Ram Ki Ayodhya (राम की अयोध्या)
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Ram Ki Ayodhya (राम की अयोध्या) - Sudarshan Bhatia
सदस्य
1. अयोध्या तथा श्रीराम के पूर्वज
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है कि श्वेत वाराह नामक कल्प में ब्रह्मा जी के वर्ष में मौन दिन में सुप्त मुहूर्त के अवसर पर वैवस्वत मनु का जन्म हुआ था।
वैवस्वत मनु ने सरयू नदी के तट पर सौ वर्ष तक तप किया। एक पाटीय तपस्या से उन्हें इक्ष्वाकु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम विकुक्षि था। सौ वर्ष तक तपस्या करने पर वह स्वर्ग लोक चला गया। उसके पुत्र का नाम रिपुंजय था। रिपुंजय के पुत्र का नाम कुकुत्क्षथ बताया गया है। उसका पुत्र अनेनौस तथा उसके पुत्र का नाम पृथु था।
इसी क्रम से अगले राजाओं तथा उनके पुत्रों में बिम्बगशय, अर्दनाम भद्राख युवननाश्व, सत्वपाद, श्रवस्थ वृहदस्व, कुवलयावश्यक, भिकुम्भक, संकटाश्व, प्रसेनजिनु, तद्रवाणाश्व, मान्यता, पुरूकुत्स चिशतश्व, अनरणय के नाम उल्लेखनीय हैं।
अनरण्य सतयुग के द्वितीय चरण का राजा बताया है। इसने अट्ठाईस सहस्र वर्ष तक राज्य किया था।
इसके पश्चात पृषदश्व, हर्तश्व, वासुमान तथा तात्विधन्वा के नाम बताए गए हैं।
द्वितीय पाद की समाप्ति पर त्रिघन्वा, त्रयारणय, त्रिशंकु, रोहित, हवरीत, जंचुभुप, विजय, तद्ररूक तथा उसका पुत्र सगर बताए गए हैं।
वैवस्वत आदि राजाओं के काल में व्यवस्था की ओर अधिक ध्यान दिया गया और उस काल में मणि, स्वर्ण आदि की स्मृद्धि थी।
सत्युग के तृतीय चरण के मध्य में सगर नामक राजा हुआ था। वह शिव का परम भक्त था तथा सदाचार वाला था। उस सगर राजा के पुत्रों को सागर कहा जाने लगा।
सागरों के नष्ट हो जाने पर असंजस ने राज्य किया। उनके पुत्र का नाम अंशुमान था। इसके पुत्र का नाम दिलीप था।
इसके बाद भगीरथ, श्रुतसेन, नाभाग, अम्बरीश आदि के नाम वर्णित हैं।
श्रुतसेन के बाद के छह राजाओं को शैव बताया गया है जबकि आरम्भिक राजा वैष्ण थे। नाभाग को वैष्णव कहा गया है।
सतयुग का तीसरा चरण समाप्त होने पर चौथे चरण के 18 सहस्र वर्ष बताए गए हैं। अम्बरीश के पुत्र का नाम सिन्धुद्वीप, उसके पुत्र का नाम अयुताश्व तथा उसी क्रम में श्रतुपर्ण, सर्वकाम, काव्याषपाद, सुदास आदि बताए गए हैं।
सुदास के समय तथा बाद के सात राज्यों के समय में वैष्णव धर्म का प्रभाव रहा।
अतिश्योक्ति तथा अतिरेक
पुराणों में इन राजाओं की वंशावलियों का उल्लेख उपलब्ध है परन्तु उनमें यदा कदा मतैक्य नहीं दिखाई देता क्योंकि उनका सही इतिधरूवृत अंकित न होकर वहां अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन किया गया है। गणना भी अतिरेक से युक्त है।
युग की समाप्ति तथा अगला युग
किसी युग की समाप्ति होने पर दूसरा युग मात्र कल्पना से ही आरम्भ हुआ प्रतीत होता है। न तो पूर्ण व्यवस्था एकदम खण्डित होती है और न ही सीमित अवधि में नई व्यवस्था आरम्भ हो सकती है अतः मुख्य पात्र तथा सहायक पात्रों के मानसिक चिन्तन व क्रियाकलापों के माध्यम से ही काल विशेष का आभास किया जा सकता है। पुराणकारों ने यही पद्धति अपनाई है।
कब क्या हुआ?
पृथु ने समग्र पृथ्वी पर हल चलाया।
राम ने पिता दशरथ की आज्ञा मानी और वनवास स्वीकार किया।
परीक्षित ने सोने के मुकुट के कारण ऋषिमुनियों को खूब तंग किया।
आदि-आदि बातें सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था से जुड़ी हैं और काल परिवर्तन को इंगित करती हैं। अतः किसी विशेष घटना के घटित होने पर काल अथवा युग परिवर्तन इंगित किया गया है।
शम्बूक वध की घटना
सतयुग में धर्म 20 बिस्वे था परन्तु धर्म की परिभाषा क्या थी और उस समय क्या पाप बिल्कुल ही नहीं था? हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल डा. सूरजभान ने शम्बूक वध की घटना का उल्लेख करके एक गोष्ठी में श्रोताओं को पूछा था कि राम-राज्य में शम्बूक ऋषि जो असवर्ण जाति का था, का वध राम ने इसलिए करवा दिया था कि वह वर्णाश्रम व्यवस्था में वर्णित शूद्रधन का निर्वाह न करके तपस्या कर रहा था। तो क्या उस समय की मर्यादा यह थी कि अपने वर्णधर्म को छोड़ कर जो व्यक्ति अन्य वर्ण के लिए निर्धारित धर्म पर चले वह अधर्मी तथा पापी होता था? ये सब विषय समय तथा व्यक्तिय सापेक्ष हैं। कुंठित व्यक्ति का साहित्य भी कुष्ठाग्रस्त होगा जबकि सन्तुलित मन वाला साहित्यकार उसी प्रकार के साहित्य की रचना करेगा।
सरल शब्दों में
सतयुग से त्रेतायुग तक श्री राम के प्रथम पूजनीय पूर्वज थे महाराज मनु। इस पीढ़ी में प्रथम थे महाराज मनु तथा श्री राम थे 65वें वंशज। महाराजा मनु ने ही सरयु नदी के तट को चुना और वहां पर लम्बे समय तक तप किया। उन्होंने ही बाद में वहां पर एक नगरी बसाई और नाम दिया अयोध्या। यह वही अयोध्या है जो श्री राम की जन्म भूमि बनी। वहां मंदिर बना। बाबर ने अपने नाम की मस्जिद बनवाई। यह मस्जिद श्री राम जन्म भूमि पर बनी। संघर्ष हुए। 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराया गया। कोर्ट कचहरियों में दोनों पक्षों ने लड़ाई लड़ी। अंततः 9 नवम्बर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया। जिस निर्णय को हिन्दू तथा मुसलमानों ने सहर्ष स्वीकार किया।
2. कालगणना की पद्धतियां तथा
राजे व ऋषि
प्रथम अध्याय में आपने महाराज मनु (सतयुग) से लेकर श्रीराम तक (त्रेता युग) में उनके पूर्वजों की जानकारी पा ली है। श्रीराम के प्रथम पूर्वज (मनु महाराज) से 65वें वंशज (श्रीराम) का जिक्र पढ़ा। सरयु नदी पर मनु महाराज ने तप किया। फिर नगर बसाया। यह थी अयोध्या। अयोध्या को ही उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। उनके सभी वंशज राजाओं-महाराजाओं ने अयोध्या को ही अपनी राजधानी बनाकर, यहां से राज-पाठ चलाया।
सतयुग तथा बाद की कुछ जानकारियां
प्राचीन काल गणना पद्धति के तीन मुख्य प्रकार थे।
प्रथम प्रकार
युग गणना पद्धतिः
सत, त्रेता, द्वापर, कलि आदि युगों की कल्पना पर अधिष्ठित।
दूसरा प्रकार
मन्वन्तरकाल गणना पद्धतिः
स्वयंभुव, स्चारोचित आदि चौदह मन्वन्तरों की कल्पना पर अधिष्ठित।
तीसरा प्रकार
सप्तर्षि युग की कल्पनाः
आकाश में स्थित सप्तऋषि ग्रहों की स्थिति के माध्यम पर आधारित तथा खगोल शास्त्र से सम्बन्धित।
युग गणना पद्धति
युग गणना पद्धति के अनुसार ब्रह्मा का एक दिन एक हजार पर्यायों में विभाजित किया गया है। इनमें से हर एक पर्याय निम्नलिखित चार युगों से बनता है‒
कृत युग: 17, 28, 000 वर्ष
त्रेता युग: 12, 96, 000 वर्ष
द्वापर युग: 8, 64, 000 वर्ष
कलियुग: 4, 32, 000 वर्ष
जोड़ = 43, 20, 000 x 1000
= 43, 20, 00, 000 वर्ष
एक विद्वान ने तो ऐसा भी कह दिया‒ लगता है कि यह काल गणना अतिश्योक्तिपूर्ण है।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार जयचन्द्र विद्यालंकार के अनुसार युगाब्धि तथा काल विभाजन इस प्रकार होना चाहिए‒ वैवस्वत मनु से महाभारत युद्ध तक 94 पीढ़ियां।
इसके अंतर्गत प्रथम पीढ़ी से 40वीं पीढ़ी राजा सगर तक कृत युग (सतयुग) की समाप्ति, राम दशरथी 65वीं पीढ़ी के साथ त्रेतायुग का अन्त, कृष्णा के देहावसन 95वीं पीढ़ी के साथ द्वापर युग की समाप्ति तथा वर्तमान समय तक कलियुग का काल होना।
इस काल मर्यादा के अनुसार कृत युग 40 x 16 = 640 वर्ष, त्रेतायुग 41 से 65 पीढ़ी तक अर्थात 25 पीढ़ियों के लिए 16 वर्ष प्रति पीढ़ी के हिसाब से 25 x 16 = 400 वर्ष।
द्वापर युग 66 से 95 की पीढ़ी तक अर्थात राम से कृष्ण तक 30 x 16 = 480 वर्ष तथा महाभारत युद्ध के पश्चात।
यह युद्ध चौदह सौ इसवीं पूर्व माना जाता है।
यह युद्ध ठीक गणना के अनुसार 1420 ईस्वी पूर्व हुआ निर्धारित किया जाता है और इस प्रकार युगों की काल गणना आगे दी है‒
कृत (सत) युग: 2950 ई. पूर्व से 5300 ई. पूर्व
त्रेता युग: 2500 ई. पूर्व से 1900 ई. पूर्व
द्वापर युग: 1950 ई. पूर्व से 1425 ई. पूर्व
कलियुग: 1425 ई. पूर्व से अब तक
प्रसिद्ध ऋषि जो कृत युग में तत्पर रहे, कुछ राजा भी
जैसा कि पहले कहा है, कृत युग को ही दूसरा नाम सतयुग मिला, जिसे कहीं कहीं सत्ययुग भी कहा गया है। इस सत युग में जो अति प्रसिद्ध ऋषि हुए तथा विश्व को अपने समय में भी दिशा निर्देश दिया करते थे। उनके बताए मार्गों पर ही त्रेता, द्वापर युग चले। कहीं-कहीं कलियुग में भी उनके उपदेशों का पालन होता है।
ऐसे अति प्रसिद्ध ऋषियों तथा राजाओं की सूची निम्नलिखित सर्वमान्य है‒
पाठक वृंद
प्रारम्भ से राजा सगर तक की 41 पीढ़ियों में यही प्रसिद्ध राजा तथा ऋषि हुए हैं, अतः इन्हें ही कृतयुग (सतयुग) के अन्तर्गत गिना जाता है।
त्रेतायुग का शुभारम्भ
सतयुग के 41-42 राजा तथा ऋषि ऐसे हुए हैं जिनका अच्छा नाम था। इसलिए हमने राजा सगर, जो कि श्रीराम के पूर्वजों में 41वीं पीढ़ी के बलशाली तथा प्रजापालक तो थे ही, किसी ऋषि महात्मा से भी कम नहीं थे। इन सभी 41-42 पीढ़ियों में हुए राजाओं के वंश, विभिन्न ऋषियों के वंश आदि आपने पढ़ लिए