अनविष्ड
By शिवेन कुमार
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प्रत्येक अध्याय में रहस्य और रोमांच के सागर में गोते लगाते हुए यह कहानी बताती है कि परिस्थितियों और कर्मों के बीच बंधे धागे को ही जीवन कहते हैं। इस धागे में कई सदियों ईसा पूर्व एक शापित राजकुमार मार्कस फंसा हुआ है। एक आधे इंसान के रूप में रहने के सदियों बाद, उसका जीवन फिर से कई अप्रत्याशित मोड़ लेता है जब वह एंजेला से मिलता है, जो उसकी अपनी कल्पना की एक जीवित आकृति है। प्रेम, ईर्ष्या, संघर्ष, लालच और महत्वाकांक्षा जैसे मानव जीवन के शक्तिशाली पहलुओं की ओर बढ़ते हुए, जब यह अतीत, भविष्य और वर्तमान के रास्तों से होकर अपनी मंजिल तक पहुँचता है, तो वास्तविकता को परिभाषित करने वाले मार्कस के सामने कई रहस्य खुलने लगते हैं।
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अनविष्ड - शिवेन कुमार
विषेष धन्यवाद
‘अनविष्ड’ को पूरा करना निःसन्देह मेरे लिए किसी सपने को पूरा करने जैसा है। कहने को यह एक किताब एक उपन्यास है जिसमें एक कहानी है लेकिन इस कहानी के हर एक मर्म को अपने द्वारा सीखे या सिखाए गए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, वास्तविक और काल्पनिक ज्ञान व अनुभवों की मदद से एक लय में पिरोने में मैंने अपना श्रेष्ठ देने का ईमानदार प्रयास किया है। इसके अलावा इस कहानी को पूरा करने में कुछ अहम साथियों की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष भूमिका रही जिन्होंने हर एक अध्याय के साथ अपने अनुभवों को मुझसे साझा किया जिससे मुझे कहानी को एक यादगार और बेहतरीन रूप देने की प्रेरणा मिलती रही। भले ही इनमें से कुछ भौतिक तौर पर मेरे आस-पास हैं और कुछ बहुत दूर, लेकिन इनका साथ मेरे अंदर हमेशा एक ऊर्जा के रूप में प्रज्वलित रहा।
‘अनविष्ड’ को अपने मुकाम तक पहुँचाने में मेरी हमसफर व दोस्त सुनीता के साथ के अलावा अपने-अपने तरीके से मेरा साथ देने के लिए मैं मेरे साथी दीपांशु वर्मा, विनोद सुथार, कुलदीप जाजड़ा (शीर्षक सुझाव), विशाल डौरवाल (मुद्रण शोधन) और गरिमा भागचंदानी का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ। वहीं मेरे लेखन कौशल को निखारने और प्रेरणा बनने में अपनी अप्रत्यक्ष भूमिका निभाने के लिए क्राफ्ट फिल्म स्कूल (दिल्ली) के डायरेक्टर नरेश शर्मा, स्क्रिप्ट मेंटोर सलीम जावेद सर और शालिनी का सदैव ऋणी रहूँगा।
इसी कड़ी में वर्तमान में मेरे कार्यस्थल उत्कर्ष क्लासेस में मेरा कार्यक्षेत्र लेखन से ही जुड़ा है जहाँ से मैंने काफी कुछ नया सीखा और इसके लिए मैं उत्कर्ष के संस्थापक डॉ. निर्मल गहलोत सर का बेहद आभार व्यक्त करता हूँ।
इसी कड़ी में, मैं ब्लूरोज पब्लिकेशन का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इस कहानी को पुस्तक के रूप में ढालकर दुनिया के सामने पेश किया है।
अनविष्ड के अध्यायों में से चंद अंश
• (गहराती संध्या में उस बेजान व टूटी-फूटी पगडंडी के अवशेष और चिह्न कुछ कदमों की दूरी पर नजर आ रहे थे, जो यह इशारा कर रहे थे कि कभी किसी जमाने में इसकी देह पर चलते हुए अनगिनत लोगों ने अपना सफर तय किया था।)
• (देखा जाए तो एक बड़ा सवाल तो खुद मार्कस ने खड़ा कर दिया था कि श्राप से मुक्त होने का उपाय जानते हुए भी उसने एंजेला को क्यों नहीं बताया। आखिर एंजेला से झूठ बोलने की वजह क्या थी?)
• सभा प्रमुख - पैंतीस निर्दाेष लोगों को बेरहमी से मारकर खा जाने वाले जानवर को इंसानी दुनिया में आदमखोर ही कहा जाता है एंजेला।
• आर्थर - प्यार एक वक्त पर किसी का विश्वास बनता है तो दूसरे ही पल उसकी कमजोरी भी। मार्कस की इसी कमजोरी को मैं अपनी ढाल बनाकर न केवल उस महल को कंगाल कर दूँगा बल्कि उस आदमखोर का खात्मा भी कर दूँगा। यानी एक तीर से दो निशाने, और इन निशानों को साधने वाली मेरी प्रत्यंचा बनेगी एंजेला।
• एगोर - आर्थर जैसे लोग बिना किसी अपने फायदे के किसी की मदद नहीं करते। मुझे ये तो नहीं पता कि वास्तव में उसका दिमाग किसका भला सोच रहा है? लेकिन इतना तो जरूर है कि वो कुछ बहुत बड़ा सोच रहा है जिसके लिए कहीं न कहीं वो तुम्हें इस्तेमाल करेगा, मगर कब और कैसे? ये मुझे नहीं मालूम।
• (यही सब सोचते-सोचते इस हल्की चाँदनी रात में एंजेला को दूर से कहीं किसी भेड़िये की आवाज सुनाई देती है, मानों दूर से कोई उसे ही पुकार रहा हो जिसे सुनकर एंजेला अपने आप से ही- मार्कस, क्या तुम्हें भी मेरी याद आती है?
)
• (एक तरफ मार्कस बीते वक्त के अदृश्य आईने को तोड़ने की नामुमकिन कोशिश कर रहा था वहीं दूसरी तरफ एगोर अपनी यादों से रेत पर लिखे किसी हर्फ़ की तरह मार्कस की उस परछाई को मिटाने की जद्दोजहद में जुटा था। अपने-अपने गुज़िश्ता के अनचाहे तिलिस्म में फंसे इन दोनों के अलावा घर में बंद एंजेला गुजर रहे आज और आने वाले कल को मार्कस के लिए बेहतर बनाने का इरादा अपने दिल में पक्का कर चुकी थी।)
• (मार्कस का यह रुद्रावतार एंजेला की तलाश में था या इंसानों को उन्हीं की शैली में जवाब देते हुए उनके भीतर छुपे वास्तविक और खौफनाक जानवर को आईना दिखा रहा था।)
अध्याय - 1
गेटवे ऑफ द हेल
(लगभग 2000 वर्ष पूर्व का यूरेशिया यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया की सीमा पर स्थित एक छोटा मग़र खूबसूरत साम्राज्य। इसी साम्राज्य का युवराज था मार्कस
। सुगठित शरीर, शालीन, शांत और प्रजा में सभी को एक समान दर्जा देकर हँसमुख व्यवहार रखने वाला मार्कस न सिर्फ़ एक कुशल योद्धा था बल्कि एक बेहतरीन कलाकार भी था। राज्य के लिए युद्ध करना, दूसरे राज्य को हराना एक बात थी मगर, दिल से मार्कस हमेशा इस सरहदी कत्लेआम का विरोध किया करता था। अक्सर वह किसी को बिना बताए अपनी शरण में आए दुश्मन सैनिकों को उनकी जिंदगी लौटा देता और उनके मुल्क भेज दिया करता था। उसका यह शालीन व्यवहार उसके पिता राजा हेक्टर को कभी पसंद नहीं था। वो जानते थे कि मार्कस के इस शालीन व्यवहार का फ़ायदा कभी न कभी शत्रु राज्य और उनके दुश्मन उठा लेंगे जो उनके राज्य, सत्ता और रियासत के लिए बेहद ख़तरनाक होगा और फिर, एक दिन वो फैसला लेते है कि अपनी सत्ता और राज्य को बचाना है तो मार्कस को मरना होगा। उनका बेटा अब उन्हें नागवार था। और मौका मिलता है। मार्कस को एक ऐसे युद्ध में भेजा जाता है जहाँ से उसके जिंदा लौटने के अवसर लगभग न के बराबर थे। युद्ध का दिन तय था, तैयारियाँ भी पूरी थी। प्रजा जोर-शोर से मार्कस के जयकारे के नारे लगा रही थी मग़र अंदर महल में स्थिति कुछ और ही थी। मार्कस अपने पिता से जीत का आर्शीवाद लेना चाहता है जो उसे पहली बार महसूस नहीं होता।)
मार्कस - क्या हुआ पिताजी, आज आप का सानिध्य मुझे कुछ अजीब सा क्यों लग रहा है ? क्या आप नहीं चाहते कि मैं इस युद्ध को जीत कर आपके सामने उपस्थित होऊँ?
राजा हेक्टर - (वो जानते थे कि इस युद्ध को जीतना नामुमकिन है फिर भी मार्कस के कंधे पर हाथ रखते हुए) मैं तो हमेशा चाहता हूँ कि जीत तुम्हारी हो।
(दोनों एक दूसरे की आंखों में बड़ी खामोशी से देखते हैं। लेकिन इस बार ये खामोशी जैसे किसी बड़े खतरे का अंदेशा था जिसे मार्कस कुछ हद तक महसूस भी करता है। मार्कस चला जाता है। सेना के साथ जाते-जाते एक बार वो पीछे मुड़ कर देखता है, जहाँ उसे अपने पिता के साथ उनके कुछ वफादार सलाहकार खड़े दिखाई देते हैं। सलाहकार राजा हेक्टर से - क्या इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं था? आप जानते है कि मार्कस का वहाँ से जिंदा लौटना मुमकिन नहीं है।
राजा हेक्टर - (सलाहकारों को देखते हुए) तभी तो। क्योंकि नियति को शायद यही मंजूर है।
(मार्कस निकल पड़ता है एक ऐसी जंग पर जिसके बाद उसकी दुनिया और जिंदगी ही नहीं बल्कि मौत भी बदलने वाली थी। उसे क्या पता था कि ये जंग अनायास नहीं थी अपितु उसी के पिता राजा हेक्टर की सोची समझी गई साज़िश थी क्योंकि उन्हें पता था कि इस युद्ध में जीत और हार से उनके साम्राज्य और सत्ता पर कोई असर नहीं होना था, क्योंकि सेना के हारने के बाद भी होने वाली संधि से उन्हें ज्यादा नुक़सान नहीं होने वाला था। अपितु उनकी सत्ता के बीच में आने वाला सबसे बड़ा कांटा मार्कस हटने वाला था। राज्य में सबकुछ वैसे ही चलने लगता है। कई दिन बीत जाते है, एक तरह से मार्कस को सब भूलने लगते हैं। सभी को लगने लगा था कि उस युद्ध में मार्कस को हमने खो दिया। शायद उसकी लाश भी मिलना मुनासिब नहीं है। मग़र एक दिन राजा हेक्टर के पास एक सूचना पहुँचती है कि मार्कस जिंदा है पर बहुत बुरी अवस्था में है। बचना लगभग नामुमकिन है।)
राजा हेक्टर - तब ठीक है। उसे ले आओ। हमारे साथ प्रजा की सहानुभूति भी रहेगी कि हमने उसे बचाने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन हाँ, (आश्वस्त होने के लिए) उसका मरना तय तो है न?
स्रोत - जी, बिल्कुल, महामहिम, बिलकुल।
(मार्कस को लगभग मरणासन्न स्थिति में महल में लाया जाता है। जहाँ नामी-गिरामी वैध-हकीमों को बुलाकर जितना मुमकिन हो उसका उपचार कराने का ढोंग रचा जाता है। पूरी रात सब जमघट लगाए उसके होश में आने का इंतजार करने लगते हैं।
सुबह जब मार्कस की आँखें खुलती है तो वह खुद को एक विशालकाय द्वार के सामने खड़ा पाता है जहाँ पहले से ही हज़ारों लोगों की भीड़ अपनी बारी आने के इंतजार में खड़ी होती हैं। बहुत से द्वारपाल पूरी व्यवस्था के साथ हर एक को जाँच परख कर प्रवेश दे रहे थे। जो भागना चाह रहा था उसे पकड़-पकड़ कर अंदर भेजा जा रहा था।
मार्कस को समझते हुए ज्यादा देर नहीं लगी कि वह अब जिंदा नहीं है और अभी जो कुछ भी वह देख रहा है उसे उसकी आत्मा, रूह देख रही है। वो समझ चुका था कि उस युद्ध में वह अपनी जान गवां चुका है।
मार्कस की बारी आने पर द्वारपाल द्वारा उसे यह कहकर रोक लिया जाता है कि उसका नाम इस द्वार सूची में नहीं है।)
मार्कस - (थोड़ा झुंझलाते हुए) जी, हाँ। मैं बिल्कुल यही सोच रहा था कि मेरा नाम इस सूची में नहीं होना चाहिए था। मैं…मैं इस द्वार के भीतर जाने के लिए नहीं हूँ और…और (वही कुछ ही दूरी पर एक दूसरा विशालकाय दरवाजा, जो बड़े शान से सजाया हुआ था, की तरफ इशारा करते हुए) मैं… मेरा नाम शायद उस द्वार सूची में होगा।
द्वारपाल - (जाँच करने के बाद) नहीं, तुम्हारा नाम उस द्वार सूची में भी नहीं है।
मार्कस - क्या मतलब, तो मैं कहाँ जाऊँगा? कहाँ है मेरा नाम?
(इसी उलझन के बीच में एक आकाशवाणी होती है)
आकाशवाणी - मार्कस, तुम्हारा नाम न इस द्वार सूची में है न उस द्वार सूची में है। तुम्हें कुछ दिनों के लिए फिर से वहीं पृथ्वी पर जाना होगा और रहना होगा।
मार्कस - क्या मतलब ? कुछ दिनों के लिए ! तो, क्या मैं जिंदा हूँ?
आकाशवाणी- तुम एक तरह से मरे हो भी और, नहीं भी। तुम वहाँ जिंदा तो होंगे लेकिन इंसानी रूप में नहीं बल्कि एक दानव के रूप में।
(इतना कहकर वह अदृश्य आवाज शांत हो जाती है और साथ वे द्वार भी बंद हो जाते हैं। मार्कस सिर्फ चिल्लाता रह जाता है- दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो……….ओपन द डोर, ओपन द डोर……….।)
अध्याय - 2
पेन ऑफ ट्रांसफोर्मेशन
(वहीं दूसरी ओर पृथ्वी पर महल में कुछ लोग मार्कस के होश में आने का तो कुछ लोग उसके होश में नहीं आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। आखि़रकार मार्कस को होश आने लगता है। होश में आते-आते उसकी अधखुली निगाहें जो दृश्य देख रही थी, उसे उसका अचेत दिमाग समझने की कोशिश कर रहा था।
दृश्य भयावह था। महल में उपस्थित सैकड़ों लोग इधर-उधर भाग रहे थे तो कुछ सैनिक मार्कस को जंजीरों में बांधने की नाकाम कोशिश कर रहे थे, जो अभी पूरी तरह होश में भी नहीं था। भारी बारिश के बीच महल के बाहर खड़े हज़ारों लोगों में भी अंदर से बदहवास होकर भाग रहे लोगों की बात सुनकर दहशत फैल जाती है और वे भी अपने-अपने घरों की तरफ दौड़ने लगते हैं। वहीं महल में सेनापति के आदेश पर सैनिकों ने अपने तीर-कमान और भाले निकाल लिए थे। उन्हें बस अब राजा हेक्टर की अनुमति मिलने का इंतजार था।)
सेनापति- क्या करना है? हमें अभी ही कुछ करना होगा। लोग दहशत में हैं।
राजा हेक्टर- वक़्त निकल गया सेनापति। बस, अपनी जान बचाओ। इस रूप में हम लोग मार्कस को मार नहीं सकते।
(मार्कस बदल रहा था। उसका शरीर इंसान से दानव का रूप ले रहा था। उसकी हड्डियाँ टूट और जुड़ रही थी तो कुछ अपनी जगह बदल रही थी। गरजते बादलों और दिल थर्रा देने वाली कड़कड़ाती बिजलियों के बीच इंसान से दानव बनते मार्कस की दर्द भरी चीखें वातावरण को और भी भयावह रूप दे रही थी। इसी दौरान राजा हेक्टर जो कि, ये सब अपनी आँखों से देख रहा था को, ज़बर्दस्त दिल का दौरा पड़ता है। राजा को इस हालत में देखकर सेनापति अपने कुछ सैनिकों को आदेश देता है कि जल्दी महाराज को उनके शयनकक्ष में ले जाया जाए और कहीं से भी उनके उपचार का प्रबंध किया जाये। इतनी देर में मार्कस अपने असहनीय दर्द को बर्दाश्त करते-करते फिर से बेहोशी की अवस्था में चला जाता है।)
(मग़र इस बार जब उसकी आँखें खुलती है तो उसे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था। महल में सन्नाटा पसर चुका था और किसी आवाज़ के नाम पर वातावरण में सिर्फ़ भेड़ियों और दूसरे जानवरों की आवाजें गूँज रही थी। मार्कस उठ कर खुद को छूता और महसूस करता है। वो समझ जाता है कि यह कोई सपना नहीं था बल्कि एक दर्दनाक सच्चाई है। वो महल में अपने पिता को देखने निकलता है। उसके कदमों से फर्श भी थर्रा रहा था जिसकी आहट राजा हेक्टर को साफ़-साफ़ महसूस हो रही थी और धीरे-धीरे वो आहट करीब, करीब और करीब आती जा रही थी। आखि़रकार मार्कस अपने पिता के सामने खड़ा होता है।)
मार्कस - पिताजी, आप ठीक है, क्या हुआ आपको?
और मुझे…..मुझे देखिए….क्या बन गया हूँ मैं।"
हेक्टर - मुझे माफ़ करना मेरे बेटे। (हेक्टर अपनी अंतिम सांसे लेते हुए कहने लगता है) ये हमारे कुल को सदियों पहले लगा श्राप है जिसने इस बार तुम्हें जकड़ लिया है। मुझे अगर पता होता तो मैं कभी तुम्हें उस जंग में नहीं भेजता।
मार्कस - कैसा श्राप?
हेक्टर - दरअसल, सदियों पहले हमारे पूर्वजों में से किसी ने एक साध्वी को प्रेम में धोखा दिया और तड़पते हुए छोड़ दिया था। इस धोखे से आहत साध्वी ने पूरे कुल को श्राप दिया कि हमारी आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी में से कोई ना कोई अपनी जिंदगी एक दानव या अर्द्धमानव के रूप में गुजारने को मजबूर होगा और हमेशा प्यार के लिए तड़पता रहेगा और तब तक तड़पता रहेगा जब तक कि कोई इंसान उसके अर्द्धमानव शरीर के अंदर धड़कते इंसानी दिल को पहचान नहीं लेता और उसे अपने गले नहीं लगा लेता। लेकिन….लेकिन एक दानव रूपी शरीर में छुपे इंसानी दिल को पहचानेगा कौन? और गले लगाने की बात तो दूर, उसके पास भी कौन जाना चाहेगा।
मार्कस - क्या इस श्राप के खत्म होने का यहीं एक उपाय है?
हेक्टर - दूसरा उपाय सिर्फ़ यही है कि जिस पर ये श्राप लगा हो, वो खुद इससे मुक्त होने के लिए अपना जीवन अपने हाथों से खत्म कर ले। लेकिन….(हेक्टर की सांसे उखड़ रही थी) लेकिन, ऐसा करने से वो शख़्स तो मुक्त हो जाएगा परंतु श्राप ज्यों का त्यों बना रहेगा और आगे फिर किसी और पर चढ़ जाएगा, जैसे इस बार तुम पर चढ़ा है।
मार्कस -लेकिन पिताजी, घबराने की कोई बात नहीं है। मुझे कहा गया था कि सिर्फ़ कुछ दिनों के लिए मुझे इस रूप में पृथ्वी पर रहना होगा उसके बाद तो श्राप का असर खत्म हो ही जाएगा।
(महल में मार्कस और हेक्टर के बीच चल रही बातचीत में बाहर बारिश ने तूफ़ान का रूप ले लिया था और बिजलियाँ ऐसे कड़क रही थी, जैसे आज किसी पर तो गिरेगी ही।)
हेक्टर - (मार्कस को एकटक देखते हुए और अपने ही अंदर बड़बड़ाते हुए) -हे, भगवान, यह मुझसे क्या हो गया।
(फिर मार्कस से माफ़ी माँगते हुए।) मार्कस, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। तुम वास्तव में एक नेकदिल इंसान हो और तुम्हारी ये अच्छाई ही हमारे राज्य के लिए ख़तरनाक साबित हो सकती थी इसीलिए मैंने तुम्हें उस जंग में भेजा था ताकि तुम वही पर अपनी जान गवां दो। लेकिन देखो, मैंने तुम्हें क्या से क्या बना दिया।
(हेक्टर लगभग गिड़गिड़ाते हुए) "मुझे माफ़ कर देना मार्कस, मुझे माफ़ कर देना। सच तो यह है कि जिस दुनिया से तुम होकर आए हो, जिन्होंने तुमसे कुछ दिनों की बात की थी, उस दुनिया का एक दिन हम इंसानी दुनिया की कई सदियों के बराबर होता है। तुम्हें कुछ दिन नहीं बल्कि शायद कई