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प्रेम के कितने रंग (कहानी संग्रह): कहानी संग्रह
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प्रेम के कितने रंग (कहानी संग्रह): कहानी संग्रह
Ebook123 pages1 hour

प्रेम के कितने रंग (कहानी संग्रह): कहानी संग्रह

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About this ebook

About the book:
वश चलता तो सूर्य देवता को खींच कर सामने ला देती, आज चांद की शीतलता से कही ज़्यादा सूर्य की तपिश से प्रीति लगी थी ..शीघ्र दिन उगे और मैं कॉलेज जाऊं, पहली बार मेरे आईने को भाव मिला था वरना वो उपेक्षित एक तरफ़ टंगा रहता था..कभी कानों की बालियां ठीक करती तो कभी अपनी पसंदीदा गुलाबी ओढ़नी..आज थोड़ा पाउडर भी लगाया लेकिन भक्क़ सफ़ेदी से घबरा कर पोछ दिया, हम छोटे शहरों वाली लड़कियों को अपने घर से ज़्यादा पास पड़ोस की बुआ चाची की नज़रों से बचना पड़ता था.. "बिट्टो..कैसा रूप निखरा हैं" सीढ़ियों से उतरते हुए दादी ने कहा

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateJan 26, 2022
ISBN9789356101043
प्रेम के कितने रंग (कहानी संग्रह): कहानी संग्रह

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    प्रेम के कितने रंग (कहानी संग्रह) - अनामिका अनूप

    प्रेम के कितने रंग (कहानी संग्रह)

    कहानी संग्रह

    BY

    अनामिका अनूप


    pencil-logo

    ISBN 9789356101043

    © Anamika anoop 2022

    Published in India 2022 by Pencil

    Contributors:

    Editor: Anamika anoop

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: The opinions expressed in this book are those of the authors and do not purport to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    लेखिका परिचय.

    नाम. अनामिका अनूप तिवारी

    शिक्षा. एम ए, बीएड 

    कार्य;- स्वतंत्र लेखन, ब्लॉगर

    प्रकाशित रचना. 

    सांझा कथा संग्रह:- रिश्तों के अंकुर, कथा प्रदेश, बज़्म ए हिन्द, कथा देश, रत्नावली, वीमेन आवाज़- 3 पुस्तक, झांकी हिंदुस्तान की

    पत्रिका;- गृहशोभा, वनिता, साहित्यनामा, वर्तमान अंकुर मैगज़ीन, मैं अपराजिता, समाचार पत्र अन्य...

    डिजिटल पत्रिका;- हिंदी नेस्ट, साहित्यपिडिया, मातृभूमि, मातृ भारती, साहित्य विमर्श, वोमेन्स वेब, स्टोरीमिरर, प्रतिलिपि अन्य..

    ईमेल: anamika77@gmail.com

    Phone. 7985221562

    Contents

    कहानी संग्रह

    कहानी संग्रह

    प्रेम के कितने रंग..मेरे पति अनूप तिवारी को समर्पित हैं।

    हमारे साथ की समयावधि कम थी लेकिन मैं इन चंद सालों में प्रेम के हर रंग से सराबोर थी, कहानियों के ज़रिए उनके प्रेम स्वरूप को आप सबके सामने ले आने की कोशिश हैं..मैं लिखती रहूं..यह अनूप की अंतिम इच्छा थी और मैं तो उनकी पुजारिन हूं, लेकिन भक्ति, ध्यान, ज्ञान, योग वाली नही..उनके प्रेम को रचने वाली पुजारिन.. 

    समर्पित प्रेम को समर्पित मैं

    तेरे बिन

    कोरा पन्ना हैं जीवन का

    जो मन के अंधेरे में काला प्रतीत होता हैं

    तेरे बिन

    मैं सेमल का फूल 

    जो आकर्षक और सुगंधहीन हैं

    तेरे बिन

    दिन ढलता नही

    रातें गहन दुःख ओढ़े भटकता रहता हैं

    तेरे बिन

    अकलुष मेरा प्रेम

    मन के सूखे दरख़्तों पर कोमल पत्ते

    कुछ दर्द, कुछ शब्द लिए

    तेरे बिन

    तुम्हारे प्रेम के रंगों की चादर पर 

    शब्दों की कशीदाकारी

    सर्द रातों में गर्माहट देता हैं

    तेरे बिन

    प्रेम का सागर मिले ना मिले

    तुम्हारे लिए मेरे प्रेम का देवनदी

    सदैव बहती रहेंगी।।

    लेखिका

    अनामिका अनूप तिवारी        

    अनुक्रम

    ● प्रेम के कितने रंग

    ● कशिश

    ● कॉफ़ी डेट

    ● अब लौट चले

    ● परदे के पीछे

    ● तुम्हारे जाने के बाद

    ● थैंक यू शांता

    ● अटल सुहागन               

    प्रेम के कितने रंग

    कभी कुछ ख़बर ऐसी होती हैं जिसपर इंसान प्रतिक्रिया क्या दे वो समझ नही पाता, मेरे सामने रखे लैपटॉप में एक मेल..जिस में लिखी चंद पंक्तियां तकलीफदेह हैं, नामालूम सवालों ने घेर लिया जिनके जवाब ढूंढती मैं बालकनी में आ गयी..बाहर सन्नाटा है, रात्रि का प्रथम प्रहर..ऐसा लग रहा है जैसे सब कुछ सिमटा जा रहा है, श्मशान सी नि:स्तब्धता चारों तरफ फैली है, कोई हलचल नहीं, झींगुरों की तेज़ आवाज इस नि:स्तब्धता को भेदने में असमर्थ है, इस ख़ामोशी में अतीत चलचित्र की भांति आंखों के सामने था...

    10 बरस का अंतराल

    उस दिन की सुबह कुछ ख़ास नही थी..वही रोज़ की दादी और माँ के बीच की किचकिच..मैं कॉलेज के लिए निकल गयी..इनकी झिकझिक से बचने का यही तरीका आता था मुझे. कॉलेज में एक नया छात्र आया हैं, सभी सहेलियां गुणगान में लगी थी, किसी को पहली नज़र में इश्क़ हो गया तो कोई उसके पूरे खानदान की जानकारियां बटोरने में लगी थी ताकि रिश्ता भिजवा सकें..मैं निर्बुद्धि उन सभी को सुन रही थी आख़िर बोलती भी क्या जब मैंने उस को देखा ही नही.

    वो सुगंधा तो जॉन अब्राहम से उसकी तुलना कर रही थी..मुझे अच्छा नही लगा तो मैं कॉमन रूम से निकल कर ग्राउंड की तरफ़ जाने लगी

    'सौम्या..कहाँ जा रही है ? हिंदी की क्लास एक घन्टे बाद है' पीछे से रेखा ने आवाज़ दी.

    रेखा..मेरी एकमात्र राज़दार सहेली, दिल और दिमाग़ की उथलपुथल उससे बता कर ही शांत होती है लेक़िन आज वह भी कथित जॉन अब्राहम की कल्पनाओं में उड़ रही है..उसकी बात को अनसुना करतें हुए मैंने क़दम आगे बढ़ा लिए

    कॉरिडोर से निकलतें हुए देखा सामने दस पंद्रह लड़को का झुंड आ रहा था, मैं एकदम दीवार से चिपकी उनसे बचते हुए निकल रही थी.

    'उफ़्फ़..ऐसी सुंदरता' किसी एक ने कहा और बाकी पीछे मुड़ कर मुझे देखने लगें.. मैं लगभग भागते हुए ग्राउंड में पहुंच गई..

    सिर्फ़ एक आवाज़ कानों में पड़ी थी

    'भाई.. दूर रहना इससे, सिर्फ़ शक़्ल सुंदर है अज़ीब पढ़ाकू, घुन्नी, घमंडी लड़की है'

    तो ये छवि है मेरी कॉलेज में ?

    सुंदर...पढ़ाकू तक तो सही था पर ये घुन्नी और घमंडी कब से बन गयी मैं?

    स्वयं से प्रश्न था लेकिन अनुत्तरित थी.

    इस वाक़ये के बाद क्लास रूम में जानें कि हिम्मत नही थी..या ये कह लूं..उन लड़को का सामना नही करना था मुझे, ऐसे में  मेरे क़दम खुदबखुद घर की तरफ़ बढ़ चले.

    'आ गयी बिटिया..आज बड़ी जल्दी आई' घर मे घुसते ही दादी चौखट पर मिल गयी.

    'हा..दादी, तबियत ठीक नहीं लग रही थी इसलिए आ गयी'

    दादी तुरंत मुझ पर घरेलू नुस्खे आज़माने लगी

    'दादी..आपसे कुछ कहना गुनाह हो जाता है, शरीर ठीक है बस मन दुःखी है' झुंझलाते हुए कहा.

    'ले..अब मन को क्या हो गया?' दादी ने बड़ी मासूमियत से पूछा

    'मेरी छोड़ो...ये बताओ, आप और माँ के बीच शांति वार्ता शुरू हुई?  आप दोनो की वज़ह से ही मेरा मन ख़राब हुआ है'

    बड़ी सफ़ाई से सारा दोष उनके और माँ के मत्थे मढ़ दिया.

    'वाह..बिटिया, अब दोषी मैं और मेरी बहुरानी'

    हम दोनों की हंसी सुन माँ भी कमरे से बाहर आ गयी

    'बिट्टो..तू आ गयी..अच्छा की चली आई..चल खाना देती हूं सुबह बिन कुछ खाए पिए चली गयी..तेरे

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