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Balwa
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Balwa

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About this ebook

About the Author : Shri Mukhtar Abbas Naqvi is such a personality at the confluence of Indian culture, literature, and politics, who despite all the busyness has associated himself with literature and writing. Rich in simplicity, sociable and cultural personality, Mr. Mukhtar Abbas Naqvi has been periodically bringing out the untouched aspects of the exciting and social concerns of the country and the world in a beautiful garland of his creations. The novel 'Balwa' is a wonderful work of the author.
About the Book : The novel ‘Balwa’ is a powerful story about the riots that took place constantly in the nineties and of those powerful hands who were responsible for them.
On one hand one can see the devious conspiracy behind the violence and the terrorism that was unleashed by the self -proclaimed caretakers of religion, Maulana Mushtaq and Pandit Sangatha Prasad who are ready to sacrifice the fabric of society for their own selfish ends, and on the other hand there are youths like Puneet and Mushir who can be seen struggling for peace and justice on their own.
No doubt Gazala raises hopes of peaceful atmosphere along with Puneet after revolting against Maulana Mustaq, but society does not support them.
The negative traits of bending down on their knees and negative attitude of the police and administration as also the positive aspect of some of the police officers will make you feel about the realities of the riots.
Although ‘Balwa’ is based on the events that happened in the nineties, but society is not untouched by such characters and events even today.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJul 30, 2020
ISBN9789389807134
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    Book preview

    Balwa - Mukhtar Abbas Naqvi

    Naqvi

    1

    नारये तकबीर, अल्ला हो अकबर तथा हर-हर महादेव, के गगन भेदी नारों के साथ ही बम गोलियों के धमाके और दर्द भरी चीख के बीच सम्पूर्ण शहर किसी विश्व युद्ध जैसे माहौल को प्रदर्शित कर रहा था। कहीं बच्चों की चीख तो कहीं हथगोलों की दहशतनाक आवाज, कहीं पुलिस की ललकार भरी गोलियां, तो कहीं दंगाइयों का उन पर हथगोलों से जवाबी हमला, पूजा स्थल और इबादतगाहों से धर्म रक्षा और मजहब बचाओ के नारे, इस खतरनाक एवं डरावने माहौल को और भी गंभीर बना रहे थे।

    हिन्दू-मुस्लिम एकता समिति के कार्यालय की छत से, एक पूजा घर पर लगातार गोलियां चलायी जा रही थीं। पुलिस के हस्तक्षेप पर बन्दूकों का रुख खाकी वर्दी वाले जवानों की तरफ हो गया। सात-आठ जवानों ने तो एकता समिति के कार्यालय से चली गोलियां लगने से घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया था। दंगाइयों के हौसले बुलन्द थे, पुलिस और प्रशासन ने दंगा नियंत्रण की जो कुछ भी तैयारियां की थीं, वह दंगाइयों से निपटने के लिए नाकाफी थी।

    थोड़ी देर में पुलिस पेट्रोलकार लाउडस्पीकर से कर्फ्यू की घोषणा करती है कि, शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है, सभी लोग अपने-अपने घरों में चले जाएं, दरवाजे और खिड़कियां बन्द कर लें। दस मिनट के बाद किसी को भी बाहर देखते ही पुलिस गोली मार देगी। पेट्रोलिंगकार इस घोषणा के साथ शहर के हर कोने में घूम रही है। सड़कों पर ईंट-पत्थर, हथगोलों के टुकड़े और छोटे बच्चों, बूढ़ी औरतों सहित शुबराती धुनिया और चुन्नीलाल जैसे बुजुर्गों की लाशें भी पेट्रोलिंग कार के पहियों के नीचे दब कर अतड़ियों के बीच छिप गई हैं।

    कुल मिलाकर रेडियो समाचार से पता चला है कि, मुहब्बताबाद में दो गुटों में संघर्ष हो जाने के कारण कुछ लोग घायल तथा तीन लोगों की मृत्यु हो गई है। दंगाइयों के हमले से पुलिस के दस जवान मारे गये हैं तथा तीन अधिकारियों को चोटें आई हैं। शहर में अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है। प्रशासन ने दावा किया है कि स्थिति नियंत्रण में है।

    सुबह के अखबारों में बढ़ा-चढ़ा कर पहले पेज पर मुख्य समाचार भी यही है। पर अखबारों ने इसे दो गुटों में संघर्ष नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक दंगा लिखा तथा मरने वालों की संख्या सौ से भी ऊपर बताई है, एक अखबार ने तो कर्फ्यू के बाद भी रात में छुरे बाजी की कई अलग-अलग घटनाओं में पांच लोगों की हत्या का समाचार प्रकाशित किया था। दूसरी ओर प्रदेश के गृहमंत्री सहित शहर के प्रमुख नेताओं द्वारा शान्ति एवं सद्भाव की अपील तथा दंगाइयों से सख्ती से निपटने की घोषणा।

    2

    शहर में कर्फ्यू लगे हुए चौबीस घन्टों से भी ज्यादा बीत चुके थे। लोग अपने-अपने घरों की खिड़कियों से भी बाहर नहीं झांक पा रहे थे। ठेले पर सब्जी बेचने वाला ननकू और बढ़ई (कारपेन्टर) फारूक के घर का राशन खत्म हो चुका था। कई घरों से बच्चों की भूख के कारण रोने-चीखने की आवाजें साफ सुनाई पड़ रही थीं। इस कठिन समय में लोग पण्डित संकठा प्रसाद एवं मौलाना मुश्ताक को याद कर रहे थे। हर ऐसे कठिन समय में पण्डित जी हिन्दुओं में एवं मौलाना साहब मुसलमानों में हमेशा खाद्य सामग्री एवं सब्जी आदि बटवाते थे तथा लोगों के दुःख-दर्द पूछते थे।

    पुलिस की गश्त जारी थी। चारों ओर सन्नाटा कुछ कुत्तों और पुलिस के जवानों के अलावा सड़क पर कुछ भी नहीं दिख रहा था। हाँ एक पागल जरूर कर्फ्यू से बेखर, पुलिस की गोलियों और दंगाइयों के बमों की चिन्ता किए बिना चारों तरफ टहल रहा था, कुछ गुनगुनाता, हंसता और फिर गुनगुनाने लगता, ऐसा महसूस हो रहा था कि शहर की इस बर्बादी पर उसे बहुत खुशी हो रही थी। बीच-बीच में पुलिस अधिकारियों की जीपें सन्नाटे को थोड़ी देर के लिए तोड़ जाती थीं।

    मन्दिरों में शंख और घड़ियाल का शोर, मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अज़ान की आवाज भी नहीं आ रही थी। प्रशासन ने लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पाबन्दी लगा दी थी। दोपहर के बारह बजे मोहल्ला मुहम्मदान में जीपों एवं कारों के काफिले ने प्रवेश किया। गृहमंत्री जी आए थे दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने। साथ में जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सहित जिले के अफसरों व नेताओं तथा अखबार के फोटोग्राफरों का काफिला भी चल रहा था। मौलाना मुश्ताक ने गृहमंत्री जी को मुस्लिम मोहल्लों का भ्रमण कराते हुए बताया कि हिन्दुओं ने कितना जुल्म किया है, अल्पसंख्यकों के साथ।

    पुलिस हिन्दुओं का साथ दे रही है। पुलिस ने खुली छूट दे रखी थी, हिन्दुओं को, कि जितना चाहो लूटमार करो हत्या करो। मौलाना कुछ घरों की ओर इशारा करते हुए दुःखी स्वर में बोले, यह घर डॉ. शरीफ जमाल का है, नगर के मानिन्द एवं अमनपसन्द आदमी हैं। इनका घर भी हिन्दुओं ने जला दिया। इस बार तो जुल्म की हद हो गई। मौलाना मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अज़ान की पाबन्दी के लिए भी मंत्री जी से शिकायत करते हुए कहा कि यह खुलेआम इस्लाम मजहब में दखल-अन्दाजी है, इसे मुसलमान बर्दाश्त नहीं करेगा।

    मंत्री जी मौलाना साहब को उचित कार्यवाही, करने का आश्वासन देते हुए, दौरे के पश्चात सर्किट हाउस में मिलने को कह कर, शास्त्री नगर की ओर चले गए। रास्ते में अधिकारी मंत्री जी को शहर की स्थिति से अवगत कराते हुए बोले, सर इसी मोहल्ले से पुलिस पर गोली चलाई गई थी। मौलाना झूठ बोल रहे हैं, डॉ. शरीफ जमाल का घर तो खुद मौलाना के आदमियों ने ही जलवाया है, व्यक्तिगत रंजिश के कारण, पुलिस तो बीच-बचाव और अपनी सुरक्षा में ही लगी रही।

    मंत्री जी ने सिर हिलाते अधिकारियों से पूछा, हम कहां चल रहे हैं?

    सर शास्त्री नगर। एक अधिकारी ने जवाब दिया।

    शास्त्री नगर में मंत्री जी की अगवानी के लिए लोग मौजूद थे। माहौल इस मोहल्ले का भी सन्नाटा एवं दहशत भरा था। लोग खिड़कियों से झांक तो जरूर रहे थे, पर डरे एवं सहमे हुए। पण्डित जी ने शहर की स्थिति से मंत्री जी को अवगत कराते हुए बताया कि गृहमंत्री महोदय, मुसलमानों ने खुले आम लूटपाट की है, इस क्षेत्र में बम और गोलियों का खुला प्रयोग किया गया है। राम प्रसाद का छोटा लड़का समीर, जिसकी शादी हुए अभी तीन महीना भी नहीं हुआ है, को मुसलमानों ने मार डाला। मान्यवर वो देखिए हनुमानजी का मन्दिर उसकी पिछली दीवार बम के हमले से ध्वस्त कर दी गई है, हनुमानजी की मूर्ति भी प्रभावित हुई है। जिस प्रकार अल्पसंख्यकों के नाम पर प्रशासन मुसलमानों की मदद कर रहा है, उससे हिन्दू क्षुब्ध है। यही नहीं, मौलाना मुश्ताक के छोटे भाई सज्जाद ने रामदीन की बहू के साथ कल रात बलात्कार किया एवं मारकर फेंक दिया।

    मंत्री जी सब कुछ शान्त मुद्रा में खड़े सुन रहे थे। बात खत्म होने के बाद मंत्री जी ने अधिकारियों को पैनी निगाहों से देखते हुए पंडित जी से कहा, आप मेरे साथ सर्किट हाउस चलें, वहीं सारी बातें होंगी।

    मंत्री जी जैसे ही जीप में बैठे, उनकी जीप के सामने वही पागल आकर लेट गया, चीख-चीख कर हंसने लगा।

    पुलिस वालों ने दौड़ कर उसे गोद में उठाकर डंडे मारते हुए सड़क के किनारे फेंक दिया, मंत्री जी ने अपने बगल खड़े पुलिस अधिकारी से पूछा, कौन है यह? सर यह पहले कोई शायर था, कुछ पारिवारिक कारणों से पागल हो गया है।

    ओह!, मंत्री जी ने एक नाटकीय दुःख भरी आह भरी और उसी के साथ उनकी गाड़ी का इंजन भी स्टार्ट हो गया था। जहां से मंत्री जी सर्किट हाउस चले गए। लोग खिड़कियों से मंत्री जी का काफिला जाते हुए सहमी निगाहों से देख रहे थे। मंत्री जी के जाते ही पुलिस के जवानों ने आवाज लगाई। "मंत्री जी चले गए।

    अब आप लोग खिड़की-दरवाज़े बन्द कर लो।"

    3

    सर्किट हाउस में अधिकारियों के साथ मंत्री जी की मीटिंग चल रही थी। पण्डित संकठा प्रसाद एवं मौलाना मुश्ताक अपने कुछ साथियों के साथ सर्किट हाउस की लॅान में अलग-अलग ग्रुप बनाकर बैठे हुए, मंत्री जी के बुलावे की प्रतीक्षा कर रहे थे। मंत्री जी के प्रश्नों का अधिकारी काफी मुस्तैदी के साथ जवाब दे रहे थे। एक बड़ी मेज के चारों ओर अधिकारी बैठे थे तथा बीच में चमचमाती सफेद खादी पहने मंत्री जी।

    जिलाधिकारी कौन है यहां का?

    सर, मैं भगवत प्रसाद, जिलाधिकारी खड़े होकर मंत्री जी को अपना परिचय देते हुए बोले।

    अच्छा-अच्छा, डी.एम. साहब, यह सब कुछ कैसे हुआ? मंत्री जी जिलाधिकारी की ओर देखते हुए बोले।

    सर मैंने आज सुबह ही एक जिम्मेदार मजिस्ट्रेट को इस घटना की जांच की जिम्मेदारी सौंपी है, वैसे आम आदमी इसके पीछे कुछ राजनीतिक मामला बता रहे हैं।

    क्या बकते हो? अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए, हमेशा तुम्हारे जैसे अफसर राजनैतिक मामला कहकर किनाराकश हो जाते हैं, बैठ जाइए। मंत्री गुस्से में बोले।

    कप्तान कौन है, खड़े हों, बताएं क्या बात है? मंत्री जी आदेशात्मक स्वर में बोले।

    सर, मैं डी.पी. चौधरी एस.एस.पी.। कहकर एक ज़ोरदार पुलिसिया अन्दाज का सल्यूट मारकर पुलिस कप्तान खड़े हो गए।

    "एस.एस.पी. साहब, शर्म की बात है कि पूरे दो दिन हो रहे हैं और

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