हिंदू अंत्येष्टि एवं संस्कार विधि और मोक्ष युवा पुरोहित द्वारा
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यह स्वयं सहायता पुस्तक बहुत सरलता से समझाती है कि हिंदू होने का क्या अर्थ है? हिंदुओं में अंतिम संस्कार के संबंध में बड़े पैमाने पर हिंदू एनआरआई और हिंदुओं की दुविधा और इसकी व्याख्या। यह स्व-सहायता पुस्तक व्यवस्थित हिंदू अंत्येष्टि संस्कार, कपाल क्रिया, अशौच काल, पिंड दान, दश गात्र, मालिन षोडशी, मध्यम षोडशी, उत्तम षोडशी, शय्या दान, एकादश, द्वादश, और तेरहवें दिन शांति पाठ करने की प्रक्रिया की व्याख्या करती है। अंतिम संस्कार से जुड़ी कई अन्य प्रक्रियाएं।
इसमें विभिन्न श्राद्ध क्रियाओं का वर्णन है और यह भी बताया गया है कि इसे स्वयं कैसे करें।
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हिंदू अंत्येष्टि एवं संस्कार विधि और मोक्ष युवा पुरोहित द्वारा - शाम सुंदर बाली
अध्याय - 1
कृष्णा देवी स्टॉकहोम स्वीडन (नाम जानबूझकर प्राइवेसी के लिए छुपाया गया है )।
मेरा नाम कृष्णा देवी है । मैं पिछले बीस वर्षों से स्वीडन में रहती हूँ और यहाँ की एक बहुत प्रसिद्ध टेलीकॉम कंपनी में कार्यरत हूँ। मेरा यहाँ एक अच्छा भला परिवार है और मेरे काम को मेरी कंपनी काफी सराहती है । मेरा एक भाई और भी है जो कि इंग्लैंड में रहता है । कुछ महीनों पहले मेरे माता पिता मुझ को विजिट करने आये थे । मैंने उनका बहुत स्वागत सत्कार किया । कुछ हफ़्तों पहले, स्वीडन में ही एक मोटर कार में जाते हुए उन दोनों की दुर्भाग्यवश रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी । मैं उनका संस्कार स्वीडन में ही करना चाहती थी लेकिन स्वीडन और स्टॉकहोम में कोई ऐसी सरकारी संस्था न होने के कारण मैंने उन दोनों मृतकों के शव दिल्ली भेजने का फैसला किया । हम दोनों के शव को हिंदुस्तान ले कर गए और उनका दाह संस्कार करने के लिए अपने सम्बन्धियों के साथ शमशान घाट ले कर गए । मैं यह देख कर हैरान थी कि दाह संस्कार करने की कोई भी नियमित प्रक्रिया नहीं थी । कोई भी प्रार्थना या शांति पाठ नहीं किया गया । मृतक की अंतिम शांति और मोक्ष के लिए कोई प्रार्थना भी नहीं की गयी । शमशान घाट पर डोम, शमशान घाट का अटैंडेंट जो की मैले कुचैले कपडे पहने हुए था और उससे शराब की बदबू आ रही थी, जैसे कहता गया हम करते गए । मैं उसकी बातों में लालच साफ़ देख रही थी ।
हद तो तब हो गयी जब हम श्राद्ध करने और गंगा में अस्थियां विसर्जन के लिए हरिद्वार गए । वहां पंडित कहे जाने वाले लोगों की तो लालच की हद ही हो गयी थी । सभी पंडित आपस में छीना झपटी कर रहे थे, और हमारा पुरोहित बनने के लिए जोर लगा रहे थे । बहुत मुश्किल से हमने एक पुरोहित को शांति पाठ के लिए बोला, पंडित मुँह में ही जल्दी जल्दी कुछ संस्कृत मन्त्रों का पाठ करने लगे जो कि हमको बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था। वह जैसे कहते गए हम करते गए और हमने बहुत सारे पैसे दे कर उनसे छुटकारा पाया । वह सोने और चांदी की भी मांग कर रहे