201 Tips for Gas and Acidity - (गैस एवं एसिडिटी के लिये 201 टिप्स : अल्सर, कब्ज, अपच एवं दस्त के लिये भी)
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यह पुस्तक आम आदमी के लिए है लेकिन मेडिकल पेशे में रहने वाले लोगों के लिए भी यह बहुत उपयोगी है। वह सामान्य परेशानियों के लिए उपयोग में आने वाली दवाओं के बारे में अपनी याददाश्त दुरुस्त कर सकता है। यदि आप पाचन प्रणाली को समझते हैं तो यह आपके लिए सबसे अच्छी पुस्तक सिद्ध हो सकती है। आपकी सबसे अच्छी पुस्तक जिसे आप अपनी व्यक्तिगत पुस्तकों की आलमारी में रखना चाहेंगे।
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201 Tips for Gas and Acidity - (गैस एवं एसिडिटी के लिये 201 टिप्स - Dr. Bimal Chhajer
मतली
1
पाचन तन्त्र के बारे में सामान्य जानकारियां
आंत तन्त्र (G.I.T.) शरीर के अंगों में सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। यह 30 फीट से अधिक लम्बी एक नली होती है जो हमारे मुंह से गुदा द्वार तक जाती है। यह नली जिसे हम ‘आंत तन्त्र’ कहते हैं, हमारे शरीर द्वारा किये जाने वाले विभिन्न क्रिया-कलापों के लिये उत्तरदायी है। यह आंत तन्त्र हमारे स्वास्थ्य के लिये बहुत अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवन भर हमें स्वस्थ बनाये रखने के लिये काम करता है। आंत तन्त्र (गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल सिस्टम) ही हमारे शरीर का वह द्वार है, जिसके द्वारा सभी पोषक तत्त्व, विटामिन, खनिज एवं तरल पदार्थ हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। अगर हमारा आंत तन्त्र काम करना बन्द कर दे या ठीक प्रकार से काम न करें, तो हमारे शरीर में कई प्रकार की गंभीर समस्या एवं रोग पनप सकते हैं, जो हमारे सामान्य जीवन एवं सुखी दिनचर्या को कठिन बना सकते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि कई बार मनुष्य की मृत्यु का आरम्भ उसकी आंतों से ही होता है।
हमारा आंत तन्त्र उन सभी खाद्य पदार्थों एवं तरलों को विखण्डित एवं अवशोषित करता है, जिनकी आवश्यकता हमें जीवित रखने के लिये हमारे शरीर को रहती है। शरीर के विभिन्न अंग पाचन प्रक्रिया में अपना सहयोग देते हैं। इसके लिये हमारे दांत एवं जबड़े भोजन को चबाने का कार्य करते हैं जिससे लीवर को पित्त उत्पन्न करने का प्रोत्साहन मिलता है। लीवर (यकृत) द्वारा पित्त की उत्पत्ति हमारी पाचन प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब हमें भूख लगी होती है उस अन्तराल में पित्त, पित्ताशय में इकट्ठा हो जाता है उसके बाद यह छोटी आंत में चला जाता है।
आंत तन्त्र (G.I.T.) के कितने भाग होते हैं?
मुंह, ग्रासनली (esophagus) , आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलतन्त्र एवं गुदा द्वार हमारे आंत तन्त्र के मुख्य भाग हैं। इनके अतिरिक्त शरीर के कुछ दूसरे अंग भी पाचन प्रक्रिया में सहायता करते हैं मगर तकनीकी स्तर पर इन्हें पाचन तन्त्र का भाग नहीं समझा जाता। ये अंग हैं‒हमारी जीभ (ज़बान) हमारे मुंह के अन्दर स्थित ग्रन्थियां जो राल (Saliva) उत्पन्न करती हैं। इनके अतिरिक्त अग्नाशय (Pancreas) , यकृत (Liver) एवं पित्ताशय (gallbladder)।
पाचन तन्त्र या आंत तन्त्र (G.I.T.) की क्या-क्या क्रियाएं होती हैं?
आंत तन्त्र चार महत्त्वपूर्ण कार्य करता है:
खाद्य पदार्थों का भण्डारण करना
पाचन तन्त्र के विभिन्न अंगों द्वारा उत्पन्न पाचक रसों (enzymes) को भोजन में मिश्रित करके उन्हें विखण्डित करने के बाद पाचन योग्य बनाना।
मुंह के भीतर चबाये जाने के बाद इस मिश्रित भोजन को ग्रासनली आमाशय, ग्रहणी (duodenum), छोटी आंत, बड़ी आंत से होते हुये गुदा द्वार तक ले जाया जाता है।
विशेषकर छोटी आंत एवं बाह्य अंगों से रक्त में पोषक तत्त्वों का अवशोषण करवाता है।
पाचन क्रिया का क्या अर्थ है?
पाचन क्रिया उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें हमारे शरीर का पाचन तन्त्र खाद्य पदार्थों को विखण्डित करके शरीर द्वारा अवशोषित किये जाने लायक बना देता है, जिसको हमारा शरीर आवश्यकतानुसार ऊर्जा की प्राप्ति, शरीर के विकास एवं इसकी मरम्मत करने के लिये प्रयोग कर सकें। पाचन क्रिया की अवधि में एक ही समय में दो प्रमुख प्रक्रियायें होती हैं। ये इस प्रकार हैं:
एक बच्चे के दो वर्ष की अवस्था में दूध के केवल 20 दांत होते हैं। ये दांत पांच दांतों के चार-चार के सेट में होते हैं। पांच में से एक काटने वाला दांत, छः माह की अवस्था में निकलता है, फिर अगला दांत नौ माह की अवस्था में निकलता है, इसके पश्चात् बीच का दांत 18 माह की आयु में निकलता है। प्रथम एवं द्वितीय चबाने वाले दांत 12 एवं 24 माह की आयु में आते हैं।
यांत्रिक पाचन (Mechanical Digestion):
पाचन क्रिया की इस अवस्था में भोजन के बड़े-बड़े टुकड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है, जो तत्पश्चात् रासायनिक या द्वितीय स्तर की पाचन प्रक्रिया में प्रयुक्त होते हैं। यह यांत्रिक पाचन मुख से आरम्भ होकर आमाशय तक चलता है।
मुंह
इस स्थान पर भोजन चबाया जाता है, जो बाद में निगल लिया जाता है। मुंह के अन्दर बनने वाली राल (Saliva) में पाचक रस (engyme) होता है, जो स्टार्च को ग्लूकोज में बदल देता है।
ग्रासनली (esophagus)
इस स्थान से भोजन ग्रासनली में प्रवेश करता है और यहां से आमाशय में प्रवेश करता है।
आमाशय (stomach)
आमाशय की मांसपेशियां गैस्ट्रिक तरल उत्पन्न करती हैं जिसमें प्रोटीज नामक एंजाइम होता है जो प्रोटीन का अपघटन करके अमीनो एसिड उत्पन्न करता है।
छोटी आंत
छोटी आंत में एमाइलेज (amylase), प्रोटीज (protease) एवं लाइपेज (Lipase) नामक (चर्बी या वसा को विखण्डित करने वाला एंजाइम) एंजाइम बनते हैं, जो अतिरिक्त वसा, प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट को अपघटित करते हैं।
बड़ी आंत
जो भोजन पचने से रह जाता है, वह बड़ी आंत में चला जाता है। इस स्थान पर पानी से मिलकर यह बचा-खुचा पदार्थ मल में परिवर्तित हो जाता है।
मलतन्त्र
इस स्थान पर मल इकट्ठा होता है जो बाद में गुदा द्वार से बाहर निकल जाता है।
रासायनिक पाचन क्रिया:‒यह पाचन क्रिया मुंह से आरम्भ होकर आंतों तक चलती है। विभिन्न प्रकार के एंजाइम (पाचक रस) इस पाचन प्रक्रिया के दौरान बड़े अणुओं (macromolecules) का अपघटन करके उन्हें सूक्ष्म अणुओं में परिवर्तित कर देते हैं, जो शरीर द्वारा अवशोषित किये जा सकते हैं।
पाचन तन्त्र में पाचन किस प्रकार होता है?
पाचन क्रिया किस स्थान पर होती है?
जैसा कि हम सभी को यह जानकारी है कि शरीर का हर अंग अलग-अलग कामों को करने के लिये बना है। इसी प्रकार पाचन क्रिया भी पाचन तन्त्र में होती है जो 20 से 30 फिट लम्बी, हमारे मुंह से गुदा द्वार तक फैली हुई नली है। आप जो कुछ भी खाते-पीते हैं, वह सब इस तन्त्र से गुज़रता है, किन्तु जब तक यह पदार्थ पाचन तन्त्र द्वारा अवशोषित नहीं कर लिये जाते, तब तक भोजन में पाये जाने वाले सभी पोषक तत्त्व शरीर के बाहर ही समझे जाते हैं। पाचन प्रक्रिया के कुछ भाग में आंत तन्त्र की दीवारों, जो कोशिकाओं द्वारा निर्मित हैं एवं आंत तन्त्र पर आवरण का कार्य करती है, द्वारा पोषक तत्त्वों को ले जाना भी शामिल है। ये पोषक तत्त्व जब एक बार आंत के अवरोध को पार करके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, उसके बाद ये पोषक तत्त्व रक्त प्रवाह में शामिल हो सकते हैं और फिर सभी टिशुओं में घूमते हुए शरीर के सभी अंगों को उनके कार्य में सक्रिय रखते हैं, शरीर की ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, एवं नयी कोशिकाओं और टिशुओं के निर्माण एवं मरम्मत में सहायता करते हैं।
हमारे मुंह में दांतों की कुल संख्या 32 होती है। यह सभी 8-8 दांतों के 4-4 के सेट में रहते हैं। काटने वाले दो दांत 7 एवं 8 वर्ष की आयु में आते हैं। इसके बाद बीच वाला दांत 11 वर्ष की आयु में निकलता है। चबाने वाले दो दांत 9 एवं 10 वर्ष की आयु में आते हैं और शेष तीन चबाने वाले दांत क्रमशः 6, 12 एवं 18 वर्ष की आयु में आते हैं। उसके बाद 18 वर्ष की आयु में पूरे 32 दांत आ जाते हैं।
पाचन क्रिया मुंह के भीतर किस प्रकार होती है?
मुंह के भीतर पाचन क्रिया का आरम्भ भोजन के चबाये जाने से ही होने लगता है। यहां भोजन पहले बड़े-बड़े टुकड़ों में टूटता है, उसके बाद बहुत छोटे-छोटे कणों में टूटकर राल (Saliva) एवं एंजाइमों को खाद्य पदार्थों के बड़े एवं जटिल समूहों में प्रवेश करवाता है, इसके साथ ही यह शरीर को सिग्नल देकर सम्पूर्ण पाचन प्रक्रिया आरम्भ करवा देता है। मुंह के भीतर की स्वाद संवेदी तन्त्रिकाओं को सक्रिय करने के बाद एवं चबाये जाने की प्रक्रिया के बाद स्नायु तन्त्र को संकेत मिलता है। उदाहरण के तौर पर, जिस प्रकार भोजन का स्वाद, आमाशय के आवरण को अम्ल उत्पन्न करने के लिये प्रेरित कर सकता है और इस कारण आपका आमाशय, खाद्य पदार्थों के आपके मुंह से आगे जाने से पहले ही खाने के प्रति प्रतिक्रिया करने लगता है।
राल की उत्पत्ति मुंह के भीतर की राल ग्रन्थियों द्वारा की जाती है। यह राल खाद्य पदार्थों को गीला करके अधिक आसानी से चबाने योग्य बना देती है। राल में कुछ एंजाइम भी होते हैं जो किसी हद तक स्टार्चों एवं वसा का विखण्डन मुंह के अन्दर ही आरम्भ कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर कार्बोहाइड्रेट का पाचन राल के ऐन्जाइम अल्फ़ा-एमाइलेज़ के साथ आरम्भ हो जाता है, और वसा का पाचन लिंगुअल लाइपेज़ नामक एंजाइम के स्राव के साथ शुरू होता है। यह एंजाइम जीभ के नीचे स्थित ग्रन्थियों द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
राल (Saliva) कहां से आती है?
जैसा कि हम जानते हैं कि भोजन जब मुंह में पहुंचकर राल में मिलता है, उसी समय पाचन प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। यह राल एक ऐसा तरल है जिसका 99 प्रतिशत भाग पानी है। राल में एक एंजाइम होता है जिसे अमाइलेज़ (amylase) कहते हैं। यही अमाइलेज नामक एंजाइम स्टार्च युक्त खाद्य का अपघटन करता है। भोजन के बारे में मात्र हमारे सोचने, देखने या केवल सूंघने से ही राल ग्रन्थियों से राल का स्वत: स्राव होने लगता है।
हमारे मुंह के भीतर राल का स्राव तीन जोड़ी बड़े आकार वाली राल ग्रन्थियों द्वारा किया जाता है:
पैरोटिड ग्रन्थियां कान के ठीक नीचे होती हैं, सबमैक्ज़िलरी ग्रन्थियां निचले जबड़े में होती हैं एवं सबलिंगुअल ग्रन्थियां हमारी जीभ के नीचे होती हैं। इनके अतिरिक्त कई छोटी राल ग्रन्थियां होठों, गाल एवं जीभ के नीचे और उसके पास होती हैं। तीनों बड़ी ग्रन्थियों में सबसे बड़ी पैरोटिड ग्रन्थियां, हमारे मुंह के भीतर राल का स्राव ऊपर के दोनों तरफ के द्वितीय मोरल (moral) दांतों के पास स्थित नन्हें-नन्हें छिद्रों से करती हैं। सबमैक्ज़िलरी एवं सबलिंगुअल ग्रन्थियां भी एक प्रकार का तरल म्युकस उत्पन्न करती हैं जो खाद्य पदार्थों को चिकनाहट प्रदान करती हैं।
ग्रासनली का क्या कार्य है?
ग्रासनली मुंह को पेट से जोड़ती है। यह राल मिश्रित खाद्य पदार्थों को हमारे मुंह से आमाशय में भेजती हैं एवं पाचन तन्त्र और बाहरी दुनिया के बीच ग्रासनली वायु पुल (air-lock) का काम करती हैं।
पित्त (Bile) क्या होता है?
पित्त, पीले या हरे रंग का गाढ़ा तरल होता है जिसका स्वाद कड़वा होता है। यह लीवर द्वारा पैदा किया जाता है और इसका भंडारण पित्ताशय (Gallbladder) में होता है। हमारे द्वारा खाया गया भोजन जब छोटी आंत में पहुंचता है, तब पित्ताशय से पित्त का स्राव छोटी आंत में होने लगता है, जो वसा को पचाने के लिये अति आवश्यक है। पित्त शरीर की त्याज्य प्रणाली का भी हिस्सा है क्योंकि इसमें खराब हो चुकी रक्त कोशिकाओं के अवशेष पाये जाते हैं। हमारा लीवर प्रतिदिन लगभग एक लीटर पित्त उत्पन्न करता है। जिसमें कई प्रकार के रसायन मिले होते हैं, जैसे‒ पित्त-लवण (बाइल साल्ट्स), खनिज लवण, कोलेस्ट्राल एवं पित्त वर्णक (Bile Rigments) जो पित्त को उसका विशेष रंग एवं अन्य विशेषतायें प्रदान करते हैं।
प्रतिदिन हम लगभग 1500 मि.ली. राल पैदा करते हैं। यह मुख्य रूप से म्युकस एवं तरल का योग होता है। इस में टायलिन एंजाइम पाया जाता है जो पाचन क्रिया में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त इस में लाइसोजाइम नामक एक रसायन होता है जो मुंह को संक्रमण से बचाता है।
काइम (chyme) क्या होता है?
आमाशय के अन्दर के स्रावों से मिश्रित, अधपचा भोजन जो आहार नली में जाता है वही काइम कहलाता है। आमाशय से बाहर आने वाले काइम की तरलता की डिग्री भोजन की सम्बन्धित मात्रा एवं आमाशयिक स्रावों और पाचन होने की डिग्री पर निर्भर करती है। काइम का रंग-रूप बदरंग, दूधिया एवं गाढ़ा होता है।
पाचन की प्रक्रिया के अंतराल में आमाशय की भूमिका क्या है?
ग्रासनली का मुंह आमाशय में खुलता है जो एक बड़ी कोठरी जैसा होता है। पाचन प्रक्रिया में लगने वाले कुल समय में आमाशय की सम्पूर्ण भूमिका को पाचन की ‘आमाशयिक अवस्था’ कहते हैं। आमाशय वह पहला स्थान है जहां सभी प्रोटीनों को छोटे-छोटे भागों में अपघटित किया जाता है, इन्हें पेप्टाइड्स (Peptides) कहा जाता है। अपने अम्लीय वातावरण के कारण आमाशय एक डिकोन्टैमिनेशन (decontamination) चैम्बर का काम करता है जो बैक्टीरिया एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवियों को नष्ट कर देता है जो संभवत: मुंह के रास्ते हमारे पाचन तन्त्र में प्रवेश कर जाते होंगे।
जब खाद्य पदार्थ हमारे पेट में प्रवेश करते हैं, तब पेट के आवरण या लाइनिंग द्वारा हाइड्रोक्लोरिक एसिड उत्पन्न किया जाता है। हमारे आमाशय का यह अम्लीय वातावरण विषाक्त तत्त्वों को समाप्त करने के लिये अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त यह अम्लीय वातावरण, जटिल त्रि-आयामी (थ्री डायमेन्शनल) प्रोटीन कड़ी को खोलने के लिये भी आवश्यक हैं। इस प्रक्रिया को डिनेचुरेशन ऑफ प्रोटीन्स कहते हैं।
आमाशय का आवरण पेप्सीनोजन (pepsinogen) नामक एंजाइम का भी स्राव करता है जो अधिकांश समय वहां उपस्थित ही रहता है, किन्तु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अनुपस्थिति में यह निष्क्रिय रहता है। क्रियाशील होने पर यह पेप्सिन का रूप ले लेता है। यह पेप्सिन डिनैचुरेटेड प्रोटीनों पर जल अपघटन द्वारा या प्रोटीन चेन के अमीनो अम्लों के बीच के बॉन्डस (bonds) को काट कर क्रिया करता है। जिसके परिणाम स्वरूप कई छोटे चेन या पेप्टाइड बनते हैं।
आमाशय के भीतर वसा का जल अपघटन अतिक्रियाशील एवं तेज़ होता है। वसा तो यहां पहुंचने से पहले ही राल में रहने वाले लाइपेज में मिश्रित रहती है जो जल अपघटन को शुरू कर देती है, किन्तु आमाशय द्वारा स्रावित लाइपेज ही मानवों में वसा के जल अपघटन के लिये बुनियादी तौर पर उत्तरदायी होता है।
आंत तन्त्र में गुहा (Antrum) या उदर का निचला भाग वह स्थान है जहां पर पिसाई (grinding) का कार्य होता है। इसी स्थान पर एक संवेदक यंत्र रचना (sensor mechains) होता है जिसे गैस्ट्रिन कहते हैं। इसका कार्य उदर में उत्पन्न होने वाले अम्ल की मात्रा को नियमित करना है। पाइलोरिक स्फिन्कटर द्वारा खाद्य पदार्थों को आंत में पहुंचने को भी गुहा (Antrum) द्वारा कन्ट्रोल किया जाता है। इस प्रकार भोजन को नियन्त्रित विधि से पहुंचाया जा सकता है। खाद्य पदार्थ-अम्ल-एंजाइम का मिश्रण आमाशय से बाहर निकल जाने के पश्चात् काइम कहलाता है। जब काइम पाइलोरिक अवरोधिनी से गुज़रता है, तब इसके कारण आंत का उद्दीपन होता है और हार्मोन्स एवं cholecystokinin का स्राव होता है जो अग्नाशय को इसके भीतर के पदार्थ, अग्नाशयिक रस को छोड़ने का संकेत देता है जो ग्रहणी के कोटर (आवरण) के भीतर होता है। (यह छोटी आंत का पहला भाग होता है)।
छोटी आंत के कितने भाग होते हैं?
छोटी आंत में ग्रहणी होती है। यह छोटी आंत का वह भाग है जो आमाशय के बहुत ही