सिद्धि सलाखों के पीछे की
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क्या आपने जेल के अति प्रतिकूल वातावरण में शिक्षा के क्षेत्र में विश्व रिकॉर्ड के बारे में सुना या पढ़ा है? शायद आपका जवाब 'नहीं' होगा। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि मेरा ये सौभाग्य था कि मैं जेल में और जेल के बाहर इस तरह की उपलब्धि हासिल कर सका। मेरी उपलब्धि जो जेल में शिक्षण के क्षेत्र में एक विश्व रिकॉर्ड बन गई इसके सभी पहलुओं और रहस्यों को आपके साथ साझा करने के लिए मैं बहुत उत्सुक हूं।
"प्रतिकूलता कुछ लोगों को तोड़ देती है; तो दूसरे इसमे रिकॉर्ड तोड़ते है" इस उक्ति प्रसिद्ध लेखक 'विलियम आर्थर वार्ड' की है जो मेरी उपलब्धि के बारेमे सही साबित हुई है। क्योंकि मैंने इस उपलब्धि जेल के बहुत प्रतिकूल और उदासीन माहौल में हासिल की है। लक्ष्य बहुत कठिन और मुश्किल था क्योंकि शिक्षा और जेल, प्रकृति में बहुत विरोधाभासी और असंगत हैं। सामान्य तौर पर, जेल के माहौल में पढ़ाई करना बहुत मुश्किल काम है। यह धारा के विपरीत दिशा में तैरने जैसा है।
जेल का माहौल कैसा हो सकता है इसका भी मैंने खुलासा किया है? इसके बारे में बाहर से केवल कल्पना की जाती है या अनुमान लगाया जा सकता है। जेल में अधिकांश बंदीवान नकारात्मक कारकों जैसे कि चिंता, हताशा, भय, निराशा, क्रोध, बदले की भावना आदि से पीड़ित होते हैं। कभी-कभी वे मानसिक स्थिरता और मानसिक संतुलन खो देते हैं। कारावास बंदीवान के जीवन को जेल में और जेल से रिहाई के बाद जेल के बाहर भी मुश्किल बना देता है। इस तरह के जेल के नकारात्मक माहौल में, अध्ययन जैसी संवेदनशील और पवित्र गतिविधियां जिसमें मन की विशिष्ट भूमिका होती है इसके लिए मानसिक शांति, मानसिक संतुलन और आसपास का सकारात्मक वातावरण का वर्तुल बनाना बहुत मुश्किल कार्य है। पचास साल की उम्र में मैंने जेल के प्रतिकूल और नकारात्मक माहौल में जीवन में दूसरी बार अध्ययन करना शुरू किया।
मेरे अध्ययन का स्थान (जेल) और मेरी उम्र दोनों अध्ययन की गतिविधि से मेल नहीं खाते होने के बावजूद, मैंने इस जेल के प्रतिकूल माहौल में 31 शैक्षिक पाठ्यक्रम पूर्ण किया, साथ ही साथ जेल में स्थित अध्ययन केंद्रों का प्रबंधन की जिम्मेदारी भी निभायी और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। मैंने इस पुस्तक मेरी इस अनन्य, अद्वितीय उपलब्धि और इसको मैंने कैसे प्राप्त किया इसके बारेमे मेरा अनहद आनंद और संतुष्टि को आपके साथ साझा करने की उत्कृष्ट इच्छा के साथ लिखा है। जेल से रिहा होने के बाद, मैंने डॉ। बाबासाहेब आंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय में पूर्णकालीन नौकरी के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी और दूसरे 23 शैक्षणिक पाठयक्रमों को पूर्ण किया जिससे मेरे कुल उत्तीर्ण पाठयक्रमों का अंक 54 तक ले जाने में मैं सफल रहा। मैंने ये सब पाठयक्रम अच्छे ग्रेड के साथ और केवल 12 वर्षों में पूर्ण किया। बंदीवान होना नियति है; लेकिन बंदीवान बनके विश्व रिकॉर्ड स्थापित करना वो दृढ़ मनोबल, आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति के साथ अपने व्यक्तित्व को संवारने की क्षमता का परिचय है।
वास्तव में, यह पुस्तक मेरे जेल अनुभव या मेरी जेल यात्रा पर आधारित है और मेरे जेल अनुभव में शिक्षा केंद्र में थी। मेरे पाठकों को मैंने इस भगीरथ कार्य को कैसे पूरा किया उसके बारे में खुलासा करता हुआ संदेश पहुंचाने के लिए मैंने पुस्तक का माध्यम पसंद किया है। उम्मीद है कि, यह जीवन कहानी आपको प्रेरित करेगी और आपकी अद्वितीय, अविश्वसनीय उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए और जीवन की उच्चतम चोटियों पर जोश और उत्साह के साथ विजय पाने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
शुभकामना सह,
लेखक
"जेल मुसीबतों और कठिनाइयों को सफलता में बदलने की एक प्रयोगशाला है।" - भानु पटेल
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सिद्धि सलाखों के पीछे की - BHANUBHAI PATEL
भानुभाई पटेल
सिद्धि सलाखों के पीछे की
By Bhanubhai Patel
Copyright @ Bhanubhai Patel
Published by
Bhanubhai Patel
B/172, Bhavna Tenaments, Barrage Road,
Vasna, Ahmedabad - 380007
E-mail : bhanubhaipatel@hotmail.com
First Edition : 2020
All Rights reserved. No part of this publication
may be reproduced, stored in or introduced into
a retrieval system, or transmitted, in any form,
or by any means (Electronic, mechanical,
photocopying, recording or otherwise) without
the prior written permission of the publisher. Any
person who does anyunauthorized act in relation
to this publication may be liable to criminal
prosecution and civil claims for damages.
सिद्धि सलाखों के
पीछे की
जेल अनुभव और कारावास
के दौरान प्रस्थापित विश्व रिकॉर्ड के
रहस्य को उजागर करती एक डॉक्टर की आश्चर्यजनक सफलताकी प्रेरणादायक सत्य घटना
अर्पण
मेरा जीवन परिवर्तक और जहां मैंने
8 साल, 3 महीने और
26 दिन बिताए वो
अहमदाबाद केन्द्रिय कारागार
को
About the author
Bhanubhai Patel, a Resident of Ahmadabad (Gujarat) who is a medical doctor and ex-convict. He has served Gujarat Government established Dr. Babasaheb Ambedkar Open University as a consultant. He has done an intensive study in and out of Prison and has set a world record of 54 degrees, diploma, and certificate which has been recorded in Limca Book of Records, Asia Book of Records, Unique Word Record, India Book of Records, and Universal Record Forum. This memoir is an unforgettable stepping stone to his rare, inspiring prison experiences and academic achievement journey.
'सफलता आपका सम्पूर्ण अधिकार है।'
आप इस दुनिया में एक अद्वितीय और असाधारण व्यक्ति हैं। आपको जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान द्वारा आवश्यक सभी क्षमताएं और शक्तियां दी गई है; लेकिन, यह आपके अंदर एक गुप्त और निष्क्रिय रूप में है। शायद आप इससे परिचित नहीं हैं। आपको इसे अंकुरित करना होगा, प्रकट करना होगा और विकसित करना होगा।
जीवन में आपके लक्ष्यों और उपलब्धियों को पूरा करने के लिए इस संक्षिप्त मार्गदर्शिका के माध्यम से मेरे जीवन के वास्तविक अनुभव को तुम्हारे साथ साझा करके आपको प्रोत्साहित करना और मार्गदर्शन देने का यह मेरा विनम्र प्रयास है। सफलता के लिए दृढ़ संकल्प, प्रतिबद्धता और जब तक आप अपने निर्धारित लक्ष्य या ध्येय को प्राप्त नहीं करते तब तक सतत प्रयास जारी रखे। कभी हार न मानें और हिम्मत न हारे। सतत प्रयास से निष्फलता को सफलता में तबदील कीया जा सकता है। मुझे आशा है और मुझे यकीन है कि यह छोटी सी किताब आपकी छिपी और निष्क्रिय शक्तियों और सम्भावनाओ को आपके सपनों और उपलब्धियों को पूरा करने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगी।
सकारात्मक, उत्साही और उमंगी बनो, सफलता आपके चरणों में होगी।
शुभ कामनाओं के साथ!
भानु पटेल
अनुक्रमणिक
(I) प्राक्कथन ........................................................................6-8
(II) प्रस्तावना................................................................................9-11
(III) धन्यवाद..............................................................................12-13
(IV) परिचय................................................................................14-16
1. दिल की बात...........................................................................17-23
2. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा................................................24-34
૩. कॉलेज की शिक्षा....................................................................35-41
4. पुलिस, कानून, जेल और समाज................................................42-51
5. जेल की और प्रस्थान...............................................................52-60
6. जेल के नियम, संचालन और बंदीवानो की दिनचर्या.....................61-68
7. जेल में भोजन के बारे मे समाज में प्रचलित मान्यताएँ................69-76
8. जेल में पढ़ाई..........................................................................77-84
9. जेलों में अध्ययन केंद्रों का प्रबंधन और अध्ययन........................85-99
10. अहमदाबाद केन्द्रिय कारागार में शिक्षा का स्वर्ण युग..............100-107
11. जेल में उपलब्धि का रहस्य................................................108-133
12. जेल में साक्षात्कार और रिहाई.............................................134-138
13. जेल से रिहाई के बाद की पढ़ाई .........................................139-149
14. जेल के अंदर और बाहर अध्ययन को प्रभावित करने
वाले कारक.......................................................................150-155
और अंत में... ...............................................................156-159
उत्तीर्ण शैक्षिक पाठ्यक्रमों की सूची ...........................................160-165
फोटो गैलरी.............................................................................166-189
C:\Users\ASUS\Desktop\thumbnail_TextArt_201121094231.jpgमुझे इस प्राक्कथन को लिखने में खुशी हो रही है, न केवल इसलिए कि मैं पिछले पंद्रह वर्षों से `123भानुभाई पटेल को जानती हूं, बल्कि इसलिए भी कि वह पढ़ाई में अपनी अविश्वसनीय उपलब्धियों के माध्यम से छात्र समुदाय के लिए प्रेरणा और उत्साह का स्रोत बने हुए हैं।
भानुभाई के साथ पहली मुलाकात, 2005 में जब मैंने गूजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद के मेरे प्रौढ़ शिक्षा और सतत शिक्षा विभाग द्वारा संचालित जेल अध्ययन केंद्र का दौरा किया तब हुई थी। उस समय भानुभाई गूजरात विद्यापीठ के जेल अध्ययन केंद्र में गूजरात विद्यापीठ के पाठ्यक्रम में पढ़ाई कर रहे थे यानी वो मेरे छात्र थे। उस समय, मैं गूजरात विद्यापीठ में प्रौढ़ शिक्षा और सतत शिक्षा विभाग की निर्देशिका थी। सरल और सहज प्रतीत होने वाले भानुभाई को जेल में कार्यरत विभिन्न विश्वविद्यालयों के अध्ययन केंद्रों के प्रबंधन की जिम्मेदारी के साथ अपने तीन या चार या अधिक पाठ्यक्रमों का एकसाथ अध्ययन करते देखकर वास्तव में मुझे आश्चर्य हुआ था। क्योंकि जीवन में पहली बार इस तरह की घटना देखी गई थी। उसकी जीवन कहानी भी उतनी ही रोचक, प्रोत्साहक और उत्साहजनक है। उसके जीवन में कई उतार-चढ़ाव, कठिन परिस्थिति या संजोग का उसने दृढ़तापूर्वक, हताश या निराश हुए बिना, स्वस्थ चित्त के साथ सामना करके सफलता प्राप्त की वो उसकी क्षमता और लचीलापन का एक मजबूत प्रमाण है। इन सभी घटनाओं का सरल और आसान भाषा में उसने किया हुआ चित्रण मन की गहराई में उतर जाता है।
भानुभाई की जेल मुक्ति के बाद की मुलाक़ातों के दौरान, मैंने उसे उसकी अनूठी अध्ययन उपलब्धि और जेल के अनुभव के बारे में एक किताब लिखने की सलाह और सुझाव दिया था, लेकिन अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण, पुस्तक लिखने में देरी हुई। आखिरकार, भानुभाई ने कोरोना लॉकडाउन के समय का अच्छा उपयोग करके ये किताब लिखी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसके जेल यात्रा के अनुभव और जेल में उन्होंने अध्ययन में जो अनूठी, अनन्य उपलब्धि हासिल की, वह आज के छात्रों, बंदीवानो और किसी भी उत्साही, महत्वाकांक्षी व्यक्ति के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा का एक नया आयाम प्रदान करेगी। इसके अलावा, जेल के अंदर के माहौल और बंदीवानो की दैनिक दिनचर्या के बारे में विशद जानकारी पाठकों के लिए प्रस्तुत की है। जेल की अति कठिन परिस्थितियों में भानुभाई ने अध्ययन जैसी नाजुक और संवेदनशील गतिविधि में, और वो भी 50 साल से ज्यादा की उम्र में, जो विश्व रिकार्ड कायम किया वो उसकी अद्वितीय उपलब्धि सराहनीय है। पूरी तरह से नकारात्मक माहौल में पूरी तरह से सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ एक जीवन शैली को अपनाना, कठिन परिस्थिति में अपने लक्ष्य को प्राप्त करना उसके मजबूत मनोबल और दृढ़ संकल्प का एक जीवंत प्रमाण है। उन्होंने इस पुस्तक में अपने अनूठे अंदाज में इस रहस्य को उजागर किया है।
मैं उनके प्रेरक संस्मरणों पर यह प्राक्कथन लिख रही हूं क्योंकि मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं कि यह पुस्तक अकादमिक दुनिया, छात्र समुदाय और अन्य उत्साही और महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के लिए उनके सपने को साकार करने और उनके लक्ष्य या उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए एक वरदान साबित होगा। जिनको जीवन में चारों ओर अंधेरा महसूस होता होगा, उसको अपने जीवन में प्रकाश की अनुभूति होगी।
सौभाग्य सह,
डॉ। संध्याबेन ठाकर
लेखक, सेवानिवृत्त डीन, निदेशक, अध्यक्ष (एच।ओ।डी।)
आजीवन शिक्षा विभाग, गूजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद
C:\Users\ASUS\Desktop\thumbnail_TextArt_201121094253.jpg––––––––
प्रतिकूलता सद्गुण और सफलता की नींव है।
- एक जापानीज़ कहावत। इस कहावत को यथार्थ ठहराने वाली घटना जो मेरे जीवन में घटीं उसको आप सभी समझदार पाठकों के समक्ष रखने का मेरा नेकनीयत प्रयास है। मैं इसके लिए खुश हूं।
जब मैं अहमदाबाद केन्द्रिय कारागार में अपनी सजा काट रहा था, तब मैं 50 साल की उम्र में, जेल में विभिन्न विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा संचालित अध्ययन केंद्रों में विभिन्न पाठ्यक्रमों का जेल के प्रतिकूल, उदासीन और निष्क्रिय वातावरण में अध्ययन कर रहा था और एक के बाद एक डिग्री, पीजी डिप्लोमा, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर रहा था तब मुझे इस बात का सपने में भी खयाल नहीं था कि मैं एक विश्व रिकॉर्ड बनाने की ओर आगे बढ़ रहा हूं। और मैंने सही में जेल में अध्ययन में विश्व रिकॉर्ड कायम किया। मेरा जेल का अनुभव अन्य बंदीवानो से बहुत अलग है। मैंने जेल में पढ़ाई के क्षेत्र में विश्व रिकॉर्ड तोड़ा यह तथ्य ने भी मुझे इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया और मैं इस अनुभव को दुनिया के साथ साझा करने की अपनी अकथनीय इच्छा को रोक नहीं सका। अंत में इस प्रेरणादायक पुस्तक का जन्म हुआ।
जेल में मेरी इस उपलब्धि के बारे में एक पुस्तक लिखने का विचार और सुझाव मुझे, जेल से रिहा होने के बाद गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (GNLU), गांधीनगर में एक कार्यशाला के दौरान गुजरात की जेलों के तत्कालीन मुखिया (Additional Director General of Police, Jail) श्री पी। सी। ठाकुर और दक्षिण भारत के एक राज्य की जेलों के मुखिया ने दिया था। उस कार्यशाला में एक संसाधन व्यक्ति के रूप में मुझे आमंत्रित किया गया था। उन्होंने कहा, मुझे जेल में मेरी शैक्षिक उपलब्धियों के बारे में एक किताब लिखनी चाहिए, ताकी बंदीवानो, छात्रों और अन्य व्यक्तियों को जीवन में सफलता और उपलब्धि हासिल करने के लिए प्रेरणा मिले।
इस बात को आज आठ साल बीत चुके हैं। मेरी पूर्णकालिक नौकरी चालू थी और मैं पूरी गति से अधिक से अधिक पाठ्यक्रम पूरा करने में व्यस्त था। अभी मैं सेवानिवृत्त हूं और दुनिया भर में कोरोना लॉकडाउन जारी है, इससे मुझे इस पुस्तक को शांति से लिखने का अवसर मिला। अब मैंने इन शुभचिंतकों की सलाह को मानते हुए ये किताब लिखने का फैसला किया। दिसम्बर 2011 मे जेल से छूटने के बाद, मैंने डॉ। बाबासाहेब आंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय में सलाहकार के पद पे काम करने के साथ साथ मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी, और मैंने 23 अतिरिक्त शैक्षिक उपलब्धियाँ प्राप्त की, अगर इन्हे मेरी जेल उपलब्धि की सूची के साथ जोड़ा जाय तो यह संख्या 54 तक पहुंच जाती है, और वो भी सिर्फ 12 साल मे।
दूसरा, ऐसे कई व्यक्ति जो मेरे संपर्क में आए और मेरे अध्ययन की उपलब्धि के तथ्य से अवगत हुए, उन्होंने जीवन में फिर से अध्ययन शुरू किया, और जिसका अध्ययन जारी था, उन्होंने अपने चालू अध्ययन के साथ दूसरे पाठयक्रम में प्रवेश लिया। लोगों की इतनी जिज्ञासा और उत्साह देखकर, मुझे भी यह पुस्तक लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि अधिक से अधिक लोग मेरी इस उपलब्धि के बारे में जान सकें।
इस पुस्तक को लिखने और इसे मेरे पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य पाठकों को कठिन, मुश्क़िल परिस्थितियां और समय में भी अपने लक्ष्य और ध्येय को प्राप्त करने के लिए प्रेरित और उत्साहित करना है। प्रकाशस्तंभ होने की इच्छा ही इस पुस्तक का सार है।
––––––––
कठिनाइयाँ अक्सर साधारण आदमी को असाधारण उपलब्धियों के लिए तैयार करती हैं।
- सी। एस। लेविस
ऐसे देखा जाए तो लिखना मेरा अध्ययन या पेशा नहीं है। इसीलिए जब मैंने इस पुस्तक को लिखने का निर्णय लिया, तो मुझे बहुत भ्रम हुआ; मगर लिखना तो वही था जो मेरे जीवन में हुआ था, जो मैंने महसूस और अनुभव किया था, और जो मैंने जीया था। लिखने का ये मेरा पहला अनुभव था। मुझे इस पुस्तक को लिखने में कई मित्रों, परिचितों और संगठनों से सलाह या मार्गदर्शन मिला है। इस पुस्तक को लिखने के लिए मुझे जिससे प्रेरणा मिली, वो गुजरात जेलों के तत्कालीन मुखिया (ADGP:Additional Director General of Police, Jail) माननीय श्री पी। सी। ठाकुरसाहेब और सतत शिक्षा विभाग, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद की तत्कालीन निर्देशिका माननीय डॉ। संध्याबेन ठाकर का बहुत आभारी हूँ। कवियत्री और डॉ। बाबासाहब आंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी की गुजराती की प्राध्यापक डॉ। हेतल गांधी का इस पुस्तक लिखने में सलाह और प्रेरणा के लिए आभारी हूं।
इस पुस्तक के विषय की पृष्ठभूमि तैयार करने में निमित्त हुए तथा समर्थन और सहयोग करने के लिए, मैं अहमदाबाद केन्द्रिय कारागार के तत्कालीन अधीक्षक श्री आर। जे। पारगी, उप-अधीक्षक श्री एच। बी। भाभोर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्रभागीय निदेशक श्री डॉ। एस। महापात्रा और सहायक निर्देशिका डॉ। अवनीबेन त्रिवेदी, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलाधिपति डॉ। मनोज सोनी और कार्यवाहक रजिस्ट्रार श्री पीयूषभाई शाह, प्रजापिता ब्रह्मा कुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय