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Agyatvas Ka Humsafar (अज्ञातवास का हमसफ़र)
Agyatvas Ka Humsafar (अज्ञातवास का हमसफ़र)
Agyatvas Ka Humsafar (अज्ञातवास का हमसफ़र)
Ebook825 pages6 hours

Agyatvas Ka Humsafar (अज्ञातवास का हमसफ़र)

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About this ebook

डॉ. राजेंद्र मोहन भटनागर ऐतिहासिक और जीवनीपरक उपन्यासों के लेखकों में सबसे अग्रणी हैं। इस तरह के उपन्यास लिखना एक विशेष कौशल की माँग करता है। डॉ. भटनागर इस कला में सिद्धहस्त हैं, जो उनके इस तरह के 80 से अधिक बहुप्रशंसित उपन्यासों से प्रमाणित है। 2 मई 1938 को अंबाला में रोहतक के एक जमींदार-परिवार में जन्मे डॉ. भटनागर ने इन उपन्यासों के अतिरिक्त 14 नाटक, 13 कहानी-संग्रह, 18 आलोचना-पुस्तकें और कई जीवनियाँ, यात्रा-वृत्तांत, विचार और बाल-साहित्य की पुस्तकें भी लिखी हैं। उनकी अनेक कृतियों का अंग्रेज़ी, फ्रेंच, कन्नड़, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च 'मीरा पुरस्कार' और हरियाणा साहित्य अकादमी के 'वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान' सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित डॉ. भटनागर का यह उपन्यास नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन और मृत्यु संबंधी कई रहस्यों पर से रोमांचकारी ढंग से परदा उठाता है।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateMar 24, 2023
ISBN9789356841475
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    Agyatvas Ka Humsafar (अज्ञातवास का हमसफ़र) - Dr Bhatnagar Rajendra Mohan

    सुभाष के अंतिम दिन

    डॉ. राजेंद्र मोहन भटनागर

    डॉ. राजेंद्र मोहन भटनागर ऐतिहासिक और जीवनीपरक उपन्यासों के लेखकों में सबसे अग्रणी हैं। इस तरह के उपन्यास लिखना एक विशेष कौशल की माँग करता है। डॉ. भटनागर इस कला में सिद्धहस्त हैं, जो उनके इस तरह के 80 से अधिक बहुप्रशंसित उपन्यासों से प्रमाणित है। 2 मई 1938 को अंबाला में रोहतक के एक जमींदार-परिवार में जन्मे डॉ. भटनागर ने इन उपन्यासों के अतिरिक्त 14 नाटक, 13 कहानी-संग्रह, 18 आलोचना-पुस्तकें और कई जीवनियाँ, यात्रा-वृत्तांत, विचार और बाल-साहित्य की पुस्तकें भी लिखी हैं। उनकी अनेक कृतियों का अंग्रेज़ी, फ्रेंच, कन्नड़, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च ‘मीरा पुरस्कार’ और हरियाणा साहित्य अकादमी के ‘वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित डॉ. भटनागर का यह उपन्यास नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन और मृत्यु संबंधी कई रहस्यों पर से रोमांचकारी ढंग से परदा उठाता है।

    अज्ञातवास का

    हमसफ़र

    डॉ. राजेंद्र मोहन भटनागर

    eISBN: 978-93-5684-147-5

    © लेखकाधीन

    प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.

    X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II

    नई दिल्ली- 110020

    फोन : 011-40712200

    ई-मेल : ebooks@dpb.in

    वेबसाइट : www.diamondbook.in

    संस्करण : 2022

    Agyatvas Ka Humsafar

    By - Dr. Rajendra Mohan Bhatnagar

    अज्ञातवास का हमसफ़र

    अचानक रातें लंबी हो गड़ी देर से सोना और जल्दी उठना। अनिता की ओर देखते रहना और जब-तब उसके सिर पर हाथ फेरने लगना। कभी-कभी उसकी पीठ पर हौले-हौले थपकी दे उठना। उसके साथ सो रही गुड़िया की ओर देखकर मुसकरा उठना। ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। सुभाष ने कितने शांत भाव और सहज ढंग से कहा था, शैंकल, अनि को माँ की ज़रूरत है। उसे स्नेह-प्यार चाहिए। वह आया नहीं दे पाएगी और न कोई और।

    समझती हूँ, सुभाष, मैं एक भारतीय पत्नी हूँ। भारतीय पत्नी का दायित्व नन्ही-सी बच्ची के प्रति क्या होता है...लेकिन वह तुम्हारे बिना..तुम तो जा रहे हो। फिर तुमने उसे इतना हिला क्यों लिया? जरा-सी रोई नहीं कि गोदी में ले बैठे उसे गोदी की आदत डाल दी।..पुरुष होते बहुत चालाक हैं।"

    क्यों?

    तुम तो सुबह चले जाओगे। फिर मुझे हर समय उसे देखना पड़ेगा। माँ के साथ पिता का भी प्यार देना पड़ेगा। दूंगी। एक भारतीय से शादी करने की यह सज़ा तो पानी ही होगी ना शैंकल शरारत से मुसकराते हुए कहती। "तुम इसे सज़ा कहती हो क्या!..तो... सुभाष आगे कुछ नहीं कह पाए।

    प्यार सज़ा नहीं है तो क्या है, सुभाष – मीठी सज़ा। चाही गई सज़ा। जीवन निछावर करने की सज़ा। वह सज़ा, जिसे पाने के लिए गॉड से प्रेयर करनी होती है।...एमिली शैंकल सुभाष की भुजाओं में आकर मौन हो गई। सुभाष कह रहे थे, यह हमारे-तुम्हारे प्यार का इम्तहान है। मुझे पता नहीं। अज्ञात, अनजानी अंधी सुरंग। पता नहीं, कब पार हो पाएगी, या..."

    एमिली गैंकल ने उनके होंठों पर अपनी लंबी मुलायम उँगली रखकर गहरी आँखें उन पर टिका दीं। मानो वह उनसे कह रही हों कि वह भी उस अंधी, अनदेखी, अनुभव न की गई सुरंग की हमसफ़र है। प्यार उस सफ़र का साथी है। फिर चिंता क्या! ..यह जिंदगी जब किसी बड़े लक्ष्य की ओर चल पड़ती है, तब यह अपनी नहीं, उनकी होकर रह जाती है, जिनके लिए उठ खड़ी हुई है।

    तुमने कुछ कहा, शैंकल? हाँ, ज़रूर कहा। क्या कहा? जो तुमने सुना, सुभाष । मैंने क्या सुना, शैंकल? सुभाष उसे और अपनी ओर खींच लेते।

    "वही सुभाष, जो हम दोनों ने कहा-सुना! कहना-सुनना वही तो असली होता है, जिसमें न कहने वाला कुछ कहता है और न सुनने वाला कुछ सुनता

    ____ और फिर भी कहा-सुना जाता है। सुभाष भावुक हो उठे। उनके होंठ उसकी ओर झुक आए किसी राह-भटकी बदली की तरह। सुना है, बंगाली वैसे ही बहुत भावुक होता है। और तुम...?

    तुमने मुझे भी अपने रंग में रंग डाला। वह भी इतने गहरे में ले जाकर कि फिर दूसरा रंग रहा ही नहीं।

    मैं भी यही सोचने लगा हूँ कि... ऐसी गलती क्यों की कि... हर बार उस गलती को जी चाहने लगा। और अब.... कुछ नहीं, सुभाष । तुम्हीं तो मुझे समझाते-बुझाते रहे कि जिंदगी नदी के जल की तरह होनी चाहिए या हवा की तरह, अथवा सूर्य की किरणों की तरह या धरती की तरह, जो अपने लिए कतई नहीं, दूसरों के लिए जी जाती है।

    तुम्हें सब याद है, शैंकल?

    और तुम्हें? सुभाष शैंकल को गहरे प्यार से चूम लेते। वह निढाल हो जाती प्यार की सौगात पाकर। गहरी साँस भर सोचती रह जाती-कितना बयाबान, रेगिस्तान, कोई ओरछोर नहीं। सिर्फ उम्मीद...उम्मीद । उसका दिल बैठने लगा। तभी वह सँभली और बोली, सुबह दस्तक दे उठी है, सुभाष। कील का बंदरगाह...

    और फिर सुरंग... और आप उसके हमसफ़र! हाँ, शैंकल, सब हमारी वज़ह से।

    नो...नो...नो। प्यार की कोई वजह नहीं होती, सुभाष।...जैसे चर्च-टेंपल में जाने की... होती है फायदे की, संकट से बाहर आने की, तरक्की की...

    बस...बस...बस, सुभाष । जब तुम दिल से नहीं, दिमाग की ऊपरी सतह पर खड़े होकर बोलते हो तब लगता हैं कि तुम्हें कोई काम नहीं है। सिर्फ निठल्ले वक्त के साथ छेड़छाड़ कर रहे हो। एमिली शैंकल में शरारत तितली की तरह उड़ने लगती। अंत में वह कहने लगती, बिना सिलह (हथियार) के मैदान-ए-जंग में कोई योद्धा आ खड़ा है।

    पर वह मैं नहीं हूँ। तो क्या मैं हूँ। वह तुम जानो, शैंकल ।

    एमिली शैकल प्यार की नज़रों से उन्हें देखती रह जाती। क्या सम्मोहन ऐसा होता हैं और यूं होता हैं कि खुद को खुद की ख़बर न रहे और राइन नदी पार हो जाए। बात कहाँ से उठी थी, कहाँ जा खोई। वह यह कह भी नहीं पाई कि इस वज़ह पर सिर खपाना बेकार का शगल है।...असलियत तो यह हैं, प्रेयर होती ही तब है जब अपने लिए मांगने की रत्ती भर भी चाह नहीं होती, सिर्फ उसके सुपुर्द होने लगती है रूह।।

    वक्त मुट्ठी में बंद बालू-सा जितनी तेजी से कसो, उतनी तेजी से फिसलता जा रहा था बिना आहट किए। थोड़ी देर बाद सुभाष चल देंगे और तलाशती नदी-सी वह अपने को उधेड़ती-बुनती रह जाएगी पर गौरव से। ऐसा होना भाग्य से ही बनता है गॉड की अनुकंपा से कि वह ना कुछ होते हुए बहुत कुछ होती जा रही है। इतना कुछ जितना उसने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था। फिर वह क्या जाने! वह जानती क्या है और कितना-सा, सिवा उनकी पत्नी होने के!

    सूचना दी गई कि "मैडम फोन लग गया है। यह सुनते ही एमली शैंकल उठी। यादों के झुरमुट से निकलकर वह अनिता को लिए पास वाले कमरे में कुरसी पर जा बैठी और फोन का चोगा उठा बतियाने लगी।

    ब्रॉडकास्टिंग सेक्रेटरी गोयेबॉल्स का कल फोन आया था। जरमनी के फॉरन मिनिस्टर रिपेनटूप ने भी लास्ट सेटरडे फोन किया था। अब आप प्रकट हो चुके हैं, इसलिए मैं फोन पर आपसे बात करूँ।... इस वक्त मैं भी गोयेबॉल्स के कार्यालय से फोन कर रही हूँ|.....

    हाँ, शैंकल, मेरी उनसे बात हई थी। फोन नंबर कॉनफिडेनशल रखना ज़रूरी है। और इसीलिए तुम्हें उनके यहाँ से फोन करवाया गया है।

    कैसे हो, बोस??

    मेरी आवाज़ सुनकर तुम्हें कैसा लग रहा है, शैंकल! सुभाष पूछ रहे थे। मैं पगला उठी हूँ। मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि मुझे क्या बात करनी चाहिए और कैसे? वह 8 फरवरी, 1943 की धुंधली सुबह, जिसने कुहरे की चादर ओढ़ रखी थी, और तुम कील, बंदरगाह की ओर बढ़ने वाले थे। कील तक जाने से रोकते हुए तुमने कहा था, तुम जापान तक साथ नहीं जा सकती। फिर कील का मोह क्यों? तुमने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा था, फॉर युअर लाइफ, नेवर प्रे फॉर एनि सेल्फिश ऑबजेक्ट ऑर एम, ऑलवेज़ प्रे फॉर ह्वाट इज़ गुड फॉर

    ह्यूमैनिटी- फॉर व्हाट् इज़ गुड फॉर आल टाइम ।"

    हाँ, एमिली शैंकल, कहा था। यह भी कहा था... यू नो ऐज़ वेल ऐज़ आई डू दैट जरमनी कैन नॉट विन दिस वार। बट दिस टाइम विक्टोरियस ब्रटेन विल लूज इंडिया।

    वह लगने लगा है, बोस।

    वहाँ और कौन है, तुम्हारे आसपास?

    कोई नहीं। गोयेबॉल्स ने अलग प्रबंध करवा दिया है। फिर भी वहाँ गेस्टापो की गिद्ध दृष्टि से बच पाना बहुत मुश्किल है। वह बैठे-ठाले कोई भी परेशानी खड़ी कर सकता है। यों तो स्टेट सेक्रेटरी केपलर वहाँ हैं।... तुम अपने घर आस्ट्रिया जाने वाली थीं।

    विचार बदल गया। यहाँ के हालात बुरे हैं। तुम्हारा कौन है वहाँ? क्या कर रहे होंगे और कैसे? अकेले हो। मेरी चिंता यह है सुभाष ।

    "मैं अपने देश को आजाद करानेवाला सिपाही हूँ। मेरे जैसे हज़ारों-हजार आज़ादी के दीवाने हैं यहाँ। जो उनका होगा, वही मेरा होगा।... मैं समझ सकता हूँ कि तुम्हारे मन में इन विपरीत परिस्थितियों में क्या चल रहा है। शायद हिटलर शतरंज नहीं जानता और मान लो जानता भी हो तो उसने चाल गलत चल दी और उसने अपने को फँसा लिया।

    क्योंकि चैस में पॉर्डन (क्षमा) के लिए स्थान नहीं है।

    तुम्हारी समझ गहरी होती जा रही है।

    इतनी जल्दी कॉमेंट नहीं, सुभाष ।

    तुम्हें सब याद हैं, शैंकल ।

    राइन का तट भी, एकांत में डूबती वह संध्या भी, जिसके माथे पर इंद्रधनुष था...

    और वह भी डूब रहा था। तब तुमने कहा था, इनसान अपने आप से इस कदर घृणा क्यों करने लगता है कि...

    उसे हिटलर बनने पर मजबूर हो जाना पड़ता है। यह युद्ध कौरवों के बीच में हैं। इसमें पांडव कोई नहीं है और न कोई कृष्ण। दोनों ओर अमानवीय ताकतें हैं। फिर भी...

    अपने देश की आज़ादी की चाह ने मुझे यहाँ ला खड़ा किया, बर्मा में...बर्मा से आगे अपने देश के निकट पहुँचने के इरादे ने।...अचानक तुम्हारी और बेबी की यादें मुझमें बादल बन छाने लगीं। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने गोयेबॉल्स को फोन लगा दिया। अब अनि... यानी अनिता...। कहते-कहते सुभाष का कठ अवरुद्ध हो उठा और हृदय भर आया।

    घबरा गए। प्यार में बड़ी शक्ति होती है।...अनि बड़ी प्यारी बच्ची है। आँखें बहुतकुछ तुम पर गई हैं, चेहरा भी तुम्हारी तरह ही है, लंबा। होंठ हम दोनों में से किसी पर नहीं हैं। नाक हम दोनों पर गई है। केश रेशम-से हैं, घने और चमकदार। सारे दिन सोती रहती है। ममा...मा...जैसा बोलने की कोशिश करती है। तुम्हारे लिए. डैडी नहीं, पापा चलेगा। ममा से मिलता-जुलता है।

    काश, मैं उसे देखता होता।

    देख भी लोगे। विजय की ओर बढ़ते जाओ। गॉड तुम्हारे साथ है। चिंता-फ़िक्र नहीं।

    हिटलर को रूस पर आक्रमण नहीं करना था। वह हो चुका, उसे भूल जाओ।

    दूसरा कोई चारा भी नहीं है।

    अनि जब अचानक देर रात को रोने लगती हैं, तब देर तक चुप नहीं होती। रोती ही रहती है। और प्रायः तब रोना शुरू करती है जब मैं नींद में होती हूँ।

    भूखी होगी।

    नहीं। मैं अभी तक उसे अपना ही दूध पिलाती हूँ। माँ टोकती थी। वह बोतल से दूध पिलाने की आदत डालने को कहती है।...मैंने लंबी छुट्टी ले ली है। घर में रहकर ही मैं अनुवाद का काम करने लगी हूँ...प्रूफ भी पढ़ लेती हूँ। उससे काम चल जाता है और माँ की इस दलील को भी उत्तर मिल जाता है कि नौकरी पर जाने के बाद अनि पीछे रोने लगी तो...| तुम कहकर गए थे न, तुम्हारे पीछे भी उसे माँ की ज़रूरत होगी। फिर तुरंत ही कहा था कि तुमने यह बात यों ही कह दी थी।...परंतु मैंने गाँठ बाँध ली थी। मैं तुम्हें शिकायत का मौका नहीं देना चाहती। यही कारण है कि आज इस वक्त भी मुझे लग रहा है कि तुम मेरे साथ हो और तुम्हारी मोटी-मोटी आँखें मुझे घूर रही हैं।...इस छोटे-से जीवन के कैसेकैसे इंद्रधनुष! कैसी-कैसी यादें! वे सब अब हृदय में घरौंदा बना कर रहने लगी हैं। उनमें रंग-बिरंगी चिड़ियाँ डेरा डाले हैं।...तुम अपनी कहो, मेरी बकबक एक बार शुरू हो जाए तो रुकने का नाम ही नहीं लेती। इसी के साथ एमिली शैंकल ने अपना दूसरा हाथ चेस्टर से निकाल लिया।

    शैंकल, जी चाहता है कि यों ही तुम्हें सुनता रहूँ।

    सुभाष, भावुक नहीं बनो।...चाहती क्या मैं नहीं हूँ। पर क्या!..तुमने ही तो कहा था कि बड़े लक्ष्य के लिए छोटे लक्ष्य को त्याग देना चाहिए।...कहाँ खो गए! एमिली शैंकल का स्वर आर्द्र हो उठा था। उसे टेलीफोन रिसीवर पर सुभाष के होंठों पर जीभ फेरने की मद्धिम आवाज़ किसी अज्ञात रिद्म-सी सुनाई पड़ रही थी।

    कहीं नहीं।

    फिर कुछ कहते क्यों नहीं हो?.आज मैंने तुम्हारे लिए कुछ हेलरों (जर्मनी सिक्कों) में कोई चीज खरीदी है, बताओ तो वह क्या हो सकती है?

    क्या, शैंकल तुम्हीं बता दो? सुभाष ने बिना मस्तिष्क पर ज़ोर डाले कह दिया, एक साँस में।

    तुम्हें याद है, सुभाष । हियर इस्ट तिबतन। यह तिबतन है। आप तिबतन में हैं। तिबतन आपका स्वागत करता है।"

    वही तिबतन स्टेशन ना, शैंकल, जहाँ एक बहुभाषी अनाउंसर स्टेशन पर आने-जाने वाली ट्रेनों की सूचना लाउडस्पीकर से दे रहा था।

    हाँ...हाँ...वही तिबतन। वही बहभाषी फेन्दिष अनाउंसर...।

    उसकी प्रेमिका ने...।

    वह वहाँ खड़े व्यक्ति ने बतलाया था कि वह झक्की आदमी है।...उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। बेचारा उसके गम में मारा गया। यह टटयूँजिया...। कहकर वह आदमी वहाँ से चला गया।...अपनी भी ट्रेन के आने में वक़्त हो चला था।

    उससे बात करने पर यह पता चला कि वह ख़ासा पढ़ा-लिखा है ! ..पेंटिंग का भी उसे शौक है। वह चाहता तो उसे अच्छी नौकरी आसानी से मिल सकती थी।

    हाँ, शैंकल, हाँ। वह वाकई योग्य था।

    तुमने उससे बातें भी की थीं।

    बेशक, शैंकल ।...पर वह...।

    तुमसे अधिक देर तक बातें नहीं कर सका। कैसे करता वह ड्यूटी पर था और ट्रेनों के आने-जाने की सूचना उसे देते रहनी थी। शैंकल ने फोन का चोगा ठीक करते हुए कहा।

    चलते-चलते तुम उससे यह कहना नहीं चूके...

    कि यह समाज तुमसे उम्मीद करता हैं...तुमसे ही क्यों, हर एक इनसान से...कि उसने समाज से जो पाया हैं, कम से कम वह उसे उतना तो लौटा दे।

    यह सुनते ही वह कुछ चिढ़ गया था और शिकायत के लहजे में उसने कहा था, क्या पाया है मैंने! यही न कि मैंने उससे प्यार किया। उसने भी।...परंतु वह शादी से साफ़ मुकर गई। इसके बाद वह ट्रेन की सूचना देने लगा था। और हमारी भी ट्रेन आ गई थी।

    तो?

    मुझे फिर तिबतन जाना पड़ा।...इस बार वह फिर मिला परंतु नए रूप में। वह छोटीछोटी पुस्तिकाएँ...उन्हें पैम्फलेट्स कहना ज़्यादा ठीक रहेगा, बेच रहा था। मैंने उन्हें खरीद लिया।"

    पढ़ी भी क्या?

    हाँ, सुभाष । प्यार में बहुत ताकत होती है, यह उन्हें पढ़कर जाना।

    अपने प्यार से ज्यादा क्या। शैकल, चुप रह गई।

    तुम उन पैम्फलेट्स को गोयेबॉल्स को सौंप देना। वह उन्हें मुझ तक पहुँचवा सकेगा।

    ठीक है, सुभाष ।

    मैं जानना, चाहूंगा कि वह स्टेशन से गाड़ी के आने-जाने की सूचना देने के काम को छोड़कर पैम्फलेट की दुनिया में कैसे आ गया?

    यह सब उनमें नहीं है, सुभाष ।

    कल डिअर, वह काम मेरा है कि...।

    क्यों नहीं...क्यों नहीं...क्या तुम इसलिए वहाँ गए हो...

    यह तुम अच्छी तरह जानती हो, शैंकल ।...वह क्या है कि...युद्ध और प्यार में, मुझे लगता रहा है कि अंदरूनी सांठगांठ है।

    वह तुम जानो।

    इस दुनिया में फेन्दिष जैसे इनसान उँगली पर गिनने लायक हैं।...मुझे लगता है कि उनमें ज़रूर ऐसा कुछ होगा जिसे हजारों हेलर क्या, हजारों स्वर्ण मार्क्स से भी नहीं खरीदा जा सकता। इस दुनिया को उनकी ज़रूरत है जो नफ़रत से भी प्यार कर सकें। ____ शायद...।

    शायद नहीं, शैंकल, यह एकदम पक्की और पते की बात है। इस दनिया को प्यार चाहिए, जिससे वह दूर जा पड़ी है।...गुलाम बनाने का शौक उन्हें ही है जो अपने आप से सिर से पांव तक नफ़रत कर उठे हैं।...यह नफ़रत ही युद्ध का परिणाम है।...मेरा लक्ष्य मात्र अपने को स्वतंत्र कराने तक सीमित नहीं है। आदमी-आदमी से दोस्ती करे...पाक दोस्ती और यह बिना प्यार के संभव नहीं। तुम तो बहुत गंभीर हो गए, सुभाष ।

    सुभाष ने गहरी साँस भरकर कहा, थोड़ी देर के लिए मैं भूल गया था कि मैं अपने, प्यार से बात कर रहा हूं।...अच्छा, अब बोलो तुम...।

    बात करने का समय चुक रहा है, यह संकेत मिल चुका है।...क्या तुम अनि से बात करोगे?

    तुम उसे साथ लेकर आई हो, शैंकल?

    ताकि वह अपने पापा की आवाज़ सुन सके और अपनी भाषा में कुछ बतला सके।

    क्या वह भी सुन रही है हमारी बातें?

    हाँ, ऐसी व्यवस्था करवा दी गई है। परंतु अब वह अपने पापा की लोरी सुनते-सुनते सो गई है। सभाष ।...फिर भी मैं एक प्रयत्न करती हूँ। इतना कहकर एमिली शैंकल ने हलका-सा उसे नोच लिया और वह ज़ोर-ज़ोर से रो पड़ी।

    सुभाष कान लगाकर सुनने लगे। सुनते रहे। उनका हृदय काँप गया।

    अच्छा सुभाष, तुम अपनी बेटी को सुन चुके हो। अब मैं फोन रखती हूँ। समय समाप्त। अपना ख्याल रखना। इसके साथ एमिली शैंकल ने फोन क्रेडिल पर धीरे से रख दिया और अनिता को छाती से लगाकर चल पड़ी।

    "ठहरो, शैकल। गोयेबॉल्स का धीमा स्वर था। डॉ. वान ट्राट जु सोल्ज़ जो भारत विभाग के डायरेक्टर हैं, आए हैं।

    अभिवादन हुआ। संकेत पाकर एमिली शैंकल बैठ गई। डॉ. वान ट्राट जु सोल्ज़ ने कहा, ये पैम्फलेट्स सुभाष तक पहुँच जाएंगे परंतु फिर कभी यहाँ आकर बात करो तो उस बातचीत में पॉलिटिक्स पर चर्चा नहीं होनी चाहिए, ध्यान रहे।

    "ठीक है, आगे से मैं पूरा ध्यान रखूगी। एमिली गैंकल तपाक से कह गई।

    गोयेबॉल्स, तुम सुभाष को भी यह बात समझा देना। उसने मुसकरा कर कहा, बेबी बहुत समझदार है, उसने रोना बंद कर दिया।

    इस पर सब हँस पड़े, परंतु अनिता पुनः रोने लगी।

    इसका मतलब हुआ कि हमसे कुछ गलती हो गई। हमें पॉर्डन कहकर चुप हो जाना चाहिए था।

    अनिता फिर चुप हो गई। इस बार कोई नहीं हँसा। एमिली शैंकल उठकर चल दी। नीचे गाड़ी खड़ी थी जो उसे घर तक छोड़ आएगी।

    गोयेबॉल्स शांत चित्त होकर सोचता रह गया। फिर डॉ. एडम वान ट्राट जु सोल्ज़ भी उठकर चल दिया।

    रास्ते भर एमिली शैंकल सोचती रही कि क्या कोई अकेला व्यक्ति एक साथ सघन पर द्रवित होते प्यार और घनघोर युद्ध के मोर्चे पर एक वक्त में दोनों को सीधा रह सकता है? हर किसी से यह संभव नहीं है।...हर किसी से क्या...बड़े-बड़े महारथियों से भी यह संभव नहीं है।

    टोकियो पहुँचते ही सुभाष ने चिट्ठी डाली थी:

    "प्रिय गैंकल, मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुमने फ्रेंच भाषा में बात की। तुम फ्रेंच भाषा में चल निकलोगी। प्लीज कॉण्टिन्यूइंग युअर फ्रेंच-इट इज़ वेरि इंपौटेंट। मैं अलग से पत्र में आई एम एन्क्लोजिंग हिअरविद टू फ्रेंच एड्रेसेज़ ।...बट डू नॉट बिगिन कॉरस्पॉन्डेंस इफ यू थिंक दैट यू विल नॉट हैव टाइम टू कॉन्टन्यू इट!... तुम पत्र पाते ही पत्र लिखना। परंतु बेहतर रहे यदि तुम फोन कर सको।

    एमिली शैंकल ने गहरी साँस ली और फिर पत्र पढ़ने लगी :

    शैंकल यह यात्रा जोखिम भरी होते भी मेरे विश्वास को तनिक भी नहीं डिगा सकी। संपूर्ण सूर्यग्रहण का-सा दृश्य था। मानो हम अंधी और कभी खत्म न होने वाली सुरंग में से गुजर रहे हों। ज्ञात भी अज्ञात हो चला था एक बार।

    नो डॉउट। अपनी पनडुब्बी गलती से सतह पर जा लगी थी और तत्क्षण मालवाहक जहाज़ ने उस पर आक्रमण शुरू कर दिया था। वह तो अपनी पनडुब्बी डुबकी ले गई। तब तक एक पल को स्वयं कैप्टिन को भी लगा था कि पनडुब्बी की इहलीला समाप्त। सबके चेहरे कांप उठे। परंतु मैं तटस्थ बना रहा - नो फिअर।

    मैडागास्कर से दक्षिण में चार सौ नॉटिकल मील पर मोजांबिक चैनल में जर्मन पनडुब्बी से जापानी पनडुब्बी में जाना था। समंदर उछाल ले रहा था। उछाल भी बेहद ऊँची थीं और निगलने वाली थी। फलतः सुबह तक इंतजार करना पड़ा और रातभर आबिद हसन मौत के भय से अंदर ही अंदर काँपता रहा। तब मैंने आबिद हसन से कहा था, मियां, तुम तो अल्लाह को अपना सबकुछ मानते हो और ऐसे छोटे-मोटे ख़तरों से घबराने लगते हो। तो वह क्या सोचेगा? यही न कि तुम्हें उस पर यकीन नहीं है।

    आबिद मेरा मुँह ताकता रह गया। मैंने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, तू अल्लाह पर यकीन रख। वह चाहेगा तो कभी भी अपने पास बुला सकता है। फिर उसके पास जाने में ख़ौफ़ कैसा!

    उधर समुद्र मनमानी पर आ गया था। वह ताण्डव कर उठा। और कब तक उसकी प्रतीक्षा करते। अन्ततोगत्वा हमें रबड़ के बेड़े पर आना पड़ा और तने के रेशों से बनी रस्सी से कांटा डाला। फिर उसे पकड़ कर या उस पर लटक कर आगे बढ़ने लगे। तब हमें यह चिंता कतई नहीं थी कि हम शार्क मछली के लिए सर्वप्रिय आहार भी हो सकते हैं। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और हम सही सलामत टोकियो जा पहुंचे।

    मैं तुम्हें यह पत्र यहाँ के मशहूर इंपीरियल होटल से लिख रहा हूँ। और यह बताने के लिए लिख रहा हूँ कि इरादे पाक हों, ज़मीर साथ हो और संशय पास न फटके तो गंतव्य तक पहुँचने के सुकून विषम परिस्थिति में भी मिलते रहते हैं।

    तुम चिंता मत करना। शेष फिर। अनिता को ढेर सारे आशीर्वाद और प्यार के साथ, तुम्हारा सुभाष।

    कार रुक गई। एमिली शैंकल का ध्यान छूटा। उसने पूछा, क्या बात हैं? चैंकिंग चल रही है। ड्राइवर ने कहा। एमिली गैंकल ने नहीं पूछा कि किस तरह की चैंकिंग चल रही है। वह जानती थी कि हिटलर कुछ न कुछ कराता रहता है।

    यों ही समय बीत रहा। यदाकदा अनिता कुलबलाई तो उसने उसे थपथपा दिया और वह शांत हो गई। उसके सामने फिर सुभाष आ खड़े हुए बंद गले का काला ऊनी कोट पहने। 8 फरवरी, 1943 की रात थी वह।

    सुभाष राइटिंग टेबल से उठकर हाथ में एक कागज़ लिए आए और बोले, प्रिये, कल सुबह हम कील के लिए रवाना हो जाएंगे। उस ज्ञानाज्ञान यात्रा पर, जिसके बारे में इस वक़्त कोई कल्पना नहीं की जा सकती।

    तो?..एमिली शैंकल ने बीच में ही टोकते हुए उनकी ओर देखा।

    तो यह है कि यह पढ़ो। इतना कहकर वह काग़ज़ सुभाष ने उसकी ओर बढ़ा दिया और स्वयं सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए।

    एमिली शैंकल ने उस कागज़ पर पूरी तरह निगाहें टिका दीं। कुछ क्षण बीत जाने के बाद कहा, शायद यह पत्र बंगला में है और आपने अपने एल्डर ब्रदर मि. शरद चंद्र बोस को लिखा है।

    यह तुमने कैसे जाना, शैंकल ।

    आपकी शक्ल से।

    मेरी शक्ल से! सुभाष ने आश्चर्य से एमिली शैंकल की ओर घूरा और फिर पूछा, वह कैसे?

    जादू से। कहकर एमिली शैंकल मुसकरा उठी।

    सच-सच बताओ, शैंकल।

    टेलिपेथी कहूं तो चलेगा। एमिली शैंकल ने हवा में तीर छोड़ा। उसकी आँखों में मुसकान लहरा गई स्कार्फ की तरह।"

    सुभाष चुप रह गए। वह जान गए कि उसका मन शरारत पर उतर आया है। यह देख कर एमिली शैंकल ने कहा, सुभाष, मैंने तुम्हें देखा हैं, जब तुम्हें कोई बात मुझसे छिपाकर लिखनी होती हैं और वह भी ख़ासकर अपने बड़े भाई को तब तुम इसी भाषा में लिखते हो और कहते हो इट इज़ लैंग्वेज ऑफ टैगोर...टैगोर मीन्स गीतांजलि, जस्ट लार्कसिलिंग।...कभी-कभी जब तुम अपनी मस्ती में आ जाते हो बंगला में गा उठते हो...काफी देर तक जब तक मैं यह नहीं कह देती हूँ कि तुम्हारी आवाज़ मधुर है, तुम अच्छा गा रहे हो। यह गीत मधर है। इसके भाव मधर हैं...आई मीन सो स्वीट एज़ य। तब तम टोकते हो और कहते हो, तुम तो ये भाषा नहीं जानती हो। फिर तुम कैसे कह रही हो कि...। मैं टोककर कहती, तुम्हें देखकर। तुम्हारे हृदय को सुनकर। तुम्हारी खूबसूरत आँखों में दिव्य प्रेम की लहरों को थिरकते हुए अनुभव कर |...सुभाष व्यक्ति की नेचर उसके हाव-भाव और उसके हृदय की अंतरंगता सब कुछ कह जाती है। वह भी जिसे वह व्यक्ति स्वयं भी नहीं जानता है।"

    सुभाष ने कहा, तुम ठीक कहती हो, शैंकल। मैं यात्रा पर निकल रहा हूं, वह ख़तरों से भरी है और अंतहीन हैं। कुछ भी हो सकता है। अगर मैं किसी ख़तरे का शिकार हो गया तो...।

    नहीं, कदापि नहीं। आपको कभी कुछ नहीं होगा, सुभाष । यह कहते हुए एमिली शैंकल ने अपनी कुरसी सुभाष के पास खींच कर उनका हाथ अपने हाथ में ले लिया और वह उसे सहलाने लगी

    शैंकल, यह मैं भी जानता हूँ कि तुम्हारे होते हए मुझे खरोच भी नहीं आएगी। परंतु यह पत्र मैंने अपने बड़े भाई शरद चंद्र बोस को लिखा है, जिनके प्यार और संरक्षण से मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ...अब वह समय आ गया है, जिसका मुझे इंतज़ार था। मुझे उनको अब यह बताना ज़रूरी हो गया है कि मैं शादीशुदा हूँ और मेरी एक लड़की भी है...अनिता।

    सुभाष, तुम यह सब क्यों कर रहे हो। मैं जैसी हूँ, मुझे वैसा ही रहने दो। मैं भाग्यवादी हूँ| आस्तिक भी हूँ। गॉड में मेरी अटूट आस्था है। बावजूद इसके कि वह है या नहीं। मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं अपने में उसको अनुभव कर लेती हूँ। एमिली शैंकल ने धीरे-धीरे कहा।

    शैंकल मैंने इस पत्र में यही तो लिखा है कि मेरे पीछे मेरी पत्नी और बेटी अनिता का ख्याल वैसे ही रखना जैसे आज तक मेरा रखते आए हो।...तुम्हें नहीं मालूम मेरे संबंध में यह प्रचार भी है कि मैं तब तक विवाह नहीं करूँगा, जब तक देश को आज़ाद नहीं करा लूंगा।

    क्या तुमने ऐसी शपथ ली है?

    तुम भी कितने छोटे दिमाग की हो कि मैं स्वयं कह रहा हूँ, ऐसा मैंने कभी नहीं कहा है। इस बात के लिए भी यह प्रमाण ज़रूरी है। फिर मेरा भरा-पूरा परिवार है। तुम मेरी पत्नी हो। तो तुम्हारा और हमारी संतान का मेरे परिवार में , प्रवेश शान से हो। दुनिया जाने। कोई गलतफहमी और रूमर सक्रिय नहीं हो सके। सुभाष भावुक हो चले थे और उनका स्वर भारी हो गया था।

    एमिली शैंकल हतप्रभ रह गई थी। वह सोच नहीं पा रही थी कि क्या कोई व्यक्ति इतना पवित्र और नेक हो सकता है! वह उसके अस्वस्थ होने की न्यज से हिल जाते थे और दवाओं के नाम से लेकर डॉक्टर को दिखला कर उन्हें तुरंत सूचना देने के लिए ताकीद कर देते थे।

    वह ठंड की गहरी रात थी। दीवार घड़ी बंद पड़ी थी। उसे उनके साथ बच्ची को लेकर जाना पड़ा था। पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था और बारंबार बिजली कड़क रही थी। अनिता को बुखार आ गया था और उसका शरीर ठंड की पकड़ में आ चुका था। उसका सारा शरीर टूट रहा था और जुकाम शुरू हो गया था। सुभाष उस रात देरी से आए थे। आते ही उसकी सेवा में लग गए। पूरी रात अनिता को लिए बैठे रहे। सुबह उन्हें फिर मीटिंग में जाना था। अनेक बार कहा कि वह सो जाएं, परंतु वह टस से मस नहीं हुए।

    सुभाष वहाँ से लौटते हुए सुलेयकर वनों को दिखाते ले जाना चाहते थे, जहाँ ऊंचेऊंचे देवदारू के वृक्ष थे और थे वहाँ की शोभा मृगशंग। वहाँ अट्ठाईस सींगों वाला मृगशृंग होता था। दूर-दूर से उन्हें देखने के लिए लोग आते रहते थे। वह क्या तेज़ चौंकड़ी भरता है। वह दृश्य विलक्षण होता था। उसी के कारण वह वन ‘पानी प्रॉत्स’ यानी श्रीमान् गौरव से जाना जाता है। उन्हें वहाँ शिकार नहीं करना था। सिर्फ उसे वह दृश्य दिखलाना था।

    सुभाष कह रहे थे, अब शीघ्र ही तुम स्वतंत्र इंडिया में जाओगी। सारा परिवार तुम्हें अपने बीच पाकर गद्गद हो उठेगा। तुम जान सकोगी कि मेरी माँ तुम पर और अपनी लाड़ली पोती पर कैसे जान निछावर करती है।...भारतीय परंपरा में वधू का क्या महत्व है? वास्तव में तब तुम्हें अनुभव होगा कि तुम क्या से क्या बन गई हो!

    एमिली शैंकल के सामने एक नई दुनिया घूम गई, जिसे जानने की उसके मन में हलकी-सी जिज्ञासा हुई। वह अत्यंत भावुक हो उठी। तभी अनिता कुलबुलायी। उसने उसे थपथपाना शुरू किया। अचानक हलके से ब्रेक के साथ कार रुक गई। ड्राइवर बाहर आया। उसने कार का गेट खोला।

    एमिली गैंकल अनिता को कंधे से चिपकाए बाहर आई, नीचे झुकते हुए।

    कार चली गई। वह आगे बढ़ गई घर की ओर। घर के पास आने पर व्यक्ति कितना निश्चिंत और कितना सहज होने लगता है!

    एमिली शैंकल ने आज मार्केट से दो पुस्तकें खरीदी थीं। उनमें से एक थी...लेजंड अबाउट बुद्धा द लाइफ। उस पर बुद्ध का चित्र अत्यंत आकर्षक, गंभीर और सौम्य था, साक्षात् ग्रीक देवताओं की तरह! इसी के साथ वह घर में दाखिल हो गई।

    2

    ऑस्ट्रिया पहले की अपेक्षा अब राजनीतिक चर्चा के केंद्र में अपनी महत्ता खोता जा रहा था। यों तो ऑस्ट्रियन-जर्मन में जर्मनों का दबदबा था। पहले भी हैंन्सवर्ग साम्राज्य जर्मनों के कारण ही आबाद और खुशहाल था। दरअसल ऑस्ट्रिया में अनेक जातियाँ थीं, जबकि जर्मनी उससे छोटा था, परंतु उसके वाशिंदे उसी देश के थे। एमिली शैंकल लैमवर्ग, प्रेग वियाना और बुडापेस्ट होते हुए लौटी थी। वियाना में जेक जन की बहुतायत हो चली थी। उधर पैन-जर्मन आंदोलन जोकि कभी क्रिश्चियन सोशलिस्ट पार्टी के जन आंदोलन से मतभेद बनाए था, अब हिटलर के सामने नत था। अब तो सबको हिटलर की लाठी से हाँका जा रहा था।

    इसी समय अनिता रोने लगी। वह उसे थपथपाने लगी। उसके सामने एक हृष्ट-पुष्ट, मज़बूत कद काठी का नवयुवक बैठा हुआ था। उसने बिना पूछे उसे अपना नाम बताया था कि वह हर हैरर है और वह ड्यूचेस की एक सभा को संबोधन देकर लौट रहा है।

    एमिली शैंकल चुप रही। उसने अनिता को और कलेजे से चिपका लिया।

    तुम ऑस्ट्रियन हो ना। नाम?

    एमिली शैंकल। जन्म ऑस्ट्रिया में, पर अब रहते हैं हम जर्मनी में।

    क्या लगता है?

    किस बारे में?

    हिटलर का जीत अभियान जारी रहेगा या...।

    मुझे राजनीति में रूचि नहीं है।

    या उसके डर के कारण मुँह पर पाबंदी लगा रखी है।

    एमिली शैंकल चुप बनी रही, क्योंकि हर हैरर के इरादे उसे अच्छे नहीं लगे।

    तुम रेप, समझती हो। सरे आम रेप! वह भी यहूदियों के साथ। उसने आँख बंद करके कहा।

    तुम क्या चाहते हो?

    तुम शादीशुदा हो या तलाकशुदा।

    शादीशुदा-माई हसबैंड इज़ नेताजी सुभाषचंद्र बोस।

    एक इंडियन। गुलाम देश का। तुमने उसे क्यों पसंद किया?

    मुझे लगता है, हमारी तुम्हारी दिशाएं भिन्न हैं। तो..? इस बार हर हैरर का लंबा चेहरा, उसके गाल की उभरी हुई हडडियां और हलके से कटा हुआ निचला होंठ सख़्त हुआ।

    वह जरा कसमकसाया। वह कुछ बोला नहीं। खिड़की से बाहर देखने लगा।

    रात थी। ट्रेन में बहुत कम लोग थे। वह अनेक सिरफिरे जर्मन नवयुवकों की काली करतूतों के बारे में सुन चुकी थी जो गैर-जर्मन पर किसी सीमा तक अत्याचार करने में झिझकते नहीं थे। तभी अनिता कुलबुलाई।

    हर हैरर का तनिक कठोर स्वर था, तुमने एक गुलाम देश के आदमी को पसंद किया। लगता है, तुम में शुद्ध खून नहीं बहता।

    मिस्टर हर, अब तुम सीमा पार कर रहे हो। एमिली शैंकल के स्वर में हलकी-सी तल्खी थी। उसने अनिता को पुनः सहलाया। परंतु वह मानी नहीं, ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।

    अब एमिली शैंकल क्या करे। वह उसे अपना दूध कैसे पिलाए! हारकर उसने खिड़की की तरफ मुड़ना उचित समझा। फिर उसने चेस्टर के बटन खोलकर धीरे से अनिता के मुँह में अपना बोबा दे दिया। थोड़ी ही देर में वह शांत हो गई। एमिली शैंकल ने गहरी साँस भरी।

    परंतु हर हैरर की काँइयाँ दृष्टि उसकी पीठ को पार करती हुई वहाँ आ ठहरी

    थी, जहाँ उसका बोबा अनिता चूस रही थी।

    उसके ख्यालों में उसकी माँ आ गई। वह कहने लगी, शैंकल, तुमसे कितना मना किया था कि अनजान व्यक्ति से दोस्ती बढ़ाकर उसे किसी रिश्ते की शक्ल देना एकदम पागलपन है।...और उसमें भी वह गुलाम देश का आदमी है। उसका मान-सम्मान कभी भी पाँवों तले रौंदा जा सकता है और यदि रौंदा भी गया हो तो कोई ताज्जुब नहीं।

    प्लीज़ माँ, उसके प्रति इतना कठोर मत हो। वह नेक इनसान हैं।

    तुझे अपने यहाँ का कोई लड़का पसंद नहीं आया?

    मां, प्लीज़, शांत रहो।

    तुझे मनमानी करने दूं।

    समझो, माँ, सुभाष मेरा पहला प्यार है। उसके ख्यालात में तंगदिली कतई नहीं है। वह अपने देश को स्वाधीन कराने की तमन्ना लिए जी-तोड़ संघर्ष कर रहा है। पहली बार मैं उससे वियाना में मिली थी - जून 1934 में। तब वह दि इंडियन स्ट्रगल पुस्तक लिख रहा था।

    जानती हूँ, तुमने उस पुस्तक के लिखने में उसकी मदद की थी और उसने उस पुस्तक के प्रिफ्रेंस में केवल तुम्हारा नाम जोड़कर तुम्हें धन्यवाद ज्ञापित किया है। मैं और तुम्हारे पापा उस पुस्तक को पढ़ चुके हैं।.. परंतु तुम इंडिया और उसकी स्ट्रगल को क्या जानती हो? नथिंग। फिर तुमने उसमें क्या सहायता की होगी? आई डोंट नो। तुम इमोशनल मत बनो। अपनी ज़िदंगी के साथ खिलवाड़ मत करो। डू यू नो अबॉउट फर्स्ट लव!..फॉरगेट हिम।"

    ममा, तुम मुझको लेकर अपने को परेशान मत करो। मैं इंडिया के स्ट्रगल के बारे में बहुत कुछ जान चुकी हूँ| इस किताब के अलावा भी सुभाष से बहुत-सी जानकारी पा चुकी हूँ। मेरे मन में उन्हें लेकर भ्रम नहीं है। वह एक पवित्र आत्मा है। सत्यवादी। कर्मठ। पारदर्शी। सहज। वह भी मुझसे कह चुका था, शैंकल, मेरा जीवन खतरों से भरा है। मुझे आगे के कुछ पल का भी पता नहीं, क्या से क्या हो जाए! मैं अपने देश की आज़ादी चाहता हूँ। मेरे लिए शेष सब गौण है।"

    फिर भी, माई स्वीट बेबी...।

    फिर एमिली शैंकल ने वहाँ रुकना ठीक नहीं समझा। बहुत दबाव आए। रुकावटें खड़ी की गई। धमकी तक मिलीं, परंतु शादी हो गई और वह भी बिना चर्च गए, कोर्ट गए। न अन्य किसी रीति रिवाज़ की शरण में गए। एक पार्टी हुई। चंद दोस्त, ममी-डेडी तथा अन्य रिलेटिव्स । अब जब वह जोखिम और ख़तरे भरी यात्रा पर निकल ही चुके हैं तब?...वह 26 दिसंबर, 1937 थी। कोई भी पब्लिक अनाउंसमेंट इस न्यूज से उथल-पुथल कर सकता था। इसलिए चुपचाप बिना किसी शोरगुल के शादी हो गई।.फिर प्यारी-सी बच्ची अनिता भी आ गई। और फिर वह उन दोनों को छोड़कर अज्ञात यात्रा पर भी निकल गया, तब उसकी माँ से नहीं रहा गया। वह कहने लगी, अब क्या सोचती है, मेरी बच्ची। वह तो चला गया।

    क्या सोचना, ममी! अनिता 29 नवंबर, 1942 को वियाना में जन्मी है। तब से मैंने उसके साथ वक़्त काटना और खुश रहना सीख लिया है।

    अब सुभाष यहाँ नहीं है।

    "वह युद्ध में है।

    जापान ने उन्हें मोहरा बना लिया है। वास्तव में उसे इंडिया की आजादी से क्या लेनादेना। फिर युद्ध का क्या, कुछ भी हो सकता है।

    कम से कम आप उनका बुरा नहीं सोचें। मैंने अपने को हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार कर लिया है, ममी। कृपा कर आप इस बारे में सोचना बंद कर दें। एमिली शैंकल ने दो टक अपनी बात कह दी।

    देखो बेटी, मैं तेरी माँ हूं। इस नाते तेरे अच्छे बुरे का ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी बनती है, मैं चाहती हूं...।

    वह मैं नहीं चाहती, माँ ।

    तुझे चाहना चाहिए, मेरी बेटी।

    जो मुझे चाहना चाहिए, वह मैं जानती हूं, ममी। अधिक से अधिक क्या होगा कि...।"

    आगे एक शब्द नहीं, शैंकल।

    अचानक एमिली शैंकल ने सुना कि तेज़ और सख्त आवाज़ उस कंपार्टमेंट में गूंजने लगी। उसने आवाज की दिशा में देखना चाहा तो हर हैरर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, यह एक यहूदी लड़की है।

    तो...।

    वह अधेड़ आदमी जर्मन नसल का है।

    तो? एमिली शैंकल अंदर ही अंदर हिल गई।

    कंपार्टमेंट खाली-सा। और फिर यहूदियों के साथ की जाने वाली हर ज़्यादती कम। अब पहले वह रेप करेगा और फिर चलती ट्रेन में से उसे धक्का दे देगा ताकि एक यहूदी कम हो।...पर तुम तो यहूदी नहीं हो, ऑस्ट्रियन हो। हर हैरर के डरावने चेहरे पर कुटिल मुसकान आ ठहरी।

    एमिली गैंकल थूक गटक कर रह गई। उसने थोड़ा साहस बटोर कर कहा, यहूदी भी तो इनसान है।

    ‘नहीं’...यहूदियों का साम्यवाद व्यक्तिवाद के विरुद्ध है। हर हिटलर यहूदियों के विरुद्ध उठाए इस आंदोलन को प्रभु का आदेश मानता है।"

    मानता था मि. हर।

    मानता है। हर हैरर ने दृढ़विश्वास के साथ कहा। कुछ रुककर वह आगे कहने लगा, हमारे महान हिटलर ने जर्मन सम्राट बिलियम को खूब समझाया था। फिर भी उसने साम्यवाद के पैरवी करने वाले खतरनाक और मक्कार यहूदी नेताओं को अपना परामर्शदाता और मार्गदर्शक बनाया था। तब ऑस्ट्रियन शासन-व्यवस्था पर हैंड्सवर्ग के उत्तराधिकारियों का कब्जा

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