कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 22)
By Raja Sharma
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विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.
इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की बाईसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.
कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.
बहुत धन्यवाद
राजा शर्मा
Raja Sharma
Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.
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कथा सागर - Raja Sharma
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कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 22)
राजा शर्मा
Copyright@2018 राजा शर्मा Raja Sharma
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कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 22)
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दो शब्द
स्वामीजी कक्षा में Swamiji Kaksha Mein
मोची की रोटी Mochi Ki Roti
स्वामी विवेकानंद की परीक्षा Swami Vivekanand Ki Pareeksha
उनको अच्छा लगता है Unko Achha Lagta Hai
पिकासो का जवाब Picasso Ka Jawaab
बराबर बराबर जमीन Barabar Barabar Jameen
कपास, सुई, और मोमबत्ती Kapas, Sui, Aur Mombatti
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भगवान् से बातें Bhagwaan Se Batein
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पूर्ण समर्पण Poorn Samarpan
यादें Yadein
भीतर देखिये Bheetar Dekhiye
भगवान् दिखा दो Bhagwaan Dikha Do
मैं समझ जाता Main Samajh Jata
एक साथ सीखिए Ek Saath Seekhiye
काश मैं.....होता.....! Kash Main Hota!
दो शब्द
विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.
इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की बाईसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.
कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.
बहुत धन्यवाद
राजा शर्मा
स्वामीजी कक्षा में Swamiji Kaksha Mein
एक बार स्कूल में भोजन के समय नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) अपने मित्रों के साथ बातें कर रहे थे. सभी मित्र नरेंद्र को बहुत ही ध्यान से सुन रहे थे. उनकी बातों में सभी मित्र इतना डूब गए थे के उनको ध्यान ही नहीं रहा के उनके आस पास क्या हो रहा था.
घंटी लगने के बाद सभी छात्र अपनी अपनी सीट पर संभल कर बैठ गए. शिक्षक ने कक्षा में प्रवेश किया और अपना विषय पढ़ाना शुरू कर दिया. कुछ समय बाद शिक्षक ने कक्षा में कुछ फुसफुसाहट की आवाजें सुनी. शिक्षक ने देखा के पीछे की पंक्ति में बैठे कुछ छात्र बातें कर रहे थे.
शिक्षक को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने बातें करने वाले छात्रों से पूछना शुरू किया के उन्होंने अभी अभी क्या पढ़ाया था. उन छात्रों में से कोई भी शिक्षक को नहीं बता सका के वो क्या पढ़ा रहे थे क्योंकि वो छात्र तो बातों में लगे हुए थे.
शिक्षक ने वही बात नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) से भी पूछी. नरेंद्र ने हर एक प्रश्न का बिलकुल सही उत्तर दिया.
शिक्षक ने सभी छात्रों से पूछा, कक्षा में कौन सा वो छात्र है जो सबको बातों में लगाए हुआ था. वो छात्र कौन है जो पढाई के दौरान भी और छात्रों के साथ बातें करने में लगा हुआ था.
सभी छात्रों ने नरेंद्र की तरफ संकेत किया परन्तु शिक्षक ये मानने को तैयार नहीं थे क्योंकि कक्षा में सिर्फ नरेंद्र ने ही शिक्षक के द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नो के उत्तर ठीक ढंग से दिए थे. शिक्षक ने सोचा के कक्षा के अन्य सभी छात्र झूठ बोल रहे थे.
शिक्षक ने पूरी कक्षा को दंड दिया और उन सबको अपनी अपनी बेंच पर खड़ा हो जाने का आदेश दिया. शिक्षक ने नरेंद्र को सजा नहीं दी, परन्तु नरेंद्र स्वयं ही बेंच पर खड़े हो गए.
शिक्षक ने नरेंद्र से कहा, तुम नीचे उतरो और अपनी सीट पर बैठ जाओ.
नरेंद्र ने कहा, नहीं सर, मुझे भी खड़ा रहना होगा क्योंकि मैंने ही इन सब को बातों में लगाया था.
मित्रों,
कहते हैं न पूत के पाँव पालने में ही दिख