Diabetes Type I & II - Cure in 72 Hrs in Hindi
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Book preview
Diabetes Type I & II - Cure in 72 Hrs in Hindi - Dr. Biswaroop Roy Chowdhury
सीख
अध्याय - 1
डायबिटीज - एक राजनीतिक रोग
‘डायबिटीज टाइप 1 और 2 - 72 घंटों में रोगमुक्ति’
हो सकता है कि इस पुस्तक का शीर्षक आपको भ्रामक लगे या हो सकता है कि कुछ लोग इसे मूर्खतापूर्ण भी मान लें क्योंकि आप में से अधिकतर लोग इसी भय के साथ बड़े हुए हैं कि डायबिटीज रोग से मुक्ति नहीं है और चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में ऐसा अभी तक प्रमाणित भी नहीं हुआ कि डायबिटीज टाइप 1 का केस रोग मुक्त हो गया हो। हो सकता है कि आपमें से बहुत से लोग ‘डायबिटीज टाइप 1 और 2 - 72 घंटों में रोग मुक्ति’ नामक शीर्षक के प्रति संशय में हों परंतु फिर भी आप इसे पढ़ रहे हैं, इसका अर्थ है कि आपके हृदय के किसी कोने में, कहीं न कहीं कोई आशा की किरण तो है। मैं एक लेखक और आपका शुभचिंतक होने के नाते आपको सलाह दूंगा कि आप पुस्तक के अगले दस पृष्ठों को डायबिटीज के बारे में वर्तमान व सीमित अवधारणाओं से प्रभावित हुए बिना पढ़ें। इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, हम 12 जुलाई 2014 की एक घटना पर चर्चा कर लेते हैं, जो आपके स्वास्थ्य व स्वास्थ्य की देखरेख से जुड़े तरीके व उपायों को पूरी तरह से बदल देगी।
यह स्थान था, भारत के फरीदाबाद शहर में स्थित मेरा ऑफिस, शनिवार का दिन, 12 जुलाई 2014 । इस शहर व इसके आसपास के इलाके के आठ लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ एकत्र हो चुके थे। वे विभिन्न क्षेत्रों से थे। उनमें से सबसे छोटा आठ वर्षीय तथा सबसे बड़ा सदस्य 72 वर्षीय था। उनमें से एक स्कूल बस का ड्राइवर भी था और दूसरा एक जाने-माने स्कूल का प्रिंसीपल था परंतु उन सबमें जो एक बात सामान्य रूप से पाई गई, वह यह थी कि वे सभी डायबिटीज टाइप 1 या 2 के रोगी थे। उन रोगियों में डायबिटीज के ऐसे रोगी भी शामिल थे जिन्होंने कुछ ही महीने पहले डायबिटीज से पीड़ित होने के बारे में जाना था और कुछ ऐसे थे जो पिछले 22 वर्षों से इस रोग के साथ जीते आ रहे थे। उन सबसे कहा गया था कि वे कुछ खाए-पीए बिना आएं क्योंकि उनकी खाली पेट ब्लड शुगर की जांच होनी थी। डायगनोस्टिक सेंटर की विशालतम श्रृंखला से जुड़े डॉक्टर लाल पैथ लैब (जो एक स्वतंत्र एजेंसी है) को उन रोगियों की जांच के लिए नियुक्त किया गया था। चूंकि वे सभी ‘एक दिवसीय डायबिटीज रिवर्सल इनिशिएशन प्रोग्राम’ का हिस्सा थे इसलिए यह तय था कि वे आठ रोगी, रात के नौ बजे तक हमारे साथ रहेंगे और उसके बाद एक सप्ताह तक हमारे द्वारा बताए गए विशेष आहार, डी1डी2सी डाइट (Diet) का पालन करेंगे। फिर अगले दिन डॉक्टर लाल पैथ लैब वाले पैथोलॉजिस्ट उनके घर जा कर उनकी फास्टिंग ब्लड शुगर की जांच करके आएंगे, जो कि 13 जुलाई को होनी तय थी। उन सबके जीवन में वह दिन एक जीवन परिवर्तनीय दिन होने वाला था क्योंकि वे हमेशा के लिए उस रोग से छुटकारा पाने की तैयारी कर रहे थे जो अब तक उनके स्वास्थ्य, धन व प्रसन्नता से खिलवाड़ करता आ रहा था। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह थी कि वे सभी सकारात्मक मनोदशा में थे क्योंकि उन्हें हमारे उन पुराने रोगियों द्वारा ही हमारे पास भेजा गया था, जो इस रणनीति और जीवन में बदलाव लाने वाली तकनीक के बल पर, डायबिटीज व जीवनशैली से जुड़े अन्य रोगों पर काबू पा सके थे। कार्यक्रम को इस प्रकार आयोजित किया गया थाः-
सुबह सात से आठ बजे तकः डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 के सभी रोगियों की खाली पेट ब्लड ग्लूकोज की जांच।
आठ बजेः तुलसी के दस पत्तों के साथ एक छोटा अदरक का टुकड़ा चबाने के लिए।
सवा आठ बजेः रोगियों व उनके परिवार वालों को नारियल पानी।
साढ़े आठ बजेः उन्हें बहुत ही पौष्टिक नाइट्रिक ऑक्साइड युक्त नाश्ता करवाया। उनके नाश्ते में मुख्य रूप से अंकुरित पदार्थ, बादाम, कच्ची मौसमी सब्जियां आदि शामिल थीं।
इस नाश्ते के पोषक तत्व थेः 200 ग्राम से 400 ग्राम कार्बोहाईड्रेट्स, 50 ग्राम प्रोटीन, 50 ग्राम वसा तथा अन्य महत्त्वपूर्ण माईक्रोपोषक तत्व (अधिकतर प्रतिभागियों ने इसे खाने में तकरीबन आधे घंटे का समय लिया क्योंकि उन्हें परामर्श दिया गया था कि वे भरपेट नाश्ता करें।)
दस बज कर पैंतालीस मिनट परः
पीपी (पोस्ट परेंडियल) ब्लड शुगर की जांचः अभी 24 घंटे वाले दावे के केवल चार ही घंटे हुए थे और रोगी व उनके परिवार का कोई भी सदस्य किसी सुखद आश्चर्य की प्रतीक्षा में नहीं थे परंतु इस छोटे से अंतराल में आश्चर्यचकित कर देने वाले जो परिणाम सामने आए, आइए उन्हें जानें : रविंदर यादव फरीदाबाद (हरियाणा) निवासी -आयु 55 वर्ष। वे पिछले दो वर्षों से डायबिटीज के रोगी थे, उन्होंने ऐलान किया कि उनका ग्लूकोमीटर काम नहीं कर रहा है और वे उसकी स्क्रीन को बड़े अविश्वास से देख रहे थे। उनका पी पी 105 एमजी/डीएल था। उन्होंने अपने संदेह को दूर करने के लिए दूसरे प्रतिभागी के ग्लूकोमीटर से जांच की क्योंकि वे पिछले दो सालों में पहली बार यह आंकड़ा देख रहे थे।
परंतु इस चमत्कारिक परिणाम को पाने वाले वही एकमात्र रोगी नहीं थे। एक और 72 साल के रोगी श्री बी. डी. वर्मा फरीदाबाद (हरियाणा) निवासी जो पिछले 22 सालों से इस रोग को झेल रहे थे और इसके कारण उनकी दृष्टि बुरी तरह प्रभावित हो चुकी थी, उन्हें अपना पीपी 102 एमजी/डीएल जानने के बाद, पूरी तरह से दवा छोड़नी पड़ी।
इसी तरह राहुल हिसार (हरियाणा) और कौस्तुभ, भरतपुर (राजस्थान) भी डायबिटीज टाइप 1 के रोगी थे और उन्हें अपनी इंसुलिन की खुराक पचास प्रतिशत तक नीचे लानी पड़ी। डायबिटीज टाइप 1 के एक और रोगी एकमप्रीत फरीदाबाद (हरियाणा) निवासी को अपने इंसुलिन पंप को एक घंटे के लिए बंद करना पड़ा क्योंकि उसका शरीर अपना इंसुलिन चार्ज स्वयं लेने लगा था और शायद उसके डायबिटिक जीवन के साढ़े तीन सालों में पहली बार, उसका शरीर अपने-आप शुगर को मेटाबोलाइज कर रहा था।
अब संदेश पूरी तरह से साफ है। डायबिटीज टाइप 1 और 2 को ठीक किया जा सकता है और याद रहे कि प्रतिभागियों को नियमित नाश्ते से अधिक मात्रा में कार्बोहाईड्रेट से भरपूर नाश्ता दिया गया था। 24 घंटों में, डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 दूर करने की यात्रा में यह उनके पहले चार घंटे थे।
दरसअल ‘डायबिटीज टाइप 1 तथा टाइप 2 से 72 घंटे में रोगमुक्ति’ कार्यक्रम को तैयार करने के लिए मुझे, पूरी दुनिया की विशिष्ट मेडीकल पत्रिकाओं में प्रकाशित 500 से अधिक रिसर्च पेपरों का अध्ययन करना पड़ा। आप इस पुस्तक में उनमें से अनेक का विवरण पाएंगे और जान जाएंगे कि वास्तविकता में किसी को भी इस भयंकर रोग - डायबिटीज से मुक्ति पाने के लिए भयभीत होने या मरने की आवश्यकता नहीं है।
डायबिटीज रोग की कला, वाणिज्य तथा विज्ञान समझने के लिए तथा पिछले तीन दशकों के दौरान डायबिटिक रोगियों की हो रही आश्चर्यजनक वृद्धि के सत्य को उजागर करने के लिए हमें इस रोग से जुड़े कुछ अहम आंकड़ों पर नजर डालनी होगी। रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जबकि तथ्य यह है कि इस रोग की चिकित्सा एक सप्ताह से भी कम समय में की जा सकती है।
भारत में डायबिटीज रोगियों की संख्या – 65 मिलियन (आई.डी.एफ.- 2013-इन्टरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन)
संसार में डायबिटीज रोगियों की संख्या – 382 मिलियन (आई.डी.एफ.- 2013-इन्टरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन)
भारत में डायबिटीज पर प्रतिवर्ष होने वाला व्यय – 6 बिलियन डॉलर (आई.डी.एफ.- 2013)
संसार में डायबिटीज पर प्रतिवर्ष होने वाला व्यय – 548 बिलियन डॉलर (आई.डी.एफ.- 2013)
तकरीबन 8.5% मधुमेह यानी डायबिटीज रोगियों को आंख के पीछे पर्दे की खराबी(रेटिनोपैथी) के कारण नेत्रहीनता, 20% से 50% रोगियों को गुर्दे के रोगों तथा 60% से 70% रोगियों को गंभीर रूप से स्नायु हानि तथा गैंग्रीन आदि का सामना करना पड़ता है जिसके कारण उनके अंगों को काटना पड़ता है।
शोध अध्ययनों से पता चलता है कि जिन रोगियों का अंग गैंग्रीन के कारण काटना पड़ता है, उनमें से 60 से 70 प्रतिशत रोगी अपना अंग काटने के पांच ही साल के भीतर मर जाते हैं। डायबिटीज रोगियों में, अन्य रोगियों की तुलना में हृदय संबंधी रोग तथा पक्षाघात आदि रोग होने का खतरा दो से चार गुना अधिक होता है और यही वजह है कि तकरीबन 75% डायबिटिक रोगी हृदय रोगों से ही अपनी जान देते हैं। अनेक अध्ययन यह स्पष्ट करते हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण, डायबिटीज रोग का पता लगने के पंद्रह वर्ष पूर्व से ही हार्ट अटैक तथा स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज से पीड़ित मध्यम आयु के लोगों में, अन्य रोगियों के मुकाबले हृदयरोगों का खतरा दुगना होता है। ऐसे रोगी अन्य रोगियों की तुलना में तीन से चार गुणा अधिक अवसादग्रस्त होने की संभावना रखते हैं।
अनेक डायबिटिक रोगियों में अग्नयाशय (पैंक्रियाज़) व आंतों के कैंसर भी पनप जाते हैं। इन सभी भयभीत कर देने वाले आंकड़ों को देखते हुए, मन में एक ही सवाल पैदा होता है कि मनुष्यजाति को मधुमेह जनित दुष्प्रभावों से क्यों ग्रस्त होना चाहिए तथा उनके व उनके परिवारों का धन इस बीमारी के लिए नष्ट क्यों हो जबकि यह रोग कुछ ही समय (दिनों) में समाप्त किया जा सकता है और बहुत ही कम लागत से इसका पूरी तरह से निदान किया जा सकता है।
अब कुछ क्षण के लिए कल्पना करें कि हमारी दुनिया से डायबिटीज का रोग हमेशा के लिए मिट जाए, तब क्या होगा? निश्चित रूप से मानवजाति को लाभ होगा। इसमें किसे हानि होगी? निश्चित रूप से बड़ी दवा कंपनियों, डॉक्टरों, अस्पताल उद्योग तथा उन सभी विविध खाद्य उत्पादकों की हानि होगी, जिनका बाजार डायबिटीज के कारण ही चलता है। डायबिटीज के विज्ञान तथा वाणिज्य के आपसी संबंध को जानने के लिए, आपको रोग