विश्वामित्र: Maharshis of Ancient India (Hindi)
By Sri Hari
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अगर आत्मविश्वास, ध्यैर्य और असाध्यकार्य को अपने मनोबलता और धृढ़ता से सिद्ध करना इसका काइे सही उदाहरण हैं तो वह ब्रम्हर्षि विश्वमित्र है। ब्रह्मर्षि वसिष्ठ से कामधेनु छीनने की कोशिश कर, असफल होकर वे घोर तपस्य करके ब्रम्हर्षि का पद प्राप्त किया। वसिष्ठ से प्रशंसित विश्वमित्र राजा त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने की योजना बनाते हैं। परंतु जब त्रिशंकु को धरती की ओर धक्खा देकर गिराया जाता है तब विश्वामित्र अपने तपोबल से नया स्वर्ग का निर्माणकरते हैं। इस तरह गायत्री मंत्र के प्रवर्तक विश्वामित्र के जीवन चरित्र सब को जानना और पढ़ना अत्यंत आवश्यक है।
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विश्वामित्र - Sri Hari
श्री रंग सद्गुरुवे नमः
भारतीय संस्कृति का परिचय छोटे बच्चों को कराने, उनमें अच्छे पुस्तकों को पढ़ने की अभिरुची को विकसित करने की उद्धेश्य से पुस्तकों को प्रकाशित करने भारत संस्कृती प्रकाशन संस्था ने संकप्ल किया । इसलिए
रामायण और महाभारत का मुख्य पात्र के दो पुस्तक झृंखलाओं को कई भाषाओं मे प्रकाशित किया है । इसे विद्यालयों ने सार्वजनिक संस्थाओं ने ओर सर्कार ने स्वागत किया है । इसी दिशा में
महापूज्य महर्षियाँ नामक् छोटे पुस्तको के गुच्छे को इस संस्था द्वारा प्रकटित करना हमें अति प्रसन्नता हुई है ।
इस पुस्तक श्रृंखलाओं का उद्देश्य हमारी भव्य संस्कृती का निर्माता कुछ महर्षियों का परिचय कराना है । ऋषियों ने सत्य का साक्षत्कार कर के अपने अनुभवों को जनहित और लोक कल्याण करने की उद्देश्य से अपने वाकू और ग्रंथों द्वारा लोगों तक पहुँचाया । उन्होंने अपने आत्मानुभव और अत्मगुण से अपनी बुद्धि श्रेष्ठता का परिचय दिया । सामान्य मानव जैसे लौकिक ख्याती, धन संग्रह, पूजा आदी के लालच में ना पडकर लोका समस्ता सुखिनोभवंतु
समस्त विश्व में सुख प्रदान हो इस धार्मिक बुद्धि से अपने अनुभवों को अनुग्रहित किया । ऐसे महात्माओं में किन्हीं मुख्य पुरुषों का परिचय हमें इन छोटे पुस्तकों द्वारा मिलता है । इन्हें पढ़कर और विचार करने से बच्चों में सत्य निष्ठता, सदाचार और सद्गुण निर्माण होगा और देश के सभ्य नागरिक बनने में सहायक सिद्ध होग
यही हमारा आशय है ।
भारत संस्कृती प्रकाशन संस्था की ओर से इसी किसम् के कई पुस्तकें प्रकाशित हो जिससे आत्मकल्याण और लोककल्याण करने सहायक सिद्ध हो । इन पुस्तकों को लिखने और परिष्कृत करने में सहायता करनेवाले विद्वद्जनों और पंडितों का मंगल कामना करते हैं ।
अष्टाँग योग विज्ञान मंदिरम्
श्रावण शुक्लद्वितीय, रवीवा
बेंगलूर
22-7-2001
नारायण स्मरण
श्री श्री रंगप्रिय श्रीपाद श्रीः
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र
श्रियै नमः
श्री गुरुभ्यो नमः
हमारे देश भारत की ऐतीहासिक परंपरा सारी दुनिया में माननीय और गौरवान्वित है । हमारी संस्कृति, आचार-विचार, वेद-पुराण तथा संस्कृत भाषा को सब ने सराहा है, ऐसा सर्वो स्थान, इस संसार में भारत के अलावा किसी अन्य देश को प्राप्त नही है । यह सब हमारे ऋषि मुनियों की देन है । इन ऋषि मुनियों ने अत्यंत प्राचीन काल से अरण्यों में रहकर, तप करके यह ज्ञान प्राप्त किया । अरण्यों में रहने के बावजूद इन्हें जीवन के सुख दुःख का ज्ञात था । इसलिए उन प्रदेशों के राजा-महाराजा वनों में जाकर ऋषि मुनियों से अपनी राज्य के हित में चर्चा करते थे । ऋषियों को सत्य वचन सुनने और बोलने के गुण है । ऋष्यः सत्यवचसः
यह कहावत ऋषइयों की सत्यप्रियता को दर्शाता है ।
इस प्रकार ऋषियों को वेदों का ज्ञान हुआ । इस ज्ञान के आधार पर उन्होंने जीवन लक्ष्य क्या होना चाहिये? यह समझाया । विश्वामित्र एक ऐसा तपस्वि है जो अत्यंत महत् कार्य कर प्रसिद्ध हुए ।
प्राचीन काल में कुश नामक एक महात्मा राजा था । इस