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भजन-वारिद
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भजन-वारिद

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About this ebook

'भजन - वारिद' पुस्तक मूलरूप से वृजभाषा में भजनों का संग्रह है, जिसमें गेय छंदों में देवताओं की स्तुतियाँ, वंदनाऐं, भजन, सवैये, चालीसा, आरतियाँ और पुरातन पद शैली में भक्त और भगवान के प्रेम संबंध एवं लीलाओं  का सजीव चित्रण है।

Languageहिन्दी
Release dateDec 13, 2021
ISBN9789391470326
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    भजन-वारिद - Ankit Sharma 'Ishupriy'

    Published by:

    Sahityapedia Publishing

    Noida, India – 201301

    www.sahityapedia.com

    Contact - +91-9618066119, publish@sahityapedia.com

    Title: Bhajan-Varid

    Author: Ankit Sharma 'Ishupriy'

    Copyright © 2021 Ankit Sharma 'Ishupriy'

    All Rights Reserved

    First Edition – 2021

    Format: Ebook

    ISBN - 978-93-91470-32-6

    This book is published in its present form after taking consent from the author & all reasonable efforts have been made to ensure that the content in this book is error-free. No part of this book may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electrical, mechanical, photocopying, recording or otherwise) without the prior written permission of the author.

    The publisher of this book is not responsible and liable for its content including but not limited to the statements, information, views, opinions, representations, descriptions, examples and references. The Content of this book, in no way, represents the opinion or views of the Publisher. The Publisher do not endorse the content of this book or guarantee the completeness and accuracy of the content of this book and do not make any representations or warranties of any kind. The Publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions in this book, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause.

    आत्मनिवेदन

    जय श्रीमन्नारायण

    श्रीहरि एवं गुरुजनों की कृपा से भक्तिरस से परिपूर्ण मेरी यह ' भजन-वारिद ' दूसरी प्रकाशित पुस्तक है तथा श्री भगवान को ही समर्पित है। भक्ति प्राणीमात्र के कल्याण का एकमात्र साधन है। प्रार्थनाऐं मनुष्य की आस्था को दृढ़ बनाए रखती हैं। सभी मनुष्य अपने -अपने तरीके से ईश्वर को रिझाने का प्रयत्न करते हैं और इसके लिए सर्वोत्तम साधन स्तुति ही है। जीवन में क्षणिक आनंद के अनंत साधन हैं परन्तु चिरांनंद भक्तिरस में ही समाहित है और यही जीवन का सार है।

    इस पुस्तक में विभिन्न प्रकार की ईश्वरीय प्रार्थनाऐं जैसे स्तुति, वंदना, आरती, भजन, पद, सवैया, छंद एवं चालीसा संग्रहीत हैं जो विभिन्न देवों को समर्पित हैं।

    इस पुस्तक से भक्तजनों को अपने - अपने इष्ट की प्रार्थनाऐं प्राप्त होंगी। जो उनकी पूजापद्धति में जुड़कर उन्हें इष्ट का सानिध्य अनुभव कराऐंगी।

    यूँ तो भगवान के गुण अनंत हैं, वे गुणातीत हैं। अनेक विद्वानों, वेद- वेदांगों, स्मृतियों आदि ने उनके गुणों का वर्णन किया अंत में नेति- नेति कहकर वाणी को ही विराम दिया है तथापि मेरे जैसे मतिमंद ने गुणों के अथाह सिंधु के गुणों को कहने की अत्यल्प चेष्टा की है।

    गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि-

    "सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी॥

    सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही॥"

    इसी चौपाई को आधार मानकर ऐसा विश्वास करता हूँ कि भले ही मैं काव्य रचना में निपुण नहीं हूँ तथापि इस पुस्तक की कविताऐं हरि नाम से पवित्र एवं मंगलमय हो जाऐंगी तथा सज्जनों को सुख देने वाली होगीं।

    - अंकित शर्मा 'इषुप्रिय'

    शुभकामना सन्देश

    नई उम्र का वरिष्ठ साहित्यकार अंकित

    अंकित शर्मा इषुप्रिय की नई कृति भजन वारिद पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ।

    छोटी उम्र में अध्यात्म विषयों पर रचना करना कवि के भगवत प्रेम का संकेत है, जो अन्य रचनाकारों को ढलती उम्र में भी नसीब नहीं होता।

    इषुप्रिय को लगभग आठ-दस वर्ष पूर्व से इसलिए जानता हूं कि वह मेरे क्षेत्र में ही निवास करता है,और कॉलेज के छात्र के रूप में मेरे यहां आता जाता रहता था। उस समय फेसबुक के कविता लोक से मेरे साथ जुड़ा हुआ था, तब भी उनकी रचनाएं स्तरीय हुआ करती थीं।

    अब सरकारी सेवा में जाने के बाद भी सृजन में उत्तरोत्तर प्रगति दिखाई दे रही है।

    भजन वारिद में उनकी कई रचनाएं शिल्प और भाव की दृष्टि से मन मोह लेती हैं, यथा-

    जय श्रुति विभूषित गणपती नत शीश त्रिभुवन सम्मुखे।

    जय विघ्नहर्ता शोकनाशी शंभु सुत मंगल मुखे।

    कला और भावों की दृष्टि से अंकित में बहुत बड़ा साहित्यकार होने के लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं।

    कवि मंचों से दूर शाश्वत सृजन में व्यस्त कवि अंकित की रचना धर्मिता बहुत ही प्रशंसनीय है।

    ईश्वर से प्रार्थना है कि कवि की कीर्ति - वल्लरी हमेशा पल्लवित और पुष्पित होकर काव्य संसार में अपनी मादक गंध बिखेरती रहे, तथा उनकी प्रतिभा रूपी चंद्रिका साहित्य आकाश में आलोकित होती रहे।

    इन शुभकामनाओं के साथ अंकित को हार्दिक बधाई।

    राजवीर सिकरवार भारती

    (राष्ट्रीय कवि)

    (कवित्त रामायण के प्रणेता)

    कवि कुटीर जीन फील्ड

    सबलगढ़ मुरैना मध्य प्रदेश

    फोन- 98278 56 799

    अनुक्रमणिका

    स्तुति

    गणेश स्तुति

    गणेश वंदन (छंद)

    नारायण स्तुति

    बालकृष्ण स्तुति

    कृष्ण स्तुति

    लक्ष्मी स्तुति

    श्री राधिकास्तुति

    श्री राधास्तुति

    दुर्गा स्तुति

    देवी स्तुति

    परशुराम स्तुति

    सरस्वती वंदना

    हे शारदे!

    शारदे वंदन

    हंस पै सवार माँ (छंद)

    वाणी वंदना

    हंसवाहिनी वंदना

    ईश वंदना

    बागवाली महाकाली वंदना

    बागवाली महाकाली प्रार्थना

    आरती

    गणेश आरती

    श्रीराम आरती

    परशुराम आरति

    परशुराम वंदन (छंद)

    यज्ञारती

    श्री बागवाली आरती

    नवदुर्गा स्त्रोत

    गुरु वंदन (छंद)

    सवैये

    सोरठे

    भजन

    गणेश भजन

    लल्ला जायौ है

    कनुआ खेल रह्यौ होरी में

    कन्हैया मोर मुकुट प्यारौ

    बृषभानु दुलारी राधे

    किशोरी राधे

    हठीले कान्हा रे

    मालिक दुनिया का

    मोहन की छवि प्यारी सखी

    श्याम दर्शन तो दे जाओ

    कर ले हरी भजन

    सजौ है सखि फूलन ते

    प्रेम रस बरस रहौ वृन्दावन*

    मल्हार

    हे नाथ तुम्हारे चरणों में

    भज ले मुरलीधर

    तुझको पुकारा है प्यारे कन्हैया

    मार गया जब से मतवाला

    राग सुनाओ

    मोहन बड़ा निराला

    श्याम तू चाहिए

    महारास

    नाम तुम्हारा है

    कृष्ण कन्हाई

    बिन तेरे है बेचैन मेरा जिया

    घनश्याम तुम्हारी मस्ती में

    अमर कर दो

    मोहन अब तो आ जाओ

    श्यामा तेरे दर्शन को

    नयनों में बसे हो

    वृज में आयौ माखनचोर

    पद

    हमारे प्रभु अहंकार नहिं भावै

    हरी नाम ना गावै

    हरि पद हैं मनभावन

    हरि विसरत अब नाहीं

    हरि चरणन मँह लागै

    आइ बसौ मन मोरे

    सम्हल

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