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Ek Mahan Vijeta : Samrat Ashok
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Ebook66 pages21 minutes

Ek Mahan Vijeta : Samrat Ashok

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About this ebook

महानायक सम्राट अशोक विश्व इतिहास में अपनी आभा से समूची दुनिया को विश्व बंधुत्व की भावना से प्रकाशित कर रहे हैं। उनके उच्च नैतिक मूल्यों को इस कथन से समझा जा सकता है कि- ‘सभी मत किसी न किसी वजह से आदर पाने के अधिकारी है। इस तरह का व्यवहार करने से आदमी अपने मत की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है, साथ ही वह दूसरे मतों और लोगों की सेवा करता है।’ पं-जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दुस्तान की कहानी’ में सम्राट अशोक के विषय में इस प्रकार लिखा है कि ‘विजयी सम्राटों और इतिहास के नेताओं के बीच वह अकेला व्यक्ति है जिसने विजय के क्षण में यह निश्चय किया कि वह आगे युद्ध नहीं करेंगे।’
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateAug 25, 2021
ISBN9788128819537
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    Ek Mahan Vijeta - M. M. Chandra

    एक महान विजेता

    सम्राट अशोक

    eISBN: 978-81-2881-953-7

    © प्रकाशकाधीन

    प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रा. लि.

    X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया,

    फेस-II नई दिल्ली-110020

    फोन 011-40712200

    ईमेल : ebooks@dpb.in

    वेबसाइड : www.diamondbook.in

    द्वितीय संस्करण : 2016

    Samrat Ashok

    by : M. M. Chandra

    विषय-सूची

    सम्राट बिन्दुसार

    सुशीम का चक्रव्यूह

    अशोक का उदय

    अशोक का निर्वासन

    अशोक का प्रेम विवाह

    निर्वासन से बुलावा

    रानी धर्मा की मृत्यु

    राज्याभिषेक

    साम्राज्य विस्तार

    कलिंग युद्ध

    बौद्ध धर्म का विस्तार

    बौद्ध धर्मयात्रा

    ‘धर्ममहापात्र’

    अशोक की शिक्षाएं

    लघु शिलालेख

    तीसरी बौद्ध महासभा

    अशोक की उपलब्धियां

    सम्राट अशोक

    सम्राट अशोक बचपन से ही जिज्ञासु और बहादुर थे इसीलिए उनके पिता बिन्दुसार बचपन से ही शिकार करने के समय उन्हें हमेशा अपने साथ ले जाते थे। अशोक की माता-देवी धर्मा उससे बहुत प्यार करती थी किन्तु उसका बड़ा भाई सुशीम अशोक से नफरत करता था।

    अशोक ने अपने जीवन को कभी रुकने नहीं दिया और जनता की बहुत दया-भाव से सेवा की। इसीलिए राज्य की जनता ने भी उन्हें बहुत प्यार दिया। सम्राट अशोक ने एक तरफ दादा की राज्य विस्तार नीति को अपनाया वहीं दूसरी तरफ पिता बिन्दुसार की ‘मित्रतापूर्ण’ नीति का विस्तार किया।

    अशोक ने कलिंग राज्य को फिर से मौर्य साम्राज्य में मिलाने की कोशिश की क्योंकि कलिंग पहले भी मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था। कलिंग राज्य ने अशोक के प्रस्ताव को मना कर दिया और अशोक को मजबूर होकर तलवार उठानी पड़ी।

    युद्ध में लाखों लोगों की मृत्यु ने अशोक के हृदय को परिवर्तित कर दिया और उसने बौद्ध धर्म अपनाकर मानव कल्याण की नीति को अपना लिया।

    जिस प्रकार मौर्य राज्य के महामंत्री चाणक्य ने चन्द्रगुप्त का हर समय साथ दिया था उसी प्रकार चाणक्य के शिष्य राधागुप्त ने भी अशोक के सेनापति के रूप में सम्राट अशोक को ‘महान’ सम्राट बनाने में महत्त्वपूर्ण

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