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विभीषण: Epic Characters  of Ramayana (Hindi)
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विभीषण: Epic Characters  of Ramayana (Hindi)
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विभीषण: Epic Characters of Ramayana (Hindi)

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About this ebook

रावण का अनुज था विभीषण। वह एक दैवभक्त धर्मी पुरुष था। रावण सीतापहरण कर लंका लाने के पश्चात् वह उन्हें बहुत समझाने की प्रयत्न करता है। परन्तु रावण उसका भरी सभा में अपमान करता है। इससे दुखित विभीषण अपने कुछ साथियों के साथ लंका छोड़कर श्री राम के शरण में आजाता है जो उस समय लंका के बाहर अपने सैन्य समेत ठहरे थे। श्रीराम युद्ध प्रारंभ होने से पहले विभीषण को लंका की चक्रवर्ती घोषित कर के उसका राज्याभिषेक करते हैं। राम-रावण की युद्ध में विभीषण श्रीराम को कई प्रकार से सहायता करता है।

Languageहिन्दी
Release dateMay 24, 2019
ISBN9789389020885
विभीषण: Epic Characters  of Ramayana (Hindi)

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    विभीषण - Smt. T. N. Saraswati

    प्रस्तावना

    श्रीरंग सदुरुवे नमः

    नारायण स्मरण

    ‘भारत संस्कृति प्रकाशन संस्था’ बेंगलोग के भारत दर्शन महान संस्था की ज्ञान संतान मानी जाती है । ‘महाभारत के महापात्र’ इस संस्था का प्रथम पुष्प है । हमने इसका स्वागत किया था । अब इसका द्वितीय कुसुम है - ‘रामायण के महापात्र’ । इसका भी स्वागत करते हुए हम आशीर्वाद देते हैं ।

    रामायण और महाभारत ग्रंथों में शैलीभेद पाथा जाता है । इसमें कोई संदेह नहीं की पात्रों के रूप - आकार समय - रचनाकाल आदि में भी काफी अंतर हैं । रामायण तो प्रधान रूप से काव्य है । सात काँडों में 24 हज़ार श्लोकों में ग्रंथित है । प्रधानतया त्रेतायुग के पात्रों के चित्रण से युक्त यह काव्य उसी युग के समकालीन कवि से रचित ग्रंथ रत्न है । लेकिन महाभारत तो प्रधानरूप से इतिहास है । 18 पर्वों में एक लाख श्लोकों का महाग्रंथ है । अधिकतर द्वापरयुग के पात्रों के चित्रण से युक्त है । उसी युग के समकालीन महाकवि से रचित ग्रंथरस्न है । हम यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि ये दोनों भारत के पृथक पृथक भातों की संस्कृतियों को दर्शाते हैं अनेक कवियों से रचित हैं और आर्यों के आक्रमण के अलग अलग काल तथा परिस्तितियों का चित्रण करते हैं । ऐसा होने पर भी ये दोनों वेदों के प्रतीक आर्षग्रंथ है । भारतीय संस्कृति के दर्पण हैं । भारत के राष्ट्रीय ग्रंथ हैं । भारत के सैकड़ों ग्रंथो के आकर ग्रंथ हैं । काव्यानंद के स्त्रोत होने के साथ - साथ धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष नामक चारों पुरुषायों के अक्षय निधि हैं । पात्रों के बीच युद्ध का चित्रण करके धर्म विजय की ‘दुंदुभि’ बजानेवाले भव्य सारस्वत हैं । सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक सत्यों का प्रचार करनेवाले विश्वसहित्य में स्थान पाए हुए अमर ग्रंथ हैं ।

    नारायण स्मरण के साथ हम यह आशा करते हैं कि संस्था के प्रथम ग्रंथमाला की शैली में ही रचित यह द्वितीय ग्रंथमाला भी पाठकों के आस्वादन का विषय बने; अवांछित साहित्य के दुर्गंध से रुपित किशोरों के मन को सुरभियुक्त बनाएँ; उनको सुशिक्षण देकर उनमें अच्छे आदर्श की अभिरुचि उत्पन्न कर दे; जनता में सुख शांति भर दे ।

    अष्टाँग योग विजान मंदिरम, बेंगलौर

    बहुधान्य संवत्सर के श्रवणशुद्ध द्वितीया

    बेंगलौर

    नारायणस्मरणों के साथ

    श्री श्री रंगप्रिय श्रीपाद स्वामीजी

    विभीषण

    श्रियै नमः

    कृतयुग में प्रजापति ब्रह्म के एक बेटा था जिसका नाम था ‘पुलस्तय’ । वह बड़ा प्रभावशाली था । वह ब्रह्मर्षी तथा तपस्वी था । इसकी पत्नी राजर्षि तृणबिन्दु की बेटी थी । वह अपने पति की सेवा करते हुए उसे संतोष पहुँचाती थी । जब पति वेदाभ्यास करता था तब वह

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