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किताबें कहती हैं
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किताबें कहती हैं

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About this ebook

मेरे ग़ज़ल संग्रह के बारे में आदरणीय शरद तैलंग जी के विचार-
जिस प्रकार कोई विमान पृथ्वी से उड़ान भरने के लिये पहले मंथर फिर तेज़ गति से हवाई पट्टी पर चलता है फिर एकाएक ऊपर उठते हुए आकाश को छूने लगता है, कल्पना जी की रचना प्रक्रिया भी कुछ इसी तरह की है जिसे हम लोग ज़मीन से उठकर आसमान को छूता हुआ देखते जा रहे हैं।

इनकी ग़ज़लों में विभिन्न विषयोँ की भरमार है जो इनकी समाज, देश, धर्म, राजनीति, पाखण्ड, अराजकता, भक्ति भाव, प्रदूषण, पर्यावरण, मानवीय रिश्तोँ, पर्व और न जाने कितने अनेक विषयोँ पर पाठकों को एक ज्ञान प्रदान करने वाली पाठशाला के समान प्रतीत होती है, जिन्हेँ पढकर ऐसा लगता है कि साहित्य अर्थात सबके हित का असली मंत्र इन ग़ज़लों में ही समाया है। इनकी ग़ज़लों के किसी शे’र को यहाँ उद्धृत करना मेरे लिये अत्यंत कठिन कार्य प्रतीत हो रहा है क्योंकि ग़ज़लोँ मे इतनी विविधता है कि मुँह से सिर्फ ‘वाह वाह’ ही निकल सकती है। आप इन्हें कोई भी भले वह नीरस ही क्यों न हो, विषय दे दीजिये उस पर इनकी कलम एक सरस काव्य रचना का निर्माण कर देती है।

अत्यंत अल्प समय में ग़ज़ल जैसी विधा की बारीकियों को आपने जिस प्रवीणता से आत्मसात किया तथा उन्हें समझा है वैसी निपुणता तो आज के दौर के कई जाने माने ग़ज़लकारों में भी नहीं पाई जाती है। यह बात सिर्फ इनकी ग़ज़लों के बारे में ही नहीं बल्कि साहित्य के अन्य विविध छंदों जैसे, गीत, नवगीत, दोहे, कुण्डलिया आदि पर भी इनकी कलम कमाल करती है।
इनकी रचनाओँ मेँ भाषा के प्रयोग, छन्दों के कथ्य तथा शिल्प पर पैनी पकड, ज्ञान वर्धक एवं सहज भाषा, तथा उद्देश्यपूर्ण विषय पाठकोँ को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि हम किसी संत का प्रवचन सुन रहे हैं।

Languageहिन्दी
Release dateSep 9, 2019
ISBN9780463728987
किताबें कहती हैं
Author

कल्पना रामानी

६ जून १९५१ को उज्जैन में जन्म। कंप्यूटर से जुड़ने के बाद रचनात्मक सक्रियता। कहानियाँ, लघुकथाओं के अलावा गीत, गजल आदि छंद विधाओं में रुचि.लेखन की शुरुवात -सितम्बर २०११ सेरचनाएँ अनेक स्तरीय मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही अंतर्जाल पर लगातार प्रकाशित होती रहती हैं।*प्रकाशित कृतियाँ-१)नवगीत संग्रह- “हौसलों के पंख”(२०१३-अंजुमन प्रकाशन)३)गीत-नवगीत- संग्रह-“खेतों ने ख़त लिखा”(२०१६-अयन प्रकाशन)४)ग़ज़ल संग्रह- संग्रह मैं ‘ग़ज़ल कहती रहूँगी’(२०१६ अयन प्रकाशन)*पुरस्कार व सम्मान-पूर्णिमा वर्मन(संपादक वेब पत्रिका-“अभिव्यक्ति-अनुभूति”)द्वारा मेरे प्रथम नवगीत संग्रह पर नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित-कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब में प्रकाशित कहानी 'कसाईखाना' कमलेश्वर स्मृति पुरस्कार से सम्मानित- कहानी 'अपने-अपने हिस्से की धूप" प्रतिलिपि कहानी प्रतियोगिता में प्रथम व लघुकथा "दासता के दाग" के लिए लघुकथा प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित*सम्प्रतिवर्तमान में वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका- अभिव्यक्ति-अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत।

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    किताबें कहती हैं - कल्पना रामानी

    अगर कहीं भी बंधु

    चिरागों पर चर्चा हो

    भव-भूतल के बिसरे

    कोनों पर चर्चा हो

    व्यर्थ विलाप निराशा

    रुदन विसर्जित करके

    लक्ष्य-साधना कर्म

    हौसलों पर चर्चा हो

    सुमन सभी खुश-रंग

    सुरभि देते बगिया को

    नहीं ज़रूरी सिर्फ

    गुलाबों पर चर्चा हो

    नाम हमारा भव में

    चर्चित हो न हो मगर

    चाह कलम के अमृत-

    भावों पर चर्चा हो

    सार जहाँ हो ज्ञान-

    सिंधु की बूँद-बूँद में

    ऐसी सरल सुभाष्य

    किताबों पर चर्चा हो

    छोड़ो भी अब नीरस

    जीवन का नित रोना

    रसमय गीत ग़ज़ल

    कविताओं पर चर्चा हो

    बेदम हो जब भूख

    रोटियाँ घर-घर पहुँचें

    तभी आसमाँ चाँद-

    सितारों पर चर्चा हो

    सदी कह रही सुनो

    ‘कल्पना’ समय आ गया

    बेटों से रुख मोड़

    बेटियों पर चर्चा हो

    भोली बिटिया

    मेरी प्यारी भोली बिटिया।

    घर भर की हमजोली बिटिया।

    चहक चमन की महक सदनकी

    कोयलिया की बोली बिटिया।

    पर्वों को जीवंत बनाती

    आँगन सजा रँगोली बिटिया।

    लँगड़ी टप्पा खो-खो रस्सी

    खेल-खेल की टोली बिटिया।

    गली-मुहल्ले बाँटा करती

    झर-झर हँसी-ठिठोली बिटिया।

    देव-दैव्य से माँग दुआएँ

    ले आती भर झोली बिटिया।

    कड़ुवाहट का नाम न लेती

    खट-मिट्ठी सी गोली बिटिया।

    नाज़ ‘कल्पना’ हर उस घर को

    जिस घर माँ! पा! बोली बिटिया।

    बेटी बचाएँ

    ज़मीं से उठाकर

    फ़लक पर बिठाएँ।

    अहम लक्ष्य हो

    आज बेटी बचाएँ।

    जहाँ घर-चमन में

    चहकती है बेटी

    बहा करतीं उस घर

    महकती हवाएँ।

    क़तल बेटियाँ कर

    जनम से ही पहले

    धरा को न खुद ही

    रसातल दिखाएँ।

    बहन-बेटी होती

    सदा पूजिता है

    सपूतों को अपने

    सबक यह सिखाएँ।

    पढ़ाती जो सद्भाव

    का पाठ जग को

    उसे बंधु! बेटे

    बराबर पढ़ाएँ।

    न हो जननियों अब

    सुता-भ्रूण हत्या

    वचन देके खुद को

    अडिग हो निभाएँ।

    है सच कल्पना बेटी

    बेटों से बढ़कर

    कि अब भेद का भूत

    भव से भगाएँ।

    आज की बेटी

    नई सदी की हवा

    बंधुओं ऐसी होगी

    बेटों से भी धनी

    आज की बेटी होगी।

    मिटा माथ से अब

    अपने ‘अबला’ का लेबल

    दुर्गा काली या ‘झाँसी-

    की रानी’ होगी।

    ओढ़ आत्म-विश्वास

    छोड़ सजधज के जेवर

    कुर्सी पर काबिज हक़-

    से अब नारी होगी।

    बोलेंगे हड़ताल-अनशन

    बेटी के हक़ में

    समाचार-पत्रों पर

    ‘बिटिया’ छाई होगी।

    कुत्सित नज़रें यदि

    बिटिया को छू भी लें तो

    उन नज़रों को अपनी

    आब गँवानी होगी।

    करें समर्पित बेटी को

    यह सदी ‘कल्पना’

    नित्य कलम को नूतन

    गजल रचानी होगी।

    शक्त कहानी- बिटिया

    नई सदी लिक्खेगी

    शक्त कहानी ‘बिटिया’।

    राज करेगी युगों

    युगों तक प्यारी बिटिया।

    नयन-नेह से उसके

    महकेगा हर आँगन

    चाहेंगे अपने घर में

    सब रानी बिटिया।

    पुरस्कार सम्मान

    चरण चूमेंगे आकर

    अंबर का ध्रुव तारा

    बन चमकेगी बिटिया।

    गर्वित होंगे पालक

    सुन उसकी यश-गाथा

    शीश उठाकर कहा

    करेंगे ‘मेरी बिटिया’।

    दाम बढ़ा लेंगे निज तब

    कागज़-स्याही जब

    काव्य-ग्रंथ-पृष्ठों में

    छाई होगी ‘बिटिया’।

    गीत-छंद बेटी का

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