Prakhar Rashtrawadi Neta evam Samaj Sudharak: Veer Savarkar (भारत के अमर क्रांतिकारी: वीर सावरकर)
By Jyoti Singh
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Prakhar Rashtrawadi Neta evam Samaj Sudharak - Jyoti Singh
भारत के अमर क्रांतिकारी
वीर सावरकर
डॉ. ज्योति सिंह
eISBN: 978-93-5684-213-7
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2022
Bharat Ke Amar Krantikari: Veer Savarkar
By - Dr. Jyoti Singh
विषय सूची
भाग - 1
[ क्रांति (येवतीकर ) कनाटे ]
1. भारत के अमर क्रांतिकारी वीर सावरकर
2. सावरकर का जीवन दर्शन
3. एक जीवनीकार के रूप में डॉ. भवान सिंह
भाग - 2
[डॉ. ज्योति सिंह]
4. भवान सिंह राणा का परिचय
5. ‘भारत के अमर क्रान्तिकारी वीर सावरकर’ एक सफल जीवनी है.
6. ‘वीर सावरकर’ नामक पुस्तक की भाषाशैली ( शिल्प विधान योजना).
7. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ के लेखक वीर सावरकर जी का विद्यार्थी जीवन में महत्त्व.
8. स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर बन्धुओं का योगदान
9. वीर सावरकर जी का दृष्टान्त
10. वीर सावरकर पर केन्द्रित रोचक जानकारियाँ
भाग - 1
परिचय
नाम : क्रांति (येवतीकर ) कनाटे
जन्म : 05/11/1954 सनावद (म.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (अँग्रेजी साहित्य) विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन। मध्य प्रदेश के शासकीय महाविद्यालय में कुछ वर्ष व्याख्याता के रूप में कार्यरत रहकर स्वेछा से त्यागपत्र देकर स्वतंत्र लेखन।
भाषा ज्ञान: मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू तथा गुजराती।
प्रकाशन : 1996 में ‘अपनी-अपनी धूप’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पक्षी उड़ आयेंगे’ (महेंद्रसिंह जडेजा के गुजराती काव्य संग्रह का हिंदी अनुवाद), 2000 में ‘जेता’ (कर्ण के अंतिम समय पर आधारित काव्य नाटक) तथा ‘एमिली डिकिंसन की कविताएँ (अनुवाद संग्रह), हिंदी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख, समीक्षाएँ, कविताएँ व अनुवाद प्रकाशित।
संपादन : ‘साहित्य संवर्धन यात्रा’, ‘राष्ट्रीय अस्मिता और भारतीय साहित्य’, ‘संतों का साहित्यिक अवदान’, ‘गुजराती कथा वैभव’ (गुजराती की 18 अनूदित कहानियों का संपादन) ।
संकलन : ‘ऐतिहासिक उपन्यासों से समाज जाग्रति’, ‘बांग्ला साहित्य का भारतीय साहित्य पर प्रभाव’, ‘नवलेखन की चुनौतियाँ’ ।
आगामी प्रकाशन: ‘गुजराती काव्य संपदा’ (अनुवाद संग्रह )
पुरस्कार : ‘अपनी-अपनी धूप’, ‘जेता’ तथा ‘एमिली डिकिंसन की कविताएँ हिंदी साहित्य अकादमी, गुजरात द्वारा पुरस्कृत। पूर्व संपादक, ‘साहित्य परिक्रमा’ (जनवरी 2013 मार्च 2019) पूर्व सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति, इस्पात मंत्रालय एवं रेलवे मंत्रालय ।
संपर्क : 203, टॉवर-3, सांईनाथ स्क्वेयर,
ई मेल मदर्स स्कूल के पीछे, जलाराम चौकड़ी
वडोदरा-390021 (गुजरात)
मो. 09904236430
ई मेल: krantibrd@rediffmail.com
भारत के अमर क्रांतिकारी
वीर सावरकर
डॉ. भवानसिंह राणा लिखित समीक्ष्य पुस्तक ‘भारत के अमर क्रांतिकारी वीर सावरकर’ युवा पीढ़ी की दृष्टि से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी अपनी जीवन शैली, अपने आचार-विचार, व्यवहार और केरियर के प्रति तो सजग है परंतु उसमें हमारी संस्कृति, हमारे इतिहास, साहित्य और मान्यताओं के प्रति बहुतायत से एक उदासीनता दिखाई देती है इसीलिए जब विनायक दामोदर सावरकर का क्रांतिकारी जीवन, उनका त्याग, राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और भक्ति इस पुस्तक के माध्यम से पाठ्यक्रम में आती है तो एक आश्वस्ति होती है कि हमारे क्रांतिकारियों के अनुपम उदाहरणों की यह धरोहर हम अपने अग्रजों को सौंप दे रहे हैं। भारत दीर्घ-काल तक पराधीन रहा। एक लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को हमने स्वतंत्रता प्राप्त की। इसे पाने में दो तरह के संघर्षों की प्रमुख भूमिका रही है। एक ओर तो तात्या टोपे और लक्ष्मीबाई ने छेड़े प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की मशाल को हमारे अगणित क्रांतिकारियों ने देशभर में अपनी तरह से जलाए रखा तो दूसरी ओर 1915 में महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रिका से भारत आगमन पर अंग्रेजों के विरुद्ध एक अलग तरह का आंदोलन आरंभ हुआ। इतिहास कभी भी पूर्ण रूप से हमारे सामने नहीं आता अत: जाने कितने क्रांतिकारी अनाम रह गए और विनायक सावरकर की कथा भी हम तक जब, जैसी और जितनी पहुँचनी चाहिए थी, नहीं पहुँच सकी अत: कहना होगा कि डॉ. भवानसिंह राणा ने इस पुस्तक के माध्यम से एक महनीय कार्य किया है।
लेखक ने सावरकर की जीवनी को दो खंडों में विभक्त किया है। प्रथम खंड सावरकर के जीवन पर आधारित है तो दूसरा खंड उनके जीवन दर्शन पर। प्रथम खंड में कुल सात अध्याय हैं जिनमें सावरकर के जन्म से अवसान तक की यात्रा को सरल-सीधी भाषा में संक्षिप्त रूप में कहा गया है। प्रथम खंड के प्रथम अध्याय की यह विशेषता है कि उसमें सावरकर की वंश-परंपरा का भी उल्लेख किया गया है। ज्ञातव्य है कि सावरकर महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों के वंशज थे जिनमें महापुरुषों और क्रांतिकारियों की एक लंबी श्रृंखला रही है। इनमें पेशवा बालाजी विश्वनाथ, वासुदेव बलवंत फडके, चाफेकर बंधु, गोविंद महादेव रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक के नाम प्रमुख हैं। इस अध्याय में सावरकर के प्रारंभिक जीवन का वर्णन है जिसमें उनके जन्म, बाल्यकाल एवं विद्यार्थी जीवन के साथ राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत उन कविताओं का भी उल्लेख है जिसमें सावरकर ने महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविंदसिंह जैसे शूर-वीर देशभक्तों की वीरता को दर्शाती ओजस्वी गीत - गाथाएँ लिखी थी जिसे मराठी में ‘पोवाड़ा’ कहा जाता है। इसी काल में उन्होंने ‘अभिनव भारत’ नामक एक गुप्त संस्था की स्थापना की जिसने आगे चलकर एक वृहत रूप धारण किया। द्वितीय अध्याय में सावरकर के कानून की शिक्षा हेतु लंदन जाने का विवरण है। उनके जीवन का यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण काल-खंड है जिसमें उन्होंने वहाँ के प्रसिद्ध ‘ग्रेज़ इन’ महाविद्यालय से बेरिस्टर की शिक्षा तो ली परंतु क्रांतिकारी श्यामजी वर्मा के ‘इंडिया हाउस’ में रहते हुए एक क्रांतिकारी संगठन भी खड़ा किया, ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ जैसी ऐतिहासिक मूल्य की पुस्तक लिखी, इस ऐतिहासिक घटना की 1907 में अर्धशताब्दी मनाई, भारतीय सैनिकों में क्रांति का प्रचार किया। इसी कालावधि में मदनलाल धींगरा को कर्ज़न वायली की हत्या के आरोप में फाँसी की सज़ा हुई, सावरकर को मुख्यत: ब्रिटिश शासन के विरुद्ध षडयंत्र के आरोप में बंदी बनाकर भारत भेजा गया। इसी समुद्री यात्रा में फ्रांस के मार्सेल्स के करीब सावरकर ने जहाज से कूदकर, समुद्र के भीतर ही भीतर तैरकर किनारा तो पा लिया परंतु दुर्भाग्यवश वे फिर अंग्रेज़ों के हाथ लगे, भारत लाए गए, मुकदमा चला और 25-25 वर्ष के दो आजीवन कारावास को भुगतने अंडमान भेज दिए गए। तृतीय अध्याय में सावरकर के पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल में लगभग दस वर्ष के कारावास की दारुण पर साहस और धैर्य के चरम सीमा की कथा है, जिसमें उन्होंने नारियल के छिलके भी निकाले, रस्सी भी बाँटी, कोल्हू में बैल की तरह जुतकर तेल भी निकाला पर साथ ही साथ