कबीरः जीवन दर्शन और शिक्षा
By M. Sharma
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महात्मा कबीर आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपनी कालजयी वाणी में वे युगों-युगों तक हमारे सामने परिलक्षित होते रहेंगे। उनकी वाणी का अनुसरण करके हम अपना वर्तमान ही नहीं, भविष्य और मृत्यु बाद के काल को भी सँवार सकते हैं।
अपने दोहों के माध्यम से कबीर ने समाज के बीच आपसी सौहार्द और विश्वास बढ़ाने का काम किया। कबीर ने कोई पंथ नहीं चलाया, कोई मार्ग नहीं बनाया; बस लोगों से इतना कहा कि वे अपने विवेक से अपने अंतर्मन में झाँकें और अपने अंतर के जीवात्मा को पहचानकर सबके साथ बराबर का व्यवहार करें क्योंकि हर प्राणी में जीवात्मा के स्तर पर कोई भेदभाव नहीं होता। सबका जीवात्मा एक समान है।
14वीं सदी में कबीर दलितों के सबसे बड़े मसीहा बनकर उभरे और उच्च वर्गों के शोषण के विरुद्ध उन्हें जागरूक करते रहे। वे निरंतर घूम-घूम कर जन-जागरण चलाते और लोगों में क्रांति फैलाते रहते थे। अपने काव्य के माध्यम से वे लोगों को सचेत भी करते रहते थे। यथा-
कबीर वा दिन याद कर, पग ऊपर तल सीस।
मृत मंडल में आयके, बिसरि गया जगदीश।।
और
कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेपीर।।
महात्मा गांधी भी कबीर के बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने भी दलितों की सेवा, अहिंसा, सत्य, सदाचार, दया, करुणा आदि सद्गुण उन्हीं के चरित्र से ग्रहण किए।
इस पुस्तक में, वर्तमान प्रासंगिकता को ध्यान में रखकर, संत कबीर की की अमर वाणी को सूक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि पाठकों को कबीर को समझने और उनके दर्शाए मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिल सके।
महात्मा कबीर आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपनी कालजयी वाणी में वे युगों-युगों तक हमारे सामने परिलक्षित होते रहेंगे। उनकी वाणी का अनुसरण करके हम अपना वर्तमान ही नहीं, भविष्य और मृत्यु बाद के काल को भी सँवार सकते हैं।
सन् 1398 में जनमे कबीर ने तात्कालिक समाज में व्याप्त कुरीतियों, धार्मिक भेद-भावों, असमानता और जातिवाद आदि विकारों को दूर करने का भरसक प्रयास किया और इसमें उन्हें आंशिक सफलता भी मिली। सामान्य तरीके से जन्म लेकर और एक अति सामान्य परिवार में पलकर कैसे महानता के शीर्ष को छुआ जा सकता है, यह महात्मा कबीर के आचार, व्यवहार, व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व से सीखा जा सकता है। तभी तो अपना परिचय वे सार्वभौमिक रूप में देते हुए कहते हैं-
जाति हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम।
अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।।
अपने दोहों के माध्यम से कबीर ने समाज के बीच आपसी सौहार्द और विश्वास बढ़ाने का काम किया। कबीर ने कोई पंथ नहीं चलाया, कोई मार्ग नहीं बनाया; बस लोगों से इतना कहा कि वे अपने विवेक से अपने अंतर्मन में झाँकें और अपने अंतर के जीवात्मा को पहचानकर सबके साथ बराबर का व्यवहार करें क्योंकि हर प्राणी में जीवात्मा के स्तर पर कोई भेदभाव नहीं होता। सबका जीवात्मा एक समान है।
कबीर मूर्ति या पत्थर को पूजने की अपेक्षा अंतर में बसे प्रभु की भक्ति करने पर बल देते थे। उन्होंने मानसिक पूजा, सत्यनिष्ठा निर्मल मन, प्रेमी व्यक्तित्त्व, सदाचार, नैतिकता, सरलता, मूल्यवादी जीवन-दर्शन, समानता मूलक समाज, धार्मिक सहिष्णुता व उदारता तथा मानवीय जीवन-दृष्टि का संदेश दिया। उनकी अहिंसक प्रवृत्ति के कारण ही उनके मुस्लिम माता-पिता को मांस आदि खाना छोड़ना पड़ा था।
कबीर ने सदैव निष्पक्ष होकर सत्य-पथ का अनुगमन किया और शाश्वत मानव-मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने चमत्कारों, अंधविश्वास, पाखंड और अवैज्ञानिक अवधारणों का कभी समर्थन नहीं किया। उन्होंने कर्म-कर्तव्य की सदा पूजा की और अंत तक एक कामगार का जीवन जीया।
14वीं सदी में कबीर दलितों के सबसे बड़े मसीहा बनकर उभरे और उच्च वर्गों के शोषण के विरुद्ध उन्हें जागरूक करते रहे। वे निरंतर घूम-घूम कर जन-जागरण चलाते और लोगों में क्रांति फैलाते रहते थे। अपने काव्य के माध्यम से वे लोगों को सचेत भी करते रहते थे। यथा-
कबीर वा दिन याद कर, पग ऊपर तल सीस।
मृत मंडल में आयके, बिसरि गया जगदीश।।
और
कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेपीर।।
इस पुस्तक में, वर्तमान प्रासंगिकता को ध्यान में रखकर, संत कबीर की की अमर वाणी को सूक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि पाठकों को कबीर को समझने और उनके दर्शाए मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिल सके।
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