मधुमेह: जितना जानेंगे उतना जियेंगे
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About this ebook
मधुमेह के नियंत्रण में सबसे जरूरी है रोगी का शिक्षित होना और अपने इन्द्रियों पर क़ाबू होना। चिकित्सक चाहे जितनी अच्छी दवा दे दे लेकिन जब तक खुद रोगी इसके बारे में सावधान नही रहेगा, उसका मधुमेह काबू में रखना असंभव होगा। जो मधुमेह का रोगी अपने रोग के बारे में जितना अधिक जनता है वह उतना ही अधिक दिन जीता है |
Dr. Ajay Kumar
Dr. Ajay Kumar is Assistant Professor in the Department of Kayachikitsa and Panchakarma at Government Post Graduate Ayurveda College and Hospital, Varanasi. He has completed B.A.M.S. in 2005 from the same college and after this completed M.D. and Ph. D. in Kayachikitsa from Banaras Hindu University. His main areas of specialisation are hypertension, cardio-respiratory and diabetes. He has published so many books such as Hypertension in Ayurveda, Male Infertility and Management, Bimariyo ko Harayege, Madhumeha, Kayachikitsasutram, Bheshaj Darpan & Kayachikitsa. About 20 research papers have been published in international and national level journals & More than 200 health related articles have been written for national level news papers by him. He has presented guest lectures in more than 30 international and national level seminars, and also organised several seminars. He has been awarded "Jeevak Award" by Himalaya Herbal Health Care, "Ayurmedha Award" by Charak Pharma, "Excellence Award" by AIMIL, "Charak Award" by Nirog Street with Collaboration of Min. of AYUSH, "Ayurved Dhanwantari Samman" by District Naukayan Sangh, Varanasi, "Kashi Gaurav Award" by Hockey Varanasi, "Vaidyamitra Award" by District Olympic Association, Varanasi, "Ayush Gaurav" award by Banaras Hindu University and Baikunthi Ayush Research and Social Welfare Society, Lucknow and "Teachers Innovation Award" by Sri Aurobindo Society.
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मधुमेह - Dr. Ajay Kumar
मधुमेह क्या है
एक रिसर्च के अनुसार साल 2000 के अनुमान के मुताबिक विश्व में करीब 17 करोड़ डायबिटीज़ के मरीज थे, जिसमे से भारत में सबसे ज्यादा करीब 3 करोड़ डायबिटीज़ के मरीज थे । उसी रिसर्च में यह भी अनुमान किया गया है कि अगले तीस साल में भी भारत में सबसे अधिक डायबिटीज़ के मरीज रहेगे। अनुमान के अनुसार साल 2030 में विश्व में करीब 36 करोड़ डायबिटीज़ के मरीज होंगे, जिसमे की भारत में करीब 8 करोड़ डायबिटीज़ के मरीज होंगे जो की सबसे ज्यादा होगा ।
डायबिटीज मेलेटस, जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक रक्त शर्करा का स्तर जरुरत से अधिक बना रहता है। उच्च रक्त शर्करा के कारण अक्सर पेशाब अधिक होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है। यदि समय पर मधुमेह का इलाज़ नहीं किया जाये तो यह कई जटिल रोगों का कारण बन सकता है। बड़े जटिल रोगों में मधुमेह केटो-एसिडोसिस, नॉन-केटोटिक हाइपर-ओस्मोलर कोमा या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक रोगों में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी डिसीज , पैर का अल्सर और आंखों से कम दिखना शामिल है।
सामान्य रूप से मधुमेह के निम्न कारण हो सकते है -
अग्न्याशयद्वारा पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाना (Insulin Deficiency)
शरीर की कोशिकाओ द्वारा इंसुलिन को ठीक से प्रयोग नहीं कर पाना (Insulin Resistance)
मधुमेह के प्रकार
मधुमेह के तीन मुख्य प्रकार होते हैं-
टाइप-1 डी.एम. (Type -1-Diabetes Mellitus) -
इस प्रकार का मधुमेह अग्न्याशय की विफलता का परिणाम है जिसमे अग्न्याशय इंसुलिन का उत्पादन करने में समर्थ नहीं होता है । इस रूप को पहले इंसुलिन-आश्रित डायबिटीज मेलाईटस
(IDDM- Insulin Dependent Diabetes Mellitus) या किशोर मधुमेह
(Juvenile Diabetes) के रूप में जाना जाता था। इसका कारण अज्ञात है । टाइप वन में अग्न्याशय में इन्सुलिन स्रावित करने वाली बीटा कोशिकाएं पूर्णतः नष्ट हो जाती हैं। इन रोगियों को बिना इन्सुलीन दिए इलाज़ संभव नहीं हैं।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार टाइप-1 मधुमेह के लक्षण ज्यादातर छोटे बच्चे और किशोरों में देखने को मिलते हैं। टाइप-1 मधुमेह का सबसे मुख्य कारण आनुवंशिकता
है और इसके इलाज के लिए इन्सुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है। पैंक्रियास से इन्सुलिन
नामक हार्मोन का स्राव होता है। हम जो भी भोजन खाते हैं वह पचने के बाद ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है, इस ग्लूकोज को एनर्जी में बदलने का कार्य यह इन्सुलिन
ही करता है। यह ग्लूकोज एनर्जी
में परिवर्तित होकर हमारी मांशपेशियों तक पहुँचता है जिससे शरीर को एनर्जी मिलती है।
टाइप-1 मधुमेह तब होता है जब पैंक्रियास की इन्सुलिन उत्पन्न करने वाली कोशिकाएं (बीटा सेल्स) क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और इस कारण इन्सुलिन उत्पादन कम या समाप्त हो जाता है, और ऊर्जा के लिए प्रयोग हेतु ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं तक नहीं पहुँच पाता।
टाइप-2 डी.एम. (Type -2-Diabetes Mellitus) -
इसे पहले गैर-इंसुलिन-निर्भर मधुमेह मेलिटस (NIDDM) या वयस्कता में शुरु होने वाला मधुमेह कहा जाता था। यह मधुमेह टाइप-1 के विपरीत होता है, जिसमें अग्न्याशय में आइलेट कोशिकाओं के विघटन के कारण पूर्ण इंसुलिन की कमी होती है। मधुमेह की इस बीमारी को मोटापे से सम्बंधित माना गया है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले कई दशकों से मोटापा और मधुमेह टाइप-2 बीमारी समानांतर रूप से बढ़ी हैं। टाइप-2 मधुमेह में व्यक्ति के शरीर में इन्सुलिन हार्मोन की मात्रा बहुत कम हो जाती है और रक्त में ग्लूकोज बढ़ने लगता है। अधिक प्यास लगना, बार-बार मूत्र लगना और लगातार भूख लगना कुछ चिर परिचित लक्षण हैं। मधुमेह के लगभग 95 प्रतिशत मामले टाइप 2 मधुमेह के होते हैं जबकि शेष 5 प्रतिशत प्राथमिक रूप से डायबिटीज मेलिटस टाइप 1 और गर्भावस्था मधुमेह के होते हैं। आनुवांशिक रूप से रोग के प्रति अधिक संवेदनशील लोगों में टाइप 2 मधुमेह का मुख्य कारण मोटापे को माना जाता है।
मधुमेह टाइप-2 का आरंभिक प्रबंधन व्यायाम और आहार संबंधी सुधार को बढ़ा कर किया जाता है। यदि इन उपायों से रक्त ग्लूकोज स्तर पर्याप्त रूप से कम नहीं होते हैं तो मेटफॉर्मिन या इंसुलीन जैसी दवाओं की जरूरत हो सकती है। वे लोग जो इंसुलिन पर हैं, उनमें रक्त शर्करा के स्तर की नियमित जांच की आवश्यकता होती है।
यह मधुमेह इंसुलिन प्रतिरोध से शुरू होता है । यह ऐसी स्थिति है जिसमे कोशिका इंसुलिन को ठीक से ग्रहण करने में विफल होती है। जैसे-जैसे रोग की प्रगति होती है, इंसुलिन की कमी भी बढ़ती जाती है। इस प्रकार के मधुमेह को पहले गैर इंसुलिन-आश्रित डायबिटीज मेलाईटस
(NIDDM- Non insulin dependent Diabetes Mellitus) या वयस्क-शुरुआत मधुमेह
(Adult onset Diabetes Mellitus) के रूप में जाना जाता था।
इसका सबसे प्रमुख कारण शरीर का अत्यधिक वजन होना और पर्याप्त व्यायाम न करना है । भारत में 95%-98%रोगी टाइप-२ के ही हैं। टाइप-२ के रोगियों में बीटा कोशिकाएं कुछ-कुछ बची रहती है और दवाइयों द्वारा उन्हें उतेजित कर इन्सुलिन स्त्रावित करने को बाध्य किया जाता है, किन्तु इस तरह बीटा कोशिकाओं को उत्तेजित की भी एक सीमा होती हैं और अन्ततः एक समय आता है जब वह बेकार हो जाता है और तब दवाइयां भी असर नहीं करतीं है ।
गर्भावधि मधुमेह (Gestational Diabetes)-
गर्भकालीन मधुमेह, यानी जैस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न होता है। आमतौर पर गर्भावस्था समाप्त होने पर यह अपने आप ही ठीक भी हो जाता है । जिन महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान डाइबिटीज़ रोग होता है उनके अपने जीवन में आगे 5 से 10 वर्षों में मधुमेह की बीमारी फिर से होने का 20-50 प्रतिशत तक खतरा होता है।
मधुमेह के सामान्य लक्षण
आजकल मधुमेह एक आम समस्या बन गई है । जब शरीर में पैंक्रियाज नामक ग्रंथि इंसुलिन बनाना बंद कर देती है तब मधुमेह अथवा डायबिटीज की समस्या उत्पन्न होती है। कई बार यह बीमारी शुरू में हो जाती है लेकिन, उनको इस बात का पता काफी समय बाद चलता हैं । जिसके कारण यह बीमारी बहुत ही खतरनाक हो जाती है। दरअसल डायबिटीज लाइफस्टाइल संबंधी या वंशानुगत बीमारी है। रोगयो में मधुमेह के निम्न प्रमुख लक्षण मिलते है –
बार बार मूत्र लगना (Polyurea),
बार बार प्यास लगना(Polydipsia),
बार बार भूख लगना (Polyphagia),
वजन कम होना
मधुमेह के शुरूआती लक्षणों की पहचान अगर हो जाए तो इसका इलाज बहुत ही जल्दी और आसानी से हो सकता है । इसके अलावा मधुमेह के लक्षण इस प्रकार हैं –
बार बार पेशाब का आना
प्यास अधिक लगना
अत्यधिक भूख लगना
बिना वजह थकान होना
हमेशा नींद जैसी आते रहना
पैरों में सुन्नता का अनुभव
अचानक वजन घटना या बढ़ना
धुंधला दिखाई देना
घावों का ना भरना
रात को 3 से ज्यादा बार पेशाब जाना
इस अध्याय में बताये गए लक्षणों के आधार पर हम भलीभाति निर्णय ले सकते है की हमें मधुमेह है या नहीं । यदि मधुमेह है, तो आगे देखते है की इसके होने के क्या कारण है ?
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