क्यूंकि
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'कुकुंकि' एक गृहिणी द्वारा लिखित गैर-कल्पित पुस्तक है। जब विचार और विचार दिमाग के अंदर घूमते हैं तो कई 'क्यों' उभर आते हैं। यात्रा के दौरान, समारोहों और सामाजिक समारोहों में भाग लेने के दौरान, मैं अक्सर बच्चों को मोबाइल स्क्रीन में तल्लीन देखता हूं, यह वास्तव में परेशान करता है और उनके बचपन की सादगी और मासूमियत पर सवालिया निशान लगाता है। क्यों के कारणों को खोजने की प्रक्रिया में, यह 'क्यों' पेरेंटिंग पर शिफ्ट हो जाता है। पुस्तक के पहले भाग में मैंने लघुकथाओं, लेखों और कविताओं के माध्यम से इनके कारणों का पता लगाने की कोशिश की है। दूसरे भाग 'गृहिणी की डायरी' में मैंने एक गृहिणी के दैनिक कार्यों की भावनाओं को दबाने की कोशिश की है। अधेड़ उम्र की गृहिणी के लिए सपने देखना गलत नहीं है लेकिन सपनों को पूरा करने की कोशिश भी नहीं करना बिल्कुल गलत है। 'क्यूंकि' पुस्तक के दूसरे भाग में यह अपनी छोटी सी दुनिया के बारे में 'एक आम गृहिणी लगती है' की भावनाओं की अभिव्यक्ति है।
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Book preview
क्यूंकि - बरखा विकास जैन
खंड – 1
… साथ जरूरी है
1. क्यूंकि… साथ है जरूरी
इंटरनेट के युग में यह चिट्ठी किसकी हो सकती है, दफ्तर से आकर जब नंदिनी ने चिट्ठी देखी तो चौंक गई। उसके 15 वर्षीय बेटे वरुण की चिट्ठी थी। अभी पिछले हफ्ते ही तो बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाया, क्या लिखा होगा… हतप्रभ नंदिनी ने खोली…
डियर मॉम, डैड! आज हॉस्टल का पहला दिन है। वन ऑफ द बेस्ट स्कूल में मेरा एडमिशन करा कर आपने एक और 'कर्तव्य' अच्छे से निभा लिया। यहां देख रहा हूं, कई साथी अपने मॉम-डैड को मिस कर रहे हैं पर मैं नहीं कर रहा हूं। बचपन से ही इसका आदी जो हो चुका हूं। मेरे जन्म के बाद भी आपने अपने 'कैरियर' को ही प्राथमिकता में रखा। शायद मेरा 1 वर्ष पूरा करने के पहले ही आपने फिर से नौकरी पर जाना शुरू कर दिया होगा, मुझे 'आया' के हवाले करके।
आप दोनों को ही आगे बढ़ना था। बुरा नहीं है आगे बढ़ना, पर ऐसा भी क्या आगे बढ़ना कि आप अपने ही बेटे को उस वक्त, वक्त नहीं दे पाए जब उसे अपने माता-पिता के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत थी। क्या आपको नहीं लगता, शुरू के 7-8 साल तक किसी भी बच्चे को अपने माता-पिता की बहुत जरूरत होती है। आप दोनों कई बार दोस्तों, रिश्तेदारों को कहा करते, सब इसी के लिए तो कर रहे हैं और हम क्वालिटी टाइम तो स्पेंड करते ही हैं।
आप दोनों 'बेहतर' करने में रहे। बेहतर कार चाहिए, बेहतर मकान, बेहतर कॉलोनी, सबसे अच्छा स्कूल… सब कुछ ब्रांडेड। पर उस लिस्ट में मेरा बचपन कैसे बेहतर हो सकता है, यह कभी था ही नहीं। और आप दोनों का क्वालिटी टाइम?? वह भी मुझे कभी-कभार ही मिलता था। संडे को आप दोनों के अपने जरूरी काम होते थे। क्या हर जगह क्वालिटी का ही महत्व है? आपके भोजन में आपका सबसे पसंदीदा भोजन का अंश मात्र परोसा जाए और कहा जाए बस इतना ही पर्याप्त है, क्योंकि यह बहुत स्वादिष्ट है, तो क्या आपके लिए ठीक रहेगा? क्या आपको इतने ही भोजन की आवश्यकता होगी? कहीं-कहीं क्वालिटी के साथ-साथ क्वांटिटी भी चाहिए होती है।
डैड, हम कई जगह देखते हैं, घर के आगे या कहीं सड़क किनारे पौधों को ट्री-गार्ड के द्वारा सुरक्षित रखते हैं। पेड़ बनने के बाद भले ही ट्री-गार्ड हटा देते हैं पर पहले तो जरूरी होता ही है ना। घर के बगीचे में भी, शुरुआत में, हम पौधों की ज्यादा देखभाल करते हैं।आपको नहीं लगता मुझे भी बचपन में केयर की ज्यादा जरूरत थी। आपकी इन्कम कभी कम नहीं थी कि बेसिक नीड्स पूरी नहीं हो पाती। पर आपको 'अच्छा पति' बने रहने के लिए, मेरे जन्म के बाद भी, मां के नौकरीपेशा होने से कोई दिक्कत नहीं हुई। डैड, आपने कभी 'अच्छा पिता' बन कर उस वक्त क्यों नहीं सोचा कि, मैं दफ्तर से कुछ घंटे पहले आकर बेटे के साथ रहूं… क्यों आप अपने ही काम को आगे बढ़ाने के लिए सोचते रहे।
मॉम-डैड, आपका यह बार-बार कहना, तुम्हारी ही वजह से तो इतना व्यस्त रहते हैं क्योंकि तुम्हें सबसे अच्छी शिक्षा देनी है, अच्छी जिंदगी देनी है, तुम्हारे लिए ही तो सब कर रहे हैं…। आप दोनों से सिर्फ इतना ही पूछना चाहता हूं, आप दोनों को, आपके बुढ़ापे में, डैड, आपको सभी भौतिक सुविधाएं और मां आपको डायमंड सेट दे दूं पर आपके पास ना बैठूं तो क्या आपको चलेगा ?
नंदिनी के हाथ से चिट्ठी गिर गई। अचानक उसे कॉलेज वक्त में पढ़ा हुआ 'मुंशी प्रेमचंद' का कथन याद आया… काश… पहले कभी याद आ जाता… , 'इंसान को जब प्रेम की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह बचपन है। इस वक्त पौधे को तरी मिल जाए तो जीवन भर के लिए जड़े मजबूत हो जाती