Gazal Aise Kahen : ग़ज़ल ऐसे कहें
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पुस्तक के दो भाग हैं - पहले भाग में ग़ज़ल विधा का व्याकरण व दूसरे भाग में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले काफ़िये की सूची है।
मुझे उम्मीद है कि यह पुस्तक सभी शायरों व ग़ज़लकारों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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Gazal Aise Kahen - Dr. Vijay Mittal
ग़ज़ल ऐसे कहें
डॉ. विजय मित्तल
eISBN: 978-93-5599-041-9
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2022
Gazal Aise Kahen
By - Dr. Vijay Mittal
अनुक्रम
भूमिका
ग़ज़ल व्याकरण
क़वाफ़ी
फ़र्क़ (5)
फलक़ (24)
इद्राक (29)
मुआफ़िक़ (15)
तफ़्रीक़ (18)
उफुक (7)
मशकूक (13)
नैरन्ग (9)
अयाग (5)
तंज़ (7)
कज (12)
अर्ज़ (7)
फ़राज़ (57)
आरिज़ (10)
हफ़ीज़ (5)
जुज़ (7)
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तीर: बख़्त (6)
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फ़ूज़ूं (21)
दून (10)
सर्फ़ (5)
असफ़ (15)
अस्लाफ़ (17)
मोतरिफ़ (14)
हरीफ़ (13)
तसररुफ़ (9)
मसरूफ़ (9)
कर्ब (8)
मक्तब (34)
हिजाब (72)
रािग़ब (52)
तबीब (25)
तअस्सुब (8)
मंसूब (21)
शिकेब (8)
अज़्म (6)
अदम (56)
अहतिमाम (50)
आजिम (27)
नदीम (34)
अंजुम (10)
मक्दूम (16)
मोतबर (150)
अफ़गार (151)
मुनकिर (33)
मुनीर (40)
तसव्वुर (11)
मश्कूर (43)
गोर (7)
अज़ल (46)
पामाल (54)
मुस्तक़िल (36)
क़तील (36)
तग़ाफ़ुल (16)
मक़बूल (13)
सैल (5)
सरकश (18)
ताबिश (33)
दरवेश (7)
सितमकोश (21)
अबस (15)
इख़्लास (33)
बेहिस (16)
तन्नफ़ुस (5)
जलीस (10)
नामूस (15)
बेलौस (5)
क़ुज़ह (16)
जलवागाह (30)
तश्रीह (19)
मक्रूह (9)
नासेह (7)
अन्दोह (5)
भूमिका
ग़ज़ल कहना एक कला है। सदियों से ग़ज़ल कही जा रही है और कही जाती रहेगी। इस किताब का मक़सद ग़ज़ल विधा को आम आदमी तक पहुँचाना है। मेरा मानना है कि जो भी व्यक्ति संवेदनशील है, जिसके दिल में कशिश है, कसक है, जिसमें व्यक्तिगत और आसपास के घटनाक्रमों से विचार उत्पन्न होते हैं, वह ग़ज़ल कह सकता है बशर्ते उसे ग़ज़ल व्याकरण का ज्ञान हो। मुझे यक़ीन है कि शे’र ( बैत, जानी हुई चीज़), जिससे ग़ज़ल बनती है और दोहा ऐसी विधाएँ हैं जो हमेशा प्रचलित रहेंगी क्यूँकि यही ऐसे विधाएँ हैं जिन के माध्यम से सिर्फ़ दो मिसरों में पूरी बात पुरअसर कही जा सकती है।
यह मेरा सौभाग्य है कि कुछ साल पहले जब मैने ग़ज़ल की दुनिया में क़दम रक्खा और ग़ज़ल की व्याकरण से अंजान होने के कारण मौजूं ग़ज़ल नहीं कह पा रहा था, प्रो. नारायण सिंह ग़ाफ़िल के संपर्क में आया जिन्होंने बहुत कम अरसे में मुझे ग़ज़ल विधा की व्याकरण व इसकी बारीकियों से अवगत कराया। उनका कहना था कि उनके ईजाद किए गये इस व्याकरण से न केवल कोई भी व्यक्ति 2-3 हफ़्तों में ग़ज़ल कहना सीख सकता है बल्कि आत्मनिर्भर भी हो सकता है, फिर उसे किसी इस्लाह, किसी उस्ताद की ज़रूरत नहीं।
अगर इस किताब के ज़रिए एक आम इंसान जिसने उर्दू, अरबी, फ़ारसी नियमित तौर पर नहीं भी सीखी है, मौजूं ग़ज़ल कहने लगे तो मक़सद पूरा हो जाएगा।
इस किताब के दो भाग हैं– पहले भाग में ग़ज़ल विधा की व्याकरण, तकनीक व बारीकियों को उजागर किया गया है और दूसरे भाग में ग़ज़ल कहने में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले क़ाफ़िये की सूची तैयार की गई है। यहाँ मैं स्पष्ट कर दूं कि यह सूची मुकम्मल है, मैं ऐसा कोई दावा नहीं करता क़ाफ़िये ऐसे चुने गये हैं जो ग़ज़ल कहने में अक्सर इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। ऐसेे क़ाफ़िए जो आम बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल होते हैं शामिल नहीं किए गये हैं क्यूँकि इस सूची का मक़सद एक शायर को उन क़ाफ़ियों से आश्ना कराना है जो एकदम से ज़हन में नहीं आते। आम क़ाफ़िये जानना तो किसी भी शायर से अपेक्षित है ही जैसे हिम्मत, नफ़रत, इज़्ज़त आदि। साथ ही वही क़ाफ़िये शामिल किए गये हैं जिनका हर्फ़ ए रवी (शब्द का आख़िरी अक्षर) हर्फ़ ए इल्लत (स्वर, वॉवेल, मुसव्वित) नहीं है क्यूँकि एसे क़ाफ़िये तो ढेरों मिल जाएँगे और इनकी सूची बनाना न केवल नामुमकिन है बल्कि बेकार भी जैसे यदि ग़ज़ल (साथिया– कुमार) का मतला (पहला शे’र) है -
बेवफ़ा बावफ़ा नहीं होता
वरना दुनिया में क्या नहीं होता
इस शे’र में बावफ़ा व क्या शब्दों से क़ाफ़िया तय हुआ है। जिस भी शब्द में आख़िरी अक्षर हर्फ़ ए इल्लत अलिफ़ है इस मतले का क़ाफ़िया हो सकता है जैसे दुआ, आसरा, फ़ासला आदि, ऐसे क़ाफ़ियों की कोई कमी नहीं। ऐसे क़ाफ़िए भी शामिल नहीं किए गये हैं जो 5 से कम थे क्यूँकि ग़ज़ल में कम से कम 5 शे’र लाज़िमी हैं। इस तरह 75 से ज़्यादा लफ्ज़ चुने गये जिनमें हर इक में 5 से 150 से भी ज़्यादा क़ाफ़िये मा’नी सहित शुमार हुए। जैसा कि आप जानते हैं दोहा विधा में भी क़ाफ़ियों का ज्ञान लाज़िमी है। पुस्तक में क़ाफ़ियों का क्रम हिन्दी वर्णमाला के अनुरूप है ताकि आसानी से ढूँढा जा सके।
प्रो. ग़ाफ़िल द्वारा ईजाद की गई ग़ज़ल व्याकरण की कुछ विशेषताएँ हैं जैसे कि जो शब्द घटक व बहर में इस्तेमाल किए गये हैं वे एक आम आदमी के समझने के लिए आसान हैं। साथ ही बहरों के नाम इतने आसान, अर्थपूर्ण व तर्कसंगत हैं कि बहर के नाममात्र से ही न केवल बहर के घटक के नाम परंतु उनका क्रम व अंक भी स्वयं ही उजागर हो जाते हैं जोकि पिंगल छन्द (पिंगल ऋषि 4000 BC) शास्त्र या ख़लीली अरूज़ में मुमकिन नहीं। साथ ही बहुत से ग़ज़लक़ार ख़लीली अरूज़ की पेचीदगी से घबरा कर बिना बहर ही ग़ज़ल कहने का प्रयास करते हैं जो समय की बर्बादी है। कुछ बहरें ऐसी हैं जो पिंगल छन्द शास्त्र व ख़लीली अरूज़ से मेल खाती हैं, उन्हें यथास्थान उजागर किया गया है।
पूरी किताब में यह प्रयास किया गया है कि आम आदमी किताब में इस्तेमाल की गई भाषा समझ सके। मुझे आशा है यह किताब ग़ज़ल कहने में उपयोगी सिद्ध होगी।
डॉ. विजय मित्तल
ग़ज़ल व्याकरण
ग़ज़ल अरब से चल कर ईरान होते हुए भारत पहुँची है। ईरान में फ़ारस नाम का एक प्रांत है