता पूर्वक आप इस खेल को जीवन में खेल पाते हैं।

    सफलता की सीढ़ी नीचे भीड़ भरी होती है। यह भी बाकी सभी सीढ़ियों की तरह ही काम करती है । कोई भी अपने हाथ जेब में रखकर इसके शीर्ष तक नहीं पहुँच पाया है जिसका मतलब यह है कि आपको सफलता प्राप्त करने के लिए काम करना ही पड़ेगा।

    हर सफल होने वाले को सफलता की पूरी कीमत एडवांस में चुकानी पड़ती है तभी सफलता मिलती है ।

    Everyone has to pay the full price of success in advance.

    दोस्तों कहा जाता है कि सफलता की कीमत असफलता की कीमत से बहुत कम होती है पर फिर भी लोग असफलता जैसी महंगी चीज़ खरीदकर ज़िंदगी भर का घाटे का सौदा कर लेते हैं पर उनको इसका पता ही नहीं लगता । 

    सफलता के मंदिर की चाबी उसमें प्रवेश करते ही खो जाती है कोई भी व्यक्ति अपने किसी भी रिश्तेदार को भी उसमें प्रवेश नहीं दिला सकता। हरेक को उसके रास्ते पर चलकर चाबी खुद प्राप्त करनी होती है।

    इसीलिए कहते हैं कि सफलता की परिभाषा सबके लिए अलग अलग हो सकती है और सबको जीवन अपने हिसाब से जीने का अधिकार है। 

    आपके लिए सफलता क्या है यह आपको निश्चित करना पड़ेगा और जब तक आप यह निश्चित नहीं करते तब तक इससे आगे की प्रक्रिया पूरी नहीं कर सकते जैसे लक्ष्य बनाना, उन पर कार्य करना, असफलताओं का सामना करना और फिर सफल होना इत्यादि ।

    राजेश बोल रहा था अब आते हैं बिज़नेस के बारे में कि मैंने बिज़नेस कैसे किया। ,

    और रमन सुन रहा था।

    बिजनेस को करने में सीखना क्या है। आपको कोई चीज़ खरीदनी है और उसे कुछ मुनाफ़े पर बेच देनी है। इसमें सीखना क्या है। हाँ, पर लोग जो बिजनेस के नाम पर सीखते हैं न वो होती है, चालाकी, झूठ बोलना, धोखा देना, दूसरे को बेवकूफ़ बनाना। आजकल जो बाज़ार में चल रहा है वो यही है। लोगों के अनुसार अगर आपको ये सब नहीं आता तो आपको बिजनेस करना नहीं आता। पर वास्तव में ऐसा नहीँ है। आप जितनी ईमानदारी से बिज़नेस करेंगे उतनी ही जल्दी आप सफल भी होंगे और ऊंचे भी जाएंगे। बहरहाल मुझे इन सब की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। पैसे तो मेरे पास नौकरी से कमा कर बचाए हुए थे उन्हीं से शुरू किया और बेईमानी मैंने की नहीं, बस हो गया।

    कोई परेशानी नहीं आई, पैसे वगैरह डूबे नहीं, आसानी से हो गया ?, रमन ने हतप्रभ होकर पूछा ।

    राजेश हँसकर बोला, आसानी? वो तो बस नौकरी में ही होती है, धंधे में नहीं । अगर आसानी से ही हो जाता तो हर आदमी ही करके अमीर न बन जाता ? परेशानियाँ तो आयीं। इतनी आयीं कि पूछो मत, पर दुनिया में जिसे सफल होना है उसके लिये कोई परेशानी इतनी बड़ी नहीं कि उसे रोक ले। वह सब परेशानियों का हल निकाल ही लेता है। मैंने भी निकाल लिया। क्योंकि मैंने अपने लिए पीछे लौटने का कोई विकल्प छोड़ा ही नहीं था। मुझे या तो सफल होना था या फिर मेरी दुनिया समाप्त सी ही थी । यानि करो या मरो ।

    रमन उत्सुकता पूर्वक बोला, चलो अब तुम ज़रा विस्तार से बताओ यह सब तुमने कैसे किया ? तुमसे सुनकर शायद हम कुछ सीख सकें।

    तो सुनो , राजेश बोला।  

    सपना देखिये, उस पर विश्वास करिए और उसे प्राप्त कर लीजिये

    Dream It, Believe It And Achieve It

    ––––––––

    ये तीन काम अगर आप कर सकते हैं तो आप अपने सपनों को हक़ीक़त में बदल सकते हैं ।

    सपना (Dream)- सबसे पहले आपके मन में एक विचार होना चाहिए कि मुझे अपनी आज की इस स्थिति से बाहर निकलना है। यानि आपके पास एक आपका कुछ बनने का सपना होना चाहिए।

    विश्वास (Belief )- दूसरे नंबर पर आपको अपने सपने पर और अपने पर सफल होने का विश्वास होना चाहिए।

    उसके बाद तीसरे नंबर पर आता है सफल होने का दृड़ संकल्प (Determination to Succeed), कि चाहे जो भी हो जाये मैं इसमें सफल होकर रहूँगा।

    चौथे नंबर पर आता है अपने मस्तिष्क से वो घिसे पिटे मध्यमता (Mediocrity) वाले विचार निकाल कर उसमें सफल लोगों वाले विचार डालना। यानि इसकी अनुकूलता  (Conditioning) करना । 

    पाँचवे नंबर पर आता है कि आपका प्लान क्या है? आप सफल होने के लिए क्या काम करेंगे? आपका वाहन (Vehicle) क्या रहेगा?

    और छठा यह प्रण कि चाहे जो हो जाए जब तक आप सफल नहीं हो जाते तब तक इस काम को छोड़ोगे (Quit) नहीं और अपने सपने को भूलोगे नहीं, उसे मरने नहीं दोगे।

    इस पर रमन ने बड़े तपाक से कहा, बस, इतना ही करना है। ये तो बहुत सरल और आसान है। यह तो कोई भी कर सकता है।  

    सुनकर राजेश हंसा और बोला, सरल है पर इतना आसान नहीं जितना तुम समझ रहे हो रमन । इतना तो प्रतिदिन लाखों लोग अपने घरों, ऑफिसों, दुकानों, लाइब्रेरी, किचन, जिम और चौराहों आदि पर बैठे करते ही रहते हैं । सपने बनाना कौन सा बड़ा काम है। लोग पाँच मिनट में हवाई जहाज़ तक खरीदने के सपने बना लेते हैं। विश्वास भी कर लेते हैं । फिर क्या बचा ? बस सपने सच होने का इंतज़ार । और लोग वही करना आरंभ कर देते हैं। बिना काम , बिना अपने आप को बदले, बिना कीमत चुकाए वे चाहते हैं कि उन्हें वह सब मिल जाये जो वे चाहते हैं। इसीलिए तो लोग मध्यमता के जीवन से पीढ़ियों तक निकल नहीं पाते हैं।

    तो और क्या करना पड़ता है? रमन ने उत्सुकता से पूछा।

    राजेश बोला, काम करना पड़ता है अपने सपनों पर, उन्हें सच करने के लिए। ये काम ही ऐसी चीज़ है जिसे करने में हरेक को ज़ोर आता है और लोग इसे शुरू करने से पहले ही भाग खड़े होते हैं।

    तो काम तो करना ही पड़ेगा।, रमन बोला, बिना काम के कैसे सफल होंगे?

    यही तो बात है दोस्त, लोग यही उम्मीद करते हैं कि बिना कुछ किए ही सफलता मिल जाये। क्योंकि अकेला काम ही नहीं करना पड़ता बल्कि उससे पहले अपने आप को बदलना पड़ता है। ,राजेश बोला।  

    मतलब?, रमन।

    मतलब आज आपका नज़रिया (Attitude) जैसा है उसे सफलता के नज़रिये में बदलना पड़ता है। राजेश।

    वो क्या होता है रमन।

    इसके बारे में विस्तार से आगे बात करेंगे । संक्षिप्त में ये समझ लो कि नज़रिया ऐसी चीज़ है जिससे आप अपने आप को और अपने चारों ओर के माहौल को सफलता के अनुरूप बना लेते हो।

    यानि? मैं समझा नहीं ?, रमन।  

    राजेश बोला, यानि, आप अपने सामने आए अवसरों को पहचान लेते हो  और उन पर कार्य कर लेते हो । एक उदाहरण लेते हैं । सड़क पर एक 500 रुपए का नोट पड़ा है और कई लोग उसे बिना उठाए उसके पास से गुज़र जाते हैं।

    रमन, ऐसा कैसे हो सकता है?

    ऐसा ही होता है दोस्त, राजेश बोला, पता है क्यों ? क्योंकि वे यह सोचते रह जाते हैं कि नक़ली होगा, फटा होगा, ऐसे कौन 500 का नोट सड़क पर छोड़ जाएगा; ज़रूर कोई नज़र लगा कर खड़ा होगा जैसे ही मैं उठाऊंगा मुझ पर हँसना शुरू कर देगा ; थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो जाता हूँ और देखता हूँ क्या होता है अगर सब कुछ ठीक रहा तो फिर आकर उठा लूँगा इत्यादि । और इतने में एक स्मार्ट सा व्यक्ति आकर नोट को चुपचाप उठाकर अपनी जेब में डालकर चला जाता है। जो खड़े देख रहे थे देखते रह जाते हैं और फिर अफ़सोस करते हुए और यह कहते हुए वहाँ से चल देते हैं कि, छोड़ यार नकली नोट ही होगा। फ़िर कई दिन तक उसी बारे में सोचते रहते हैं और अपने साथियों को बताते रहते हैं कि,  ‘यार उस दिन ऐसा हुआ ... और एक आदमी आकर उठा कर ले गया। काश अगर मैंने प्रयास कर लिया होता।' तो दूसरे भी फिर उसे एक किस्सा बनाकर दूसरों को सुनाते रहते हैं। 

    राजेश कहता रहा,

    वास्तविक जीवन में भी ऐसा ही होता है, वो नोट एक अवसर की तरह है। लोग उसे अलग-अलग सोच के कारण पहचानते नहीं और यह सोचकर छोड़ भागते हैं कि यार ऐसे थोड़ी सफलता मिल जाएगी। यही सोच नकारात्मक नज़रिया कहलाती है। लोग सब कुछ ठीक होने का इंतज़ार करते रहते हैं जैसे;

    ज़रा तबीयत ठीक हो जाये तो ...

    ज़रा बरसात रुक जाये तो ...

    थोड़ी गर्मी कम हो जाये तो ...

    थोड़ा और अच्छा मौका मिले तो ... इत्यादि

    और दूर खड़े होकर इंतज़ार करते रहते हैं इतने में कोई जुनूनी व्यक्ति आकर उनके सामने से वह अवसर उठाकर ले जाता है और उस पर काम करके(नोट उठाने जैसा) सफल हो जाता है और वे लोग हाथ मलते रह जाते हैं और अपनी किस्मत का रोना रोते रह जाते हैं। सही समय पर अवसर को पहचानना और थोड़ी रिस्क लेकर उस पर कार्य करना ही सफल हो जाने की कुंजी है जो पड़ी तो सबके सामने होती है पर उसे उठाकर काम में बहुत कम लोग लेते हैं। 

    उस नोट को उठा लेने में कितना जोख़िम (Risk) था, राजेश बोला, यही न कि नोट नक़ली हो सकता था तो क्या होता वापस फेंक देते। शायद लोग हँसते तो क्या हो जाता? कोई गर्दन तो नहीं कट जाती। वास्तविक जीवन में भी लोग असफलता के डर से काम शुरू ही नहीं करते यह सोचते हुए कि अगर मैं असफल हो गया तो लोग क्या कहेंगे। वे अपनी सफलता को लोगों के क्या कहने पर डाल कर बैठ जाते हैं।

    लोग सफलता की कीमत चुकाए बिना सफलता पाने को तैयार खड़े रहते हैं। पर बिना कीमत के सफलता कहीं नहीं मिलती । सफलता की पूरी क़ीमत एडवांस में चुकानी पड़ती है, सफलता केवल तभी मिलती है। , राजेश बोला।

    सफलता की क़ीमत

    Price of Success

    इस पर रमन ने पूछा, और वो क़ीमत क्या होती है।

    वो क़ीमत, हमेशा असफलता की क़ीमत से कम होती है। राजेश बोला ।

    रमन ने आश्चर्य से पूछा , सफलता की क़ीमत असफलता से कम, वो कैसे ?

    राजेश ने कहना शुरू किया, "हाँ यही तो आश्चर्य की बात है कि लोगों को लगता है कि सफलता की कीमत बहुत ज़्यादा है और वे उसे अदा नहीं कर पाएंगे । परंतु उनकी सोच ग़लत है।

    असफलता की क़ीमत सफलता से कहीं ज़्यादा होती है। वो ऐसे कि आप सफलता के लिए किसी भी क्षेत्र में हमेशा या ज़िंदगी भर काम नहीं करते, बल्कि तब तक काम करते हैं जब तक आपको प्रथम बार सफलता न मिल जाये उसके बाद तो आपके पास सफलता का नुस्खा (Recipe) आ जाता है और आप उसे ही डुप्लीकेट करते रहते हैं। तो जब तक आपको पहली सफलता मिले तब तक आपको अपने आप पर नियंत्रण रखकर काम में लगे रहना पड़ता है, लोगों की ना सुननी पड़ती है, समय और पैसे को ठीक से खर्च करना पड़ता है, अपने आप को सफलता के लिए तैयार करते रहना पड़ता है। ये सब आपको जिंदगी भर नहीं करना पड़ता बल्कि कुछ ही समय के लिए । ठीक उसी तरह जैसे आप कॉलेज से 4-5 साल लगाकर इंजीनियरिंग या मेडिकल की डिग्री लेते हैं और फ़िर उस डिग्री की वजह से आपको जिंदगी भर के लिए नौकरी या व्यवसाय मिल जाता है। परंतु अगर आप वो 4-5 साल न लगाएँ तो सोचिए क्या होगा।

    इसी प्रकार जो भी काम आपने शुरू किया है यदि आप सफल न होकर उस काम को छोड़कर अपनी पुरानी मध्यमता (Mediocrity) वाली जिंदगी में लौट आते हैं तो असफलता की कीमत आपको जीवन भर चुकानी पड़ती है। न सिर्फ आपको बल्कि आपके परिवार के लोगों को भी। सोचिए आप एक छोटी नौकरी करने वाले हैं और अपना बिजनेस शुरू करके  एक बड़े बिजनेस मैन बन जाते है और आपको अपने किए पर गर्व होता है तो आप अपने जीवन भर के लिए एक आर्थिक स्वतन्त्रता (Financial Freedom), स्वाभिमान (Self- Esteem), मुक्त जीवन (Freedom), सुख सुविधाएं, समय की पाबंदी से छुटकारा, नौकरी से छुटकारा, दूसरों की मदद के लिए एक अवसर, परिवार वालों के लिए एक विरासत (Legacy), दूसरों के लिए रोजगार के अवसर और भी कितना कुछ प्राप्त कर लेते हैं।

    अब सोचिए सफलता की कीमत ज़्यादा या असफलता की जहां आप जिंदगी में प्रतिदिन सैंकड़ों समझौते कर जिंदगी जीते नहीं काटते हैं। दूसरे सफल लोगों को देखकर आपको हमेशा अफ़सोस होता है कि आपने क्यों सफल होने की कोशिश नहीं की । आपको ऐसा सोचते हुए कई बार लगता है कि आप भी, अगर थोड़ी और कोशिश की होती तो, किसी काम में या पढ़ाई में सफल हो गए होते और आज आपकी ज़िंदगी कुछ और होती।

    कई बार असफलता ऐसी होती है कि आपके जीवन में हमेशा के लिए दु:ख छोड़ देती है। अवसर बार-बार नहीं आते, जैसे आपने कोई ज़मीन जब सस्ते में मिल रही थी तब अगर नहीं ली तो वह फ़िर आपको नहीं मिल पाती और आपको ज़्यादा क़ीमत पर कम ज़मीन लेकर एक छोटे मकान में जिंदगी भर रहना पड़ता है।

    ऐसे ही मान लीजिये आपके दोस्त ने जब वह आपके साथ नौकरी करता था तब कहीं पर कोई छोटी रकम निवेश की थी और उसने आप को भी बताया था ; आपके पास पैसे थे भी ; पर किसी की ग़लत सलाह या आपके संशय के कारण आपने वहाँ पैसे नहीं लगाए और 15 साल बाद आपको पता लगा कि उस मित्र का वह छोटा सा निवेश लाखों रुपयों में बदल गया है और उसने उस पैसे की वजह से नौकरी छोड़ दी है । अब आपको कैसा लगेगा? आपका वो 15 साल पहले का छोटा सा ग़लत निर्णय आपके लिए कितना घातक सिद्ध हो गया। अब आपकी क़ीमत के बारे में भलीभाँति समझ गए होंगे।

    राजेश बोलता जा रहा था, रमन ध्यान से उसे सुन रहा था।  

    सफलता की क़ीमत आपको अपने दृड़ निश्चय, स्थिरता, अपने आप को बदल कर, सफलता के रास्ते में आने वाली सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ते हुए और अपने आप को सफलता के अनुरूप बनाते हुए एडवांस में चुकानी पड़ती है।

    सफलता के लिए आपके द्वारा चुकाई

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1