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Kaamkala Kali Dhyanam कामकला काली ध्यानम्
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
Kaamkala Kali Dhyanam कामकला काली ध्यानम्
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
ratings:
Length:
10 minutes
Released:
May 20, 2023
Format:
Podcast episode
Description
Kaamkala Kali Dhyanam कामकला काली ध्यानम् ★
उद्यद्घनाघनाश्लिष्यज्जवा कुसुम सन्निभाम् ॥ मत्तकोकिलनेत्राभां पक्वजम्बूफलप्रभाम् । सुदीर्घप्रपदालम्बि विस्रस्तघनमूर्द्धाजाम् ॥ ज्वलदङ्गार वच्छोण नेत्रत्रितयभूषिताम् । उद्यच्छारदसंपूर्णचन्द्रकोकनदाननाम् ॥ दीर्घदंष्ट्रायुगोदञ्चद् विकराल मुखाम्बुजाम् । वितस्तिमात्र निष्क्रान्त ललज्जिह्वा भयानकाम् ॥ व्यात्ताननतया दृश्यद्वात्रिंशद् दन्तमण्डलाम् । निरन्तरम् वेपमानोत्तमाङ्गा घोररूपिणीम् ॥ अंसासक्तनृमुण्डासृक् पिबन्ती वक़कन्धराम् । सृक् कद्वन्द्वस्रवद्रक्त स्नापितोरोजयुग्मकाम् ॥ उरोजा भोग संसक्त संपतद्रुधिरोच्चयाम् । सशीत्कृतिधयन्तीं तल्लेलिहानरसज्ञया ॥ ललाटे घननारासृग् विहितारुणचित्रकाम् । सद्यश्छिन्नगलद्रक्त नृमुण्डकृतकुण्डलाम् ॥ श्रुतिनद्धकचालम्बिवतंसलसदंसकाम । स्रवदस्रौघया शश्वन्मानव्या मुण्डमालया ॥ आकण्ठ गुल्फलंबिन्यालङ्कृतां केशबद्धया । श्वेतास्थि गुलिका हारग्रैवेयकमहोज्ज्वलाम् ॥ शवदीर्घाङ्गुली पंक्तिमण्डितोरः स्थलस्थिराम् । कठोर पीवरोत्तुङ्ग वक्षोज युगलान्विताम् ॥ महामारकतग्राववेदि श्रोणि परिष्कृताम् । विशाल जघना भोगामतिक्षीण कटिस्थलाम् ॥ अंत्रनद्धार्भक शिरोवलत्किङ्किणि मण्डिताम् । सुपीनषोडश भुजां महाशङ्खाञ्चदङ्गकाम् ॥ शवानां धमनीपुञ्जैर्वेष्टितैः कृतकङ्कणाम् । ग्रथितैः शवकेशस्रग्दामभिः कटिसृत्रिणीम् ॥ शवपोतकरश्रेणी ग्रथनैः कृतमेखलाम् । शोभामानांगुलीं मांसमेदोमज्जांगुलीयकैः ॥ असिं त्रिशूलं चक्रं च शरमंकुशमेव च । लालनं च तथा कर्त्रीमक्षमालां च दक्षिणे ॥ पाशं च परशुं नागं चापं मुद्गरमेव च । शिवापोतं खर्परं च वसासृङ्मेदसान्वितम् ॥ लम्बत्कचं नृमुण्डं च धारयन्तीं स्ववामतः । विलसन्नूपुरां देवीं ग्रथितैः शवपञ्जरैः ॥ श्मशान प्रज्वलद् घोरचिताग्निज्वाल मध्यगाम् । अधोमुख महादीर्घ प्रसुप्त शवपृष्ठगाम् ॥ वमन्मुखानल ज्वालाजाल व्याप्त दिगन्तरम् । प्रोत्थायैव हि तिष्ठन्तीं प्रत्यालीढ पदक्रमाम् ॥ वामदक्षिण संस्थाभ्या नदन्तीभ्यां मुहुर्मुहुः । शिवाभ्यां घोररूपाभ्यां वमन्तीभ्यां महानलम् ॥ विद्युङ्गार वर्णाभ्यां वेष्टितां परमेश्वरीम् । सर्वदैवानुलग्नाभ्यां पश्यन्तीभ्यां महेश्वरीम् ॥ अतीव भाषमाणाभ्यां शिवाभ्यां शोभितां मुहुः । कपालसंस्थं मस्तिष्कं ददतीं च तयोर्द्वयोः ॥ दिगम्बरां मुक्तकेशीमट्टहासां भयानकाम् । सप्तधानद्धनारान्त्रयोगपट्ट विभूषिताम् ॥ संहारभैरवेणैव सार्द्धं संभोगमिच्छतीम् । अतिकामातुरां कालीं हसन्तीं खर्वविग्रहाम् ॥ कोटि कालानल ज्वालान्यक्कारोद्यत् कलेवरम् । महाप्रलय कोट्यर्क्क विद्युदर्बुद सन्निभाम् ॥ कल्पान्तकारणीं कालीं महाभैरवरूपिणीम् ।
महाभीमां दुर्निरीक्ष्यां सेन्द्रैरपि सुरासुरैः ॥ शत्रुपक्षक्षयकरीं दैत्यदानवसूदनीम् । चिन्तयेदीदृशीं देवीं काली कामकलाभिधाम् ॥ भावार्थ (कामकलाकाली का ध्यान) – यह देवी उगते हुए (सूर्य के साथ संश्लिष्ट रक्तवर्ण वाले) बादल के समान, सघन परस्पर संश्लिष्ट जवाकुसुम के समान, मत्त कोकिल के नेत्र के समान, पके हुए जामुन के फल की कान्तिवाली है । इसके बाल लम्बे, पैरों तक लटकने वाले बिखरे हुए तथा सघन हैं । जलते हुए अङ्गार के समान लाल रंग के तीन नेत्रों से यह विभूषित है । इसका मुख उगते हुए शारदीय पूर्णचन्द्र तथा लाल कमल के समान है । दो लम्बे दाँत बाहर ऊपर की ओर निकलने से विकराल मुखकमल वाली बतलायी गयी हैं । एक बीत्ता बाहर निकली हुई लपलपाती जीभ के कारण यह भयानक है । मुख के खोल देने के कारण बत्तीसो दाँत दिखलायी दे रहे हैं । इसका शिर निरन्तर काँप रहा है अतएव घोर रूप वाली है । गले में लटके हुए नरमुण्ड से निकलने वाले रक्त को पीती हुई अतएव वक्रकन्धे वाली कही गयी हैं । इसके दोनों स्तन दोनों जबड़ों से स्रवित होने वाले रक्त से उपलिप्त हैं । उसके विस्तृत स्तनों से लिपट कर रक्त की धारा गिर रही है । उस रक्त को लेलिहान जिह्वा से सीत्कार के साथ वह पी रही है । ललाट पर मनुष्य के सघन रक्त से लालरंग का चित्र बनायी हुई हैं । तत्काल कटे हुए अतएव गिरते हुए रक्त वाले नरमुण्ड का उसने कुण्डल धारण किया है । कानों में बँधे हुए बालों से लटकने वाला अवतंस (अंगूठी के आकार वाला कर्णाभूषण) कन्धे तक लटक रहा है । (शिर के) बालों से परस्पर बँधे हुए नरमुण्डों की माला, जिससे कि निरन्तर रक्त टपक रहा है, कण्ठ से लेकर गुल्फ तक लटक रही है । इस माला से वे अलङ्कृत हैं । श्वेतवर्ण की हड्डी की गोली से बने हुए हार एवं ग्रैवेयक (धारण करने के कारण वे) अत्यन्त उज्ज्वल हैं । शव की लम्बी अङ्गुलियों की माला से उनका दृढ़ उरस्थल अलङ्कृत है । वे कठोर विशाल और ऊँचे दो स्तनों वाली हैं । इनके उत्तम नितम्ब महा मरकत पत्थर से निर्मित वेदी के समान (चिकने, कठोर और समतल) हैं । उनके जघन का विस्तार अत्यधिक है और कटि अत्यन्त क्षीण है ।
उद्यद्घनाघनाश्लिष्यज्जवा कुसुम सन्निभाम् ॥ मत्तकोकिलनेत्राभां पक्वजम्बूफलप्रभाम् । सुदीर्घप्रपदालम्बि विस्रस्तघनमूर्द्धाजाम् ॥ ज्वलदङ्गार वच्छोण नेत्रत्रितयभूषिताम् । उद्यच्छारदसंपूर्णचन्द्रकोकनदाननाम् ॥ दीर्घदंष्ट्रायुगोदञ्चद् विकराल मुखाम्बुजाम् । वितस्तिमात्र निष्क्रान्त ललज्जिह्वा भयानकाम् ॥ व्यात्ताननतया दृश्यद्वात्रिंशद् दन्तमण्डलाम् । निरन्तरम् वेपमानोत्तमाङ्गा घोररूपिणीम् ॥ अंसासक्तनृमुण्डासृक् पिबन्ती वक़कन्धराम् । सृक् कद्वन्द्वस्रवद्रक्त स्नापितोरोजयुग्मकाम् ॥ उरोजा भोग संसक्त संपतद्रुधिरोच्चयाम् । सशीत्कृतिधयन्तीं तल्लेलिहानरसज्ञया ॥ ललाटे घननारासृग् विहितारुणचित्रकाम् । सद्यश्छिन्नगलद्रक्त नृमुण्डकृतकुण्डलाम् ॥ श्रुतिनद्धकचालम्बिवतंसलसदंसकाम । स्रवदस्रौघया शश्वन्मानव्या मुण्डमालया ॥ आकण्ठ गुल्फलंबिन्यालङ्कृतां केशबद्धया । श्वेतास्थि गुलिका हारग्रैवेयकमहोज्ज्वलाम् ॥ शवदीर्घाङ्गुली पंक्तिमण्डितोरः स्थलस्थिराम् । कठोर पीवरोत्तुङ्ग वक्षोज युगलान्विताम् ॥ महामारकतग्राववेदि श्रोणि परिष्कृताम् । विशाल जघना भोगामतिक्षीण कटिस्थलाम् ॥ अंत्रनद्धार्भक शिरोवलत्किङ्किणि मण्डिताम् । सुपीनषोडश भुजां महाशङ्खाञ्चदङ्गकाम् ॥ शवानां धमनीपुञ्जैर्वेष्टितैः कृतकङ्कणाम् । ग्रथितैः शवकेशस्रग्दामभिः कटिसृत्रिणीम् ॥ शवपोतकरश्रेणी ग्रथनैः कृतमेखलाम् । शोभामानांगुलीं मांसमेदोमज्जांगुलीयकैः ॥ असिं त्रिशूलं चक्रं च शरमंकुशमेव च । लालनं च तथा कर्त्रीमक्षमालां च दक्षिणे ॥ पाशं च परशुं नागं चापं मुद्गरमेव च । शिवापोतं खर्परं च वसासृङ्मेदसान्वितम् ॥ लम्बत्कचं नृमुण्डं च धारयन्तीं स्ववामतः । विलसन्नूपुरां देवीं ग्रथितैः शवपञ्जरैः ॥ श्मशान प्रज्वलद् घोरचिताग्निज्वाल मध्यगाम् । अधोमुख महादीर्घ प्रसुप्त शवपृष्ठगाम् ॥ वमन्मुखानल ज्वालाजाल व्याप्त दिगन्तरम् । प्रोत्थायैव हि तिष्ठन्तीं प्रत्यालीढ पदक्रमाम् ॥ वामदक्षिण संस्थाभ्या नदन्तीभ्यां मुहुर्मुहुः । शिवाभ्यां घोररूपाभ्यां वमन्तीभ्यां महानलम् ॥ विद्युङ्गार वर्णाभ्यां वेष्टितां परमेश्वरीम् । सर्वदैवानुलग्नाभ्यां पश्यन्तीभ्यां महेश्वरीम् ॥ अतीव भाषमाणाभ्यां शिवाभ्यां शोभितां मुहुः । कपालसंस्थं मस्तिष्कं ददतीं च तयोर्द्वयोः ॥ दिगम्बरां मुक्तकेशीमट्टहासां भयानकाम् । सप्तधानद्धनारान्त्रयोगपट्ट विभूषिताम् ॥ संहारभैरवेणैव सार्द्धं संभोगमिच्छतीम् । अतिकामातुरां कालीं हसन्तीं खर्वविग्रहाम् ॥ कोटि कालानल ज्वालान्यक्कारोद्यत् कलेवरम् । महाप्रलय कोट्यर्क्क विद्युदर्बुद सन्निभाम् ॥ कल्पान्तकारणीं कालीं महाभैरवरूपिणीम् ।
महाभीमां दुर्निरीक्ष्यां सेन्द्रैरपि सुरासुरैः ॥ शत्रुपक्षक्षयकरीं दैत्यदानवसूदनीम् । चिन्तयेदीदृशीं देवीं काली कामकलाभिधाम् ॥ भावार्थ (कामकलाकाली का ध्यान) – यह देवी उगते हुए (सूर्य के साथ संश्लिष्ट रक्तवर्ण वाले) बादल के समान, सघन परस्पर संश्लिष्ट जवाकुसुम के समान, मत्त कोकिल के नेत्र के समान, पके हुए जामुन के फल की कान्तिवाली है । इसके बाल लम्बे, पैरों तक लटकने वाले बिखरे हुए तथा सघन हैं । जलते हुए अङ्गार के समान लाल रंग के तीन नेत्रों से यह विभूषित है । इसका मुख उगते हुए शारदीय पूर्णचन्द्र तथा लाल कमल के समान है । दो लम्बे दाँत बाहर ऊपर की ओर निकलने से विकराल मुखकमल वाली बतलायी गयी हैं । एक बीत्ता बाहर निकली हुई लपलपाती जीभ के कारण यह भयानक है । मुख के खोल देने के कारण बत्तीसो दाँत दिखलायी दे रहे हैं । इसका शिर निरन्तर काँप रहा है अतएव घोर रूप वाली है । गले में लटके हुए नरमुण्ड से निकलने वाले रक्त को पीती हुई अतएव वक्रकन्धे वाली कही गयी हैं । इसके दोनों स्तन दोनों जबड़ों से स्रवित होने वाले रक्त से उपलिप्त हैं । उसके विस्तृत स्तनों से लिपट कर रक्त की धारा गिर रही है । उस रक्त को लेलिहान जिह्वा से सीत्कार के साथ वह पी रही है । ललाट पर मनुष्य के सघन रक्त से लालरंग का चित्र बनायी हुई हैं । तत्काल कटे हुए अतएव गिरते हुए रक्त वाले नरमुण्ड का उसने कुण्डल धारण किया है । कानों में बँधे हुए बालों से लटकने वाला अवतंस (अंगूठी के आकार वाला कर्णाभूषण) कन्धे तक लटक रहा है । (शिर के) बालों से परस्पर बँधे हुए नरमुण्डों की माला, जिससे कि निरन्तर रक्त टपक रहा है, कण्ठ से लेकर गुल्फ तक लटक रही है । इस माला से वे अलङ्कृत हैं । श्वेतवर्ण की हड्डी की गोली से बने हुए हार एवं ग्रैवेयक (धारण करने के कारण वे) अत्यन्त उज्ज्वल हैं । शव की लम्बी अङ्गुलियों की माला से उनका दृढ़ उरस्थल अलङ्कृत है । वे कठोर विशाल और ऊँचे दो स्तनों वाली हैं । इनके उत्तम नितम्ब महा मरकत पत्थर से निर्मित वेदी के समान (चिकने, कठोर और समतल) हैं । उनके जघन का विस्तार अत्यधिक है और कटि अत्यन्त क्षीण है ।
Released:
May 20, 2023
Format:
Podcast episode
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"Yaadein Toh Yaadein Hoti Hain" A poem by Satyavati Jain by Rajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers