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प्रोफेसर साहब: प्रेम, प्रतीक्षा और परीक्षा
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Ebook111 pages49 minutes

प्रोफेसर साहब: प्रेम, प्रतीक्षा और परीक्षा

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पात्र परिचय
यह कहानी है किसी मध्यम वर्गीय परिवार की-एक प्रोफेसर साहब यानि विकास, नहीं नहीं यह उम्र दराज नहीं, बल्कि एक युवा हैं। और यूं कहें की कहानी के मुख्य किरदार में से एक। मुख्य और गैर जरूरी जैसा वैसे तो कुछ भी नहीं होता, एक पल का मिलन भी पूरी जिंदगी को गुलजार या फीका कर सकता है। यह एक लम्बा, खूबसूरत कद काठी,गोरे रंग का लड़का है जिसकी आँखों में हमेशा आत्मविश्वास झलकता है। इस कहानी में एक साँवली सी लड़की भी है, जिसकी आँखें मृगनयनी जैसी है। उसकी आँखों में हमेशा काजल रहता है और माथे पर छोटी-सी बिंदी सजाए रहती है।
लीलावती जी विकास की माँ है, जिनका स्वभाव काफी सख्त है पर अपने बेटे से बहुत प्यार करती हैं, उनका छोटा बेटा है वैभव, जो एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर था। उसकी ड्यूटी की जगह घर से 50 km दूर थी इसलिए वो पीजी में रहता था और शनिवार को ड्यूटी खत्म करके घर आता और रविवार की शाम को निकल जाता। अंत तक पहुंचते पहुंचते कुछ नए किरदार जुड़ेंगे, आशा है आपको यह कहानी पसंद आएगी।

Languageहिन्दी
PublisherGenius Words
Release dateFeb 14, 2024
ISBN9798224348978
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    प्रोफेसर साहब - Saloni Arya

    पात्र परिचय

    यह कहानी है किसी मध्यम वर्गीय परिवार की-एक प्रोफेसर साहब यानि विकास, नहीं नहीं यह उम्र दराज नहीं, बल्कि एक युवा हैं। और यूं कहें की कहानी के मुख्य किरदार में से एक। मुख्य और गैर जरूरी जैसा वैसे तो कुछ भी नहीं होता, एक पल का मिलन भी पूरी जिंदगी को गुलजार या फीका कर सकता है। यह एक लम्बा, खूबसूरत कद काठी,गोरे रंग का लड़का है जिसकी आँखों में हमेशा आत्मविश्वास झलकता है। इस कहानी में एक साँवली सी लड़की भी है, जिसकी आँखें मृगनयनी जैसी है। उसकी आँखों में हमेशा काजल रहता है और माथे पर छोटी-सी बिंदी सजाए रहती है।

    लीलावती जी विकास की माँ है, जिनका स्वभाव काफी सख्त है पर अपने बेटे से बहुत प्यार करती हैं, उनका छोटा बेटा है वैभव, जो एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर था। उसकी ड्यूटी की जगह घर से 50 km दूर थी इसलिए वो पीजी में रहता था और शनिवार को ड्यूटी खत्म करके घर आता और रविवार की शाम को निकल जाता। अंत तक पहुंचते पहुंचते कुछ नए किरदार जुड़ेंगे, आशा है आपको यह कहानी पसंद आएगी।

    मन के उस पार

    क ुलच्छिनी....पापन. ..शादी के पाँच साल बाद ही मेरे बेटे को खा गई।अच्छा होता उसकी जगह तू मर जाती।......सात बज गए पर एक कप चाय नसीब नहीं हुई,लीलावतीजी ने रोज़ की तरह सुबह-सुबह अपना पुराना अलाप दोहराया।

    सुधा बिना कुछ कहे चाय का कप लीलावतीजी को पकड़ाकर अपनी चार साल की बेटी को तैयार करने में लग गई।

    इस पर लीलावतीजी और गुस्सा हो गई और फिर उसे जोर-जोर से गन्दी-गन्दी गालियाँ देने लगी।

    सुधा की आँखें छलक गयी पर वो अपने काम में वैसे ही रमी रही।

    बेटी को तैयार करके उसके स्कूल छोड़कर जैसे ही सुधा ने घर में कदम रखा लीलावतीजी उसपे शब्दों का वाण छोड़कर बोली-आ गयी मुँह काला करके?अब जल्दी से खाना बनाएगी या मुझे भी मारने का प्लान है?

    पढी-लिखी सुधा से ये रोज़ की बेइज़्ज़ती सही नहीं जा रही थी पर उसके पास कोई दूसरा ठिकाना भी तो नहीं था।चार साल की बेटी के साथ अकेले रहना मतलब गन्दी नज़रों की कैद में हर वक्त एक डर के साये में जीना।

    कम उम्र में विधवा हुई औरतों को इसी गन्दी नज़र से देखता है ये पुरुष प्रधान समाज।हर कोई मदद करने के बहाने उनके अकेलेपन का फायदा उठाना चाहता था।

    कम-से-कम लीलावतीजी के संरक्षण में वो महफूज थी।

    इसलिए वो सीधे किचन में आकर खाना बनाने लगी पर आँसुओं की धार अभी भी उसकी पलकों और गालों को भिंगो रहा था।

    वो न चाहते हुए भी अतीत में डूबती चली गयी।

    7 साल पहले-

    सुधा.....वो सुधा कॉलेज नहीं जाना क्या?देख पहले ही हम बहुत लेट हो चुके है।,सुधा की बेस्ट फ्रेंड और हमराज निशा ने झल्लाते हुए गर्ल्स हॉस्टल के बाहर से आवाज़ दी।

    तभी सुधा भागती हुई निशा के पास आई और अपने दोनों कान पकड़कर बोली-"सॉरी निशु मैं तैयार हो ही रही थी कि तभी मैंने देखा कि कॉलेज जाने में एक घण्टा बाकी था तो .....

    सुधा ने बात अधूरी छोड़ दी।

    निशा-तो तू अपनी फेवरेट सीरियल देखने लगी होगी, सही कहा  न? अब ये बता तूने कुछ खाया भी है या ऐसे ही आ गयी?

    सुधा मासूमियत से-लेट हो गयी थी इसलिए कुछ नहीं खा पायी।कैंटीन में कुछ खा लूँगी।आइंदा से नहीं करूँगी....पक्का प्रॉमिस।

    निशा मुस्कुराते हुए-तू नहीं सुधरेगी!हर हफ्ते तू मुझे प्रॉमिस करती है और फिर तोड़ देती है।अब कॉलेज चल...मैं तेरे लिए गर्मागर्म कचोरी और तेरी फेवरेट आलू की सब्जी लायी हुँ।लाइब्रेरी पीरियड में खा लेना।

    सुधा निशा के  गाल खींचकर-थैंक यू.....थैंक यू सो मच!तू मेरा कितना ख्याल रखती है।

    निशा झूठा गुस्सा दिखाते हुए-अब मेरे गाल छोड़ेगी भी?

    सुधा शरारत से-हा...हा...मैंने गाल जरा से खींच क्या लिए तू गुस्सा हो गयी और जब जीजू तुझे परेशान करेंगे तो ?तब तो तुझे बहुत मज़ा आएगा।

    निशा -पहले जीजू मिल तो जाए।ऐसा न हो मुझसे पहले तू ही निपट ले।

    सुधा मुँह बनाकर बोली-हुँह! मुझे इन सब फालतू चक्करों में नहीं पड़ना।

    दोनों बातें करते-करते अपने क्लासरूम में घुस रही थी कि सुधा एक लड़के से टकरा गई।

    लड़के ने सॉरी कहा तो सुधा भुनभुनाने लगी-पहले तो जानबूझकर टकरा जाते है और फिर सॉरी बोलकर अच्छे होने की एक्टिंग करते है।मैं खूब समझती हुँ ऐसे लड़कों को।

    वो लड़का

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